-सुलेना मजुमदार अरोरा
पिछले साल कोविड -19 के कारण लगभग हर फिल्म ने ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म रिलीज का सहारा लिया था। बड़े बजट की बहुत सारी फिल्मों को शुरू में थिएटर रिलीज प्राप्त करने के उद्देश्य से रोक दिया गया था, लेकिन उनमें से ज्यादातर फिल्में लंबे समय तक कोविड महामारी के कारण ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म रिलीज़ की तरफ झुक गए, जहां कुछ फिल्में छोटे पर्दे पर फले-फूले, वहीं कुछ को भारी आलोचना का सामना करना पड़ा। इन फिल्मों के भाग्य के बावजूद, भारतीय मनोरंजन के लैंडस्केप ने एक रैखिक बदलाव की ओर कदम बढ़ाया।
किसी फिल्म की सफलता या विफलता कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है, फिल्म का जॉनर, इसकी मूल्य की मांग को निर्धारित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाती है। विशेष रूप से हॉरर फिल्मों के बारे में बात करे तो, दर्शकों का एक बड़ा हिस्सा इस तरह के कॉन्टेंट का उपभोग करता है और इसका खूब आनंद लेते हैं, चाहे वह भारतीय फ़िल्म हो या विश्व सिनेमा। इस तरह की फिल्में किसी भी प्लैटफ़ॉर्म पर पेश किए जाने की परवाह कभी नहीं करते हैं। चाहे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर हो या सिनेमाघरों में, इस तरह की फिल्म देखने के लिए, इस जॉनर के लिए दर्शक, बेहद वफादार होते हैं। भारतीय फिल्म निर्माता अक्सर इस अवसर का उपयोग अपने प्रोडक्ट को निडरता से पेश करने के लिए करते हैं, बिना किसी महामारी की चिंता किए।
'छोरी' के निर्देशक विशाल फुरिया, जो दर्शकों द्वारा ओटीटी पर सकारात्मक प्रतिक्रिया पाने में कामयाब रहे, का कहना है, 'एक डरावनी फिल्म बनाने के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि आप जानते हैं कि वहां एक तैयार और परमानेंट दर्शक का गुट है जो कि ऐसे कंटेंट के लिए हमेशा वफादार रहते हैं। तो चाहे आप ओटीटी रिलीज के लिए जाएं या सिनेमाघरों में अपनी फिल्म रिलीज करने का फैसला करें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जो लोग इस जॉनर को पसंद करते हैं या जो लोग इस जॉनर के इच्छुक हैं वे हमेशा दिखाई देंगे ही। मुझे खुशी है कि भारत के दर्शक, धीरे-धीरे और लगातार एक जॉनर के रूप में हॉरर के प्रति अधिक ग्रहणशील होते जा रहे है। इस प्रकार दर्शकों का उत्साह, हम जैसे कहानीकारों को 'छोरी' और 'स्त्री' जैसे और भी ज्यादा प्रोडक्ट बनाने के लिए जरूरी प्रोत्साहन दे रहा है। मैं इस तरह के कई और प्रोजेक्ट बनाने के लिए हमेशा तैयार हूँ।'
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