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मालिका के लिए अपना घर बेचने वाले, मैंने गांधी को क्यों मारा फिल्म के किरदार नाथूराम गोडसे को निभाने वाले अभिनेता और सांसद, अमोल कोल्हे पर बवाल!

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मालिका के लिए अपना घर बेचने वाले, मैंने गांधी को क्यों मारा फिल्म के किरदार नाथूराम गोडसे को निभाने वाले अभिनेता और सांसद, अमोल कोल्हे पर बवाल!

फिल्म 30 जनवरी 22 को प्रर्दशित

के.रवि (दादा)

अपने भारत देश के कई महापूरूर्षो में से डॉक्टर. बाबासाहेब आंबेडकर , छत्रपति शिवाजी महाराज , सुभाष चंद्र बोस , शहिद भगत सिंह एवम महात्मा गांधी गांधी को लेकर अक्सर कोई ना कोई अच्छा बुरा बवाल खड़ा होता गया है और होता ही रहेगा। अब यही देखिएगा की मुंबई के राष्ट्रवादी कांग्रेस के सांसद एवम अभिनेता. अमोल कोल्हे पेशे से ने निर्माता अशोक त्यागी की फिल्म मैंने गांधीको क्यों मारा में नथूराम गोडसे का किरदार निभाया हैं। जिसे लेकर महाराष्ट्र से दिल्ली तक बड़ा बवाल मचा हुआ है। ज्ञात हो की राजा शिव छत्रपति में अमोल कोल्हे छत्रपति शिवाजी के रोल के बाद काफी चर्चित भी हुए थे।  इसके बाद वे राजनीति में आ गए। 2014 में शिवसेना के स्टार प्रचारक थे।  फरवरी 2019 में कोल्हे ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जॉइन कि।

और अब महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे पर शॉर्ट फिल्म को लेकर महाराष्ट्र में बवाल मचा हुआ है।  फिल्म का नाम है, why I killed Gandhi (मैंने गांधी को क्यों मारा?) यह फिल्म 2017 में बनी थी। इसे अब रिलीज किया जा रहा है।  इस फिल्म को लेकर बवाल इसलिए मचा है, क्योंकि फिल्म में गोडसे की भूमिका कोई और नहीं बल्कि एनसीपी सांसद अमोल कोल्हे निभा रहे हैं।

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अमोल कोल्हे छत्रपति शिवाजी के रोल के बाद काफी चर्चित भी हुए। शिवसेना जैसे तमाम हिंदू दक्षिणपंथी राजनीतिक संगठन गोडसे को लंबे वक्त से एक देशभक्त के रूप में बताते रहे हैं।

कोल्हे ने शिवसेना में रहते  फिल्म में गोडसे की भूमिका निभाई थी। लेकिन फिल्म का प्रदर्शन अब हो रही है, जब की अमोल कोल्हे अब  एनसीपी के सांसद हैं।  एनसीपी अपनी सहयोगी कांग्रेस की तरह ही गोडसे को देशभक्त कहे जाने के खिलाफ है।

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नथूराम गोडसे पर जबरदस्त वैचारिक मतभेद और उनकी भूमिका निभाने को लेकर अमोल  कोल्हे ने इस बवाल पर सोशल मीडिया पर लंबी पोस्ट लिखकर अपनी स्थिति स्पष्ट की है।  उन्होंने लिखा, 'रील लाइफ' और 'वास्तविक जीवन' के बीच एक रेखा खींचने की जरूरत है, अमोल कोल्हे ने कहा कि एक कलाकार के रूप में काम करते समय कुछ भूमिकाएं चुनौतीपूर्ण होती हैं, भले ही वे चरित्र की विचारधारा से सहमत न हों। कोल्हे ने लिखा, जनता को भी खुले दिमाग और विचारों से एक आर्टिस्ट के काम को देखना चाहिए।

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हालांकि एनसीपी में ही अमोल कोल्हे के सहयोगी, महाराष्ट्र के आवास मंत्री जितेंद्र आव्हाड ने कहा कि अमोल कोल्हे बहुत अच्छे अभिनेता हैं , लेकिन उन्हें गोडसे की भूमिका नहीं निभानी चाहिए थी ? जितेंद्र आव्हाड ने कहा, मैंने सभी गांधी विरोधी फिल्मों का विरोध किया है।  यह एक वैचारिक विरोध है जो मेरा है। जब कोई अभिनेता किसी विशेष चरित्र को निभाता है तो वह चरित्र के विचार में आ जाता है।  उन्होंने कहा, एक सांसद के लिए इस तरह की भूमिका निभाना गलत है। कलाकार को समाज के साथ खड़ा होना चाहिए। विरोध तो  होता है। एक अभिनेता और एक व्यक्ति के रूप में भूमिका दो अलग-अलग चीजें नहीं हो सकती हैं।

हालांकि, महाराष्ट्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्री और एनसीपी नेता राजेश टोपे ने इस पर कहा, 'मैंने गांधी को क्यों मारा?' यह 45 मिनट की फिल्म है। अमोल कोल्हे एक अच्छे अभिनेता और एक अच्छे कलाकार के रूप में जाने जाते हैं। भले ही उन्होंने नाथूराम गोडसे की भूमिका निभाई, उन्हें एक कलाकार के रूप में देखा जाना चाहिए।

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वहीं, कांग्रेस नेता और राज्य सरकार में मंत्री असलम शेख ने कहा, अमोल कोल्हे एक अभिनेता हैं।  उन्हें जो भूमिका  मिली , वह उन्होंने कि। इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए।  कलाकार के लिए जो मायने रखता है वह है भूमिका और उसे इसके लिए पैसा मिलता है।  आगामी हिंदी फिल्म में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे की भूमिका निभाने के लिये विभिन्न वर्गों में आलोचना का शिकार हो चूके इस अभिनेता व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी  के सांसद अमोल कोल्हे ने जोर देकर कहा कि वह गांधीवादी विचारों में ''दृढ़ विश्वास'' रखते हैं। अमोल कोल्हे ने कहा कि उन्होंने एक अभिनेता के तौर पर खुद को चुनौती देने के लिये ही विवादित भूमिका निभाने का निर्णय लिया। अभिनेता व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के सांसद अमोल  ने  कहा कि  वह गोडसे की विचारधारा का समर्थन नहीं करते।

अशोक त्यागी द्वारा निर्देशित और कल्याणी सिंह द्वारा निर्मित फिल्म ''वाइ आई किल्ड गांधी'' में यह 41 वर्षीय अभिनेता-राजनीतिक नेता महात्मा गांधी के हत्यारे की भूमिका में दिखेंगे। फिल्म की शूटिंग 2017 में हुई थी और 30 जनवरी को यह एक ‘ओवर द टॉप’ (ओटीटी) प्लेटफॉर्म पर गांधीजी जी की स्मृति दिन पर  प्रदर्शित होने वाली है। साल 1948 में इसी दिन गांधी की हत्या की गई थी।

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फिल्म का ट्रेलर ऑनलाइन जारी होने एक महीने बाद ही अभिनेता की भूमिका को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। दो मिनट 20 सेकेंड के ट्रेलर में कोल्हे को गोडसे की भूमिका में गांधी के खिलाफ अपना आक्रोश प्रकट करते हुए देखा  जा चुका   हैं। नथुराम गोडसे का मानना था कि पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार के लिये गांधी जिम्मेदार थे। इस पर अमोल कोल्हे ने  कहा, ''यह एक अलग तरह की चुनौती थी। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि मैं उसकी विचारधारा में विश्वास नहीं करता और फिर भी मुझे उसकी भूमिका निभानी पड़ी। उन्होंने कहा, ''मैं इस विचारधारा का पालन करता हूं कि किसी भी हत्या को उचित नहीं ठहराया जा सकता। आप हत्या को सही नहीं ठहरा सकते और मेरी विचारधारा भी यही है। मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि यह (गांधी की हत्या) भारतीय इतिहास की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में से एक है और किसी की हत्या को कभी उचित नहीं ठहराया जा सकता।

फिर भी इस बीच कोल्हे की पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा, ''फिल्म में अभिनय करने के डॉ. अमोल कोल्हे के फैसले को एक कलाकार की पसंद के रूप में देखा जाना चाहिए। लघु  फिल्म मैंने गांधी को क्यों मारा के 'निर्माता: कल्याणी सिंह, निदेशक: अशोक त्यागी, नाथूराम गोडसे अमोल कोल्हे सिनेमैटोग्राफर द्वारा निभाई गई: संजीव सूद, साउंड: शिव दास, संपादक: भारत बारिकी,

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बोल: फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, संगीत: हृजू रॉय

मान सिंह की 'व्हाई आई किल्ड गांधी' (मैंने गांधी को क्यों मारा) गांधी के मर्डर ट्रायल के दौरान माननीय अदालत में नाथूराम गोडसे द्वारा प्रस्तुत कानूनी बयान को पर्दे पर उतारा गया है। जस्टिस आत्म चरण की अनुमति से नाथूराम गोडसे ने कोर्ट के सामने बयान पढ़ा था। पूरे बयान को पढ़ने में लगभग साढ़े चार घंटे लगे थे। बाद में इसे एक किताब की शक्ल में प्रकाशित किया गया,जिसका शीर्षक था, “मैंने गांधी को क्यों मारा”, जो स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है।

मान सिंह का कहना है, 'हर कोई जानता है कि गांधी जी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी, लेकिन किसी को नहीं पता है कि उन्हें इतना बड़ा कदम उठाने के लिए किसने प्रेरित किया। एक धारणा बनाई गई है कि नाथूराम गोडसे एक आतंकवादी या मानसिक रूप से असंतुलित हिंदू चरमपंथी था।'

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हालाँकि, मान सिंह का ये भी कहना है कि जब उनका बयान पढ़ते हैं तो पता चलता है कि वे पुणे के एक स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थे और उन्होंने वहाँ से ‘अग्रणी’ नाम के अखबार का संपादन किया था। 1964 में भारत सरकार ने न्यायमूर्ति जेएल कपूर के अधिकार क्षेत्र में व्यक्ति आयोग की स्थापना की जो गांधी जी की हत्या के कारणों की जांच करने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश थे। न्यायमूर्ति जेएल कपूर ने 1970 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। फिल्म के शुरुआती 10 मिनट में उसी रिपोर्ट के चैप्टर 12से चयनित अंशों को लिया गया है।

फिल्म के शेष 35 मिनट गोडसे द्वारा अदालत में प्रस्तुत कानूनी बयानों को फिल्माया गया है। इस किताब मैने गांधी को क्यों मारा के लेखक  मान सिंह की माने तो फिल्म में बोला गया प्रत्येक शब्द कानूनी दस्तावेजों से लिए गए शब्दों का अनुवाद है। नाथूराम गोडसे को फांसी दिए जाने के बाद से फिल्म जो खुलासा करती है उसे दबा दिया गया था। ये 20वीं शताब्दी के भारत के इतिहास को देखने के लिए एक मौलिक वैकल्पिक परिप्रेक्ष्य देता है।  कल्याणी सिंह द्वारा निर्मित और अशोक त्यागी द्वारा निर्देशित व्हाई आई किल्ड गांधी 30 जनवरी 2022 को रिलीज़ हो रही है। निर्माता के मुताबिक इस फिल्म का चयन ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल नोएडा (जीएफएफएन- 2021) और खजुराहो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (केआईएफएफ-2021) हुआ है।

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मराठी फिल्मों के अभिनेता और एनसीपी सांसद अमोल कोल्हे को विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अमोल कोल्हे से गोडसे पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा। पश्चिमी महाराष्ट्र के शिरूर से सांसद अमोल कोल्हे ने शुक्रवार को एक वीडियो संदेश जारी किया था।

नथुराम गोडसे का रोल करने के पीछे की परिस्थितियों के बारे में अमोल कोल्हे ने कहा कि छत्रपति शिवाजी की भूमिका निभाने के बाद वह टीवी पर या किसी फिल्म में छत्रपति संभाजी (शिवाजी के पुत्र) की भूमिका निभाना चाहते थे। एमबीबीएस कर चुके कोल्हे ने कहा कि उन्हें संभाजी पर एक धारावाहिक के लिए प्रस्ताव मिला, लेकिन कुछ दिनों के बाद शूटिंग रुक गई। उन्होंने कहा कि उसी समय, 2017 में उन्हें अशोक त्यागी की निर्देशित फिल्म में नथुराम गोडसे की भूमिका निभाने का प्रस्ताव मिला। अमोल  कोल्हे ने कहा कि दिवंगत अभिनेता. नीलू फुले या प्राण जैसे अभिनेताओं ने फिल्मों में नकारात्मक भूमिकाएं निभाईं, लेकिन वास्तविक जीवन में वे प्रगतिशील व्यक्ति थे।

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कोल्हे ने कहा कि उन्होंने इस फिल्म का प्रचार भी नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘2017 में अभिनेता के तौर पर मैं फिल्मों में भूमिका पाना चाहता था। इसे उसी संदर्भ में समझा और देखा जाना चाहिए।’ इस बीच, कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई के प्रमुख नाना पटोले ने कहा कि उनकी पार्टी गांधी की हत्या करने वालों का समर्थन और प्रचार करने की निंदा करती है।

महाराष्ट्र प्रदेश भाजपा प्रमुख चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि अमोल  कोल्हे को गोडसे और उसके विचारों पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए क्योंकि उनके नेता एनसीपी सुप्रीमों शरद पवार गोडसे के विचारों को स्वीकार नहीं करते। हालांकि एनसीपी की महाराष्ट्र इकाई के प्रमुख जयंत पाटिल ने अमोल कोल्हे का बचाव करने का प्रयास किया। पाटिल ने कहा, ‘कोल्हे ने 2017 में फिल्म की शूटिंग पूरी की। वह 2019 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले एनसीपी में शामिल हुए थे। उस फिल्म के बाद कोल्हे ने एक मराठी धारावाहिक में छत्रपति शिवाजी महाराज की भूमिका भी निभाई। लोगों ने उन्हें अभिनेता के साथ-साथ सांसद के रूप में भी स्वीकार किया है।’ पाटिल ने कहा, ‘लोकसभा में भी उनका प्रदर्शन अच्छा है। आप उनके भाषणों को यूट्यूब पर देख सकते हैं। उन्होंने शाहू महाराज, ज्योतिराव फुले और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जैसे महान समाज सुधारकों के विचारों का भी समर्थन किया है। हम (गोडसे पर आधारित) फिल्म की निंदा करते हैं।

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हिट, शेयर, लाइक, पेज लिंक, फेसबुक पोस्ट, व्हाट्सएप वायरल, टिवाटिवैट, यूट्यूब के आज के युग में छपे शब्द आज भी मूल्यवान और मूल्यवान हैं। इतिहास के पन्ने खंगाल कर इस बात का एहसास होना चाहिए। उथला पानी बहुत शोर करता है। जितना अधिक नकारात्मक शब्द आप कहते हैं, लिखते हैं, व्यक्त करते हैं, उतना ही अधिक आपको प्रचार मिलेगा। यह एक नियम है जो वर्तमान स्थिति पर लागू होता है। अब मैंने गांधी क्यों मारा? यह ओटीटी  प्लेटफॉर्म पर प्रर्दशित होनेवाली नाथूराम गोडसे की आत्मकथा पर लघु फिल्म है। पूरी फिल्म राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के दिन 30 जनवरी को लाइमलाइट नामक ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित की जाएगी।  ढाई मिनट के ट्रेलर में 45 मिनट की फिल्म की एक झलक। लेकिन  अभिनेता. अमोल कोल्हे की धैर्यवान आवाज ने एक नया विवाद खड़ा कर है। इस फिल्म में बेशक नाथूराम नायक की भूमिका में वे हैं और महात्मा गांधी खलनायक की भूमिका में हैं। लेकिन, असली विवाद वो हैं डॉ.  अमोल कोल्हे की धीरगंभीर आवाज की वजह से।  ट्रेलर में फिल्म व्हाई आई किल्ड गांधी में बतौर अभिनेता नुथरम गोडसे का रोल उनका  नजर आ चुका है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या करने वाले नाथूराम की महिमा पहले भी कई बार हुई है और जारी है।  हमारे यहां बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो तीखे स्वाद के साथ मसालेदार खाना खाते हैं।  उनका इतिहास और समाज से कोई लेना-देना नहीं है।  चूंकि फिल्म 30 जनवरी 2022 को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के अवसर पर रिलीज होगी, यह सभी स्तरों पर इतनी लोकप्रिय हो गई है कि प्रगतिवादियों, प्रतिक्रियावादियों, कट्टरपंथियों, कटु हिंदुओं, वामपंथियों और दक्षिणपंथियों के खिलाफ सामाजिक युद्ध भी उग्र है।

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व्हाई आई किल्ड गांधी का निर्देशन अशोक त्यागी ने किया है। इस महान प्रतिभा ने साहसपूर्वक दावा किया है कि यह फिल्म वस्तुनिष्ठ जानकारी और साक्ष्य पर आधारित है। और इसके किरदार के लिए अमोल कोल्हे का सही चयन है। इसे देखकर दुनिया के महान क्रांतिकारी नाथूराम गोडसे की वीरता को सिद्ध करने के लिए शरद पोंक्षे ने 'मैं नाथूराम बोल रहा हूं' का प्रयोग किया है। यह नाटक अब तक 800 से अधिक बार प्रस्तुत किया जा चुका है। भले ही अब इस नाटक पर प्रतिबंध लगा दिया गया हो, लेकिन नाथूराम गोडसे समय-समय पर कई ना कई जागते रहते हैं। मराठी फिल्म काकास्पर्शफेम महेश मांजरेकर ने पिछले साल 2 अक्टूबर 2021 को ही बापू की 152वीं जयंती के अवसर पर गोडसे फिल्म की घोषणा की थी। तब भी विवाद हो गया था।  अब राकांपा के शिरूर लोकसभा क्षेत्र से सांसद डॉ.अमोल कोल्हे जो नाथूराम गोडसे की भूमिका निभा रहे हैं, जिसे अनजाने में अमोल कोल्हे ने 2017 में राजनीति में सक्रिय होने से पहले निभाया था। लेकिन मेरी गलती यह है कि मैने यह भुमिका स्वीकारी यह बात  डॉ. को विनम्रता से नहीं कहने आई। कोल्हे का रोल विलेन, हीरोइन या कुछ और का होगा।  लेकिन यह कौन कहता है डॉ.अमोल कोल्हे की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला है। वे इन विचारों से विमुख नहीं हैं। वे फुले-शाहू अम्बेडकर के प्रगतिशील विचारों को बताते हैं। मूल रूप से डॉ.अमोल कोल्हे एमबीबीएस डॉक्टर हैं। उन्हें  वैज्ञानिक भी कहा जाना चाहिए क्योंकि वह अध्ययन के लिए विज्ञान से जुड़े  है।  विकिपीडिया पर उनके राजनीतिक जीवन के अनुसार, वह 2016 में पुणे जिले में शिवसेना के नेता थे।  आक्रामक बयानबाजी के साथ डॉ.अमोल कोल्हे शिवसेना के स्टार प्रचारक थे। फिर वह 2019 में एनसीपी में शामिल हुए और सांसद बने। लेकिन, 2017 में डॉ.अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरा फायदा उठाते हुए, अमोल कोल्हे ने अपनी आत्मकथा पर आधारित फिल्म में अभिनेता के रूप में नाथूराम गोडसे की भूमिका स्वीकार की। हालांकि, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और देश के जाने-माने नेता शरद पवार के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी फिल्म या नाटक में एक कलाकार के रूप में एक चरित्र को चित्रित करता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि अभिनेता वैचारिक भूमिका का समर्थन करता है। राकांपा आलाकमान शरद पवार सीधे विवाद में कूद पड़े। मूल रूप से किसी की वैचारिक प्रतिबद्धता का ख्याल रखना महाराष्ट्र और देश की संस्कृति में नहीं है, चाहे वह आपकी भूमिका हो या नहीं। जैसा कि अमोल कोल्हे के प्रशंसक आधार और जनसंपर्क बहुत बड़े हैं, उनके विचारों, कार्यों और एक व्यक्ति के रूप में वह कितने महान हैं, इसके बारे में सामाजिक पोस्टों की बारिश अभी भी हो रही है। यह भी सच है कि कलाकार का कोई जाति-धर्म-पंथ नहीं होता। अभिनेता बिना किसी दिलचस्पी के कोई भी भूमिका निभा रहा है, वह जी रहा है, यह भी सोलाआने सच है। लेकिन, बात जब उस भूमिका की आती है तो कोई भी अभिनेता किसी भूमिका को स्वीकार करते हुए थोड़ा सोचेगा। अब सांसद डॉ. सार्वजनिक जीवन में जनप्रतिनिधि के रूप में अमोल कोल्हे का सामान्य जीवन एक छात्र के रूप में शुरू हुआ, तो उन्हें भी अच्छे और बुरे की परीक्षा होनी चाहिए।  एक कलाकार की भूमिका इस विचार के साथ जीने की होती है कि आप किसी चीज को तब तक स्वीकार नहीं कर सकते जब तक कि आप उससे सहमत न हों। निर्माता. निर्देशक  डॉ. जब्बार पटेल निर्देशित  फिल्म बाबासाहेब अम्बेडकर में दक्षिण je सुपर स्टार,  अभिनेता ममूटी द्वारा निभाई गई बाबासाहेब की भूमिका हमेशा लोगों की याद में इतने सालो बाद  बनी रही। इतना कि लोग बाबासाहेब बने  ममूटी के पैर छू रहे थे।  स्टार स्ट्रीम पर सबसे चर्चित डॉबाबासाहेब अंबेडकर सीरीज में बाबासाहेब की भूमिका में जीने की कोशिश कर रहे अभिनेता सागर देशमुख भी अपने अनुभव बताते हैं। वे अक्सर मुलाकातों में बताते हैं कि एक स्टार की तरह इस रोल से हमें कितना लगाव था। महात्मा ज्योतिबा फुले, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस , भगत सिंग इस देश के कुछ महान व्यक्ति हैं। लोगों का उन्हें देखने और सम्मान करने का एक अलग नजरिया होता है।  इस भूमिका से यदि वर्ष 2017 में अनजाने में सांसद डॉ. अमोल कोल्हे ने नाथूराम गोडसे की आत्मकथा पढ़ी होती और उनके क्रांतिकारी विचारों की ओर आकर्षित होते तो यह भूमिका सामने आती।  निश्चय ही सब राम बनेंगे तो रावण कौन बनेगा, सब शिवाजी महाराज बनेंगे तो अफजल खान कौन बनेगा,  औरंगजेब कौन बनेगा।  अमोल कोल्हे को बतौर अभिनेता खारिज करना भी  सही नहीं है।  यह तो  उनका पक्ष था।  लेकिन, जब इतिहास को समाज के सामने पेश किया जाता है या इतिहास के रूप में भूमिका को स्वीकार किया जाता है, तो यह अतीत था और अब यह वर्तमान है यह भी समझना जरूरी हैं।

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यदि हम खलनायकी के फिल्मी किरदारों की बात करे तो रामानंद सागर जी की मालिका रामायण, बि आर, रवि चोपड़ा ही की महाभारत कथा  से लेकर दिल्ली के सल्तनत के शासक अलीगुर्षप उर्फ अल्लाऊद्दीन खिलजी यानी  के वायकॉम प्रॉडक्शन संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत के खलनायक रणवीर सिंह की भूमिकाओं तक कई दिग्गज कलाकारों ने जब जब अपनी सम्मति प्रोडक्शन हाउस को दी तो उससे पहले स्क्रिप्ट को गहराई से पढ़ा उसे समझा और तब जाकर हामी भरी। जिनमें रामायण मालिका के रावण, महाभारत मालिका के विलेन कंस यानी के  रविंद्र उर्फ गोगा कपूर से लेकर प्राण, अजीत, जीवन, प्रेमनाथ, ओम पुरी, अमरीश पुर, कादर ख़ान एवम गुलशन ग्रोवर ने भी तो कई फिल्मों में खलनायकी की भूमिकाओं को बखूबी साकारा हैं , पर स्क्रिप्ट को देखकर, सामाजिक दायत्व को समझकर ही अपनी हामी भरी है, जिससे विशेष वर्ग कोई भी समाज दुखी ना हो।

आमतौर पर खलनायक एक ऐसा बुरा व्यक्ति होता है जिसमें आम मानवीय भावनाएं नहीं होती हैं। वह समाज,  धर्म-विरुद्ध आचरण करता है और अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके अपने हितों की रक्षा कर अपने तरीके से जीवन या चीजों को संचालित करता है।

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कुरुक्षेत्र में लड़ा गया महाभारत का युद्ध भयंकर युद्ध था। इससे भारत का पतन हो गया। इस युद्ध में संपूर्ण भारतवर्ष के राजाओं के अतिरिक्त बहुत से अन्य देशों के राजाओं ने भी भाग लिया और सब के सब वीरगति को प्राप्त हो गए। लाखों महिलाएं विधवा हो गईं। इस युद्ध के परिणामस्वरूप भारत से वैदिक धर्म, समाज, संस्कृति और सभ्यता का पतन हो गया। इस युद्ध के बाद से ही अखंड भारत बहुधर्मी और बहुसंस्कृति का देश बनकर खंड-खंड होता चला गया।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर कौन इस युद्ध का जिम्मेदार था और कौन इस युद्ध का सबसे बड़ा खलनायक था? आलोचक कहते हैं कि पांडवों ने संपूर्ण युद्ध छलपूर्वक जीता और जो जीतता है इतिहास उसे ही नायक मानता है। ऐसे में यह कैसे तय होगा कि नायक कौन और खलनायक कौन?

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क्या मैंने गांधी को क्यों मारा इस लघु फिल्म में खलनायकी का किरदार निभाने वाले और मराठी की मलिका संभाजी  पैसों की वजह से ना रुके इसलिए  लिए अपना मुंबई का घर बेचने वाले अभिनेता. अमोल कोल्हे भी अब खलनायक ही बने रहेंगे यह तो शायद फिल्म के प्रदर्शन के बाद साफ हो जाएगा।

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