'अलीगढ़', 'झांझर दी पावन छंकार', 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान', 'बधाई दो' और 'बॉम्बे टॉकीज़ ' जैसे कथानक जटिल और विवादास्पद मुद्दों को गहराई से रेखांकित करते हैं
यह खुशी की बात है कि LGBT किरदार अब सिर्फ मनोरंजन के हाशिये पे न होकर कहानियों के केंद्रबिंदु बन गए हैं। रूढ़िवादिता से दूर, इन कहानियों में उन्हें और उनके मुद्दों को सामान्य तरीके से दर्शाया जाने लगा है। देखिये ऐसे ही पांच संवेदनशीलऔर मर्मस्पर्शी कथानक.
अलीगढ़
हंसल मेहता द्वारा निर्देशित 2016 की ये फिल्म अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर, श्रीनिवास रामचंद्र सिरस (मनोज बाजपेयी) की कहानी बयान करती है, जिन्हें एक अवैध 'स्टिंग ऑपरेशन' के बाद निलंबित कर दिया गया था जब वे एक रिक्शा चालक के साथ यौन संबंध बनाते हुए पकड़े गए थे । उन्हें कलंकित किया गया और फिर बर्खास्त कर दिया गया। उन्हें विश्वविद्यालय का अपना आवास भी छोड़ना पड़ा। फिर आशा की एक किरण इस निराशा को तोड़ती है जब एक पत्रकार, दीपू सेबेस्टियन (राजकुमार राव) ये मामला उठाते हैं और जल्द ही अदालत उनके निलंबन को रद्द कर देती है। पर शायद न्याय देर से होता है उस इंसान के साथ जिसके जीवन और आत्मा को इतनी क्रूरता से तोड़ा गया था। 'अलीगढ़' को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं और आप इसे देख सकते हैं ZEE5 और अमेज़न प्राइम पर।
झांझर दी पावन छंकार
ज़ी थिएटर का यह टेलीप्ले 1972 की अमेरिकी कॉमेडी फिल्म 'बटरफ्लाइज़ आर फ्री' से प्रभावित एक कॉमेडी-ड्रामा है। यह टेलीप्ले एक दृष्टिहीन युवक की यात्रा को अंकित करता है, जो अपनी मां के अत्यधिक नियंत्रण से त्रस्त होकर मुक्त होना चाहता है। वह एक पड़ोसी के साथ किरायेदार के तौर पे रहने लगता है और पहली बार अपनी पहचान तलाशना शुरू करता है और आजादी का स्वाद चखता है। वो पड़ोसी एक खुशमिजाज कलाकार है जिसे सजना-संवरना पसंद है और जिंदगी बस एक नया मोड़ लेने ही लगती है जब मां एक बार फिर अपने बेटे के जीवन में दखल देने लगती है। कंवल खूसट और सरमद खूसट द्वारा संयुक्त रूप से निर्देशित इस टेलीप्ले में सानिया मुमताज, जैन अफजल और इमान शाहिद के साथ खुद सरमद भी हैं। यह नाटक इस बात का एक सूक्ष्म चित्रण है कि एक रूढ़िवादी समाज में अपने असली रूप को स्वीकार करना कितना कठिन है। 30 अप्रैल को इसे टाटा प्ले थिएटर पर प्रसारित किया गया।
शुभ मंगल ज्यादा सावधान
हितेश केवल्या द्वारा निर्देशित ये फिल्म एक समलैंगिक जोड़े, अमन त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) और कार्तिक सिंह (आयुष्मान खुराना) के बीच के संबंधों को चित्रित करती है, जो एक ऐसे रूढ़िवादी परिवेश में कई समस्याओं का सामना करते हैं, जहां समलैंगिक प्रेम के बारे में बात करना भी वर्जित है। एक शादी के दौरान ग़लतफ़हमियों और कई जटिलताओं के बाद, यह सभी के सामने स्पष्ट हो जाता है कि सच्चे प्यार को नकारा नहीं जा सकता है और वो हमेशा अपना रास्ता खोज ही लेता है । फिल्म होमोफोबिया जैसे गंभीर मुद्दे को हास्य और साहस के साथ संबोधित करती है और इसमें गजराज राव और नीना गुप्ता भी प्रमुख भूमिकाओं में हैं। फिल्म अमेज़न प्राइम पर देखी जा सकती है.
बधाई दो
हर्षवर्धन कुलकर्णी द्वारा निर्देशित यह 2022 की फिल्म, हिंदी सिनेमा में लैवेंडर विवाह पर केंद्रित पहली कहानी है। फिल्म बेबाक होकर LGBTQ+ प्रेम को चित्रित करती है जो समाज के निरंतर दबाव के बावजूद अपना मार्ग खोज लेता है। एक समलैंगिक पुलिसकर्मी, शार्दुल ठाकुर (राजकुमार राव) और एक समलैंगिक शिक्षिका , सुमी (भूमि पेडनेकर) विवाह बंधन में बंध जाते हैं और फिर अपने सच्चे जीवन साथी के साथ सुख दुःख और प्रेम साँझा करते हैं। आखिरकार, उनके परिवार भी उनकी लैंगिक पहचान को स्वीकार कर लेते हैं और उनका समर्थन करते हैं। फिल्म में शीबा चड्ढा और चुम दरंग भी प्रमुख भूमिकाओं में हैं और यह नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है।
बॉम्बे टॉकीज
2013 की यह एंथोलॉजी करण जौहर, दिबाकर बैनर्जी, जोया अख्तर और अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित है। करण जौहर द्वारा निर्देशित 'अजीब दास्तान है ये' कहानी है देव (रणदीप हुड्डा) और अविनाश (साकिब सलीम) के बीच समलैंगिक संबंधों के बारे में। देव का अविनाश से परिचय उसकी पत्नी गायत्री (रानी मुखर्जी) करती है. देव अविनाश के प्रति अपने आकर्षण को स्वीकार नहीं कर पाता और हम देख पाते हैं कि कैसे सामाजिक दमन दो लोगों को अलग तरह से प्रभावित कर सकता है। अविनाश अपनी समलैंगिक पहचान के साथ सहज है, जबकि देव एक पाखंडी है और समाज में अपनी छवि को बनाए रखना चाहता है। इस जटिल और मार्मिक कहानी में अलीशा शेख और शिव सुब्रमण्यन भी हैं और इसे नेटफ्लिक्स पर देखा जा सकता है।