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कला जगत में तेजी से उभर रही कलाकार शीतल केशरी ने यह साबित कर दिया है कि यदि आप सही समय पर अपने मन में कहीं छिपी प्रतिभा को पहचान कर पूरी लगन और धैर्य के साथ प्रेरणा से, ऊर्जा का अनुभव करते हुऐ काम करना शुरू कर दें तो आपको सफलता की सीढि़यों पर आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. ज्ञातव्य है कि शीतल केशरी ने बिना किसी मार्गदर्शन व किसी भी संस्थान में बिना किसी पारंपरिक पाठ्यक्रम के कम समय में ही एक पेशेवर कलाकार की तरह रंगों के माध्यम से कमाल करना शुरू कर दिया है, जो काबिले तारीफ है. ऐसे ही विचारों से प्रेरित होकर शीतल केशरी ने कला जगत में कल्पना के समन्वय से रंगों का प्रयोग करने की मंशा से सात माह पूर्व कैनवास पर ब्रुशों का प्रयोग शुरू किया.
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बहुत ही कम समय में, उन्होंने कई उत्तम दर्जे की प्रशंसित पेंटिंग बनाई हैं और इसे कलात्मक रूप से आगे बढ़ा रही हैं. एशियन आर्ट फेस्टिवल, नई दिल्ली और मुंबई आर्ट फेयर में प्रदर्शित उनकी हालिया पेंटिंग ने आगंतुकों को काफी आकर्षित किया और उनके दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ी. उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका कभी पेंटिंग की ओर झुकाव होगा. लेकिन नियति कब किसी को नई राह पर ले जाएगी, यह जानना मुश्किल है?
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दिलचस्प बात यह है कि पेंटिंग के प्रति उनका झुकाव उनकी 11 वर्षीय बेटी सुश्री प्रकृति के कारण था, जिसकी वह कभी-कभी उनके कलात्मक कार्यों में मदद करती थीं. शीतल के बहुमुखी वरिष्ठ नौकरशाह पति और कला प्रेमी अजय केशरी ने पत्नी और बेटी दोनों की कलात्मक प्रतिभा को देखकर उनका हौसला बढ़ाया. फैशन डिजाइनर से पेंटर बनीं श्रीमती केशरी कहती हैं कि फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के वर्षो बाद अचानक वे पेंटिंग्स की ओर मुड़ गईं. साक्षत्कार के दरम्यान उनकी पेंटिग के अवलोकन से इनकी कलाकृतियों की गहराई का पता चला और यह विश्वास ही नहीं हो रहा था की जिसे कोई मार्गदर्शन न मिला हो वह इतने कम समय में इतनी विशिष्ठ पेंटिग कैसे बना सकती हैं? इस दरम्यान उनसे बातचीत के क्रम में कई प्रश्न किए गए जिनका उन्होने एक पेशेवर कलाकार की भांति जवाब दिया जिसके कुछ अंश इस प्रकार हैं:
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कलाकार बनने के लिए आपको किस चीज ने प्रेरित किया?
कलाकार बनना मेरा कभी सपना नहीं था, लेकिन बचपन से ही मेरे मन में विभिन्न रूपों में कला रची-बसी थी. मैंने सालों पहले फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था और फैशन डिजाइनिंग में आसानी से उत्कृष्टता प्राप्त कर सकता था. मैंने इस क्षेत्र में बहुत कुछ करने के बारे में नहीं सोचा था. आपको जानकर हैरानी होगी कि सात महीने पहले अचानक मैंने कैनवास पर ब्रश से रंगों का इस्तेमाल शुरू किया. मैं निष्पक्ष रूप से कह सकता हूँ कि मेरे कलात्मक मन ने मुझे चित्रकला की धारा में धकेला.
अब तक का सफर कैसा रहा है?
हालांकि यह यात्रा छोटी रही है लेकिन संतोषजनक और अद्भुत रही है. मेरी पहली पेंटिंग (मई 2022) राजा रवि वर्मा द्वारा रचित 'शकुंतला' की प्रतिकृति मात्र थी, जिसने मुझमें अपार आत्मविश्वास भर दिया. जब मैं लियोनार्डो दा विंची की द वर्जिन ऑफ द रॉक्स का पुनरुत्पादन कर रहा था तब मैंने बहुत कुछ सीखा. उसके बाद, मैंने अपनी कल्पनाओं और अवधारणाओं के संयोजन से मूल पेंटिंग बनाना शुरू किया. ज्ञान के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण की महत्वपूर्ण अवधारणा को दर्शाने के लिए मैंने 'याग्वल्क्य-गार्गी वाद-विवाद' की रचना की थी. इस छोटी अवधि के दौरान, मैंने शास्त्रीय से लेकर अमूर्त तक कई पेंटिंग बनाई हैं.
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क्या आप किसी विशेष विषय के विशेषज्ञ हैं?
मैं अलग-अलग विषयों पर काम कर रहा हूं, खासकर एक पर नहीं. मैं मौजूदा शैलियों के साथ अंतर करने के लिए एक विशिष्ट शैली विकसित करने जा रहा हूं.
आपने हाल में वर्ली में आयोजित पेंटिंग प्रदर्शनी में भाग लिया. कृपया मुझे बताएं कि उस प्रदर्शनी पर कला प्रेमियों की कैसी प्रतिक्रिया रही?
चूंकि मेरे पास कैनवास पर रंगों के इतने सारे चमत्कार थे, इसलिए मैं उन्हें व्यवस्थित रूप से प्रदर्शित करना चाहता था. और हां, नेहरू सेंटर प्रदर्शनी को मेरे चित्रों के लिए जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली! इतना ही नहीं, अगस्त माह में पहली बार नई दिल्ली स्थित अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में मंगोलियाई दूतावास द्वारा आयोजित एशियाई देशों की चित्रकला प्रदर्शनी में भी भाग लेने का अवसर मिला, जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. हालाँकि मेरे पास बहुत कम कलाकृतियाँ थीं लेकिन मैंने अथक प्रयासों से सम्माननीय स्तर पर चित्रकला की प्रदर्शनी के लिए कुछ पेंटिंग्स बनाईं जिन्हें बहुत सराहा गया. मंगोलिया के राजदूत ने यहां तक कह दिया है कि वह आपको वैश्विक पटल पर देखना चाहते हैं. इसने मुझे बहुत प्रेरित किया और मेरी कलात्मक अभिव्यक्ति को पंख देने में मेरी मदद की.
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क्या इस तेजी से भागती डिजिटल दुनिया में पेंटिंग के प्रति कोई अरुचि और उत्साह की कमी है?
ऐसा बिल्कुल नहीं है. मशीनें दुनिया पर हावी नहीं हो सकतीं. चित्रकारी एक प्राकृतिक कला है जिसमें रंगों को प्राकृतिक अभिव्यक्ति मिलती है. डिजिटल प्लेटफॉर्म आपको अपनी कल्पना को वास्तविकता में चित्रित करने के तरीके प्रदान कर सकते हैं लेकिन प्राकृतिक रचनाओं का कोई विकल्प नहीं है.
विदेशों की तुलना में भारत में पेंटिंग का परिदृश्य कैसा है?
यह हर जगह है, चाहे भारत हो या दुनिया के अन्य देश. मुझे लगता है कि पेंटिंग प्रदर्शित करने के लिए भारत में कला पारखी लोगों का जुनून, मंच और रुचि मुंबई में अधिक स्पष्ट है. फिर भी, प्रतिभा किसी विशेष स्थान की गुलाम नहीं है. इस विशिष्ट कला रूप की भारत में भी एक लंबी परंपरा है. प्राचीन काल से, विचार व्यक्त करने के लिए पेंटिंग सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक गतिविधियों में से एक रही है. अब यह कला भारत में तेजी से बढ़ रही है. भारत में चित्रकला की विभिन्न शैलियाँ विकसित हुई हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं.
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हमने सुना है कि आपकी बेटी प्रकृति भी कमाल की पेंटिंग कर रही है.
सुश्री प्रकृति एक जन्मजात कलाकार हैं और स्वाभाविक रूप से उनकी कल्पना को उनके अंतर्ज्ञान के अनुसार चित्रित करती हैं.
क्या आपके पास अपनी पेंटिंग गतिविधि को उच्च स्तर पर ले जाने की कोई भविष्य की योजना है?
यह मेरी कलात्मक यात्रा की शुरुआत है. इस यात्रा के हर कदम पर सीखने के लिए बहुत कुछ है और आगे बढ़ने के लिए मेरे पास पर्याप्त समय है. मुझे अपनी अनूठी पहचान के लिए एक अनूठी शैली विकसित करनी है, जिस पर मैं काम कर रहा हूं और काम कर रहा हूं.
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क्या नवोदित चित्रकारों के लिए आपकी कोई सलाह है?
आप अपने रचनात्मक जुनून से किसी भी उम्र में सफलता के शिखर पर पहुंच सकते हैं. लेकिन अगर आपको जीवन में कुछ करना है, तो जितना हो सके उतना अच्छा करें, आधे-अधूरे मन से कोशिश न करें. खुद पर विश्वास रखें और प्रेरित रहें. अंतिम सफलता के लिए ईमानदारी, कड़ी मेहनत और समर्पण जरूरी है. आपको अपनी कल्पना को सतह पर लाने के लिए मस्तिष्क और उपकरणों के समन्वय के साथ मिलकर काम करना होगा.
क्या आप किसी विशेष कलाकार की पूजा करते हैं?
किसी विशिष्ट कलाकार को विशेष श्रेय देना मुश्किल है, लेकिन लियोनार्डो दा विंची और पिकासो मेरे पसंदीदा चित्रकार हैं और भारत में राजा रवि वर्मा और रवींद्रनाथ टैगोर हैं. हर कलाकार की अपनी एक पहचान और खासियत होती है जो बहुत कुछ प्रेरित करती है.
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मुंबई प्रतिनिधी रमाकांत मुंडे
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