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विनोद भानुशाली
हर जगह ये बात हो रही है कि फिल्म की कहानी आसाराम के केस पर आधारित है. क्या ऐसा है? अगर है तो आपने यही कहानी क्यों चुनी?
विनोद भानुशाली- इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी. ये पीसी सोलंकी के ऊपर है. ये केस उन्होंने लड़ा था जब एक नाबालिग लड़की प्रताड़ित हुई थी. उस लड़की ने कैसे हिम्मत दिखाई और कैसे पीसी सोलंकी ने उसे सपोर्ट किया. वो केस लड़े और पूरी तरीके से लीगल सिस्टम ने भी उसका साथ दिया और जिसने भी गलत किया था उसे सजा मिली.
पहले 'जनहित में जारी' अब 'सिर्फ एक बंदा काफी है' जिन टॉपिक पर आप फिल्में बना रहे हैं वो जरूरी हैं लेकिन साथ ही विवादित भी तो इस पर क्या कहेंगे?
विनोद भानुशाली- अगर हमे ईमानदारी से फिल्म बनानी है तो ये करना होगा जैसे 'जनहित में जारी' लोगों को जागरुक करने के लिए थी. एक फिल्म निर्माता के रूप में हमें ऐसी कहानियां दिखानी चाहिए. सच्ची कहानियां दिखाने में कैसी शर्म और विवाद, ट्रोलिंग ये सब नहीं सोचते। इसके बाद हम अटल जी की फिल्म बना रहे हैं वो भी एक सच्ची फिल्म है जिसमें आप देखेंगे कि उन्होंने हमारे लिए क्या-क्या किया.
आपकी मायापुरी से जुड़ी कोई याद?
विनोद भानुशाली- आपके फाउंडर से दिल्ली में गुलशन जी के साथ मेरी एक बार मुलाकात हुई थी. मायापुरी मतलब की फिल्मी खबरें. ये हर जगह मौजूद थीं. जब हम स्कूल- कॉलेज में थे तब मायापुरी थी. अब तो सब कुछ डिजिटल हो गया है लेकिन मुझे आज भी याद है की मायापुरी मैगजीन किस साइज में आती थी.
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सुपर्ण वर्मा
ये फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है तो क्या चुनौतियां आईं इसे बनाने में?
सुपर्ण वर्मा - सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि हमे बहुत रिसर्च करनी पड़ी क्यों की केस 5 साल तक चला था. जहां पीसी सोलंकी ने ये केस सेशन कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लड़ा. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि वो एक भी सुनवाई हार नहीं सकते थे. अगर वो एक बार भी हारते तो बेल मिल जाती. उन्हें ऐसी लड़ाई लड़नी पड़ी जहां वो एक भी सुनवाई हार नहीं सकते थे. पहली चुनौती ये थी कि हमें इतनी सारी चीजों को एक 2 घंटे की फिल्म में डालना था. दूसरी चुनौती थी ईमानदारी. हमारी प्रेरणा वो लड़की थी जिसने इतनी हिम्मत दिखाई और उसी से पीसी सोलंकी को हौसला मिला और उन्होंने सिस्टम का इस्तेमाल किया. इस सब से हमे इतनी प्रेरणा मिली कि हमने आराम से फिल्म बना डाली.
सिर्फ मनोज बाजपेयी को ही पीसी सोलंकी के रोल के लिए क्यों चुना गया?
सुपर्ण वर्मा - अगर मनोज बाजपेयी नहीं तो और कौन? मेरा तो ये सिंपल सवाल है की इतने जरूरी किरदार के लिए मैं और किसके पास जाता? एक ही नाम आता है दिमाग में वो है मनोज बाजपेयी. मेरा उनके साथ ये तीसरा प्रौजेक्ट है और हम एक दूसरे को 18 सालों से जानते हैं. जब हमने मनोज को ये कहानी सुनाई तो आमतौर पर वो हफ्ते-दस दिन लेते हैं सोचने के लिए लेकिन कहानी सुनते ही उन्होंने दस मिनट में कह दिया कि ये फिल्म मैं कर रहा हूं.
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अपूर्व सिंह कार्की
मनोज बाजपेयी को निर्देशित करने का अनुभव कैसा था?
अपूर्व सिंह कार्की- मेरे पिछले जन्म के कर्म बहुत अच्छे होंगे! फिल्म की कहानी मुझे सुपर्ण सर ने ही सुनाई थी और कहा था कि फिल्म में मनोज बाजपेयी होंगे और वो चाहते हैं कि फिल्म मैं करूं. मनोज सर का नाम सुन कर मैंने पहले हां कहा और फिर कहानी सुनी. जब आपके पास इतना अच्छा एक्टर हो तो निर्देशक के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है. इस टीम की सबसे बड़ी खास बात ये थी कि इन्होंने बहुत सपोर्ट किया और जो प्रेशर था वो कम कर दिया तो कुल मिला कर ये बहुत अच्छा अनुभव था.
आपने फिल्म निर्देशित की है तो सबको आपसे बहुत उम्मीदें होंगी लेकिन आपको फिल्म से क्या उम्मीद है?
अपूर्व सिंह कार्की- जिस मुद्दे पर ये कहानी है हम इसे ठीक से लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं. फिल्म का मुद्दा है माइनर सेफ्टी. हम ये दिखाना चाहते हैं कि ऐसा नहीं है की समाज में ये चीजें नहीं हो रही हैं. ये सब हो रहा है! हम ये बताना चाहते हैं कि अगर आपने कुछ गलत किया है तो आपको कानूनी सजा जरूर मिलेगी और हम ये भी बताना चाहते हैं कि जो भी पीड़ित हैं जो डर से बाहर नहीं आ रहे, आप मत डरिए अगर आपका सिस्टम पर विश्वास है अगर भगवान पर विश्वास है तो आपको कहीं न कहीं एक बंदा मिलेगा जो आपको न्याय दिलाएगा.
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