सुप्रसिद्ध फिल्म मेकर मणि रत्नम ने कहा कि पैन इंडिया फ़िल्म आज से  चौंसठ साल पहले भी बनी थी, लेकिन...

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सुप्रसिद्ध फिल्म मेकर मणि रत्नम ने कहा कि पैन इंडिया फ़िल्म आज से  चौंसठ साल पहले भी बनी थी, लेकिन...

-सुलेना मजुमदार अरोरा 

एक नए सॉफ्टवेयर 'हनी फ्लिक्स' के लॉन्च के अवसर पर विख्यात फिल्म मेकर मणि रत्नम ने मीडिया से मुखातिब होकर फिल्म मेकिंग के नए नए टेक्नॉलजी, कलाकारों के पारिश्रमिक और पैन इंडिया फ़िल्मों के ट्रेंड्स के बारे में बातचीत की। जब नए नए सॉफ्टवेयर के द्वारा बेहतर तरीके से फिल्म प्रॉडक्शन को मैनेज करने और फ़िल्मों को कॉस्ट एफिशिएंट बनाने को लेकर मणि रत्नम से सवाल किए गए तो वे बोले, 'कोई भी उपकरण और साधन जो हमें बेहतर फ़िल्में बनाने में मदद करे उसका स्वागत है। फिल्म बनाना एक बहुत महंगी कला है और इसलिए बजट को नियन्त्रण में रखना जरूरी है ताकि हम ज्यादा बेहतर फ़िल्में बना सके। मुझे यह देख कर बहुत खुशी हो रही है कि आज बेहतर सिनेमा बनाने के तरीकों के साथ कितने सारे बेहतरीन तकनीकियों का प्रवेश हुआ है। मुझे उम्मीद है कि मैं अपनी अगली फिल्म में इसका इस्तेमाल कर सकता हूं। फिल्म मेकिंग सिर्फ अकेले कला से नहीं हो सकता है,  उसमें वाणिज्य समन्वय और प्रबंधन भी होता है, आज दुनिया में कोई भी फिल्म, तरह-तरह के सॉफ्टवेयर के बिना बनता नहीं है। यानी सॉफ्टवेयर की बहुत जरूरत होती है।'

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बात जब बजट कंट्रोल की उठी तो सवाल ये किया गया कि फ़िल्मों में  सुपर स्टार्स को इतना ज्यादा पारिश्रमिक क्यों दिया जाता है तो इसपर उन्होंने कहा,'किसी फिल्म के एक्टर्स को कितना पारिश्रमिक दिया जाएगा ये निर्माता तय करते हैं, उनके बीच क्या और कितना पारिश्रमिक निर्धारित होता है वो सिर्फ उनके बीच होता है, बाकी फिल्म बनाते हुए जो कुछ भी खर्च होता है वो प्रॉडक्शन कॉस्ट के तहत आता है। उसमें कितना और कैसे दक्ष एवं प्रभावी हुआ जाए यह बहुत जरूरी है जो हनी फ्लिक्स जैसे सॉफ्टवेयर की मदद से किया जा सकता है।' बात जब पैन इंडिया फ़िल्मों जैसे बाहुबली, केजीएफ फ्रैंचाइजी, आरआरआर के बारे में उठी कि किस तरह अन्य इंडस्ट्रीज द्वारा निर्मित फ़िल्में पूरे भारत में सफ़लता के परचम लहरा रही है

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तो इसपर अनुभवी मनी रत्नम (जिनकी कई सारी फ़िल्में जैसे रोज़ा, बॉम्बे भी पैन इंडिया फ़िल्में ही थी) ने कहा 'जिस तरह से पैन इंडिया फ़िल्मों की धूम के बारे में शोर शराबा चल रहा है वो दरअसल आज के समय की बात नहीं है। बरसों पहले, 1948 में भी पैन इंडिया फिल्म हमारे यहां बनी थी, नाम था 'चंद्रलेखा' (एस एस वासन कृत), वो फिल्म उत्तर भारत में भी खूब चली थी, लेकिन तब इसपर कोई चर्चा नहीं हुई थी, दरअसल ऐसी फ़िल्में बनना हालांकि नई बात नहीं है, लेकिन क्योंकि आज के समय में, इस तरह की फ़िल्में, ज्यादा संख्या में बनकर रिलीज होती जा रही है इसलिए इसकी इतनी चर्चा है। लेकिन यह अच्छी बात है अगर किसी फिल्म को ज्यादा दर्शक मिल रही है। इस ट्रेंड को कोई रोक नहीं सकता। हम हॉलिवुड की फ़िल्मों को तमिल में डब करके अगर देख सकते है तो डब की हुई कन्नड़ फ़िल्में क्यों नहीं देख सकते। बस हमें इतना करना जरूरी है कि बड़ी फ़िल्में बनाते हुए कुछ ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है यानी हमारा मुख्य उद्देश्य यह होना चाहिए कि जिस तरह की लागत उस फिल्म को बनाने में लगाई जा रही है वो उस फिल्म में दिखना चाहिए।'

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जब उनसे सवाल किया गया कि अगर पैन इंडिया फ़िल्में नई नहीं है और वर्षों पहले 'चन्द्रलेखा' और 'रोज़ा' भारत भर में देखी गई थी तो उस वक़्त ये ट्रेंड क्यों नहीं बनी और आज क्यों बन गई है तो इसपर मणि जी ने कहा, “प्रश्न का पहला भाग अब कोई मायने नहीं रखता, जहां तक आज की बात है तो आज लोग ज्यादा खुले विचारों के हैं और फिल्म निर्माता भी इसे अपना रहे हैं।' जब मणि जी से पूछा गया कि क्या तमिल फ़िल्में अन्य राज्यों में कुछ ऐसा ही कमाल कर सकती है और तमिल सिनेमा क्यों तेलुगु और कन्नड़ सिनेमा को मैच नहीं कर पा रही है तो उन्होंने मुस्कराते हुए उत्तर दिया,'यदि फिल्म अच्छी होगी तो जरूर वो हर सीमा को तोड़कर देश विदेश में देखी जाएगी। सब कुछ हमारे हाथ में है। तमिल सिनेमा का स्तर बहुत ऊंचा और सम्पन्न है, बहुत सारे नए युवा बेहद प्रतिभाशाली फिल्म मेकर्स आज अपने नए और अभूतपूर्व विचार और अवधारणा के साथ मौजूद है, बहुत सारे यंग फिल्म मेकर्स, फिल्म मेकिंग के नए आयाम स्थापित कर रहे हैं और मुझे इस बात पर बहुत गर्व है। तमिल सिनेमा को चिंता करने की जरूरत नहीं क्योंकि वहां प्रतिभाओं का खजाना है जिसकी चमक से कोई इंकार नहीं कर सकता।'

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मणि रत्नम की नवीनतम मल्टीलिंगुएल पीरियड फिल्म 'पोन्नीयिन सेलवान 1' की शूटिंग पूरी हो चुकी है और तीस सितंबर को रिलीज़ होने वाली है।

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