फिल्म ‘हरियाणा’ में हरियाणा के फ्फेवर को पूरी सच्चाई के साथ पेश किया गया है: अश्लेषा सावंत

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By Mayapuri
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INYTERVIEW ASHLESHA SAWANT FILM HARYANA

पुणे में जन्मी व पली बढ़ी अष्लेषा सावंत ने 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करते ही अभिनय के शेत्रों में कदम रख दिया था. पहले ही सीरियल “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” में तिशा विरानी का किरदार निभाकर जबरदस्त षोहरत बटोरी. इन दिनों वह सीरियल “अनुपमा” में बरखा के किरदार में नजर आ रही हैं. तो वही वह पांच अगस्त को प्रदर्षित होने वाली फिल्म “हरियाणा” में अभिनय कर उत्साहित हैं.

प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के अंष... 

सीरियल “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” से लेकर अब तक का आपको जो कैरियर रहा है, उसे किस तरह से देखती हैं?

जब मैं सीरियल “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” से जुड़ी थी, उस वक्त तक मुझे न तो कोई खास तजुर्बा था और ना ही ज्ञान था. न कोई महत्वाकांक्षा थी और न ही इस सीरियल से मेरी कोई आपेक्षाएं थी. मैंने सोचा भी नहीं था कि मेरी अभिनय यात्रा कैसी होनी चाहिए?

हां! उससे पहले मैंने स्कूल या कालेज में कभी नाटक में अभिनय कर लिया. कभी डांस कर लिया. यह सब चलता रहा था. तो अभिनय का शोक जरुर था, मगर मैने अभिनय जगत को लेकर कोई बड़े सपने नहीं देखे थे. मैं इश्वर आशीर्वाद ही मानॅूंगी कि मैं छोटी उम्र में ही टीवी जगत से जुड़ी और मुझे नाम व शोहरत दोनों मिली. मुझे काम करने के लिए अच्छे लोगों का साथ मिला. सही मायनों में मैने अभिनय की बारीकियां सेट पर काम करते हुए और टीवी से ही सीखा. मुझे बहुत नामी गिरामी लोगों के साथ काम करने का अवसर मिला. टीवी मेरे लिए हमेषा बहुत खूबसूरत सीख और महत्वपूर्ण माध्यम रहा. मैं अब फिल्म कर रही हॅूं. हो सकता है कि आगे जाकर मैं ओटीटी प्लेटफार्म के लिए भी काम करुं, मगर टीवी हमेशा मेरे दिल के करीब रहेगा. मैं इसे कभी भुला नही सकती. मैने टीवी पर काफी काम किया. ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’,‘सात फेरे’,‘कसौटी जिंदगी के’,‘कहीं तो होगा’,‘जिस देश मे निकला होगा चांद’,‘पवित्र रिश्ता’, ‘पोरस’,‘आलिफ लैला’ सहित कई सीरियल किए हैं. इन दिनों सीरियल ‘अनुपमा’ में मैं बरखा कपाड़िया का किरदार निभा रही हॅूं. मुझे सुरेखा सीकरी जी के साथ काम करने का अवसर मिला, जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा. आज वह हमारे बीच इस संसार में नही हैं,मगर सुरेखा सीकरी जी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया. कुछ चीजें तो मैंने उन्हे देख देखकर सीखा. मैने परीक्षित सहानी, नीना गुप्ता,अक्षय आनंद के साथ काम करते हुए काफी कुछ सीखा. इन लोगों के साथ काम करना मेरे लिए एक्टिंग कोर्स करने जैसा रहा. अब आप खुद अंदाजा लगाएं कि मैं कई वर्षों तक लगातार बीस से पच्चीस दिन यही काम किया. मैने जीटीवी के सर्वाधिक लोकप्रिय सीरियल “सात फेरे” किया था, जो कि पांच वर्ष तक प्रसारित हुआ था. यह डेली सोप था. इन पांच वर्ष के दौरान मैंने कितनी चीजें सीखी थीं, उसका आप अंदाजा नही लगा सकते. इश्वर अनुकंपा से मैने एक फिल्म “हरियाणा” की है, जो कि पांच अगस्त को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली है. एक कलाकार के लिए इससे बड़ा आशीर्वाद क्या हो सकता है कि उसे अलग अलग माध्यम में अपना हूनर दिखाने के लिए अलग अलग तरह के किरदार निभाने के अवसर मिले. 

“क्योंकि सास भी कभी बहू थी” अति लोकप्रिय सीरियल था. आपको भी इससे जबरदस्त शोहरत  मिली थी. इसके बावजूद जो स्थान आपको मिलना चाहिए था,वह नही मिल पाया?

आपका यह सवाल काफी रोचक है. जब मैने ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ किया था, तो उसमें कलाकारों की लंबी चैड़ी फौज थी. इस सीरियल में लीड कोई नही था. हर चरित्र डिफाइन किया हुआ था. हर किरदार की महत्ता थी. जब आप लीड किरदार निभाते हैं, तो वहां पर उस एक किरदार व कलाकार पर लोगों का ध्यान ज्यादा होता है. उसके शेड्स भी बहुत ज्यादा पॉजिटिव होते हैं. लेकिन जब आप पैरलल चरित्र निभाते हैं, तो आपके किरदार में काफी कुछ करने के अवसर मिलते हैं. इस तरह के किरदार पॉजिटिव व नगेटिब भी होते रहते हैं. लेकिन आपका सवाल काफी जायज व महत्वपूर्ण है. क्योंकि हम सफलता टीआरपी व नाम में देखते हैं. दर्शक  को लगता होगा कि इसने तो लीड किरदार नही किया. इसने तो पैरलल किरदार निभाया है. तो यह उनकी सोच है, मेरी सोच नही है. मैने तो काम करते हुए काफी इंजॉय किया. उसके बाद मैंने ‘सात फेरे’ सहित कई सीरियलों में अभिनय किया.

टीवी से फिल्मों में आने में इतना वक्त क्यों लगा?

कहीं न कहीं एक वक्त के बाद कलाकार की अंदर की भूख को टेलीवीजन खा लेता है. टीवी में लंबे समय तक काम करते हुए कलाकार को इतना कम्फर्ट मिलता है कि वह उसमें खो जाता है. तो मैं भी टीवी में गुम हो गयी थी, पर इतना भी गुम नही हुई थी कि मैं खुद को ढूंढ़ नहीं पायी. मैं मरते दम तक टीवी करते रहना चाहॅूंगी. तो मैं भी एक दिन जग गयी और मैने फिल्म ‘हरियाणा’ की है. जिसमें मेरा किरदार छोटा जरुर है, मगर कहानी में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है. इस फिल्म व मेरे किरदार से लोगों को एक सीख मिलेगी. तो कहीं न कहीं मैं सुरेखा जी को धन्यवाद देती हॅूं कि उन्होने मुझे जो कुछ सिखाया था, उसे फॉलो करते हुए मैं निरंतर आगे बढ़ रही हॅूं.   

फिल्म “हरियाणा” के निर्देषक संदीप बसवाना निजी जिंदगी में आपके पति हैं. क्या इसी वजह से आपने यह फिल्म की?

इस फिल्म के लिए कलाकारों का चयन कास्टिंग डायरेक्टर जोगी मलंग ने की है, मेरे पति ने नहीं. मुझे इस फिल्म के लिए ऑडिशन देना पड़ा. इसके अलावा मैने संवादों के हरियाणवी लहजे को पकड़ने के लिए मुझे वर्कशॉप भी करने पड़े. 

फिल्म “हरियाणा” क्या है?

यह तीन भाइयों की बहुत प्यारी कहानी है. हरियाणा ऐसा राज्य है जहाँ बहुत ज्यादा ऐतिहासिक या कल्चरल कहानियां नहीं हैं. मसलन-महाराष्ट् में छत्रपति शिवाजी महाराज व मराठाओं की कइ कहानियां विद्यमान हैं. पंजाब व उत्तर प्रदेश सहित हर राज्य में कई कहानियां मिल जाएंगी, मगर हरियाणा में ऐसा नहीं है. हरियाणा के बारे में लोगों की सोच यह है कि हरियाणा में खेती है, जमीन है. कुछ लोग एक जगह बैठकर हँसते हैं और एक दूसरे का मजाक उड़ाते हैं. कुछ लोग खेल में व्यस्त रहते  हैं. कुछ लोग फौज में चले जाते हैं. इसके अलावा कुछ नही है. हरियाणा के लोगों को शोक भी नही है. लेकिन अकड़ू बहुत हैं. यही इस फिल्म की यूएसपी है. एक जाट अपने घर के अंदर खाट पर बैठकर हुक्का फूंकता रहता है, यही उसकी जिंदगी है. यह हमने सुना है लेकिन फिल्मों में इसे ठीक से कभी पिरोया नही गया. संदीप बसवाना और यष टोक जी स्वयं जाट हैं. तो उन्होने इस फिल्म में हरियाणा के उसी फ्लेवर को पूरी सच्चाई के साथ पेश किया है. इस फिल्म से आपकी समझ में आएगा कि हरियाणा में कैसे लोग रहते हैं, कैसे उनके बीच प्रेम व अपनापन है? उनकी रोमांटिक जिंदगी कैसी है. इसमें तीन भाइयों की प्रेम कहानी के साथ जिंदगी में उनके आगे बढ़ने की कहानी है.  

फिल्म “हरियाणा” के अपने किरदार के बारे में क्या कहे?

मैंने इस फिल्म में विमला का किरदार निभाया है. वह हरियाणा के एक गांव में रहती है. हरियाणा के गांव में लड़कियों की शादी जल्दी हो जाती है. मगर विमला ने शादी के लिए मना कर दिया है. जबकि विमला की उम्र तीस से अधिक हो गयी है. पर विमला को अभी पढ़ना है. उसे पता है कि गांव में उसे घूमने को नहीं मिलता. वह शहर में ही रहना पसंद करती है. लेकिन जब उसे प्यार होता है ,उसे  उसकी पसंद का हमसफर मिलता है. उसे ऐसे हमसफर की तलाश थी, जो उससे प्यार करे, उससे बातें करें. गांव व शहर की जीवनशैली में काफी अंतर है. गांव में प्यार नाम की चीज बहुत कम देखने को मिलती है.

शूटिंग कहां कहां की है? आपके अनुभव क्या रहे?

मैं पहली बार गांव व हरियाणा गयी. मैने पहली बार गांव की जिंदगी देखी. दूध,दही व घी का जो खाना होता है, वह क्या होता है, इन सब का मैंने बेहतरीन अनुभव लिया. गांव की जीवन शैली मैंने पहली बार देखा. हिसार व सिरसा देखा. कई गांवो में जाकर हमने शूटिंग की.

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