लता जी को माँ सरस्वती स्वयं आयी थीं लेने, देवानन्द फ़ेंस फ़ोरम की तरफ़ से भावपूर्ण श्रधांजलि By Mayapuri Desk 07 Feb 2022 in गपशप New Update Follow Us शेयर लता जी का जन्म 28 सितम्बर को बस देव साब के जन्म दिन यानी 26 सितम्बर के दो दिन बाद हुआ और दोनो का साथ जो कि फ़िल्म ज़िद्दी से शुरू हुआ क़रीब पचास साल तक रहा! लता जी के इस दुनिया से जाने के बाद जो हिंदी फ़िल्म संगीत को अपूरणीय छति हुई है उसकी भरपाई मुश्किल ही नहीं बल्कि असम्भव है! कितने ही मधुर गाने हैं जो कि जाने अनजाने होठों पर आ जाते हैं और दिल को सुकून दे जाते हैं जैसे कि: तुम ना जाने किस जहां में ख़ो गए, अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम, रंगीला तेरे रंग मैं यूँ रंगा है, राधा ने माला जपी श्याम की, आएगी आएगी किसी को हमारी याद आएगी और ना जाने कितने ही गीत. दुनिया मैं लोग कहते हैं की भारत की तुलना मैं उनके पास सब कुछ है सिवाय लता मंगेशकर और ताजमहल के. हिंदी फ़िल्म मैं कितने ही महान गायक और गायकाएँ हुए हैं लेकिन जितने गाने लता जी के मशहूर हुए हैं उतने किसी के नहीं हुए. माँ सरस्वती ने उनके गले मैं वास किया हुआ था शायद ये कहना कोई अतिशयोक्ती नहीं होगी. -देवानन्द फ़ेंस फ़ोरम की तरफ़ से भावपूर्ण श्रधांजलि लता जी को माँ सरस्वती स्वयं आयी थीं लेने: लता जी का शरीर पूरा हो गया। परसों सरस्वती पूजा थी, कल माँ विदा हो गई। लगता है जैसे माँ सरस्वती इस बार अपनी सबसे प्रिय पुत्री को ले जाने ही स्वयं आयी थीं। मृत्यु सदैव शोक का विषय नहीं होती। मृत्यु जीवन की पूर्णता है। लता जी का जीवन जितना सुन्दर रहा है, उनकी मृत्यु भी उतनी ही सुन्दर हुई है। 93 वर्ष का इतना सुन्दर और धार्मिक जीवन विरलों को ही प्राप्त होता है। लगभग पाँच पीढ़ियों ने उन्हें मंत्रमुग्ध हो कर सुना है, और हृदय से सम्मान दिया है। उनके पिता ने जब अपने अंतिम समय में घर की बागडोर उनके हाथों में थमाई थी, तब उस तेरह वर्ष की नन्ही जान के कंधे पर छोटे छोटे चार बहन-भाइयों के पालन की जिम्मेवारी थी। लता जी ने अपना समस्त जीवन उन चारों को ही समर्पित कर दिया। और आज जब वे गयी हैं तो उनका परिवार भारत के सबसे सम्मानित प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है। किसी भी व्यक्ति का जीवन इससे अधिक सफल क्या होगा? भारत पिछले अस्सी वर्षों से लता जी के गीतों के साथ जी रहा है। हर्ष में, विषाद में,ईश्वर भक्ति में, राष्ट्र भक्ति में, प्रेम में, परिहास में... हर भाव में लता जी का स्वर हमारा स्वर बना है। लता जी गाना गाते समय चप्पल नहीं पहनती थीं। गाना उनके लिए ईश्वर की पूजा करने जैसा ही था। कोई उनके घर जाता तो उसे अपने माता-पिता की तस्वीर और घर में बना अपने आराध्य का मन्दिर दिखातीं थीं। बस इन्ही तीन चीजों को विश्व को दिखाने लायक समझा था उन्होंने। सोच कर देखिये, कैसा दार्शनिक भाव है यह... इन तीन के अतिरिक्त सचमुच और कुछ महत्वपूर्ण नहीं होता संसार में। सब आते-जाते रहने वाली चीजें हैं। कितना अद्भुत संयोग है कि अपने लगभग सत्तर वर्ष के गायन कैरियर में लगभग 36भाषाओं में हर रस/भाव के 50 हजार से भीअधिक गीत गाने वाली लता जी ने अपना पहले और अंतिम हिन्दी फिल्मी गीत के रूप में भगवान भजन ही गाया है। 'ज्योति कलश छलके' से 'दाता सुन bhi ले' तक कि यात्रा का सौंदर्य यही है कि लताजी न कभी अपने कर्तव्य से डिगीं न अपने धर्म से! इस महान यात्रा के पूर्ण होने पर हमारा रोम रोम आपको प्रणाम करता है लता जी #Lata Mangeshkar #about lata mangeshkar हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article