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फिल्म ‘India Lockdown’ में बिहारी मजूदर का किरदार निभाया है

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By Shanti Swaroop Tripathi
India Lockdown mayapuri
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बिहार के छोटे से गाँव  से निकलकर दिल्ली में सात वर्ष तक थिएटर करने के बाद 2009 से मंुबई में संघर्षरत अभिनेता पंकज झा ने अंततः 12 वर्ष बाद बतौर अभिनेता अपनी जबरदस्त पहचान बनायी.  2009 से लगातार सीरियलों में काम करते आ रहे पंकज झा ने 2021 में वेब सीरीज ‘‘महारानी’’ में अभिनय कर जबरदत लोकप्रियता बटोरी और अब दो दिसंबर को ‘‘जी 5’’ पर स्ट्ीम होने वाली मधुर भंडारकर निर्देषित फिल्म ‘‘इंडिया लाॅक डाउन’’में नजर आने वाले हैं. 
प्रस्तुत है पंकज झा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के मुख्य अंष...
 बिहार से मंुबई पहंुचने की आपकी यात्रा कैसी रही?
 यह तो बहुत लंबी कहानी है.  मैने अभिनेता बनने का कोई निणर््ाय नहीं लिया था.  सब कुछ अपने आप होता गया.  बचपन में मैने अपने पिता जी को गांव के नाटकों में अभिनय करते हुए देखा करता था.  मेरे पिताजी काफी अच्छा गाते भी हैं.  स्टेज पर भी गाते रहे हैं.  मेरे दादाजी ने मुझसे स्टेज पर छोटे कृष्ण और राम का चरित्र करवाया  था.  कहने का मतलब यह कि अभिनय की षुरूआत तो अनजाने  में बचपन में ही हो गयी थी.  षायद अभिनय मेरे जींस,मेरे खून मंे ही है.  लेकिन मेरे परिवार के लोग मुझे आईएएस अफसर बनाना चाहते थे, जबकि मैं डाक्टर बनने का सपना देख रहा था.  मैं मुजफ्फरपुर में पढ़ाई के दौरान संगीत सीखता रहा.  थिएटर करता रहा.  यानी कि अभिनय वं सगीत की ट्ेनिंग भी सतत चल रही थी.  लेकिन जब मैं उच्च षिक्षा के लिए बिहार से निकलकर दिल्ली पहुॅचा, तो मेरे चक्कर मंडी हाउस में लगने लगे और मैं अभिनेता बन गया. 
मंुबई पहुॅचने के बाद किस तरह का संघर्ष रहा?
 सच यह है कि मैं दिल्ली में बड़ी सहजता के साथ थिएटर कर रहा था.  मेरा मंुबई आने का कोई इरादा ही नहीं था.  लेकिन अपनेे गुरू दिलीप षंकर की सलाह पर मैं 2009 में मंुबई आ गया.  तब से लगातार स्ट्रगल जारी है. 
 तो कैरियर कैसे षुरू हुआ?
 2011 में मुझे पहली बार ‘कलर्स’ चैनल के सीरियल ‘‘बालिका वधु’’ में एक कैमियो करने का अवसर मिला था.  आनंदी की सहेली के भाई का किरदार निभाया.  यह काफी चर्चित सीरियल रहा है.  इससे मेरे कैरियर पर बहुत ज्यादा प्रभाव नही पड़ा.  उसी दौरान मैने ‘आजतक’ चैनल के लिए मैने एक सीरीज गांधी की.  इसमें गांधी जी अलग अलग षहरों में घूमते हैं और लोगों की प्रतिक्रियाएं क्या होती है..यह सब था.   यह एक नया प्रयोग था.  ‘‘इसका नाम था- भ्रष्टाचार मुक्त हिंदुस्तान, सबको सम्मति दे भगवान’.  इसमें मैं गांधी बना था.  दिल्ली में रहते हुए मैने ‘दिल्ली 6’ और ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ फिल्मों में छोटे किरदार निभाए थे.  उसके बाद ‘सावधान इंडिया’, ‘षपथ’ सहित कई एपीसोडिक सीरियल करता रहा.  पर दिल की बात यह है कि मुझे टीवी सीरियलो में अभिनय करते हुए मजा नहीं आ रहा था.  इसी बीच मैने दो तीन लघु फिल्में की.  उसके बाद कोविड के चलते जब लाॅक डाउन लगा, तो मुझे वेब सीरीज ‘‘महारानी’’ में एमएलए दिवाकर का किरदार निभाने का अवसर मिला.  मैने मेहनत से इस किरदार को निभाया.  जब इस सीरीज का प्रसारण हुआ, तो लोगों ने वेब सीरीज ‘महारानी’ के साथ ही मेरे दिवाकर के किरदार को भी काफी सराहा.  अब दो दिसंबर को मधुर भ्ंाडारकर निर्देषित फिल्म ‘‘इंडिया लाॅक डाउन’’ में भी एक अच्छा किरदार निभाया है. 

फिल्म ‘इंडिया लाॅक डाउन’ के साथ जुड़ाव कैसे हुआ?
 फिल्म ‘लाॅक डाउन’ के कास्टिंग डायरेक्टर ने एक दिन मुझे फोन करके बताया कि उसने बिना मेरा आॅडीषन लिए फिल्म ‘इंडिया लाॅक डाउन’ के लिए मेरा नाम दे दिया है.  इसमें पांच छह दृष्य ही हैं और इसे मधुर भ्ंाडारकर निर्देषित कर रहे हैं.  क्या मैं इस फिल्म में अभिनय करना चाहॅंूगा? मैंने तुरंत हामी भर दी.  मैं जब से मंुबई आया हॅूं, तभी से मध्ुार भ्ंाडारकर सर के साथ काम करने को इच्छुक था.  ‘इंडिया लाॅक डाउन’ की षूटिंग करके बहुत मजा आया.इसकी कहानी के साथ मैं रिलेट भी कर पाया.  यह कहानी बिहार के मजदूर की है.  ‘कोविड’ महामारी के चलते लाॅक डाउन लगने पर मजदूरांे की एक टोली यहां से अपने गांव ,बिहार की तरफ जा रही है.  यात्रा के दौरान कुछ घटनाएं घट रही हैं.  इस फिल्म में कुल चार कहानियां समानांतर चलती हैं. 
 फिल्म ‘‘इंडिया लाॅक डाउन’’ मंे आप किस कहानी का हिस्सा हैं और आपका किरदार क्या है?
 यह कहानी मजदूरों की टोली की हैं.  जिसमें प्रतीक बब्बर और साई ताम्हणकर हैं.  मैं और गोपाल उनके मित्र हैं.  रास्ते में कई तरह की घटनाएं घटती हैं.  जिसके चलते दोस्ती के समीकरण भी बदलते हैं.   हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा है.  भूख व प्यास है.  हम सभी की पोटली में थोड़ा बहुत खाना है.  इसमें सभी इंसानी भावनाएं नजर आएंगी.  इसमें मैने बिहार के युवक का किरदार निभाया है.  वह लोगों की मदद करता है.  लोगों के साथ छेड़खानी भी करता रहता है.  मेरा किरदार षरारती किस्म के युवक का है.  मेरा किरदार इस यात्रा का मजा ले रहा है.  वह मानकर चलता है कि लंबी यात्रा है.  कब पहुॅचेंगे या नहीं पहुॅच पाएंगे, कुछ पता नही.  मेरा किरदार व यह कहानी जीवन से जुड़ी हुई नजर आएंगी.  वह हर समय को इंज्वाॅय करने वाला इंसान है. 
चइस फिल्म को कहंा फिल्माया गया है?
 इसे महाराष्ट् मंे ही सतारा के पास भोर के अलावा मंुबई में फिल्माया गया है. 

मधुर भंडारकर के निर्देषन में काम करने के अनुभव कैसे रहे?
 मधुर भंडारकर से तो हर कोई परिचित है.  वह ‘पेज 3’,‘चंादनी बार’,‘फैषन’ जैसा कल्ट सिनेमा बनाते आए हैं.  हर कलाकार उनके साथ काम करने को इच्छुक रहता है.  मैं तो ‘पेज 3’ देखकर उनके निर्देषन का कायल हो गया था.  सेट पर उनका व्यवहार बहुत षंात रहा.  मैने उनको कभी गुस्से में नही देखा.  मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा. 
 प्रतीक बब्बर और साई ताम्हणकर के साथ आपने पहली बार काम किया.  क्या अनुभव रहे?
 मजदूरों की टोली में तो सभी मजदूर ही थे.  वहां कोई पंकज झा या प्रतीक बब्बर नहीं था.  हमारे बीच अच्छी बात चीत होती रही.  गर्मी के मौसम में षूटिंग करना आसान नही था.  भोर में दिन में खूब गर्मी व रात में ठंड होती है.  गर्मी के मौसम में खेत में काम करना, सड़क पर चलना आसान नही था.  हम सभी को लगने लगा था कि हम वास्तव मंे मजदूर हैं और लाॅकडाउन में गांव की ओर जा रहे हैं.  षूटिंग खत्म होते ही हम सभी अपनी अपनी वैनिटी वैन में चले जाते थे.  मै तो गाता भी हॅूं.  हम अपनी वैनिटी वैन में गोपाल व अन्य लोगो के साथ गाना गा रहा था, जिसे सुनकर साई ताम्हणकर भी आ गयी.  उसने भी हमारे साथ बैठकर संगीत का आनंद लिया.  मराठी की स्टार अदाकारा होने के बावजूद मुझे साई में स्टार वाले नखरे नजर नही आए.  प्रतीक बब्बर के संग भी खूब गपषप होती थी. 
 किसी भी किरदार को निभाने से पहले आपकी अपनी किस तरह की तैयारी होती है?
 थिएटर से होने के चलते मेरी जिस तरह की ट्ेनिंग है, उसके चलते मैं हमेषा किरदार के सोल/ आत्मा को पकड़ काम करने वाले कलाकारों की श्रेणी में आता हॅूं.  आप इसे मैथड एक्टिंग भी कह सकते हैं.  मुझे आॅन व आफ समझ में नही आता है.  मेरी सोच यह है कि जब भी कोई किरदार निभाता हॅूं, तो उसके ‘सोल’ में घुस जाता हॅूं.  मैं सोल तक पहुॅचने का प्रयास करता हॅूं.  अब मैं कहां तक सफल होता हॅूं, यह तो दर्षक तय करते हैं.  लेकिन मैं अपनी तरफ से हर किरदार की सोल तक पहुॅचते हैं.  इसके लिए हमें काफी प्रैक्टिस करनी होती है.  उसके मैनेरिजम और बाॅडी लैंग्वेज को पकड़ना आवष्यक होता है.  उसके थाॅट प्रोसेस को समझना होता है.  यदि पटकथा में नहीं लिखा होता है, तब भी मैं उसकी एक कहानी गढ़ता हॅूं कि वह परिवार के अंदर किस तरह से रहता होगा.  दोस्तांे और घर से बाहर वह किस तरह से चलता होगा? किस तरह से बातें करता होगा? जब मैं ‘आज तक’ के लिए गांधी पर डाक्यूमेंट्ी कर रहा था, तो गांधी जी के पुराने वीडियो देखे थे.  मैने भरसक कोषिष की कि उनकी बाॅडी लैंग्वेज व उनकी भाषा को पकड़ने का प्रयास किया जाए.  लोगों ने काफी तारीफ की थी. 

कोई ऐसा किरदार है,जिसे आप निभाना चाहते हों?
 कोई ऐसा एक किरदार तो नही ैहै.  मगर जब हम किरदार का विष्लेषण करते हैं, तो हमारे दिमाग में कई किरदार आते हैं.  ईष्वर करे कि कभी मुझे ‘गाॅड फादर’ का किरदार निभाने का अवसर मिले.  मैं इफरान खान का फैन रहा हॅूं, जिस तरह के किरदार उन्होने निभाए हैं, उस तरह के किरदार निभाने को मिल जाएं.  मेरी इच्छा सदैव चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने की होती है.  एक कलाकार की असली प्रतिभा चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने में ही निखरती है.  पर जब तक निर्देषक को कलाकार की प्रतिभा पर विष्वास नही होगा, तब तक चुनौतीपूर्ण किरदार मिलना ही मुष्किल है.  मैं तो हर निर्देषक व हर कास्टिंग डायरेक्टर से गुजारिष करता हॅूं कि वह एक बार मुझे चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने का अवसर देकर देखें कि मैं क्या कर पाता हॅंू. 
 इसके अलावा क्या कर रहे हैं?
 ‘महारानी सीजन 3’ लेखन का काम हो रहा है.  तो षायद उसमें पुनः एमएलए दिवाकर नजर आएंगे, ऐसा मुझे लगता है.   फरवरी 2023 में विक्रमादित्य मोटावणे की वेब सीरीज ‘‘जुबली’’ आएगा. 

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