बर्थडे स्पेशल राहुल रवैल: राज कपूर फिल्म मेकिंग के जीनियस थे

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By Mayapuri Desk
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बर्थडे स्पेशल राहुल रवैल: राज कपूर फिल्म मेकिंग के जीनियस थे

-पूर्व इंटरव्यू

बॉलीवुड के जाने माने निर्देशक एच. एस रवैल के बेटे राहुल रवैल बचपन से ही परमाणु भौतिक विज्ञान की पढाई करना चाहते थे, पर एक लम्हे ने उनकी ज़िन्दगी बदल कर रख दी! 1980 में उन्होंने अपना करियर फिल्म ’गुनहगार’ से शुरू किया उनकी पहली 2 फिल्में असफल रहीं पर ’लव स्टोरी’ से उनकी गाड़ी चल पड़ी। उन्होंने सनी देओल, काजोल, ऐश्वर्य राय बच्चन, अमृता सिंह जैसे कई नए चेहरे इंडस्ट्री को दिये और माधुरी दीक्षित, शाहरुख़ खान, ऋषि कपूर जैसे कलाकारों के साथ काम किया। अभी तक राहुल रवैल ने 17 फिल्म्स और 2 टीवी सीरियल का निर्देशन किया है उनकी आखरी फिल्म 2007 में ’बुड्ढा मर गया’ आयी थी लेकिन अभी भी वो आगे फिल्में बनाने की इच्छा मायापुरी के ऑफिस में उनसे हुई ख़ास बातचीत के कुछ अंश:  

अपने शुरुआती दिनों में आप निर्देशन के क्षेत्र में नहीं आना चाहते थे फिर वो ऐसा कौन सा लम्हा था जब आपने एक निर्देशक बनने की ठानी?

चिंटू, यानी ऋषि कपूर मेरे बचपन के दोस्त हैं, वो मुझे एक बार स्कूल की छुट्टियों के दौरान ’मेरा नाम जोकर’ की शूटिंग पर लेकर गए जहाँ पर सर्कस वाला सीन शूट हो रहा था, वहाँ पर जब मैंने राज कपूर साहब को देखा की वो किस तरह से पूरी यूनिट को संभाल रहे थे बस उस एक लम्हे ने मेरी ज़िन्दगी बदल दी.

राज कपूर के बारे में आप एक वाक्य में क्या कहना चाहेंगे?

वो फिल्म मेकिंग के जीनियस थे, उनके जैसा न कोई पैदा हुआ था न कोई होगा ।

आपने हमेशा नए चेहरों को अपनी फिल्म में मौका दिया है जैसे काजोल, सनी देओल, ऐश्वर्य राय बच्चन, कुमार गौरव, अमृता सिंह तो क्या आपको कभी ये नहीं लगा की ये आपके भविष्य के लिए जोखिम भरा कदम रहे हैं?

जब मुझे पहली बार निर्माता ने फिल्म निर्देशन के लिए बुलाया तो उसमें सनी देओल थे और वो धर्मेंद्र जी के बेटे थे, तो जोखिम लेने का सवाल वहीं ख़त्म हो गया दूसरा मुझे उस समय बस काम चाहिए था तीसरा नये कलाकारों के साथ काम करना ज़्यादा आसान होता है क्योंकि आप उन्हें अपने तरीके से ढाल सकते हो।

आपका फ़िल्मी बैकग्राउंड रहा है, आपके पिता महान निर्देशक थे तो क्या आपको किसी कठिनाई का सामना करना पड़ा या फिर सब आसान था?

जिंदगी में आसान तो कुछ भी नहीं होता, कठिनाईयां हमारे जीवन का हिस्सा होती हैं और उनसे हमे लड़कर आगे बढ़ना होता है।

आपका एक एक्टिंग स्कूल भी था वो कुछ सालों में बंद क्यों हो गया?

न्यूयॉर्क के एक नामी एक्टिंग स्कूल ’स्टेला एडलर स्टूडियो ऑफ़ एक्टिंग’ के सहयोग के साथ वो स्कूल खोला था और मुझे फ़ीस यहाँ के बाकी एक्टिंग स्कूल के हिसाब से रखनी थी पर हमारा स्कूल खुलते ही सबने अपनी फ़ीस और भी कम कर दी और मैं डॉलर में उनका मुनाफा देने में असक्षम हो गया इसीलिए वो स्कूल बंद करना पड़ा।

जिस तरह से बड़े से बड़ा निर्देशक और अभिनेता/अभिनेत्री वेब सीरीज और यूट्यूब वीडियोस के क्षेत्र में उतर रहे हैं तो यह बदलाव क्या हमारी बॉलीवुड इंडस्ट्री को प्रभावित कर सकता है?

बिल्कुल कर सकता है, ये जो नये रास्ते खुले हैं उसमें अपनी बात खुलकर कही जा सकती है न इसमें समय की बंदिश है और न ही सेंसर बोर्ड की। कई ऐसी एडल्ट कहानियाँ भी होती हैं जो हम बड़े पर्दे पर खुलकर दिखा नहीं सकते पर यहाँ सब मुमकिन है पर ये ज़रूर है कोई इस नयी धारा का गलत इस्तेमाल न करे इस बात का ध्यान रखना होगा।

सिनेमा बदल रहा है, दर्शक ज़्यादा समझदार हो रहा है वो अच्छी कहानियों को देखना चाहता है, तो क्या मसाला फिल्में अब उतनी नहीं चलेंगी? निर्देशकों और फिल्म जगत के लिये ये कितना चुनौतीपूर्ण होगा?

ऐसा नहीं हैं की मसाला फिल्में बनना बंद हो जाएंगी, उनका अपना अलग मज़ा है, अलग दर्शक वर्ग भी है इनका स्केल भी अब बड़ा हो गया है पर हाँ चूँकि दर्शक अच्छा कंटेंट देखना चाहता है तो ये पूरी इंडस्ट्री के लिए काफी फायदेमंद होगा छोटे-छोटे बजट की भी फिल्म उतनी ही चल सकती है अगर कहानी बेहतरीन हो।

आप अंतर्राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड्स के ज्यूरी सदस्य हैं तो क्या पैमाना होता है फिल्मों के चयन का?

जैसे की कई सदस्य मिलकर ये तय करते हैं की कौन-सी फिल्म या अभिनेता सर्वश्रेस्ठ है तो ये एक व्यक्तिपरक बात है, अभी जिसके लिए मैं यहाँ हूँ ’ इंडियन पेनोरमा’ उसमें भारत की सबसे बेहतरीन 21 फिल्में होंगी जो की विदेशी दर्शकों को दिखाई जाएंगी और अलग-अलग फिल्म फेस्टिवल अवॉर्ड्स के लिये भी भेजी जाएंगी।

आपने फिल्मों और टीवी सीरियल दोनों का निर्देशन किया है, क्या अंतर होता है दोनों में?

सबसे अहम् होता है ’विज़न’। टीवी और बड़े पर्दे पर दर्शकों के देखने का नज़रिया अलग अलग होता है और अब तो मोबाइल पर भी फिल्में और सीरियल देखे जाते हैं तो उस बात का भी पूरा ख्याल रखना होता है।

सनी देओल के साथ आपने सबसे ज़्यादा फिल्में की हैं उसकी कोई ख़ास वजह?

सनी के साथ पहली फिल्म के बाद बहुत अच्छी बॉन्डिंग बन गई थी और फिर कहानियां भी उनके जैसे किरदार के लिये ही आयीं।

अभी के नये चेहरों में से आपका पसंदीदा कौन सा है?

लिस्ट बहुत लम्बी है बहुत प्रतिभावान अभिनेता और अभिनेत्री आ रहे हैं जैसे आयुष्मान खुराना, विक्की कौशल, तापसी पन्नू और ये आने वाले समय में हिंदी सिनेमा पर छाये रहेंगे!

आपने काफी समय से निर्देशन नहीं किया है, आगे क्या ख्याल है?

फिल्म तो बनानी ही बनानी है। बाकि मैं अभी फिल्म फेस्टिवल्स में व्यस्त हो जाता हूँ और कई जगह फिल्म मेकिंग पर लेक्चर्स देने जाता हूँ और मेरा ख्याल से अगर आप अपने ज़िन्दगी के अनुभव जितना भी आपको आता है किसी को बता सको, उन्हें बाँट सको उससे बेहतर और कुछ नहीं !

आप नये निर्देशकों को क्या सलाह देना चाहेंगे?

बॉलीवुड में कई नये निर्देशक ऐसा काम कर रहे हैं जिसे कभी सोचा भी नहीं था, मेरी सलाह है की उन्हें जो सही लगता उसे ही आगे लेके जाना चाहिए बिना इस बात को सोचे की फिल्म चलेगी या नहीं या फिर कोई अभिनेता कुछ कह रहा है तो उसकी बात सुन ली ऐसे में व्यक्ति बहक जाता है। और कोई फिल्म नहीं चली तो कोई बात नहीं, प्रतिभा कभी नहीं मरती।

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