birthday special विक्रम भट्ट: अब मैं लोगों को डराना पसंद करता हूं

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birthday special विक्रम भट्ट: अब मैं लोगों को डराना पसंद करता हूं

-पूर्व इंटरव्यू

एक शैली के रूप में हॉरर फिल्मों ने दर्शकों को लंबे समय तक मोहित किया है. यह शैली निश्चित रूप से सबसे कठिन शैलियों में से एक है. इस शैली के प्रति अपने जुनून को निर्देशक विक्रम भट्ट अपनी हर फिल्म के साथ प्रमाणित करते आ रहे हैं.उनकी 18 अक्टूबर को प्रदर्शित होने वाली हाॅरर फिल्म ‘घोस्ट’ एक अधिक डरावनी फिल्म है. यह आपको उत्तेजित करती है, डराती है और यह निश्चित रूप से आपको सिनेमाघरों तक आने के लिए मजबूर करेगी।

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फिल्म ‘घोस्ट’ की कहानी कैसे मिली?

- यह एक सत्य कथा से प्रेरित फिल्म है. वास्तव में1920, शापित, हंटेड, डैंजरस इष्क, क्रिएचार और 1921 जैसी हॉरर फिल्म बनाने के बाद कुछ नया करने के लिए मैं रिसर्च कर रहा था. तभी मैंने एक खबर पढ़ी कि, 1981 में इंग्लैंड की अदालत में एक अजीबोगरीब मुकदमा आया था, जिसका नाम था ‘द डेविल इन द कोर्ट’. इस मुकदमे की वहां के अखबारों और मीडिया में बहुत चर्चा हुई थी.यह मुकदमा जॉनसन पर चला था. जाॅनसन नामक एक इंसान ने अपने मकान मालिक को मार दिया था. अपने बचाव में जाॅनसन ने अदालत में कहा कि उस पर एक आत्मा का वास है. उसने मकान मालिक को नहीं मारा है.बल्कि उसके अंदर जो शैतान बस गया है, उस शैतान ने उसके हाथ से मकान मालिक को मरवाया है. अदालत में जज ने कहा कि बेवकूफी वाली बातें मत करो. कानून व न्याय हमेशा इंसानों पर लागू होता है, आत्माओं या भूत प्रेत पर लागू नहीं होता. इस पर अदालत में काफी बहस हुई. अंत में जज ने उसे सजा तो दी, मगर सिर्फ 5 साल की. जबकि हत्या की सजा तो उम्रकैद या फांसी होनी चाहिए. जब मैंने यह केस पढ़़ा, तो मुझे यह बहुत अनोखा केस लगा. मैंने सोचा कि अगर कानून और भूत प्रेत का आमना सामना हो जाए, तो इंसान क्या करेगा? जज क्या करेंगे? यह बहुत नया एंगल था. इसको लिखने और बनाने में बहुत मजा आया. यह बहुत ही अलग तरह की कहानी र्है। publive-image

फिल्म ‘घोस्ट’ की कहानी क्या है?

- यह कहानी भारतीय मूल के लंदन में बसे करण खन्ना (शिवम भार्गव) की है, जो कि बहुत बड़ा पोलीटिशियन है. उसकी पत्नी का खून हो जाता है.उसका दावा है कि उसने खून नहीं किया. वह अपने बचाव के लिए वकील सिमरन सिंह (सनाया इरानी) को बुलाता है. सिमरन सिंह से करण खन्ना कहता है कि यह हत्या उसने नहीं, बल्कि भूत ने की है. करण खन्ना के अनुसार उसके घर में भूत प्रेत रहते हैं. इस पर वकील सिमरन सिंह अपना बैग उठाकर चल देती है. सिमरन सिंह का कहना है कि मूर्ख बनाना है, तो हमें क्यों बुलाया. इस तरह आप भूत पर सबकुछ डाल देंगे, तो इसका कोई अंत नहीं है. कल आप कहेंगे कि भूत ने रेप किया.भूत ने चोरी की. एक बार कानून मान ले कि भूत ने ऐसा किया है, तो हर बार लोग भूत के नाम पर बचते रहेंगे।

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 कलाकारों का चयन किस आधार पर?

- टीवी कलाकार सनाया ईरानी बहुत अच्छी कलाकार हैं.फिल्म पूरी होने के बाद जब मैंने फिल्म देखी, तो मैंने पाया कि इस फिल्म के सिमरन सिंह के किरदार को सनाया से बेहतर कोई दूसरा कलाकार कर ही नहीं सकता था. शिवम भार्गव अच्छा लड़का है. अच्छा कलाकार है. देखिए, मेरा मानना है कि जब हम कोई नई कोशिश करने जा रहे हैं और उसके कलाकार नए हों, तो वह पूरी फिल्म नई लगती है. मेरी राय में आज सिनेमा का जो दौर चल रहा है, उसमें स्टार कलाकार के होने ना होने के कोई मायने नहीं है.दर्शक अच्छी कहानी व अच्छा कंटेंट देखना चाहता है। publive-image

 फिल्म में गाने कितने हैं ?

- फिल्म में छः गाने हैं और यह सभी गाने फिल्म की पटकथा का हिस्सा हैं. देखें, आज की तारीख में कोई भी गाना लंबा नहीं होता है. अब तो गाने 2 मिनट से 3 मिनट के बीच के होते हैं। कितने दिन में शूटिंग की व कहां फिल्माया? - हमने अपनी इस फिल्म को लंदन में 52 दिन में फिल्माया है. उसके बाद स्पेशल इफेक्ट्स में करीब 2 माह लग गए. इस फिल्म में स्पेशल इफेक्ट्स का बहुत बड़ा योगदान है. हमारी फिल्म ‘घोस्ट’ का स्पेशल इफेक्ट अंतर्राष्ट्रीय स्तर का है. “घोस्ट’’ उन डरावनी फिल्मों में से एक है, जिन पर मैंने सर्वाधिक मेहनत की है. शानदार संपादन के साथ फिल्म की चुस्त पटकथा दर्शकों को डर से अपनी सीटों से चिपके रहने को मजबूर कर देगी है।

 ‘गुलाम’ जैसी फिल्में निर्देशित करते करते हॉरर से चिपक गए?

- एक वक्त था जब हर निर्देशक  अलग-अलग तरह की फिल्में बनाता था और लोग उन फिल्मों को पसंद भी करते थे. पर अब समय का दौर  बहुत बदल चुका है. अब हर कोई अपना ब्रांड बनाना चाहता है.अब सिर्फ ब्रांड ही बिक रहा है. बिना ब्रांड के गाड़ी, जींस, पैंट, शर्ट कुुछ भी हो ब्रांड के बगैर नहीं बिक सकता. मैं आपको सत्तर व अस्सी के दशक में ले जाना चाहूंगा. फिल्म निर्देशक स्व.मनमोहन देसाई की अपनी एक अलग पहचान थी.उनकी हर फिल्म का अपना एक ब्रांड था.अब डेविड धवन साहब की बात करें, तो उनका कॉमेडी का अपना ब्रांड है. रोहित शेट्टी के सिनेमा का अपना एक अलग ब्रांड है. हर निर्देशक का अपना एक अलग ब्रांड है. कुछ लोग हंसाना पसंद करते हैं. कुछ लोग रुलाना पसंद करते हैं. ऐसे में मैंने सोचा कि क्यों ना मैं लोगों को डराऊं. आप कह सकते हैं कि अब मैं लोगों को डराना पसंद करता हॅूं। 

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 डराने का काम तो ‘रामसे ब्रदर्स’ करते रहे हैं?

- सच यही है कि 70 के दशक में डराने का काम रामसे ब्रदर्स ने किया. अभी चंद दिनों पहले श्याम रामसे का देहांत हुआ, तो मैंने कहा कि श्याम रामसे का सिर्फ हॉरर फिल्मों में ही नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा में भी बहुत बड़ा योगदान है. 70 और 80 के दशक में उन्होंने बेहतरीन फिल्में बनाकर लोगों को डराया. लोगों ने उनकी फिल्मों को बहुत पसंद किया. मेरा भी अपना दर्शक वर्ग तैयार हो गया है, जो मेरी हर फिल्मों को देखना चाहता है।

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 वैज्ञानिक उन्नति के साथ भूत प्रेत पर लोगों का यकीन खत्म, इस कारण अब आपको..?

- लोगों का मानना है कि वर्तमान समय में दर्शक भूत प्रेत पर यकीन नहीं करता. ऐसे मे हाॅरर फिल्में बनाना कठिन हो गया है. लेकिन मैं नही मानता. इसके दो तीन पहलू हैं.पहला पहलू है कि किसी बात को मानने या ना मानने से मनोरंजन पर फर्क नहीं पड़ता है. आप थिएटर में डरने के लिए जाते हैं न कि किसी पर यकीन करने. इसी तरह जुरासिक पार्क हो या अवेंजर्स हो, इनमें भी जो किरदार थे, उन्हें लोग मानते नहीं थे, पर लोगों ने इंज्वॉय किया। दूसरा पहलू यह है कि यह  कहना पूरी तरह से गलत होगा कि लोग अब भूत प्रेत में बिल्कुल यकीन नहीं करते हैं. वैसे देखें तो वर्तमान समय में नई पीढ़ी के लोग भगवान को भी कम मानते हैं.जब लोगों ने ईश्वर यानी कि भगवान के सामने सिर झुकाना बंद कर दिया है, तो फिर भूत प्रेत का नंबर कहां से आएगा.लेकिन आप भगवान में यकीन करते हैं और भूत प्रेत में यकीन नहीं करते हैं, यह बात नहीं बनेगी. यदि आप अच्छाई पर यकीन करेंगे, तो बुराई भी होगी. तीसरा पहलू यह है कि जब हम कहते हैं कि हमारे शरीर में आत्मा है,जो कि अजर अमर है. आत्मा की मृत्यु नहीं होती.यही तो गीता में भी लिखा है कि आत्मा अजर अमर है. तो फिर भूत प्रेत क्या है? आप मानते हैं कि शरीर और आत्मा है, तो फिर भूत प्रेत को ना मानना गलत है।

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