अनसेंसर्ड ओटीटी शोज़ से युवा पीढ़ी की बुनियाद कैसी बनेगी? देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए

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अनसेंसर्ड ओटीटी शोज़ से युवा पीढ़ी की बुनियाद कैसी बनेगी? देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए

-सुलेना मजुमदार अरोरा

कोरोना काल ने बॉलीवुड को जितना नुकसान पहुंचाया है उतना ही डिजिटल  दुनिया में ओवर द काउन्टर (ओटीटी) कहे जाने वाले फ़िल्मों ने वेब सीरीज और वेब फिल्म मेकर्स को मालामाल कर दिया। नेटफ्लेक्स, हॉट स्टार , अमाज़न प्राईम वीडियो, मिक्स प्लेयर्स, सोनी लिव, डिज़नी प्लस हॉट स्टार, वूट, ए एल टी बालाजी, जी 5 यही प्रमुख ओटीटी प्लैटफॉर्म डिजिटल वर्ल्ड में सबसे ज्यादा चर्चित है। इन प्लैटफॉर्म ने कोविड दौर में जहां घर की चारदिवारी में कैद दुनिया को मनोरंजन के माध्यम से बांधे रखा वहीं हाहाकार करते फिल्म उद्योग को मरने से बचा लिया और बड़ी बड़ी फ़िल्मों को स्टेल होने से पहले दर्शकों तक पहुंचाने का रास्ता दिया।

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बड़े से बड़े स्टार्स ने भी ओटीटी का पावर देख और महसूस कर लिया इसलिये बॉलीवुड के टॉप स्टार्स भी ओटीटी का  रुख करने लगे। इस माध्यम ने दीपिका पादुकोण से लेकर, शाहरुख खान, सलमान खान, अनुष्का शर्मा, तापसी पन्नू, कीर्ति कुलहारी, मसाबा सबको आकर्षित किया और दर्शकों ने भी माना कि यह ओटीटी प्लेटफॉर्म, कन्टेन्ट प्रधान, फूड फॉर थॉट टाइप की बेह्तरीन फ़िल्में देखने का सुनहरा मौका देती है, लेकिन इसी बीच एक और कंटेंट ने अपना फन धीरे से फैलाया जैसे धान के खेत में उगने वाले खरपतवार। यानी अच्छे, ज्वलन्त मुद्दों के शोज और फ़िल्मों के साथ साथ ओटीटी प्लैटफॉर्म में ऐसी ऐसी बोल्ड, सेक्सी और हिंसा से भरपूर फ़िल्में चुपके चुपके परोसी जाने लगी है कि अब अच्छी और  साफ-सुथरी मनोरंजक फ़िल्में बनाने वाले वेब शोज और वेब फिल्म मेकर्स भी हैरान और परेशान हैं कि उनके वफादार दर्शक किस तरह धीरे धीरे अपना टेस्ट बदलने लगे हैं और उनका दामन छोड़ कर उन सरापा अर्ध नग्न बोल्ड, अनैतिक रिश्तों को पालने पोसने और हिंसात्मक विचार फैलाने वाले ओटीटी फिल्म्स की ओर झुकने लगे हैं हालांकि सबका मानना है कि ये बोल्ड और बिना कोई भी सेंसर की मांसल भूख को मिटाने टाइप की फ़िल्मों का भविष्य अच्छा नहीं क्योंकि कोई कब तक आँखों के जरिए अपनी भूख मिटा सकता है? और जो फ़िल्में कोई परिवार एक साथ बैठकर नहीं देख सकता, उसका भविष्य प्रत्येक घर के लिविंग रूम में तो रहने वाला नहीं।

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लेकिन जब तक साँस तब तक आस के तर्ज पर नई नई स्ट्रगल करती नवोदितायें और नवोदित कलाकार, मौके पर चौका लगाने से नहीं चूक रहे है और एक से बढ़कर एक नग्न दृश्य, आपत्तिनजक दृश्य, हिंसा और अनैतिक, अप्राकृतिक दृश्य बिंदास करते जा रहे हैं, यानी कोरोना काल में वेब की दुनिया का जितना फायदा उठाना है उठा लो फिर जब सौ प्रतिशत बिग थिएटर खुल जाएंगे तब उन्हें ज्यादा से ज्यादा दर्शक तक पहुंचने का मौका शायद नहीं मिले, इसलिए इन्सटेंट कॉफी की तरह इन्सटेंट प्रसिद्धी और मनी पाने के लिए नवोदित एक्टर एक्ट्रेस अनसेंसर्ड डिजिटल दुनिया के स्टार बनते जा रहे हैं। एक जमाना वह था जब मनोरंजन के लिए थिएटर में फ़िल्में देखी जाती थी, फिल्मों से पहले सर्कस और नाटक भी हुआ करती थी। उसके बाद आया टेलीविजन और फिर  केबल ऑपरेटर, लेकिन आजकल ओटीटी एक ऐसा विकल्प बन गया है जिसमें कोई भी, कभी भी, कुछ भी देखने का लुत्फ उठा सकते हैं बिना किसी सेंसर के, बिना उम्र के लिहाज के। बस, यहीं पर अब समस्या उठ खड़ी हो रही है और पेरेंट्स तथा भद्र समाज को यह अनसेंसर्ड फ़िल्मों से अब भय लगने लगा है कि य़ह नया कन्टेन्ट नव पीढ़ी को किस रास्ते पर ले जायगा? इन चिंतित गार्जिअंस का  कहना है कि  इंसान जो देखता है वही वह सोचता है, जो वह सोचता है वही वह बोलता है, जो वह बोलता है वही वह करता है और जो वह करता है वही वह बन जाता है, इसलिए लब्बोलुआब य़ह है कि इंसान जो देखता है वही वो बनता है।

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अब यहां सवाल यह है कि युवा पीढ़ी आजकल ज्यादातर अपने मोबाइल, लैपटॉप पर क्या देखते है? क्या पसंद करने लगे है? बानगी के तौर पर 'मस्तराम' , 'आश्रम', 'चरम सुख' जैसे कन्टेंट से बच्चे क्या सीख रहे हैं, और सीख कर क्या बन रहे हैं? कौन सी भाषा, कौन से मनोभावों को आत्मसात कर रहे हैं? वल्ग़र दृश्य, वल्ग़र भाषा, हिंसा, अनैतिकता? पैसा कमाने के लिए ऐसी ऐसी वेब फ़िल्में, वेब शोज बन रही है, जेबें भरी जा रही है, लेकिन नव पीढ़ी के दिल दिमाग में जो भर रहा है उसका जिम्मेदार कौन? माता पिता शिक्षक गुरुजन तो हो नहीं सकते क्योंकि इस तरह के कन्टेन्ट युवा पीढ़ी छुपकर ही देखते हैं। यानी किसी के भी माइंड को करप्ट करने के लिए कौन जिम्मेदार है? जाहिर है इसके मेकर्स जिम्मेदार है जिन्हें समाज कल्याण से कुछ लेना देना नहीं, उन्हें अपनी जेबे भरने से फुर्सत कहाँ। मजे की बात य़ह है कि इन मेकर्स को अपने बच्चों की भी परवाह नहीं बल्कि वे तो अपने बच्चों को एक नई तरह की बिजनैस की बुनियाद बना कर दे रहे हैं।

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फिल्म, टेलिविजन, केबल टीवी पर सख्त सेंसर होने के कारण इस तरह के पियोर एडल्ट (सेक्स, हिंसा, गंदी भाषा) शोज देखने के लिए नव पीढी/ टीन एजर्स को ओटीटी का ही सहारा है जिसे वे बिना कोई रोक टोक के देख पाते हैं और जो देखते हैं वही बनते है। तो हमारी भावी पीढ़ी को सही रास्ता अगर दिखाना है, अच्छा इंसान, भद्र इंसान बनाना है तो सरकार को इस तरह के ओटीटी कंटेंट्स पर कुछ कायदे क़ानून लगाना ही पड़ेगा वर्ना कहीं देर ना हो जाए। दूसरी बात यह है कि अब पैरेंट्स और गार्जियन को भी अपने बच्चों और युवा पीढ़ी से खुलकर सेक्स या किसी भी टैबू मुद्दे पर सभ्य भाषा में बात करके उन्हें सब बताना और समझाना शुरू करना चाहिए, सेक्स और हर वर्जित टॉपिक पर बच्चों के मन में उठते सवालों का माता पिता या गार्जियन को सही ज़वाब खुलकर देना चाहिए ताकि वे अपने मन की जिज्ञासाओं को पोर्न और हिंसा से भरपूर फ़िल्मों और शोज के जरिए देखने का लोभ छोड़ सके।

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