वो सलमान खान जो हर मामले में सबसे जुदा है

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वो सलमान खान जो हर मामले में सबसे जुदा है

-सुलेना मजुमदार अरोरा

यह उस समय की बात है जब सलमान खान, संजय दत्त और माधुरी दीक्षित की फिल्मों ने बॉलीवुड में तहलका मचा रखा था। मीडिया पूरी तरह से फोकस्ड थी इन सितारों पर। नटराज, महबूब और फिल्मिस्तान स्टूडियोज में अक्सर इन स्टार्स से आमना सामना हो जाता था। वे बड़ी बड़ी फिल्मों में व्यस्त रहते थे और इनसे अपॉइंटमेंट लेकर इंटरव्यू करना बड़ा टाइम कॉनज़िउमिंग काम लगता था। फिर भी संजय दत्त और माधुरी दीक्षित से इंटरव्यू  लेने में कोई परेशानी नहीं होती थी लेकिन सलमान खान के तेवर की खबरें सुर्खियों में होने से मैं सचेत रहती थी। लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि सलमान के जिस गर्म, तीखे और तुनकमिजाजी की खबरें मैं सुनती थी, उससे हकीकत में मैंने कभी मेल नहीं पाया। जब भी मेरी उनसे मुलाकात हुई मैंने उन्हें बहुत ही खुश और हल्के फुल्के मूड में देखा। उनकी आंखों में एक बचपना हमेशा खेलते देखती थी, जब वे हँसते थे तो जैसे स्टूडियो का गम्भीर माहौल रौशन रौशन हो जाता था। मैनें उन्हें कभी बेवजह किसी से बत्तमीजी करते नहीं देखा। सेट पर वे अक्सर बड़ी गम्भीरता से कोई ऐसी मज़ाकिया बात कह देते थे कि क्रू मेंबर्स का हँसते हँसते बुरा हाल हो जाता था और सलमान पोकर फ़ेस्ड बने रहते थे, जैसे उन्होंने तो कुछ कहा ही नहीं।

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उनकी शरारती आंखों में कई बार मैनें गम्भीरता की खामोशी भी देखी, जब कोई बेहद कमजोर गरीब माँ अपने बीमार बच्चे की दवा और हॉस्पिटलाइजेशन के लिए सलमान के आगे गुहार लगाती तो सलमान अपना शूटिंग रोक कर समस्या का निदान निकालने बैठ जाते थे। इसलिए कई बार मैंने शूटिंग के दौरान फ़िल्म के असिस्टेंट क्रू को चुपके से गेट पर सख्ती के साथ सबकी एंट्री बन्द करते देखा था। ईमानदारी ऐसी है सलमान खान में कि वे यह इकरार करने से भी नहीं चूके की अपनी गलतियों को कबूल करना सबसे कठिन काम है, और ज्यादातर लोग अपनी गलती मानने से कतराते हैं, जिसमें एक मैं भी हूँ, मैं भी अक्सर यही कहता हूँ कि यह मैंने नहीं किया है।' यह कबूलना भी बड़े दिल की निशानी है और सलमान का कद अमिताभ बच्चन जितना न होने के बावजूद, उनके पास एक लंबा चौड़ा दिल है, जिसकी थाह तक पहुँचना आसान ही नहीं, नामुमकिन है। यह सही है कि सलमान किसी से नहीं डरते, लेकिन बहुत मुमकिन है कि वो अपने आप से डरते है, अपनी भावनाओं की अतिरेकता से डरते है, वे जानते है कि ऊपर से सख्त और अंदर से कोमल उसके दिल पर कोई भी, दो आँसू बहाकर, कुछ इमोशनल बातें करके कब्जा कर सकता है, ऐसा अनेक बार हुआ है, और अब वे ज्यादा भावनाओं का प्रेशर लेना नहीं चाहते, इसलिए तेवर और बेरुखी का मुलम्मा चढ़ाए रखना उनके दिल, दिमाग और सेहत के लिए अच्छा है।

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उन दिनों सलमान किन्ही कारणों से मीडिया को इंटरव्यू देना तो दूर, अपने सेट पर किसी बाहरवालों की उपस्थिति भी बर्दाश्त नहीं करते थे। मैं तब, नई नई मायापुरी से जुड़ी थी, मुझे स्टार और मीडिया की तना तनियों की दुनियादारी नहीं आती थी। स्टार से बातचीत करने  या प्रश्न दागने की कला भी नहीं जानती थी, मुझे बस इतना पता था कि फ़िल्म कलाकारों से बातचीत करने का टाइम फिक्स करके उनसे बेसिक सवाल करना होता है। इस बात को लेकर  उस वक्त के कई पत्रकार और फोटोग्राफर्स मेरी टाँग खिंचाई भी करते थे कि सुलेना को एक ही प्रश्न पूछना आता है कि आप अपने बारे में कुछ कहिए। खैर , एक बार महबूब स्टूडियो में किसी फिल्म की शूटिंग चल रही थी। सेट पर कई पत्रकार उपस्थित थे, सब अंग्रेज़ी पत्र पत्रिकाओं के लोग थे। शॉट शुरू होने वाला था, तभी मेकअप रूम से सलमान खान सेट पर आए। उनके आते ही गहमा गहमी होने लगी, तभी सलमान खान ने निर्माता निर्देशक से कुछ कहा और वापस मेकअप रूम में चले गए। न जाने मीडिया वालों और उस फिल्म के पीआरओ के बीच क्या बात हुई कि थोड़ी देर में एक एक करके सब मीडिया वाले चले गए, मैं भी उठने लगी तो पीआरओ ने कहा, 'नहीं आप बैठिए, मायापुरी से कोई प्रॉब्लम नहीं।' थोड़ी देर में सलमान खान ने लौट कर शॉट शुरू किया, और तो और शॉट के बाद वहीं कुर्सी पर बैठ गए तो मैनें उनसे उस फिल्म के बारे में पूछना शुरू किया, उनके रोल के बारे में पूछा और फिर उनके बचपन और स्कूल के दिनों की बातें करने लगे। उन्होंने बताया कि वे कितने शरारती थे। उन्होंने यह भी बताया,  'जीवन में सिन्सियरिटी, ऑनेस्टी कभी नहीं छोड़ना चाहिए।  वो चेहरे पर झलकता है। मैं बचपन में शरारती था, नटखट था, आज भी हूँ, लेकिन उसमें भी सेरेनिटी (निर्मलता) होनी चाहिए। गलतियां हो जाए तो सॉरी बोलने से कोई एतराज कभी नहीं रही। इंसान से मिस्टेक्स हो सकती है लेकिन उस मिस्टेक को सुधारना चाहिए, दोहराना नहीं चाहिए।'

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सच कहा था सलमान ने, ऑनेस्टी, सेरेनिटी और सिनसीएरिटी चेहरे पर झलकती है, जो सलमान के चेहरे पर हर बार मुझे नज़र आया और वाकई उन्होंने आज तक अपनी कोई भी गलती नहीं दोहराई। उनकी वही सच्चाई मुझे तब भी दिखा जब किसी बच्चे के बोन मैरो कैंसर की खबर सुनकर सलमान ने एक पल की देरी किए बिना, अपनी ही हड्डियों की मज्जा डोनेट करने निकल पड़े थे, जबकि उनके कन्धों पर कई बड़ी फिल्मों की जिम्मेदारी तो थी ही, उनकी तबीयत उन दिनों थोड़ी नर्म भी थी, उनके चेहरे, जबड़े और सर में किसी नस के दवाब से बेहद पीड़ा थी लेकिन फिर भी सलमान ने ना आव देखा ना ताव। उठकर सीधे हॉस्पिटल का रुख किया। सबको समझाना पड़ा कि ऐसा ना करे, उनपर करोड़ों की जिम्मेदारी है। तो अब्दुल रशीद सलीम सलमान खान यानी हमारे बॉलीवुड के सलमान ऐसे ही हैं, बड़े दिल वाले, जो किसी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहतें है। सलमान की मासूमियत उनकी फितरत में शामिल हैं, वो खुद कहते हैं, 'उम्र का मुझे कोई एहसास नहीं होता, माँ तो आज भी कहतीं हैं कि मैं तेरह वर्षीय उम्र वाला उमंग रखता हूँ, हर पल बहुत कुछ करने की इच्छा है, चार घण्टे ही सोता हूँ मैं, डॉक्टर्स ने आगाह भी किया था कि सुपरमैन बनने की ज़रूरत नहीं लेकिन मुझसे शांत बैठा नहीं जाता,  मैं थकान को अपने पास फटकने नहीं देता, मेरे ख्याल से जब इंसान थकने लगता है तो उम्र की गिरफ्त में आ जाता है।

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जिंदगी से जब इंसान ऊब जाता है, उत्साह खत्म हो जाता है और जब आवेग के साथ कुछ करने की इच्छा नहीं होती तब थकान महसूस होती है। ऐसा मैं अभी नहीं होने दूँगा। हम सबको खुश रहना चाहिए, हमेशा उत्साह से भरा रहना चाहिए और हमेशा आगे बढ़ने को तैयार रहना चाहिए।'
'असली खुशी आपके विचार में क्या है?' इसपर वे बोले थे, 'जो खुशी और सन्तोष मैं हमेशा महसूस कर रहा हूँ वही मेरे लिए असली खुशी है।'  'और आपकी कमजोरी?' इसपर उन्होंने हंसकर कहा था, 'वो आपको क्यों बताऊं या किसी को क्यों बताऊँ?'
फिल्मों की बात चली तो मैंने पूछा था कि क्या वे कभी थिएटर में जाकर फ़िल्में देखते हैं? इस पर उनके हैंडसम चेहरे पर यादों की मुस्कान छा गई, बोले, 'बहुत पहले जाया करता था, बहुत मज़ा करता था थिएटर में लेकिन अब फिल्में तो देखता हूँ पर थिएटर में नहीं, घर पर। थिएटर में जाता हूँ तो खलबली मच जाती है। लोग फिल्में देखना छोड़, मुझे  घेर लेते हैं, इस तरह सबके फ़िल्म देखने में खलल पड़ जाता है। यही वजह है कि मैं हॉस्पिटल्स में भी विजिट के लिए नहीं जा पाता। मेरे जाने से भगदड़ मच जाती है, यह ठीक नहीं, वहाँ बीमार लोगों को तकलीफ नहीं होनी चाहिए।' जब मैंने कुछ कुछ घबराते हुए पूछा था कि आपने इंटरव्यू देना क्यों बन्द किया, तो कुछ गम्भीर से होते हुए बोले थे, 'मुझे अपने बारे में, अपनी जिंदगी के बारे में बोलने का हक है लेकिन पूछने वाले मेरे बारे में न पूछकर मेरे परिवार के बारे में, मेरे साथ काम करने वाली नायिकाओं के बारे में मुझसे पूछते हैं तो उनके बारे में मुझे बोलने का क्या हक है? और जो कुछ मैं बोलता भी हूँ वो तोड़ मरोड़ के प्रकाशित करते हैं, इसलिए मैं उन सबको इंटरव्यू नहीं देता जिनपर मुझे विश्वास नहीं और मैं बहुत खुश हूँ, इस तरह।'
'अगर आप एक्टर ना होते तो क्या होते?' इस प्रश्न पर उन्होंने कहा था, 'शायद लेखक, निर्देशक, और वैसे भी, पहले से ही मैं लिखने और निर्देशन में रुचि रखता था।'

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'आपको किसी बात पर कभी कोई पछतावा?' इसपर झट से बोले थे, 'कोई नहीं, कोई रिग्रेट नहीं।' 'और अगर आपको बदलने का मौका मिले तो आप अपने में क्या बदलना चाहेंगे?' इसपर भी वे सर तान कर बोले थे, 'कुछ बदलना नहीं चाहूँगा, कुछ भी नहीं। जो हूँ, जैसा हूँ, वैसा ही हूँ।' सलमान खान शॉट देने के लिए उठने लगे तो मैंने जल्दी से पूछा था, 'इस दुनिया में आप सबसे ज्यादा किसे एडमायर करते हैं?तो चलते चलते वे बोले थे, 'मेरे पापा और मेरी मम्मी मेरे लिए सबकुछ है, उन्हें मैं दिल और जान से एडमायर करता हूँ।' सलमान उठ गए। एक खुशनुमा एहसास चारों ओर बिखरा रहा, होंगे वे मूडी, होंगे वे मनमौजी, होंगे वे गुस्सैल लेकिन सच्चाई का उजास उनके रोम रोम से ग्लो कर रहा था, ये वो शख्स हैं जो बेहद प्रोटेक्टिव भी हैं, बेहद केयरिंग भी हैं, बेहद लविंग और प्यारे भी है और जिनके अंदर एक नन्हा सा बच्चा अक्सर शरारत से झांकता भी है। यह वो हैं जो गरीब से गरीब इंसानों के देवता हैं, वक्त पर अचानक प्रकट होकर किसी का जीवन बचाने के लिए कुछ भी दांव पर लगा सकते हैं। ये वो सलमान खान है जो अपने अजीजों के लिए अजीज है, सलमान भाई हैं लेकिन जिन्हें वो नापसन्द करते हैं उन्हें कुछ यूँ नज़र अंदाज़ करते हैं जैसे सामने कोई है ही नहीं।

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