बचपन से ही नृत्य की शौकीन रही शांती प्रिया और उनकी बड़ी बहन भानु प्रिया को नृत्य ने ही बिना संघर्ष के अभिनेत्री बना दिया. सबसे पहले भानु प्रिया को फिल्मों में अभिनय करने का अवसर मिला. फिर 1987 में शांती प्रिया को निर्देशक गंगई अमरन ने तमिल फिल्म "इंगा आरू पत्तुकरन ' में अभिनय करने का अवसर मिला, जिसमें अभिनेत्री के तौर पर उनका नाम शांती था. लेकिन उसके बाद वामसी के निर्देशन में उन्होने शांती प्रिया के नाम से तेलगू फिल्म 'महर्षि' की. तमिल व तेलगू की 15 फिल्में करने के बाद शांती प्रिया ने कन्नड़ फिल्म "अथिंथा गांडू नानल्ला" की.दक्षिण भारत में लगभग 25 फिल्मों में अभिनय करने के बाद शांती प्रिया ने 1991 में अक्षय कुमार के साथ फिल्म "सौगंध" में अभिनय करते हुए बॉलीवुड में कदम रखा. उसके बाद उन्होने दक्षिण की तरफ रुख नहीं किया. वह हिंदी फिल्मों ही व्यस्त हो गयी. महज तीन वर्ष के अंदर बॉलीवुड में आठ फिल्मों में अभिनय करने के बाद शांती प्रिया ने अभिनेता सिद्धार्थ संग विवाह रचाकर अभिनय से दूरी बना ली थी. बीच में 2002 तथा 2008 से 2012 तक वह टीवी सीरियल में नजर आयी. फिर कुछ दिन पहले ही वेब सीरीज 'धारावी बैंक' में नजर आयी. पर अब वह एक बार फिर से फिल्म "सरोजिनी नायडू" से फिल्मों में वापसी कर रही हैं.
प्रस्तुत है "मायापुरी" के लिए शांती प्रिया से हुई बातचीत के अंष...
सबसे पहले 'मायापुरी' के पाठकों को बताएं कि आपके अभिनय कैरियर की शुरुआत कैसे हुई थी?
मैं और मेरी बड़ी बहन भानु प्रिया मूलतः कत्थक डांसर हैं. एक बार हम दोनों स्टेज पर डांस परफॉर्म कर रहे थे, तभी दक्षिण के एक निर्देशक ने मेरी बड़ी बहन भानुप्रिया को देखा और उनके सामने फिल्मों में अभिनय करने का प्रस्ताव रख दिया. मेरी बहन ने अभिनय करना शुरू कर दिया. जब मेरी बहन फिल्म की शूटिंग करने जाती, तब मैं शूटिंग देखने के लिए उनके साथ जाती थी. एक दिन एक फिल्म के सेट निर्देशक गंगई अमरन ने मुझसे अभिनय करने के बारे में बात की. एक अच्छा अवसर मैने हाथ से जाने नहीं दिया और मैने उनके निर्देशन में पहली तमिल फिल्म "इंगा आरू पत्तुकरन' में अभिनय किया. फिल्म में मेरा चुनौतीपूण किरदार था. फिल्म को जबरदस्त सफलता मिली, उसके बाद मुझे पीछे मुड़कर देखने की आवष्यकता नहीं पड़ी.
आपका एक लंबा कैरियर रहा है. आपने तमिल,कन्नड़,तेलगू फिल्में की.आपके कैरियर में एक खास बात यह नजर आती है कि आपने तमिल फिल्में आपने निशांती के नाम से की जबकि हिंदी और तेलगू में आपने शांती प्रिया के नाम से काम. किया.ऐसा क्यों?
जब कल्याणी मुरूगन ने मुझे तमिल फिल्म "इंगा ओरू पट्टूरण" में मुझे अभिनय करने का मौका दिया था, उस वक्त फिल्म के निर्देशक गंगइे अमरानन ने मेरा स्क्रीन नाम निशांती रखा था. लेकिन मेरी मां ने कहा कि निशांती नाम सुनने मे अच्छा नही लगता. यह नाम तो 'अ शांती' की धुन देता है. मेरी बड़ी बहन भानु प्रिया उस वक्त तक स्थापित अभिनेत्री बन चुकी थी. हम बहनों का असली नाम भानु और शांती है. मेरी बहन ने अपने नाम के साथ प्रिया जोड़ा था. तो मेरी मां ने मुझे भी 'प्रिया' जोड़कर शांती प्रिया के नाम से कैरियर में आगे बढ़ने की सलाह दी. तो उसके बाद मैंने तेलगू व हिंदी फिल्में शांती प्रिया के नाम से ही की.
आपने सात वर्ष के अंदर तमिल, तेलगू,कन्नड़ व हिंदी की 35 फिल्में कर ली थी. पर अचानक हिंदी फिल्म "इक्के पर इक्के"के बाद आपने अभिनय से दूरी क्यों बना ली थी?
वास्तव में मैने फिल्मफेअर अवार्ड में 'न्यूकमर अवार्ड' के लिए अभिनेता सिद्धार्थ राय के साथ परफार्म किया था. उसके बाद हम दोनों एक साथ फिल्म 'अंधा इंतकाम' में काम किया. इस फिल्म की शूटिंग के ही दौरान हम दोनो में प्यार हो गया. और हमने हमने शादी कर ली. शादी के बाद मैने कोई फिल्म नही की. हमारी फिल्म 'इक्के पर इक्का' शादी के बाद प्रदर्षित हुई थी. वास्तव में मेरी आदत रही है कि हर काम को अपनी तरफ से सौ प्रतिशत दिया जाए. तो शादी के बाद मैने पत्नी व बहू के किरदार को सौ प्रतिशत देने के लिए अभिनय से दूर हो गयी थी. जबकि सिद्धार्थ जी ने मुझे कभी भी अभिनय करने से मना नही किया था. वैसे भी शूटिंग करके घर वापस लौटने के बाद घर की जिम्मेदारी निभाना,घर के काम करना आसान नही होता. हमारी फिल्म इंडस्ट्री हर दिन फिल्म की शूटिंग का समय अलग अलग होता है. पति के परिवार व उनके घर के माहौल आदि को समझने में मुझे काफी वक्त लगा था. फिर भी मैं अभिनय कर सकती थी. उन्होने मना नहीं किया था. पर मैने घर को ही पूरा समय देने का फैसला लिया था.
बीच में यानी कि दो बेटो की मां बनने के बाद 2002 में मैने मुकेष खन्ना के साथ उनके सीरियल "आर्यमानः ब्रम्हांड का योद्धा" में तेजी का किरदार निभाया था. इस सीरियल का प्रसाण खत्म होते ही मैं दूसरा सीरियल या फिल्म स्वीकार करती,उससे पहले ही दुर्भाग्य से 2004 में मेरे पति सिद्धार्थ जी का हार्ट अटैक से देहांत हो गया. तब मेरे दोनों बेटे छोटे थे,तो सोचा कि फिल्म इंडस्ट्री तो अपनी ही है. कुछ समय बाद अभिनय में वापसी कर लुंगी. पहले अपने बेटों को कुछ बड़ा कर लॅूं. जब मुझे वेब सीरीज 'धरावी' में चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने का अवसर मिला तो कर लिया. अब मैं फिल्म 'सरोजिनी नायडू" में सरोजिनी नायडू का किरदार निभा रही हॅूं. इस तरह अब फिल्म इंडस्ट्री में मेरी वापसी हो गयी है.
लेकिन बीच में आपने 2008 से 2011 तक धार्मिक सीरियल "माता की चैकी" में मां वैष्णो देवी का किरदार निभाया था?
आपने बहुत अच्छा सवाल किया है. 2008 में जब 'स्वास्तिक पिक्चर्स' के सिद्धार्थ तिवारी ने मुझे सीरियल 'माता की चैकी" का आफर दिया, उस वक्त मुझे लगा कि मैं काम कर सकती हॅूं. इसलिए मैने किया था. जब मैने कहानी सुना था, तो मेरी समझ में आया था कि यह सीरियल केवल धार्मिक नही बल्कि सामाजिक व धार्मिक सीरियल है. यह काफी रोचक था. पहली बार इस तरह का मिश्रण वाला सीरियल बन रहा था. इसलिए मैने कर लिया था. फिर जब मेरा बड़ा बेटा शुभम दसवी में आया, तो मैने बे्रेक ले लिया था. फिर एक वर्ष के लिए मैने 'द्वारिकाधीश' किया था. फिर बड़ा बेटा बारहवीं में आ गया, तो ब्रेक ले लिया. उसके बाद छोटे बेटे की दसवीं व बारहवी की परीक्षाओ के मद्दे नजर कोई काम नहीं किया. उसके बाद कालेज की पढ़ाई शुरू हो गयी, तो मैं दूर रही.
फिल्म "सरोजिनी नायडू" में अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी?
फिल्म 'सरोजिनी नायडू' मषहूर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उत्तर प्रदेश की पहली महिला गर्वनर व कवि सरोजिनी नायडू जी की बायोपिक फिल्म है. सरोजिनी नायडू जी को भारत की कोकिला कहा जाता है. उन्होने 12 वर्ष की उम्र से ही कविताएं लिखनी शुरू कर दी थी. वह एक बहुत ही स्ट्रॉन्ग और सशक्त महिला थी. ऐसे किरदार को निभाने का अवसर मिलना सौभाग्य की बात है. इस फिल्म में सरोजिनी नायडू के जीवन को तीन हिस्सों में चित्रित किया जा रहा है. पहला हिस्सा बचपन से शादी से पहले तक का है,जिसे एक अन्य अभिनेत्री ने किया है. उनकी शादी डॉ. गोविंद राजालु नायडू के साथ 19 साल की उम्र में हुई थी. दूसरा हिस्सा मिडिल एज यानी कि शादी के बाद से 19 वर्ष से 35 वर्ष की उम्र तक का है,इसे एक दूसरी कलाकार निभा रही है. तीसरा हिस्सा 35 से 75 की उम्र तक का है, इसे मैं अपने अभिनय से परदे पर साकार करने वाली हॅूं. इस हिस्से में दर्शक देख सकेंगें कि शादी होने के बाद किस तरह सरोजिनी जी राजनीति में आईं. फिर कैसे वह गांधी जी के साथ दांडी मार्च का हिस्सा बनी. जी हाँ! सरोजिनी नायडू पहली बार 1914 में महात्मा गांधी से मिली और तभी से देश के लिए मर मिटने को तैयार हो गईं थी. 1925 में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. 1928 में उन्हें केसर-ए-हिंद से सम्मानित किया गया. यह मैडल उन्हें भारत में प्लेग की महामारी के दौरान उनके काम के लिए दिया गया था. देश के आजाद होते ही 15 अगस्त 1947 को वह देश की महिला महिला राज्यपाल बनी थी. 2 मार्च 1949 को लखनऊ में उन्हें हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया. अर्थात फिल्म में उनकी मृत्यु तक का सफर दर्शाया जाएगा. अब तक इसके दो हिस्से फिल्माए जा चुके हैं. मेरे साथ तीसरा हिस्सा फरवरी या मार्च में फिल्माया जाएगा.
सरोजिनी नायडू के किरदार को निभाने के लिए कोई खास तैयारी कर रही हैं?
देखिए, सरोजिनी नायडू जी के किरदार को परदे पर साकार करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. इस जिम्मेदारी को मैं हलके में नही ले सकती. मैने फिल्मस डिवीजन में मौजूद सरोजिनी नायडू के बारे में डाक्यूमेंट्ी, वीडियो आदि देखा. जिससे मैने उनके बात करने के तरीके को जाना. उनकी चाल को समझा.मैं भी उतनी ही तेज चलती हॅूं, जितना तेज वह चलती थीं. मैं भी उनकी ही तरह पट..पट..पट.. बात करती हूं. इसलिए मैं खुद को भाग्शाली समझती हॅूं कि मुझे उनके किरदार को निभाने का अवसर मिला. मैं अपना वजन कम से कम दस से पंद्रह किलो बढ़ा रही हॅूं. इसके अलावा उनके चेहरे के अनुरूप हम प्रोस्थेटिक मेकअप कर रहे हैं. मेरे चेहरे का रंग और उनके चेहरे का रंग एक जैसा ही है. मुझे अपने रंग पर गर्व है. हम इसे हिंदी सहित चार भाषाओं में बना रहे हैं. मुझे हिंदी, तमिल व तेलगू आती है. कन्नड़ ज्यादा नही जानती. यह फिल्म चारों भाषाओं में बनायी जा रही है.
फिल्म के निर्देशक विनय चंद्रा में क्या खास बात नजर आयी?
निर्देशक विनय चंद्रा परफैक्षन में यकीन करते हैं.
आप मल्टी टास्किंग रही हैं. इस वक्त घर संभालने व अभिनय के अलावा क्या क्या कर रही हैं?
बहुत कुछ कर रही हॅूं. गार्डनिंग कर रही हॅूं. मैं क्लासिकल डांसर हॅूं, तो मैंने पुनः क्लासिक डांस सीखना शुरू कर दिया. मैं पुनः क्लासिकल डांस के शो में परफार्म करना चाहती हॅूं. इन दिनों बालरूम डांस सीख रही हॅूं. जिम जाती हॅूं. सायकलिंग करती हॅूं. डायविंग नही आती है, वह सीखना है.
क्लासिकल डांसर होना अभिनय में किस तरह से मदद करता है?
बहुत ज्यादा मदद करता है. डांसर होने के चलते हर द्रश्य को समझने और चेहरे पर किरदार व द्रश्य की मांग के अनुरूप भाव लाने में मदद मिलती है.
कलाकार के लिए जिम जाना कितना जरुरी है?
हर इंसान के लिए जरुरी है कि वह शारीरिक रूप से सदैव फिट रहे. कलाकार के लिए तो कुछ ज्यादा ही जरुरी है. क्योंकि कलाकार कैमरे के चलते परदे पर दोहरा नजर आता है. इसलिए स्लिम बौडी रहना जरुरी है. इसके अलावा किरदार की मांग के अनुरूप शरीर की बनावट बनाने के लिए भी जिम जाना जरुरी होता है.
इसके अलावा कुछ कर रही हैं?
जी हाँ! एक और फिल्म करने जा रही हॅूं, जल्द उसके बारे में बात करुंगी.