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शबाना आजमी के साथ "सफेद कुंडली" नाटक में भीड़ में नजर आने वाली बालिका की तरफ किसी का ध्यान नही जाता था. सोलह साल की उम्र में वही बालिका मराठी फिल्म "अयात्या घरात घरेाबा" में कानन के किरदार में नजर आयीं, तो लोग चैके. 18 वर्ष की उम्र में वह श्याम बेनेगल की फिल्म "सूरज का सातवां घोड़ा" में जमुना के किरदार मे नजर आयीं, तो लोगों ने उसे गंभीरता से लेना षुरू किया. लेकिन तीन वर्ष बाद ही श्याम बेनगल निर्देषित फिल्म "सरदारी बेगम" में सकीना का किरदार निभाकर उसने हंगामा बरपा दिया. उन्हें इस फिल्म के सर्वश्रेष्ठ सह कलाकार के राष्ट्रिय पुरस्कार से नवाजा गया. जी हाँ! हम राष्ट्रिय पुरस्कार विजेता अभिनेत्री राजेष्वरी सचदेव की ही बात कर रहे हैं. प्रोफेषनल स्तर पर 32 साल के अपने कैरियर में राजेष्वरी सचदेव ने हमेषा उत्कृष्ट निर्देषकों व कलाकारों के साथ अभिनय करते हुए अपने अभिनय को नित नए आयाम देती आयी हैं. 32 साल के अभिनय कैरियर मे वह 4 मराठी और दो अंग्रेजी फिल्मों सहित लगभग तेंतीस फिल्मों और 14 टीवी सीरियलों में अपने अभिनय का जलवा दिखा चुकी हैं. राजेष्वरी सचदेव इन दिनों मनीष तिवारी निर्देषित फिल्म "चिड़ियाखाना" को लेकर सूर्खियों में हैं, जो कि दो जून को सिनेमाघरों में पहुंचेगी…
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प्रस्तुत है राजेष्वरी सचदेव से हुई लंबी बातचीत के अंश...
आपका अभिनय कैरियर 1991 में मराठी फिल्म से षुरू हुआ था. तो आज आप अपने 32 वर्ष के कैरियर को कैसे देखती हैं?
अच्छा और बढ़ता ही जा रहा है. कैरियर में उतार चढ़ाव भी बहुत आए. लेकिन मैं अपने आपको भाग्य षाली मानती हॅंू कि मुझे हमेषा बेहतरीन निर्देषकों,बेहतरीन कलाकारों के संग काम करने का अवसर मिला. मैने हमेषा कुछ नया सीखा. मेरा अपने आप पर यकीन बढ़ता गया. मुझे षुरू से पता था कि मुझे करना यही है. मुझे इसी काम में मजा आता है. फिर रास्ते अपने आप बनते गए. 32 साल के कैरियर को लेकर कहने को बहुत कुछ है. जब लोग मुझसे पूछते हैं कि अब तक बेहतरीन काम कौन सा रहा? तो मैं गर्व से कहती हूंू कि एक नहीं बहुत से हैं. मैं बड़ी विनम्रता से कहती हॅूं कि अच्छा काम किया है, तो किया है. यह अच्छा काम यूं ही मेरे उपर टपक पड़ा हो ऐसा भी नही है. मैने सतत ग्रोथ देखी है. हम कहां तक पहंुचेंगे, यह हमें बीस साल पहले भी नहीं पता था और आज भी नही पता है. जब लोग पूछते है कि कहां पहुॅचना चाहती हो, तो मैं सोचती हूँ कि अपना गोल इतना उंचा मत रखो कि वहां तक न पहुँच पाने पर आप डिप्रेषन का षिकार हो जाएं और गोल इतना नीचा भी मत रखो कि पता चले कि आपकी राह तो उससे काफी आगे तक की थी. तो कलाकार के तौर पर खुद को किसी बंदिष में जकड़ना उचित नही होता. हम लगातार काम कर रहे हैं. मेरे पास अच्छा काम आता रहता है. उम्मीद है कि आगे भी अच्छा काम आता रहेगा. मैने श्याम बेनेगल अंकल के साथ कई फिल्में व कई सीरियल किए. अब मनीष तिवारी के निर्देषन में फिल्म "चिड़ियाखाना" की है, जो कि दो जून को सिनेमाघरो में प्रदर्षित हो रही है.
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आप फिल्मों के चयन में काफी चूजी रहती हैं. ऐसे में "चिड़ियाखाना" करने की क्या वजह रही?
मैने इससे पहले मनीष तिवारी संग फिल्म ‘इसक’ की थी. उस वक्त हमारा बेटा गोद में था. और हम इसकी शूटिंग करने बनारस गए थे. इस फिल्म मे रवि किषन भी थे. मैंने मनीष तिवारी के साथ यह फिल्म करते हुए काफी इंज्वाॅय किया था. ‘इसक’ मे मेरा किरदार भी अच्छा ही था. तो मुझे पता था कि अगर मनीष मेरे पास दोबारा आए हैं, तो कुछ अच्छा किरदार ही लेकर आए हैं. मैने ‘चिड़ियाखाना’ की कहानी पढ़ी,तो कहानी बहुत अच्छी लगी. फिल्म की कहानी एक तेरह चैदह वर्ष के बच्चे सूरज के इर्द गिर्द घूमती है. जो कि अपनी मां बिभा के साथ स्लम बस्ती / झोपड़पट्ी मंे रहता है. यह मूलतः मुंबई के नही है. बिभा मूलतः बिहार की हैं. पर कुछ वजहांे से वह अपने बेटे को लेकर एक षहर से दूसरे षहर भटक रही है. किसी को नहीं पता कि वह मुंबई में भी कब तक रहेगी. माँ बेटे हर षहर में पहुॅचकर वहां की चीजों को अपनाने का प्रयास करते हुए अपने पैर जमाने की कोषिष करते हैं. यह उनके लिए चुनौती ही होती है. तो ऐेसे किरदार को निभाना मेरे लिए चुनौती ही थी. कहानी अच्छी है, नरेटिब रोचक है. मनीष को अपनी कहानी पर यकीन था. उन्होने प्रशंत नारायणन, रवि किषन, गोविंद नामदेव,अंजन श्रीवास्तव सहित सभी अति बेहतरीन कलाकारों को अपनी फिल्म से जोड़ा भी है. इन कलाकारों से हम परिचित हैं. इसलिए यह विष्वास था कि शूटिंग करते हुए हम अच्छे माहौल में अच्छे लोगों के साथ काम करते हुए इंज्वाॅय करेंगे, कुछ नया सीखेंगे भी. मैने खुद इस फिल्म को देखा नही है. मगर मैने काम किया है. इसलिए उम्मीद करती हूं कि यह फिल्म हर वर्ग के दर्षकों को पसंद आएगी.
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इस फिल्म के निर्माण से ‘चिल्ड्रेन फिल्म सोसायटी’ जुड़ी हुई थी, तो क्या यह बच्चों की फिल्म है?
इसमें बच्चे भी हैं. बच्चों के अहम किरदार हैं. इसमें ऐसा कुछ नही है जो बच्चे नहीं देख सकते. फिल्म की कहानी तो एक बच्चे के ही इर्द गिर्द घूमती है. इसमें बच्चों के लिए खेल के मैदान की जरुरत सहित कई मुद्दे उठाए गए हैं. फुटबाल मैच है, जिसे जीतना जरुरी है. स्कूल में बच्चों के बीच आपसी ोकझांेक भी है..फिल्म देखते समय आप अहसास करेंगे कि एक षहर में रहते हुए आपकी जितनी परेषानियां हैं, उन सब पर यह फिल्म बात करती है.
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फिल्म "चिड़ियाखाना" में आपका अपना किरदार क्या है?
मैने इस फिल्म में बिभा का किरदार निभाया है. वह बिहार से हैं और अपने छोटे बेटे के साथ घर से भागी हुई हैं. वह अपने अतीत से बचना चाहती है. वह नही चाहती कि उस पर या उसके बेटे सूरज पर उसके अतीत की परछांई भी पहुॅचे, मगर वह जहां भी जाती है, उसका अतीत वहां तक पहुॅच ही जाता है. वह सिंगल मदर है. उसके जीवन की अपनी समस्याएं हैं. उसे अपने बेटे की परवरिष भी करनी है. उसकी सुरक्षा उसके लिए बहुत अहम है. वह अपने बच्चे को एक सही जिंदगी देना चाहती है, जो कि बहुत मुष्किल हो रहा है. उसका बेटा फुटबाल खेलना चाहता है, पर स्कूल मंे उसकी बुलिंग हो रही है. जहां पहुॅचती है, वहां से कुछ समय बाद निकाला जाता है. तो बिभा के सामने कई चुनौतियंा है. वह बहुत कम बोलती है. पर बिना बोले वह बहुत कुछ कह जाती हैं. तो इस कहानी का एक पहलू सिंगल मदर है. दूसरा पहलू जब आप बाहर से आकर किसी षहर में ख्ुाद को बसाना चाहते हैं, तो तकलीफें आती हैं. पूरे माहौल में क्या क्या बदलाव आते हैं.
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निजी जीवन में भी आप एक बेटे की मां हैं. क्या किसी दृष्य में आपको निजी जीवन के अपने बेटे के साथ की कोई कोई बात या वाक्या याद आया हो?
पता नही. मेरी समझ से इस तरह की कोई पर्टिकुल घटना नही है. देखिए, निजी जीवन में हम पहले माता पिता व स्कूल या कार्यक्षेत्र की बाते करते हैं. षादी हो जाती है तो परिवार की बातें होने लगती है. फिर गृहस्थी की बाते होने लगी. गर्भवती होने पर उसकी बातंे होने लगी. बेटा होने के बाद बेटे के इर्द गिर्द ही सारी बातें होने लगती हैं. अब बच्चों की पढ़ाई की बातें होती हैं. तो यह सब निजी जिंदगी की चीजें कीं न कहीं रिफ्रेंस के तौर पर हम हर किरदार के समय उपयोग करते रहते हैं. फिल्म की सिच्युएषन व संवाद अलग ही होते हैं. जिंदगी में जो चीजे आपको छूती हैं. उसी से अहसास बनते हैं और यही अहसास फिल्म में नजर आते हैं.
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बिभा बिहार से है, तो आपने इसके लिए भी भाषा पर काम किया होगा?
जी हाँ! यह मेरे लिए बहुत जरुरी होता है. मैं अपने हर किरदार की भाषा पर काम करती हॅूं. मेरे एक निर्देषक दोस्त रवि हैं, वह कहते हैं कि तुम हमेषा भाषा पर ही अटकी रहती हो. सच यही है कि भाषाओं पर काम करने में मुझे मजा आता है. हर बार मुमकीन नही होता. पर जहंा तक हो पाता है,मैं करती हूंू. बिभा के किरदार के लिए बिहारी भाषा सीखने के लिए मैने अभिनेत्री रतन राजपूत व एक अन्य मित्र से मदद ली. हमने शूटिंग भी कर ली. उसके बाद जब डबिंग करने पहुॅची तो निर्देषक मनीष ने कहा कि हमें इसे एक क्षेत्र नही दूसरे क्षेत्र की बोली पर रखना है. हमारे देष में तो हर दस किलोमीटर पर बोली/भाषा बदल जाती है. पर काम है, तो करना ही पड़ता है.
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अंतिम समय में इस तरह के बदलाव कितनी परेषानी पैदा करते हैं?
हम हर वक्त इस तरह के बदलाव के लिए तैयार रहते हैं. हम मानकर चलते हैं कि यहां कुछ भी स्थायी नही है. बदलाव तो प्रकृति का नियम है. हम सोचते हैं कि आज यहां शूटिंग करेंगे, इस तरह का माहौल होगा, पता चला बारिष होने लगी, तो शूटिंग अंदर कमरे में होने लगी. अचानक सब कुछ बदल जाता है.
अब तक आप कई किरदार निभा चुकी हैं. कोई ऐसा किरदार रहा जिसने आपकी जिंदगी पर असर किया हो?
नहीं...मैं स्चि आॅन और स्विच आफ कलाकार हॅूं.
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एक किरदार को निभाने में कलाकार दो चीजों का उपयोग करता है. एक उसके निजी जीवन के अनुभव और दूसरा उसकी अपनी कल्पनाषक्ति.आप किसका कितना उपयोग करती हैं?
दोनो का. आप किताब पढ़ते हैं. एक दृष्य है कि पहाड़ी है,जिस पर कुछ लोग हैं. कुछ जानवर हैं..वगैरह वगैरह...अब इसे पढ़ने के बाद हर इंसान अपने हिसाब से सारी चीजें सोच सकता है. यह पहाड़ी महाराष्ट् की हो सकती है. उत्तराख्ंाड की हो सकती है. हिमाचल प्रदेष की या विदेष में कहीं भी हो सकती है. उसी के अनुसार सब कुछ अलग नजर आने लगता है. हम कलाकार भी पटकथा पढ़कर उसे माहौल के अनुसार सोचकर सब कुछ गढ़ते हैं. यह तो मानवीय स्वभाव है.
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कहा जाता है कि जो कलाकार गायक होता है, उसके लिए संवाद अदायगी बहुत आसान होता है? उसके लिए अपनी आवाज में फेरबदल करना आसान होता है. आपकी राय?
पता नहीं..पर यदि संगीत की रिदम की, ताल की समझ हो तो संवाद बोलने में रिदम लाना आसान हो जाता है. पर हर कलाकार संवद अदायगी के लिए अपना तरीका खोज ही लेता है.
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आपने तो फिल्मों में भी गाया है?
जी हां! फिल्म ‘हरी भरी’ में अपने लिए गाना गाया था. अब ‘चिड़ियाखाना" में भी कुछ गुनगुनाया है.
इसके अलावा नया क्या कर रही हैं?
एक वेब सीरीज है. दो फिल्में हैं. समय आने दीजिए इन पर बात की जाएगी.
अभिनय से इतर कुछ कर रही हूँ?
मैं कुछ नया करने का प्रयास कर रही हॅूं. पर अभी तक यह योजना के स्तर पर है.
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