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"उन आंसुओं में भरी भावनाओं ने हमारी ईमानदारी पर मुहर लगा दी" कहती हैं फिल्म 'कश्मीर फाइल्स' की निर्माता, अभिनेत्री पल्लवी जोशी

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"उन आंसुओं में भरी भावनाओं ने हमारी ईमानदारी पर मुहर लगा दी" कहती हैं फिल्म 'कश्मीर फाइल्स' की निर्माता, अभिनेत्री पल्लवी जोशी

-सुलेना मजुमदार अरोरा

एक सशक्त अभिनेत्री, एक जिम्मेदार माँ, एक हम कदम पत्नी, एक जुझारू निर्माता:- पल्लवी एक, रूप अनेक। बॉलीवुड ने पल्लवी जोशी को तब से गौर करना शुरू कर दिया था जब वो सिर्फ चार साल की थी और पहली बार फिल्म 'नाग मेरे साथी' से अभिनय करियर की शुरुआत की थी, फिर फिल्म 'दादा ' में एक अंधी बालिका की भूमिका को उन्होंने जिस तरह से अंजाम दिया उससे बॉलीवुड ने उस पूत के पांव पालने में ही देख लिया था।

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उसी पल्लवी ने आगे चलकर जिस तरह की कलात्मक, प्रयोगात्मक, कमर्शियल फ़िल्मों तथा टीवी सीरीज में अभिनय किया ( रूक्मावती की हवेली, सूरज का सातवां घोड़ा, भुजंगायाना दशावतारा, रिहाई, वो छोकरी, इंसाफ की आवाज़, अंधा युद्व, मृगनयनी, मुजरिम, सौदागर, पनाह, रीता, शांता, टीवी शोज-तलाश, इम्तिहाँ, ये कहाँ आ गए हम, आरोहण, मिस्टर योगी, भारत एक खोंज, अल्पविराम, जुस्तजू, द मेकिंग ऑफ महात्मा, सा रे गा मा पा लिल चैंप्स) और बेहद कम उम्र में ही नैशनल अवार्ड, फिल्म फेएर नॉमिनी अवार्ड, एक्सीलेंस इन सिनेमा अवार्ड हासिल किया उससे पल्लवी की शुमार भारत की धुरंधर अभिनेत्रियों में होने लगी। पल्लवी ने कई मराठी सीरीज प्रोड्यूस की और उन्हीं दिनों उनकी शादी भी हो गई फिल्म मेकर विवेक अग्निहोत्री से और जब दो प्रतिभाओं का मिलन होता है तो कमाल हो जाता है, कहते हैं ना, एक से भले दो, और विवेक की फिल्म 'बुद्धा इन अ ट्रैफिक जाम', 'द ताशकंद फाइल्स' और अब 'द कश्मीर फाइल्स' के जरिए पल्लवी ने अपनी प्रतिभा की धार का परिचय पूरी दुनिया को दे डाला।

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हाल के दिनों में 'द कश्मीर फाइल्स के कारण, फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की जितनी चर्चा, प्रशंसा हो रही है उतनी ही बतौर इस फिल्म की प्रोड्यूसर और अभिनेत्री, पल्लवी जोशी की भी तारीफें हो रही है। खबरों के अनुसार, देश भर में सिर्फ 630 स्क्रीन्स मिलने के बावजूद फिल्म कुछ ही दिनों में दो सौ करोड़ के आंकड़े को छूने लगी है। हालांकि विवेक अग्निहोत्री को उनके ईमानदारी से बनाई इस गंभीर फिल्म के लिए आज दुनिया भर से वाहवाही मिल रही है लेकिन इस फिल्म को बनाना इतना आसान नहीं था। एक इंटरव्यू में पल्लवी ने बताया था कि कैसे कश्मीर में शूटिंग के अंतिम दिन, उनके पति विवेक अग्निहोत्री और उसके खिलाफ  फतवा जारी किया गया था। इस फिल्म में पल्लवी ने राधिका मेनन की भूमिका जिस खूबी से निभाई उससे दर्शक अभिभूत है। इस फिल्म के मेकिंग के बारे में पल्लवी का कहना था कि शूटिंग वाला पार्ट सम्भवतः उतना कठिन नहीं था जितना कठिन इस फिल्म को बनाने के पहले तथ्यों की सही खोजबीन और शोध कार्य करना तथा फिल्म बनाने के लिए पैसा इकट्ठा करना और लोगों से जुड़ना था। चार वर्ष लग गए इसे पूरा करने में जबकि शूटिंग तो लगभग एक महीने में ही पूरी हो गई। जब विवेक और पल्लवी के नाम फतवा जारी किया गया तो वो शूटिंग का अंतिम दिन था, बल्कि अंतिम दृश्य फ़िल्माया जा रहा था। बेहद मानसिक तनाव के बावजूद दोनों ने इस बात को सीक्रेट रखने का फैसला किया ताकि अंतिम दृश्य की शूटिंग निर्विघ्न पूरी हो जाए और अफरातफरी ना मचे क्योंकि उन्हें पता था कि एक बार वे कश्मीर से चले जाएंगे तो दोबारा शूटिंग के लिए लौटना नहीं हो पाएगा। इसलिए दोनों ने चुपचाप शूटिंग पर ध्यान लगाते हुए काम पूरा किया और शूटिंग खत्म होते ही होटल से अपना सारा समान पैक करवाकर, शूटिंग स्पॉट पर ही मंगवा लिया और सेट से ही सीधे एयरपोर्ट के लिए निकल गए। खबरों के अनुसार विवेक अग्निहोत्री को 'कश्मीर फाइल्स' के लिए इतनी गंदी धमकियाँ मिल रही थी कि उन्हें अपना ट्विटर अकाउंट बंद करना पड़ा।

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रिलीज होने के पहले ही यह फिल्म तरह-तरह के आरोप और विवादों से ग्रस्त हो गई थी, लेकिन ना विवेक चिंतित हुए और ना पल्लवी घबराई। पल्लवी ने कहा कि यह फिल्म, एक दिल छूने वाली विषय पर आधारित है और उनका उद्देश्य 1990 में, कश्मीर घाटी के हिंदू कश्मीरियों को किन पीड़ाओं से गुजरना पड़ा इसपर सबका ध्यान दिलाने का था। पल्लवी ने कहा, 'हम सबने कश्मीर को हमेशा राजनैतिक नजरिये से देखा, हम सबने हमेशा सिर्फ इतना ही जाना कि कश्मीर एक अशांत जगह है। कश्मीर में श्रीनगर, गुलमर्ग, सोनमर्ग के अलावा भी वहां और क्या क्या है यह कितने लोग जानते हैं? 1947 में दुर्भाग्यवश भारत और पाकिस्तान एक भयानक विभाजन के दौर से गुजरा लेकिन फिर भी, वो दौर एक निश्चित समय के बाद खत्म हो गई लेकिन कश्मीर में वो भयानक काल कभी खत्म नहीं हुआ।

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इस विषय पर बनने वाली फिल्म को क्यों विवादों में घिरना पड़ा इस पर पल्लवी का कहना है , 'भारत और पाकिस्तान धार्मिक आधार पर विभाजित हुए और वो लड़ाई चलती रही। कश्मीर में हिंदु अल्पसंख्यक होने के कारण वहां से हिन्दुओं को विस्थापित करके कश्मीर को पाकिस्तान के साथ विलय करने की चाल चली गई थी, युवाओं को भड़काया गया था कि उन्हें अलग इस्लामिक स्टेट दिया जाएगा अगर वे आतंक फैला कर हिन्दुओं को वहां से निकाल सके, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और ना होगा क्योंकि कश्मीर भारत का अभिन्न और महत्त्वपूर्ण अंग है। तो जब धर्म के नाम पर इस तरह के विभाजन करने की कोशिश होती है और आप कश्मीर के किसी विषय को छूने का प्रयास करते हैं तो वो एकतरफ़ा होता है।' बताया जाता है कि कश्मीरी पंडितों ने उनसे इस विषय पर फिल्म बनाने की पेशकश की थी। फिल्म में पल्लवी की भूमिका एक ऐसी प्रोफेसर की है जो छात्रों को स्वतंत्र कश्मीर का अपना आंदोलन जारी रखने की प्रेरणा देती है। पल्लवी बताती है,'हम सबको इस विषय की बहुत थोड़ी जानकारियाँ हैं, अधिकतर लोग समझते हैं कि कश्मीरी पंडितों ने वहां चल रहे कुछ आतंकी गतिविधियों के कारण अपना घर छोड़ा जो सही नहीं है, उन्हें जबर्दस्ती बंदूकों और तलवारों की नोक पर अपनी जमीन, अपना घर छोड़ने पर मजबूर किया गया। वहां कोई विविधता नहीं है जबकि हम सब महानगरीय समाज में विविधता के साथ जी रहें हैं।'
जो लोग इस फिल्म को प्रोपेगैंडा फिल्म बता रहे हैं उन्हें करारा जवाब देते हुए वे कहती हैं, 'जो भी त्रासदी कश्मीरी हिन्दुओं के साथ हुई है वो उनके धर्म के लिए हुआ है इसलिए हम उसे हिन्दुओं की त्रासदी कहते हैं और जब कश्मीरी हिन्दुओं पर हुए अत्याचार के बारे में कोई कुछ बताना चाहते हैं तो उसे प्रोपेगैंडा फिल्म क्यों कहा जा रहा है? हमने तो सिर्फ वो कहानी बताई है जो घटित हुआ है। हमने समाज के उस वर्ग को लेकर ये फिल्म बनाई है जो अपने पैतृक घरों से पिछले बत्तीस वर्षो से विस्थापित है। जब ज्यूस या स्टीवन स्पीलर्बग होलोकस्ट पर फिल्म बनाते हैं तो उन्हें कोई नहीं पूछता कि क्या ये प्रोपेगैंडा फिल्म है?'

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कश्मीर फाइल्स को हर जगह से मिल रही जबरदस्त समर्थन से पल्लवी अभिभूत हैं, वे कहती हैं,' हमने जम्मू से शुरुआत की जो हमारे लिए एक इम्तिहान की तरह था। दरअसल उस दौर के लोग जिन्हें घर छोड़ने की त्रासदी झेलना पड़ा था, वे दुनिया के अलग अलग जगह जाकर बस गए लेकिन आज भी उनमें से बहुत से लोग हैं जो जम्मू में रहते हैं, उनका भविष्य कैसा होगा पता नहीं, वे लोग बस अपने घर लौटना चाहते हैं। हमारे लिए सबसे बड़ा समर्थन हमारे दर्शकों से है, फिल्म देखने के बाद जब वे हमारे गले लग कर रो पड़े, तो उनकी भावनाओं की अतिरेक से हमारा दिल भर आया, तब हमें लगा कि हमारी मेहनत, हमारी लगन और ईमानदारी से प्रस्तुत की गई उनकी कहानियां सफल हुई। उन आंसुओं में भरी भावनाओं ने हमारी ईमानदारी पर मुहर लगा दी।'

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पल्लवी और विवेक अग्निहोत्री के प्रयास तथा साहस सराहनीय है, और बॉलीवुड में एक बड़ा वर्ग इस जोड़ी को कश्मीर फाइल्स जैसी एतिहासिक ज्वलंत त्रासदी पर फिल्म बनाने को लेकर सैलूट करती है और उनसे प्रेरणा लेकर इस तरह के और ज्वलन्त विषयों पर फिल्म बनाने की प्रेरणा लेते हैं।

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