SANJAY TANDON: मेरी खुशकिस्मती है कि मैं लता मंगेशकर के सपने को आगे ले जा सका By Shanti Swaroop Tripathi 07 May 2023 | एडिट 07 May 2023 05:30 IST in इंटरव्यू New Update Follow Us शेयर स्वर कोकिला स्व. लता मंगेषकर ने सबसे पहले 1960 में गायक को उसके द्वारा द्वारा स्वरबद्ध गीत के लिए राॅयालिटी दिए जाने की मांग की थी.मगर बात आयी गयी हो गयी थी.पर 1990 में दिल्ली में जब एक षख्स गायक की तुलना स्वरवाद्य यंत्र से कर दी,तब वह विफर गयीं .उसी वक्त उन्हे गायक और ‘इंडियन परफार्मिंग आटर््स सोसायटी ’’(आईपीआरएस) में जनरल मैनेजर के रूप में कार्यरत युवक संजय टंडन,गायिका अलका याज्ञनिक, गायक सोनू निगम व जावेद अख्तर का साथ मिला.इन लोगों ने टीम बनाकर एक लड़ाई षुरू की.जून 2012 में इन्हे पहली सफलता तब मिली,जब संसद के दोनों सदनों में ‘1957 के ‘कापीराइट एक्ट’ में संष्ेााधन बिल सर्वसम्मति से पारित हो गया.पर मुसीबत जारी रही.कानून बनने के बावजूद संगीत का उपयोग करने वालों ने धन/ राॅयालिटी देने से इंकार कर दिया.तब संजय टंडन ने जून 2013 में ‘इंडियन सिंगर्स राइट्स एसोसिएषन’ (इसरा ) का गठन किया.जिसके अब वह सीईओ हैं.और 23 अप्रैल 2023 को इसरा तथा ‘इंडियन म्यूजिक इंडस्ट्ी’ अर्थात ‘आईएम आई’ के बीच गायकों की राॅयालिटी को लेकर ऐतिहासिक समझौता संपन्न हो सका. पेश है ‘‘इसरा’’ के सीई ओ संजय टंडन से हुई बातचीतः आपका ‘‘इंडियन सिंगर्स राइट्स एसोसिएष’’ (इसरा ) से जुड़ना कैसे हुआ? फिल्म इंडस्ट्ी में मेरा आगमन 1990 में हुआ.मैने संगीतकार व गीतकारों की संस्था ‘इंडियन परफार्मिंग राइट्स सोसायटी’’ यानीकि आई पी आर एस’ के साथ जुड़ा.उन दिनों गीतकार व संगीतकार को राॅयालिटी यानी कि उनका हक नहीं मिलता था.तो मैने ‘आई पीआरएस’ को उठाया और वहां से मैने गीतकर व संगीतकार के हक की लड़ाई षुरू की.1990 में देष में कानूनी तौर पर गायक व परफार्मर का वजूद ही नहीं था.इस काम को देखने वाला हमार संविधन का जो एक्ट है-‘‘काॅपीराइट एक्ट 1957’.इस एक्ट के अनुसार सिर्फ गीतकार व संगीतकार को ही राॅयालिटी मिलनी चाहिए.यह 1957 का कानून था,इसके बावजूद जब 1990 में मैं ‘आई पीआरएस’ से जुड़ा,तब तक संगीतकार व गीतकार को राॅयालिटी नही मिल रही थी.यह बड़े षर्म की बात थी.मैं कानून का स्नातक था,बीस बाइस साल का युवा था,तो मेरे अंदर एक जोष था कि गीतकार व ंसंगीतकारांे को राॅयालिटी दिलाकर रहॅंूगा.हमने विदेषों में सुना था कि एक गाना हिट हो जाने पर उस गाने से जुड़े,गीतकार व संगीतकार के वारे न्यारे हो जाते हैं.एक गाने के ेहिट होने के बाद उसे कोई काम करने की जरुरत नही.तो मैं सोचता था कि इस हिसाब से तो आर डी बर्मन,षंकर जयकिषन व कल्याणजी आनंद जी जैसे दिग्गज संगीतकारो के आपने ‘आयलैंड’/ टापू होने चाहिए.मगर मैने ‘आई पीआरएस’ के साथ जुड़ने के बाद पाया कि हकीकत तो कुछ और ही है.कानून ने तो अपना काम कर रखा है,मगर हर गीतकार व संगीतकार की राॅयालिटी इकट्टठा कर इन तक पहुॅचाने का दायित्व जिस संस्था यानी कि आईपीआरएस के पास है,उसे यह संस्था कर नही रही है.तो मैने इसे चुनौती के तौर पर स्वीकार किया.और 1990 में मैं जनरल मैनेजर की हैसियत से ‘‘आई पी आर एस’ से जुड़ा. 14 वर्ष बाद जब 2004 में मैने ‘आई पीआरएस’ को अलविदा कहा,उस वक्त मैं डायरेक्टर जनरल था.तो 14 वर्षों में मैने इस संस्था को काफी विस्तार दिलाया.जिस संस्था में हम बड़ी मष्किल से रो धो कर महज एक लाख रूपए इकट्ठा कर पाते थे,उसी संस्था में अब हर वर्ष चार सौ करोड़ रूपए आते हैं,ऐसा मुझे बताया गया.मेरे लिए गर्व की बात है कि जिस संस्थान को मैने षुरू किया,वह आज 400 करोड़ का है.जावेद अख्तर साहब ने बहुत अच्छी भूमिका निभायी. और हम दोनो ने मिल बैठकर इस काम को आगे ले गए,जिससे बात 400 करोड़ तक पहंुच सकी.जैसा कि मैने पहले ही बताया कि जब 1990 में मैं ‘आई पीआरएस’ से जुड़ा,उस वक्त किसी को भी कोई राॅयालिटी नही मिलती थी.इसलिए मैं सबसे पहले लंदन गया और बीबीसी के दफ्तर के सामने लगभग 15 दिन का धरना दिया.मैने उनसे आग्रह किया कि आप हमारे भारतीय गानों का उपयोग करते हैं,इसलिए हमारे गीतकार व संगीतकारों को राॅयालिटी दीजिए.आप ब्रिटिष गीतकार व संगीतकार को राॅयालिटी देते हैं,उसी तरह कानूनी तौर पर आपको भारतीय गीतकार व संगीतकारों को भी देना चाहिए.आपको जानकर खुषी होगी कि में 1991 में पहली बार सत्तर हजार पाउंड्स भारत लेकर आया.फिर यह राषि हमने गीतकारों व संगीतकारांे के बीच बांटे. आपके लिए 14 वर्ष तक आईपीआरएस के विकास की दिशा में काम करना काफी चुनौतीपूर्ण रहा होगा? जी हाॅ! यह काफी चुनौतीपूर्ण था. लेकिन मैंने इसका पूरा आनंद लिया. जब मैं अगस्त 1990 में आईपीआरएस में शामिल हुआ, तब मैं युवा था और संगीत कपंनियों से मुकाबला कर गीतकार व संगीतकार के लिए रॉयल्टी की षुरूआत करवाना बहुत बड़ा काम था. मुझे तो उस वक्त आष्चर्य हुआ था,जब ‘आईपीआरएस’’ से जुड़ने के बाद मैं कई नामचीन संगीतकारों और गीतकारों से मिला,तो पाया कि उन्हे अपने हक की जानकारी ही नही है.वह आई पीआरएस से जुड़ना भी नही चाहते थे.तब मेरा काम हर किसी को कापीराइट व राॅयालिटी के मुद्दे पर षिक्षित करना भी था.मैने हर किसी को षिक्षित किया.पर 2004 में जब संगीत कंपनियों ने ‘आईपीआरएस’ को अपने कब्जे में ले लिया,तब मैने इससे खुद को अलग कर लिया. मैंने संगीत उद्योग को ‘‘म्यूजिक पब्लिशर्स‘‘ के अस्तित्व के बारे में शिक्षित किया और काम करने के अंतर्राष्ट्रीय तरीके को अपनाने के लिए, प्रकाशन अधिकार के मालिकों (निर्माता और संगीत कंपनियों) से आईपीआरएस के प्रकाशक सदस्य बनने और इसके प्रशासन में आईपीआरएस को मजबूत करने का आग्रह किया.मैं 1993 में सारेगामा और यूनिवर्सल से संगीतकारों और गीतकारों के यांत्रिक अधिकार प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार था. मैंने 2001 में शुरू हुई अवैध री-मिक्स के खिलाफ भी आवाज उठाई थी और तत्कालीन उप प्रधान मंत्री लालकृष्ण आडवाणी से भी मुलाकात की थी, जिसके परिणाम स्वरूप धारा 51 (1) (जे) में संशोधन हुआ, जैसा कि आज है. पर आपने गायकों को राॅयालिटी मिले इसके लिए जिस तरह से काम किया,उसके बारे मे बताना चाहेंगें? 1990 में दिल्ली में एक समारोह में एक इंसान के गायकों को ‘वोकल वद्ययंत्र’ की संज्ञा दिए जाने से लता मंगेषकर जी काफी नाराज हुई थी.तब मैने उन्हे समझाया था कि वह इंसान गलत नही कह रहा है.क्यांेकि 1957 के काॅपीराइट एक्ट में गायक का कोई वजूद ही नही है.फिर मैने 1991 के बाद से कॉपीराइट अधिनियम 1957 में संषोधन करवाने की दिषा में प्रयास षुरू किए.मैं 1994 के संशोधनों के लिए मसौदा समिति में था और वर्तमान 2012 के संशोधनों को आगे बढ़ाने में भी सहायक था. सरकार के सामने मुद्दा यह था कि रॉयल्टी प्राप्त करने वाले अन्य देशों के कलाकारों के विपरीत भरतीय कलाकारों (संगीतकार, गीतकार और गायक) को रॉयल्टी से वंचित किया जा रहा था.संगीत उद्योग अपरिपक्व और स्वार्थ से प्रेरित था.फिल्म और संगीत उद्योग किसी भी सूरत में गायक के हक नही देना चाहता था.पर इसी बीच जावेद अख्तर भी हमारे साथ जुड़ गए और उपर से वह राज्यसभा सदस्य बन गए.जावेद अख्तर ने काॅपीराइट और राॅयालिटी का मुद्दा संसद के अंदर उठाया.मुझे इस मामले पर (पर्दे के पीछे) उनके नेतृत्व में काम करने का सौभाग्य मिला, जिसका परिणाम अंततः संसद और सभी राजनीतिक दलों के पूर्ण समर्थन के साथ 2012 के संशोधनों के रूप में सामने आया. तो आप मानते हैं कि कापीराइट एक्ट में 2012 में हुआ संषोधन पर्याप्त है? जी हाॅ! पूरे विष्व के काॅपीराइट कानून के मुकाबले यह ज्यादा सही है. अब पूरी दुनिया हमारे देष के इस कानून पर बारीकी से नजर गड़ाए हुए है.मुझे यकीन है कि जल्द ही यह कॉपीराइट व्यवस्था में एक आदर्श कानून होगा. आप लोगों ने 1990 में यह लड़ाई शुरू की थी.कानून बनने में काफी समय लग गया? देखिए,संविधान संषोधन तो बड़ी बात होती है.सरकार ने अपना काम कर दिया.उसके बाद हमें अपना प्र्रयास करना था.अपनी मांग को लोगांे को समझाना था.इसमें एक होती है कागजी काररवाही की.जिसमें काफी वक्त लगता है.हम सभी कलाकारों के लिए खुषकिस्मती रही कि हमें नेता के तौर पर जावेद अख्तर साहब मिल गए.वह सांसद हो गए.उन्होने भी इसे अपना लक्ष्य बना दिया.इसलिए हम सभी उनका षुक्रिया अदा करते हैं. 2013 में ‘‘इंडियन सिंगर्स राइट्स एसोसिएशन (इसरा) का गठन किया गया.इसकी यात्रा पर रोषनी डालेंगें? 1992 के बाद से लता मंगेषकर जी, अलका याग्निकजी, सोनू निगम जी, मैं और कुछ अन्य प्रमुख गायकों के नेतृत्व में, हमने कॉपीराइट अधिनियम के तहत गायकों के व्यवहार के तरीके को बदलने का काम किया.उस समय तक गायकों को स्वर वाद्य यंत्र माना जाता था. इस विसंगति को ठीक करने के लिए हम सभी ने एक साथ मिल कर सिंगर्स रॉयल्टी के लिए अपना धर्मयुद्ध शुरू किया, जिसे हमने अंततः 12 जून, 2012 को हासिल किया.3 मई, 2013 को कंपनी अधिनियम के तहत हमने गायकों के लिए कॉपीराइट सोसायटी यानी कि ‘इसरा’ के पंजीकरण के लिए आवेदन दिया और हमें अपना पंजीकरण प्रमाणपत्र 14 जून, 2013 को प्राप्त हुआ, जिससे नए काॅपीराइट संषोधन के तहत ‘इसरा’ पहली कॉपीराइट सोसायटी बन गयी.इसके बाद हमने एक सदस्यता अभियान शुरू किया, जिसके बाद उपयोगकर्ताओं को लाइसेंसिंग नोटिस (दोस्ताना वाले) और उसके बाद न्यायशास्त्र का निर्माण करने और न्यायालयों के माध्यम से हमारे अधिकारों को स्थापित करने के लिए मुकदमेबाजी हुई.दिल्ली हाई कोर्ट से दो निर्णय हमारे पक्ष में आए. काॅपीराइट और राॅयालिटी का अंतर हर किसी की समझ में नहीं आता.इस पर आप कुछ बताना चाहेंगे? कापीराइट का मतलब ओनरषिप टाइटल होता है.मसलन,आप जिस आफिस में बैठे हैं,उसका मालिक कोई और हो सकता है.अगर मैं उस मालिक की इस प्रापर्टी से कुछ कमा रहा हॅूं,तो उसमें से हिस्सा लेने का हक ओनर को है,जिसे ‘राॅयालिटी’ कहते हैं.देखिए,गीतकार या संगीतकार या गायक एक चीज के लिए अपने काम को अंजाम देता है.यानी कि वह फिल्म या म्यूजिक अलबम के लिए काम करता है.मसलन- सोनू निगम ने अगर षाहरुख खान के लिए गाना गाया है तो वह उनकी उस फिल्म के लिए गाया है. उस फिल्म के अलहदा अगर उनके द्वारा गाए हुए गाने से अगर कोई पैसा कमा रहा है,तो उसे राॅयालिटी देनी ही पड़ेगी.अब सोनू निगम ने षाहरुख खान के लिए गाना गाया कि षाहरुख खान उस गीत को गाते हुए फिल्म के परदे पर नजर आएंगे. जिसके लिए उन्हे एक रकम/राषि मिली है.गाने की खूबसूरती है कि एक बार गाना रिलीज हो जाए,तो पब्लिक हो जाता है.कोई भी उसे सुन सकता है.आप उस गाने के साथ कुछ भी करें,पर अब कानूनी रूप से गायक को उसकी राॅयालिटी मिलनी चाहिए. 2012 में कानून बनने के बाद अब राॅयालिटी का समला हल हुआ.ऐसा क्यों? जून 2012 में संविधान सषोधन होग गया.जून 2013 में हमने संविधान व कानून के तहत 6इसरा’ का गठन किया.उसके बाद संगीत के उपयोग कर्ताओ से राॅयालिटी की मांग की.उन्होने साफ साफ कह दिया कि ठीक है कानून बन गया होगा.आप अदालत से आदेष ले आइए.जब सुप्रीम कोर्ट आदेष देगा,तब सोचेंगें.अब हम अदालत में बीस वर्ष से भी अधिक लगा दें?उनकी मंषा यही थी.तो हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या संगीत का उपयोग करने वाली लाॅबी(रेडियो स्टेषन, होटल, रेस्टारेंट,आई पीएल,ओटीटी प्लेटफार्म आदि ) से निपटना.ऐसे में सबसे पहले मैने आईपीएल पर हमला बोलते हुए सभी फ्रेंचाइजीज से कहा कि अब आपको गायको की राॅयालिटी देनी है.सभी ने यह कह कर मना कर दिया वह नही देंगे.वह जो चाहें वह कर लें.दूसरे वर्ष फिर हमने उनसे बात की. इस बार भी उनका वही जवाब आया.तब हमने मजबूरन दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका देकर सभी फ्रेंचाइजीज के खिलाफ आदेष पारित करवाने मे सफल रहे.दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि अगर आप किसी गायक का गाया हुआ गाना आईपीएल मैच में बिना ‘इसरा’ को गायक की राॅयालिटी दिए नही बजा सकते.दिल्ली हाई कोर्ट के इस आदेष के बाद हमारी टेबल पर नियम से तीस चालिस लाख रूपए आ गए थे.मगर होटल रेस्टारेंट,रेडियो स्टेषन,ओटीटी प्लेटफार्म मानेनको तैयार न थे.तो दस वर्ष के दौरान हमने एक नया विकल्प निकाला.हमने संगीत कंपनियांे के संग बातचीत की.हम दोनो पक्षों ने एक दूसरे को मसले को समझा और एक राह निकाली.कोविड के वक्त जब हर कलाकार घर पर बैठा हुआ था,तब सभी संगीत कंपनियों ने भी समझदारी दिखायी.और इस निर्णय पर पहुॅचे कि इस समस्या का ऐसा हल निकाला जाए,जिससे उपयोगकर्ता यानी कि रेडियो स्टेषन,ओटीटी प्लेटफार्म व होटल रेस्टारेंट आदि के पास कोई विकल्प न बचे. वह बहाने न कर पाएं.कलाकार को उसका हक मिल सके.सभी का कहना था कि वह सिर्फ संगीत कंपनी को देंगे.तो अब हम सभी से कह रहे हैं कि आप संगीत कपंनी को दे दें.हम लोग एक हो गए हंै.‘इसरा’ और संगीत कंपनियों की संस्था ‘इंंिडयन म्यूजिक इंडस्ट्ी’ के बीच केंद्रीय मंत्री पियूष गोयल जी ने मध्यस्थता की.अब तय हुआ है कि संगीत कपंनियो की एसोसिएषन ‘पीपीएल’ मार्केट में जाएगी.तो हम भी सभी से निवदेन कर रहे है कि राॅयालिटी की रााषि वह ‘पीपीएल’ को दें,पीपीएल हमारा हिस्सा हमें दे देगी.अब ‘इसरा’ मार्केट में नहीं जाएगी.अब ‘इसरा’ को गायको की राॅयालिटी मिलना तय हुआ है.वैसे तो ‘पीपीएल’के पास जमा होने वाली राषि का पच्चीस प्रतिषित तय हुआ है.मगर पहले वर्ष कम से कम पचास करोड़ मिलेंगे.उसके बाद हर वर्ष राषि मंे दस प्रतिषत बढ़ोत्तरी होगी.जिस दिन यह राषि पच्चीस प्रतिषत से ज्यादा हो जाएगी,उस दिन से पच्चीस प्रतिषत मिलेंगा.मेरी खुषकिस्मती है कि मैं लता मंगेषकर के सपने को आगे ले जा सका. विदेष में जो गायक या कलाकार म्यूजिकल कंसर्ट करेगा.वहां पर स्टेज पर गाना गाएगा,तो उसकी राॅयालिटी? भारत में जिस तरह से ‘इसरा’ है,उसी तरह स्पेन, जापान, कनाडा, अमरीका सहित पूरे विष्व में 58 संस्थाएं हैं,जो कि गायकों की राॅयालिटी एकत्र करती रहती है.इन सभी के साथ ‘इसरा’ ने आपसी समझौता कर लिया है.कुछ के साथ जल्द ही समझौता होने वाला है.जिस देष में भी भारतीय गायक का गाना बजेगा,तो उस देष की संस्था राॅयालिटी इकट्ठा कर ‘इसरा’ तक पहुॅचाएगी.इसी तरह हम भारत में विदेषी गायक के गाने की राॅयालिटी इकट्ठा कर वहां तक पहुॅचाएंगे.हर सोसायटी ने एक सेंट्ल डेटा बनाया हुआ है,उससे सब कुछ पारदर्षी तरीके से सामने आता रहता है.मैं अपने आफिस में बैठकर उस डेटा को देख सकता हॅूं.गर्व की बात है कि रूस व यूके्रन मंे लड़ाई हो रही है,पर ‘इसरा’ के संबंध दोनों से है.संगीत युद्ध में यकीन नही करता. लेकिन फिल्म के प्रमोषन के लिए फिल्म निर्माता मुफ्त में रेडियो,टीवी व अन्य जगहों पर अपनी फिल्म के ंसंगीत को चलवाता है,क्या उस वक्त राॅयालिटी का मसला नहीं उठेगा? देखिए,जब फिल्म व संगीत रिलीज होता है,उस वक्त हमारी जरुरत होती है कि वह संगीत लोगो तक पहुॅचे.इस वजह से संगीत कंपनी व गायक,संगीतकार,गीतकार राॅयालिटी की मांग नही करता.मगर इसके लिए एक समय सीमा तय की गयी है.उस समय सीमा के बाद मुफ्त में कोई भी संगीत को नहीं बजा सकता.प्रमोषन के दौरान राॅयालिटी की मांग नहीं की जा रही है.जब संगीत का उपयोग कमर्षियली होगी,तभी राॅयालिटी मांगी गयी है. परफार्मिंग आर्टस को लेकर कई तरह की बातें व विवाद रहे हैं.अब क्या तय हुआ है?क्या फिल्म में गाने वाला ही गायक माना जाएगा.क्या सिर्फ स्टेज षो करने वाला या दूर दराज गांव में बैठकर लोकगीत गाने वाला भी गायक माना जाएगा और उसे भी राॅयालिटी मिलेगी? तय यह हुआ है कि गायक पूरे भारत में गांव या षहर कहीं से भी हो,उसे राॅयालिटी मिलेगी.वह किसी भी प्रकार का गाना गाए.फिल्म में गाए,गैर फिल्मी गीत गाए,भक्ति संगीत गाए,लोक गीत गाए,जिंगल्स में गाए या विज्ञापन में गाए.कुछ भी गाए,उसे राॅयालिटी मिलेगी.देष की किसी भी भाषा में गाए.पर जिसका गाना ज्यादा बजेगा,उसे ज्यादा राषि मिलेगी.जिसका गाना नही बजेगा,उसे नही मिलेगी.किसका गाना कहंा कितना बजा इसका एक डाटा हमारे पास आ रहा है.तो पचास करोड़ को हम उसी हिसाब से बांटने वाले हैं. संजय टंडन जी जब आप इतनी मेहनत करते हैं,इतना तनाव झेलते हैं,तो बीमारी भी आपको घेरती होगी? मैं समझ गया.आप मेरे कैंसर से पीड़ित होने और कैंसर पर विजय पाने की बात कर रहे हैं. 2017 से 2019 का वक्त मेरे लिए बहुत बुरा वक्त रहा.मगर सभी की दुआओं व आषिर्वाद से मैं आपने सामने स्वस्थ बैठा हॅूं तथा गायकों के हित की लड़ाई भी लगातार लड़ता आ रहा हॅूं.मैं खुद को खुषनसीब मानता हॅंू कि लता मंगेषकर जी,एस पी बाला सुब्रमणियम व सोनू निगम सहित हर गायक ने मेरे स्वस्थ होने की प्रार्थना की.हाॅं! मुझे कैंसर था.और सभी की दुआओं व प्यार की बदौलत मैं कैंसर की बीमारी से निजात पाने में सफल रहा.बीमारी के दौरान भी मैं गायकांे के हित की लड़ाई लड़ने में लगा हुआ था.मुझे लगता है कि ईष्वर ने मेरे अंदर यह षक्ति प्रदान की,और ईष्वर ने ही मुझे गायको की राॅयालिटी के मुद्दे पर लड़ने का काम सौंपा हुआ है.मैं तो मानता हॅूं इस काम को करने वाले ईष्वर हैं,मैं तो सिर्फ उनका एक माध्यम मात्र हॅूं.इसीलिए मुझे इस काम को करने में बड़ा आनंद आता है.मुझे न तकलीफ होती है,न तनाव होता है.कोई मेरी तारीफ करे या मुझे गाली दे,सब कुछ मैं उपर यानी कि ईष्वर को दे देता हॅूं.मैं खुद को प्रषंसा या गाली दोनों के काबिल नहीं मानता.मैं तो सिर्फ अपना कर्म कर रहा हॅूं.इसीलिए मैं कैंसर जैसी बीमारी से उबरने में सफल हो पाया हॅूं. #about lata mangeshkar हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article