माया नगरी तो सुन रही थी उनकी कविताएं, उनके गीत, पर माया गोविंद ही खामोश हो गई सुनाते सुनाते

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माया नगरी तो सुन रही थी उनकी कविताएं, उनके गीत, पर माया गोविंद ही खामोश हो गई सुनाते सुनाते

-सुलेना मजुमदार अरोरा

सुबह वरिष्ठ और प्रसिद्ध पत्रकार इंद्र मोहन पन्नू जी ने मुझे फोन करके एक दुखद समाचार दिया,'माया गोविंद जी नहीं रही' यह सुनते ही मन व्यथित हो उठा। पुरानी यादें आ गई,  बड़ी सी बिंदी, मुस्कराता हुआ चेहरा और होंठो पर हर तरह के गीत, छंद, बंद, मुहावरे, यही रूप था फिल्मी और गैर फिल्मी जगत के बेहद लोकप्रिय गीतकार मायागोविंद का, जिनके अकस्मात निधन से सिनेमा जगत, टीवी जगत और स्टेज जगत दुखी हैं। बयासी वर्ष की थी वे लेकिन मन से वे अंत तक षोडशी ही रही, उनके होंठ गुनगुनाते थे, ह्रदय से ना जाने कितने भाव, सुन्दर मोती की तरह बोल बन बन कर उनके होंठो से प्रस्फुटित होते थे। उनका पूरा व्यक्तित्व हरा भरा था, कोयल की तरह कूकती, मन मयूर उनका नाचता था। लेकिन उम्र के कारण शरीर की व्याधियों को भला वो कैसे रोक पाती? आखिर ब्रेन में रक्त का  थक्का जमना, फिर ह्रदयघात का आघात नहीं सह पाई ये शब्दों की मलिका और गुरुवार को सुबह करीब नौ बजे बेटे के गोद में सर रखकर हमेशा के लिए शांत हो गई. खामोश हो गई। पिछले एक महीने से अस्पताल और घर के चक्कर लगते रहे, बेटे अजय गोविंद ने भरपूर इलाज देने की कोशिश की लेकिन जिन्हें अपने गोविंद के पास जाना था उन्हें कौन रोक सकता था। माया गोविंद स्व. लेखक निर्देशक राम गोविंद (तोहफा मुहब्बत का फेम) की पत्नी थी।

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माया गोविंद को बॉलीवुड उनके लोकप्रिय गानों, टीवी सीरियल के गीत, संवाद, छंदों के लिए सदा याद रखेंगे। उनके कुछ लोकप्रिय सिनेमा और टीवी गीत थे, आँखों में बसे हो तुम (टक्कर), - नैनों में दर्पण है (आरोप), मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी (शीर्षक गीत),  तेरी मेरी प्रेम कहानी (पिघलता आसमान), दिल की हालत किसको बतातें (जनता की अदालत), - नज़रें लड़ गइयां (बाल ब्रह्मचारी),  मोरे घर आए सजनवा (इमांदार), - वादा भूल ना जाना (जलते बदन), यहां कौन है असली (कायद)- गले में लाल टाई (हम तुम्हारे हैं सनम), - यार को मैंने मुझे यार ने (शीशा), चंदा देखे चंदा (झूठी).- कजरे की बाती (सावन को आने दो), - नूरानी चेहरे वाले (याराना), - आएगी वो आएगी (यारना ),  चुन लिया मैंने तुझे (बेकाबू) - ये दुनिया क्या चाहते हैं मनी मनी (ईमानदार ), दिल लगाने की ना दो सजा (अनमोल), - ठहरे हुए पानी में (दलाल),  गुटूर गुटूर (दलाल)-दरवाजा खुला छोड़ आई (नजयाज), - सोने की तगड़ी (तोहफा मोहब्बत का), आर या पार - शीर्षक गीत, सुन सुन गोरिया (दमन), मुझे जिंदगी की दुआ ना दे (गलियों का बादशाह)। टी.वी. धारावाहिक - किस्मत का तो यही फसाना है (किस्मत), मायका (शीर्षक गीत) में भी उनके गीत चर्चित थे।

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उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएँ- जीवन के सौदा बोल, मिट्टी का क्या होगा मोल, - डाकिये ने द्वार खटखटाया, अनबंच पत्र लो आया, तुम एक बार प्रिये आ जाओ, तो आंचल भर सुहाग ओढ़लूँ। उनकी बृजभाषा छंद:---मांग भर बिंदिया मैने जब आँखों में, मुंदरी उलझ गई  बेहद लोकप्रिय हुई। माया गोविंद सिर्फ एक कवियित्री ही नहीं बल्कि थिएटर, फिल्म और रंगमंच की मंजी हुई अभिनेत्री और बेहतरीन कत्थक नृत्यांगना थी। सुप्रसिद्ध सुपर स्टार ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी का डांस बेले 'मीरा' माया गोविंद ने ही लिखा था। सत्रह जनवरी 1940 को लखनऊ में जन्मीं माया ने ग्रैजुएशन करने के बाद बी एड भी की, माता पिता चाहते थे वे टीचर बने लेकिन माया का मन तो मायानगरी की तरफ खिंच रहा था । वे अपनी कविताओं से मायापुरी यानी बॉलीवुड को सजाना चाहती थी। सात साल की उम्र से ही वे कविताएं लिखने लगी थी। वे अभिनय भी करना चाहती थी इसलिए रंगमंच से भी जुड़ गई। नृत्य के प्रति बेहद रुझान होने की वजह से उन्होंने शंभू महाराज से कथक नृत्य का शिक्षण भी प्राप्त किया। माया गोविंद ने लखनऊ के भातखंडे संगीत विद्यापीठ से 4 वर्ष का गायन प्रशिक्षण भी लिया और उसके बाद वे ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ गई और रेडियो में चोटी की कलाकार मानी जाने लगी।

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उन्हीं दिनों रंगमंच में अभिनय के दौरान उन्होंने संगीत नाटक अकादमी लखनऊ में आयोजित विजय तेंडुलकर कृत नाटक 'खामोश अदालत जारी है' में काम किया और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता। माया की कविताओं की छटा कवि सम्मेलनों में चमकते ही दूर दूर तक उनकी ख्याति फैल गई। देश विदेश से लोग उनकी कविताओं और गीतों को सुनने आते थे। ऐसे में भला बॉलीवुड तक उनकी प्रसिद्धी कैसे ना पहुँचती? उन्हें हिन्दी, भोजपुरी और कई रीजनल भाषा की फ़िल्मों में गीत लिखने और अभिनय करने के ऑफर आने लगे। 1972 से जो उन्होंने हिंदी फ़िल्मों के लिए गीत लिखना शुरू किया तो लगातार लिखती चली गई। उन्होंने लगभग तीन सौ पचास फ़िल्मों के लिए गीत लिखे और आठ सौ से ज्यादा गाने गाए और खूब नाम कमाया। उनकी कविताओं और गीतों में श्रृंगार रस और विरह की भावनाएं खूबसूरती से देखी जा सकती है। निर्माता निर्देशक आत्म राम ने उन्हें फिल्म 'आरोप' में गीत लिखने का मौका दिया था और उसके बाद माया ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। टीवी में भी उनका खूब बोलबाला था, महाभारत, विष्णु पुराण, किस्मत, द्रौपदी, मायका, फुलवा, आप बीती जैसी सुप्रसिद्ध धारावाहिकों के लिए भी माया गोविंद ने टाइटल गीत और अन्य गीत लिखे।

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नए दौर शुरू होने के बावजूद निर्माता निर्देशक उन्हीं से टाइटल गीत लिखवाते थे। वे बड़े बड़े फिल्म मेकर्स, संगीतकार जैसे कल्याण जी आंनद जी, रामानन्द सागर, बप्पी लहरी, खय्याम, तथा सभी गायक गायिकाओं की पसंदीदा गीतकार थी। उन्होंने कई बड़ी फिल्मों जैसी  आरोप, जलता बदन, सावन को आने दो,  टक्कर, पिघलता आसमान, दमन, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी, दलाल, गजगामिनी, गंगा की कसम, रजिया सुल्तान, याराना, जनता की अदालत, हम तुम्हारे हैं सनम, में भी गीत लिखे। अनुराधा पौड द्वारा गाया हुआ, 'परम अर्थ गीता सार' भी माया ने ही लिखा था। नए दौर के कई नए गीत जैसे फाल्गुनी पाठक द्वारा गाया 'मैंने पायल है छनकाई' भी माया गोविंद का ही लिखा हुआ था। ऐसी महान लेखिका, कवियित्री को भला कौन भूल सकता है? भले ही उनका नश्वर शरीर मुंबई के पवन हंस श्मशान में अग्नि के सुपुर्द हो जाए लेकिन उनके गीत और कविताएं हवाओं में, फ़िज़ाओं में सदियों तक गूंजती रहेंगी।

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