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चिंटू बाबा, यानी ऋषि कपूर के दीवाने उन्हें याद करते नहीं थकते

चिंटू बाबा, यानी ऋषि कपूर के दीवाने उन्हें याद करते नहीं थकते
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-सुलेना मजुमदार अरोरा

हमेशा हँसता हुआ नूरानी चेहरा, बोली में बंबईया लहजा और किसी बच्चे की तरह चंचल और बेबाक, बेबाकी इतनी की अपने पर भी कई बार तंज कसने से बाज नहीं आते थे। साथ ही अगर कोई बात दिल को चुभ जाए तो उनके गुस्से का अंदाज ऐसा होता था कि सामने वाले को अपनी जुबां के तीरों से घायल करने से रुकते नहीं थे। यह और कौन हो सकते थे बॉलीवुड के चिंटू बाबा के अलावा? जिनकी रग रग में अभिनय की गति थी लेकिन फिर भी जो बोलते थे कि उन्होंने अभी तक जो कुछ भी किया वो किस्मत के जोर पर किया वर्ना तो कितने सारे दुगने प्रतिभाशाली एक्टर्स खाक छान रहें है। ये सही है कि ऋषि कपूर एक ऐसे परिवार का चराग रहे हैं जिन्हें  सिनेमा जगत के पायनियर माना जाता है, जिनके दादाजी पृथ्वीराज कपूर यानी बॉलीवुड के स्तंभ थे, जिनके पिता द ग्रेट ओरिजिनल शो मैन राज कपूर थे, वो अभिनय के मामले में किसी से कम होंगे ये तो हो ही नहीं सकता।

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लेकिन फिर भी उन्होंने कभी अपने एक्टिंग कौशल को फॉर ग्रैंटेड नहीं लिया, जब चार दशक फ़िल्मों में काम करने के बाद भी उन्हें फिल्म 'अग्निपथ' में एक अलग ढंग की भूमिका के लिए ऑफर किया गया तो ऋषि ने सीधा, ये कहते हुए मना कर दिया कि मैं इस भूमिका को निभा नहीं पाउंगा। उन्होंने निर्देशक करण मल्होत्रा से कहा 'अगर मैं सही तरीके से इसे नहीं निभा पाया तो आपकी फिल्म फ्लॉप हो जाएगी।' लेकिन ऋषि की इस तरह से इनकॉन्फिडेंस की बात को निर्देशक ने नहीं स्वीकारा, फिर भी ऋषि अड़े रहे कि वह लुक टेस्ट देंगे तो देंगे वर्ना फिल्म नहीं करेंगे। तो इस तरह पहली बार बॉबी के बाद ऋषि कपूर ने एक बार फिर अग्नीपथ के लिए लुक टेस्ट दिया और फिर उस फिल्म में उन्होंने जमकर जो एक्टिंग की तो अग्निपथ आज तक उनके कैरियर की एक उल्लेखनीय फिल्म बन गई है।

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ऋषि कपूर ने अपने 50 वर्ष के करियर जीवन में डेढ़ सौ से ज्यादा जो भी फिल्में की, वो लगभग सारी की सारी हिट फिल्में थी, जैसे, बॉबी, रफ़ू चक्कर, खेल खेल में, कभी-कभी, दूसरा आदमी, राजा, लैला मजनू, नसीब, कातिलों के कातिल, कर्ज, कूली, दीवाना, दोस्ती दुश्मनी, घर घर की कहानी, घराना, एक चादर मैली सी, हिना, दामिनी बड़े दिलवाले बोल, प्रेम रोग, चाँदनी, सागर, बोल राधा बोल, कारोबार, लक बाई चांस, लव आज कल, दो दूनी चार, अग्नीपथ, राजमा चावल, 102 नॉट आउट, मुल्क कपूर एंड संस, बॉडी, और उनकी अंतिम फिल्म शर्माजी नमकीन।

publive-image Rishi Kapoor gone, but his films are forever.

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ऋषि कपूर स्वभाव के काफी अधीर थे लेकिन बात जब अभिनय की आती थी तो उनसे ज्यादा धीरज वाला मिलना मुश्किल था, उन्होंने खुद बताया था कि फिल्म कपूर एंड सन्स में जिस तरह के नब्बे वर्ष के बूढे दिखने के लिए उन्हें प्रोस्थेटिक मेकअप करना पड़ता था उसके लिए सुबह पाँच बजे से वे विश्वप्रसिद्ध आर्टिस्ट ग्रेग कैनोम के सामने बैठ जाते थे जो लगभग दस ग्यारह बजे तक चलता रहता था, फिर शाम सात बजे तक शूटिंग चलती रहती थी। ये वही ऋषि थे जिनका मन बचपन में पढ़ने लिखने में कुछ खास नहीं लगता था। घर में सभी बड़े लोग फ़िल्मों में लिप्त थे, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, एक्टर सभी थे घर के ही। बल्कि कहे पूरा खानदान (त्रिलोक कपूर, प्रेमनाथ, राजेन्द्र नाथ, नरेंद्रनाथ, प्रेम चोपड़ा, शशि कपूर, शम्मी कपूर, भी ऋषि के मामा, चाचा थे) सिनेमा जगत से जुड़े थे, यही कारण था कि बचपन में ऋषि भी फ़िल्मों में ही अभिनय करना चाहते थे और अकेले में आईने के सामने खड़े होकर तरह तरह के पोज दिया करते थे, फिर जब पापा राज कपूर फिल्म 'मेरा नाम जोकर' की योजना बना रहे थे तो अचानक एक दिन डिनर टेबल पर राजकपूर ने अपनी पत्नी कृष्णा राज कपूर से कहा, 'मैं सोच रहा हूँ कि मेरी इस फिल्म में ऋषि को कास्ट करूँ। (राज कपूर के बचपन की भूमिका में)' यह सुनना था कि ऋषि ने जल्दी जल्दी डिनर खत्म किया और अपने कमरे में जाकर दराज़ से स्कूल की एक नोटबुक निकाली और उसपर ऑटोग्राफ प्रैक्टिस करने लगा।

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मजे की बात तो ये है कि ये वही ऋषि थे जिसे जब पापा राजकपूर ने अपनी फिल्म 'श्री 420' में एक गीत, 'प्यार हुआ, इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यों डरता है दिल' में भाई रणधीर कपूर और बहन ऋतु कपूर के साथ, रेनकोट पहने बारिश में भीगने का दृश्य करने को कहा तो तीन साल के नन्हे ऋषि को बारिश की तेज फुहारें बिल्कुल रास नहीं आई और रोते हुए वो शूटिंग के लिए इंकार करते रहे, आखिर फिल्म की नायिका नर्गिस ने नन्हे चिंटू को एक बड़ा सा चाकलेट देने का लालच देकर वो सीन करवाया था। उनका नाम चिंटू कैसे पड़ा इसपर भी एक किस्सा सुनाया, कि उन दिनों उन्होंने अपने भाई रणधीर कपूर के साथ स्कूल जाना शुरू ही किया था। एक दिन रणधीर ने स्कूल से एक पहेली वाली कविता सीखी और घर पर जोर जोर से वो कविता सबको सुनाता रहा, 'छोटे से चिंटू मियां, लंबी सी पूंछ, जहाँ जाए चिंटू मियां वहां जाए पूंछ।' इस पहेली का ज़वाब था सुई धागा। बड़े भाई रणधीर को ये पहेली वाली कविता इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने अपने पाँच साल के छोटे भाई ऋषि को चिंटू कहकर पुकारना शुरू किया और बस वे सबके लाडले चिंटू बन गए। हालांकि न जाने क्यों चिंटू जी ने बचपन से ही यह तय कर लिया था कि वे अपने बच्चों को कोई निक नेम नहीं देंगे और वाकई उन्होंने अपने बेटे रणबीर का कोई घरेलू नाम नहीं रखा, ना बेटी रिद्धिमा को कोई पेट नेम दिया। वही चिंटू उर्फ ऋषि बड़े होकर फ़िल्मों में इस तरह एकरस हुए कि मौत से कुछ महीनें पहले तक शूटिंग करते नहीं थके। बॉलीवुड में चलते परिवार वाद पर उन्होंने हँस कर कहा था, 'काहे का परिवारवाद? लोगों को बड़ी गलतफ़हमी है कि फिल्म 'बॉबी' मुझे लॉन्च करने के लिए बनाया गया था, दरअसल वो फिल्म इसलिए बनाया गया था  ताकि 'मेरा नाम जोकर' से हुए नुकसान और कर्ज को चुकाया जा सके। डैड के पास राजेश खन्ना को कास्ट करने के लिए पैसे नहीं थे लिहाजा उन्होंने मुझे कैमरे के सामने खड़ा कर दिया, और सबसे बड़ी बात यह है कि 'बॉबी' नायिका प्रधान फिल्म थी, उसमें डिम्पल की भूमिका सॉलिड थी, मेरा रोल चलताऊ था।'

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खैर, ऋषि की पहली फिल्म बॉबी सुपर हिट हो गई और बाकी इतिहास है। अक्सर माना जाता है कि बॉलीवुड में नायक हो या नायिका, शादी होते ही उनका क्रेज समाप्त हो जाता है लेकिन ऋषि कपूर के साथ ऐसा नहीं हुआ, 1980 में बॉलीवुड की टॉप एक्ट्रेस नीतू सिंह के साथ शादी हो जाने और फिर कुछ ही वर्षों में दो बच्चों (बेटी रिद्धिमा और बेटे रणबीर कपूर) का पिता बनने के बाद भी ऋषि का क्रेज बढ़ता रहा। हर युग में बॉलीवुड को एक लवर बॉय की जरूरत होती है और सत्तर, अस्सी, नब्बे के दौर में ऋषि वो लवर बॉय थे जिसपर बॉलीवुड के दिवाने फिदा थे। उन्होंने इस क्षेत्र में जो खास फ़िल्में की, जैसे, मेरा नाम जोकर, बॉबी, हीना, कर्ज, प्रेम रोग, सागर, दामिनी लैला मजनू, सरगम वगैरह, उसने न सिर्फ ऋषि को नायकों की श्रेणी में चोटी का स्थान दिया बल्कि उन्हें कई प्रेस्टीजिएस अवार्ड्स जैसे नैशनल अवार्ड, फिल्म फेयर अवार्ड बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट असोसिएशन अवार्ड, प्रड्यूसर्स गिल्ड फिल्म अवार्ड तथा कई अन्य अवार्ड्स से भी नवाजा।

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जितनी कुशलता से उन्होंने लवर बॉय हीरो की भूमिका निभाई, उतनी ही खतरनाक तरीके से उन्होंने अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में विलेन की भूमिका भी निभाई, मिसाल के तौर पर, फिल्म अग्निपथ, औरंगजेब, कांची, डी डे। जब बात कॉमेडी फ़िल्मों की आती है तो यहां भी ऋषि ने बाजी मारते हुए फिल्म हाउज़ फुल , बेशरम, 102 नॉट ऑउट, झूठा कहीं का में अपनी बेहतरीन अदाकारी का जलवा दिखाया था। स्कूल ड्रॉप आउट ऋषि और भी फ़िल्में करना चाहते थे, सोशल प्लैटफॉर्म जगत में भी और तेजी से अपनी चुभती, बेबाक टिप्पणी, आलोचना, कमेंट्स से वे दुनिया को चमत्कृत करते रहना चाहते थे, वे अपनी पत्नी नीतू और बेटे के साथ खूब वक्त बिताना चाहते थे, वे अपने बेटे रणबीर और उसकी प्रेमिका आलिया भट्ट की शादी होते देखना चाहते थे, लेकिन ल्यूकीमिया, कैंसर की चपेट में आ जाने से सबकुछ पीछे छूट गया, शुरू में तो वे खुद स्वीकर नहीं कर पाए कि वे एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त हो गए हैं, सोचा, इलाज करवाएंगे तो ठीक हो जाएंगे, दो वर्षों तक खूब लड़ाई लड़ी इस बीमारी से, लेकिन जब अंत समय आया तो अस्पताल में डॉक्टर्स और नर्सों के साथ खूब हंसी, मज़ाक, मस्ती करते करते, इश्वर को हाथ जोड़कर अपने परिवार वालों के सानिध्य में शांति से प्राण त्याग दिए। ऐसे अभिनेता, ऐसे इंसान दुनिया में बार बार पैदा नहीं होते ना कभी भुलाए जाते है।

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