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'खामोश'! शत्रुघ्न सिन्हा अब तृणमूल कांग्रेस में किये घुसपैठ! लोग पूछ रहे हैं- कितने दिन?

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'खामोश'! शत्रुघ्न सिन्हा अब तृणमूल कांग्रेस में किये घुसपैठ! लोग पूछ रहे हैं- कितने दिन?

'-शरद राय

बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर यह घोषित करके सबको हैरान कर दिया है कि वह शत्रुघन सिन्हा को अपनी तृणमूल कांग्रेस पार्टी का टिकट देकर उनको आसनसोल से लोकसभा का उपचुनाव लड़वा रही हैं। जाहिर है कि पर्दे का यह सितारा अब तीसरी घुसपैठ में तृणमूल का सहारा पा चुका है।यानी-पर्दे के 'शॉटगन' का नया राजनैतिक स्वरूप 'बिहारी बाबू' से अब बंगाली... 'बाबू मोसाय' का रूप धरकर सामने आने जा रहा है।तीसरी घुसपैठ इसलिए कि वह पहले बीजेपी में थे, फिर कांग्रेस में आये और अब तृणमूल में प्रवेश किये हैं। घोषणा के अनुसार शत्रुघ्न सिन्हा आनेवाले 12 अप्रैल को बंगाल में होने जारहे आसनसोल की लोकसभा सीट से तृणमूल के उम्मीदवार होंगे।

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इससे भी हैरानी की बात यह है कि बीजेपी से अलग होकर तृणमूल का सहारा ले चुके बाबुल सुप्रियो की यह (भाजपाई कंडीडेट के तौर पर जीती हुई)सीट रही है। बाबुल सुप्रियो जब बॉलीवुड की गायकी से राजनीति में कदम ताल किये थे तो बीजेपी ने उनको यहीं से लोकसभा का टिकट देकर जितवाया था और केंद्रीय मंत्री बनाया था।बाबुल ने लोकसभा की इसी सीट से इस्तीफा देकर तृणमूल की बांह पकड़ा है। बाबुल सुप्रियो 2014 और 2019 में दो बार आसनसोल से एमपी का चुनाव जीते हैं।यहीं के सांसद रहकर वह केंद्रीय मंत्री तक बने थे। बंगाल में पिछले हुए विधान सभा चुनाव में अधिक सीट हासिल करने की सोच के चलते बाबुल को बीजेपी ने बालीगंज की विधान सभा से चुनाव लड़वाया था और वह ममता बनर्जी की आंधी में चुनाव हार बैठे।पहलीबार हुआ था जब एक लोकसभा का जीता हुआ नेता और केंद्रीय मंत्री विधान सभा का चुनाव हार गया था। जैसा कि होता है कि हारे हुए को कोई नहीं पूछता। बीजेपी में बाबुल का कद घट गया। मंत्री मंडल में उनको जगह नही दिया गया। नाराज बाबुल जिस पार्टी- तृणमूल से पटखनी खाए थे, उसी पार्टी की सुप्रीमों ममता बनर्जी की शरण मे चले गए। दीदी ने उनको सम्मान भी दिया। बाबुल को गोआ और त्रिपुरा के चुनाव में पार्टी ने बड़ी जिम्मेदारी सौंपा।बाबुल खुलकर चुनाव में बीजेपी के खिलाफ आग उगले। अब ममता दीदी को वैसा ही दूसरा बाबुल मिला है शत्रुघ्न सिन्हा के रूप में, जो ना सिर्फ बीजेपी बल्कि कांग्रेस से भी जला भुना बैठा है। और, शायद इसीलिए 'कांग्रेस के निष्कासन' से पहले ही ममता ने शत्रुघन सिन्हा का नाम अपनी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में अनाउंस कर दिया है। यानी- बीजेपी के एक सांसद(बाबुल सुप्रोयो) की जीती सीट को खाली कराकर, उसी सीट को बीजेपी से ही अलग हुए एक दूसरे नेता(शत्रुघ्न सिन्हा) से जितवाकर उसे हथियाने की जुगत लगा रही हैं ममता दीदी। बंगाल में आसनसोल को कोलकाता के बाद का सबसे महत्वपूर्ण पार्लियामेंटरी शहर माना जाता है।

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आइए, अब जरा धत्रुघ्न सिन्हा की भी खबर लेते हैं। वह खामोश हैं। जैसे वह सिनेमा के पर्दे पर अपना पॉपुलर डायलॉग 'खामोश' बोलकर  प्रभाव छोड़ते थे वैसा ही प्रभाव इस समय(लेख लिखने तक) सचमुच खामोश रहकर बनाए हुए हैं। शत्रुजी एक समय भजपा के स्टार नेताओं में थे।पार्टी ने उनको दो बार राज्य सभा से संसद में पहुंचाया था। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय भी वह केंद्रीय मंत्री थे। दो बार केंद्र में मंत्री (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री तथा जहाजरानी मंत्री) रह चुका व्यक्ति पार्टी की अंदरूनी राजनीति का शिकार हुआ, ऐसा कहा जाता है।जो शत्रुघ्न सिन्हा बिहार के पटना साहिब से 2009 में और 2014 में लोकसभा चुनाव जीते थे, अपनी उपेक्षा चलते वही शत्रु 2019 के लोक सभा चुनाव से कुछ समय पहले बीजेपी से अलग हो जाते हैं और कांग्रेस से जुड़ जाते हैं।वह कांग्रेस के टिकट पर उसी पटना साहिब सीट से बीजेपी के पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के सामने चुनाव लड़ते हैं और हार जाते हैं। हारे हुए कंडीडेट को कोई भाव नही देता। शत्रु की उपेक्षा कांग्रेस में भी शुरू हो जाती है।वही शत्रु जो स्टार प्रचारक कहे जाते रहे हैं, 2022 के चुनाव में कहीं कांग्रेस की कमपेनिंग करने नही गए। कांग्रेस से जुड़कर कोशिश तो उन्होंने किया था, पर सफलता उनका साथ छोड़ती गयी। वह अपनी पत्नी पूनम सिन्हा को पिछले लोकसभा चुनाव में लखनऊ से राजनाथ सिंह के सामने चुनाव लड़वा दिए।जमानत जप्त होना ही था। इसी तरह बेटे लव सिन्हा को बिहार में विधान सभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट दिलाकर बीजेपी के नितिन नवीन से चुनाव लड़वाया, वो भी हार गए। अच्छा हुआ बेटी सोनाक्षी सिन्हा चुनाव के पचड़े में नही पड़ी वर्ना बाप की तरह उनका फिल्मी एक्टर का कैरियर भी दाव पर लग जाता।

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फिल्म और राजनीति में हासिए पर जा चुके शत्रुघ्न सिन्हा ने अब फिर एक और कोशिश किया है ममता दीदी के कैम्प से जुड़ने की। जिसके लिए यही कहा जा सकता है कि यह उनकी तीसरी घुसपैठ है किसी राजनैतिक पार्टी में। संभवतः अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए। लड़ना शत्रुजी की फितरत में है। जब वह पर्दे पर खलनायक बनकर आए थे तब से ही उनकी लड़ाई जारी है।पर्दे पर वह ताली लेने वाले खलनायक थे जिससे नायक ख़ौफ खाते थे।उनके राजनीतिक जीवन का क्रम भी कुछ वैसा ही है। राजनीति के तथाकथित नायक उनको खलनायक ही मानने लगे हैं।कई कांग्रेसी नेताओं ने शत्रुघ्न सिन्हा की आसनसोल से तृणमूल के उम्मीदवारी की खबर पर प्रतिक्रिया देते कहा है- 'कितने दिन ?' सचमुच शत्रु जी के सामने अब आसनसोल की चुनावी- जीत से बड़ा सवाल यह है...वह कितने समय तक तृणमूल के साथ जुड़े रह पाएंगे?

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