मुंबई में जो तीन माह में अभिनय सिखाने वाले स्कूल चल रहे हैं, वह हकीकत में लूट के अड्डे हैं: ललित पारिमू By Shanti Swaroop Tripathi 28 Aug 2022 | एडिट 28 Aug 2022 04:30 IST in इंटरव्यू New Update पिछले 35 वर्षों से अभिनय जगत में कार्यरत अभिनेता ललित पारिमू ने अपनी एक अलग पहचान बना रखी है.फिर चाहे सीरियल ‘शक्तिमान’ हो या फिल्म ‘हैदर’ या फिल्म ‘संशोधन’ हो... हर सीयिल व फिल्म में उन्हे उनके किरदारों व उनकी अभिनय क्षमता के कारण पसंद किया गया और आज भी याद किया जाता है. सभी जानते है कि शुरुआत में सीरियल ‘शक्तिमान’ में ललित पारिमू का डा. जकाल का किरदार महज चार एपीसोड का था. मगर उनके उत्कृष्ट अभिनय के चलते यह किरदार बढ़कर तीन सौ एपीसोड पर जाकर खत्म हुआ था. ललित पारिमू आज भी अभिनय में लगातार सक्रिय हैं. हाल ही में उनकी फिल्म “नार का सुर” प्रदर्षित हुई है, जिसमें गांव के जमींदार के किरदार में उन्होने लोगो को अपने अभिनय का मुरीद बना लिया. लेकिन अभिनय में अपनी सक्रियता के साथ ही इस क्षेत्र में नए लोगों को राह दिखाने, उन्हे बढ़ावा देने के लिए पिछले दस बारह वर्षों से कम दाम लेकर अभिनय भी सिखाते आ रहे हैं. उनकी अपनी “ललित, पारिमू एक्टिंग अकादमी” है. यॅूं तो सिर्फ मुंबई ही नही पूरे देष के कई शहरों में अभिनय के अनेक स्कूल खुले हुए हैं. लेकिन ललित पारिमू का बच्चों को अभिनय सिखाने और उन्हें कलाकार के तौर पर तैयार करने का अपना अलग तरीका है. हाल ही अभिनेता ललित पारिमू से मुलाकात होने पर उनकी एक्टिंग अकादमी को लेकर लंबी बातचीत हुइ. प्रस्तुति है उसका अंष... आप अभिनय जगत में लंबे समय से कार्यरत है. अभी भी आप काफी काम रहे हैं. हाल ही में आपकी फिल्म “नार का सुर” प्रदशित हुई है.तो फिर यह अभिनय स्कूल शुरू करने का विचार कैसे बना? अभिनय जगत में कार्यरत हर कलाकार के पास कुछ तो समय बचता ही है. कोई भी कलाकार यह दावा नही कर सकता कि वह हर माह तीस दिन और हर वर्ष 365 दिन शूटिंग करता हो. उसके पास बिल्कुल समय नही है. बड़े से बड़ा कलाकार भी एक फिल्म की शूटिंग पूरी करने के बाद ब्रेक जरुर लेता है. हर कलाकार अपना बचा हुआ वक्त अपने परिवार और अपने शौक को पूरा करने में लगाता है. तो मैंने भी अपनी अभिनय यात्रा में तीन शौक विकसित किए हैं. मैंने शूटिंग के दौरान खाली वक्त में अपनी वैनिटी वैन या मेकअप रूम में अध्ययन के शौक को विकसित किया. मैं कविताएं, कहानियां, फिलोसफी और अध्यात्म पढ़ता आया हॅूं.मैने अपने खाली समय का हमेषा सदुपयोग किया. फिर 2006 के आस पास मैने पाया कि पूरी मुंबई में ढेर सारे एक्टिंग स्कूल खुल चुके हैं और वह अभिनय सिखाने के नाम पर मोटी रकम भी ले रहे हैं. मैंने कई ऐसे कलाकारों के साथ अभिनय किया,जिन्होने बहुत बड़े एक्टिंग इंस्टीट्यूट से बीस बीस लाख रूपए चुका कर अभिनय सीखकर आए हैं. पर कैमरे के सामने उनका अभिनय औसत दर्जे से भी कमतर था. तब मेरे दिमाग में ख्याल आया कि हमने जिस तरह से अभिनय सीखा था, उसी तरह से आज के बच्चों को भी अभिनय की शिक्षा दी जाए. तो मैने सोचा कि नए बच्चे को पहले तीन माह का प्रषिक्षण दिया जाए, फिर उनके साथ नुक्कड़ नाटक किया जाए और उनमें से जो बेहतर हों, उनके साथ लंबा बड़ा नाटक किया जाए. सिर्फ फिल्मी हीरो बनने की ललक लेकर छोटे शहरों से जो लोग मुंबई नगरी में आते हैं, मैं तहे दिल से उन्हे बचाना चाहता था.अभी भी मेरी इच्छा यही है. इसी मकसद के साथ मैंने नए बच्चों को अभिनय सिखाने के लिए प्रेरित हुआ. लेकिन जो कुछ लोग गुमराह होने के लिए ही मुंबई आए हैं, उन्हे तो कोई नहीं बचा सकता. पिछले बारह वर्षों का मेरा षिक्षक के रूप में यही अनुभव रहा. अभिनय के क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हर कोई सपने में जीता है. टीनएजर में अभिनेता बनने की चाह लेकर मुंबई आने वाले सभी बच्चे किसी न किसी बड़े स्टार से अभिभूत होते हैं. कभी लोग अमिताभ बच्चन से, तो कभी षाहरूख खान, आमीर खान व अब कुछ लोग षाहिद कपूर या कार्तिक आर्यन से अभिभूत हैं. यह बच्चे उनके जैसा ही बनना चाहते हैं. पर उन्हे एक वर्ष में यह अक्ल आ जाती है कि उनके जैसा बनना बेवकूफी है. जरुरत है कि बच्चे अभिनय को विद्या की तरह लेकर सीखें. उसके बाद आप इससे अपनी रोजी रोटी कमा लें, तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी.मैने अपने एक्टिंग स्कूल में इसी तरह से कोर्स रखा है.पहले तीन माह की ट्रेनिंग. फिर तीन माह तक नुक्कड़ नाटक व छोटे नाटकों में अभिनय करवाना. उसके बाद आवष्यकता नुसार अगले तीन माह की ट्रेनिंग. अब तक मेरी इस पद्धति से मुझसे कई कलाकार अभिनय सीखकर अपने कैरियर को आगे बढ़ा रहे हैं. मैंने अपने एक्टिंग स्कूल में अपनी मौलिक सोच के साथ एक विचार पैदा किया है, जिसे मैने ‘अभिनय योग’ नाम दिया है. मैंने खुद अपने कैरियर में अभिनय करते हुए पाया कि अभिनय का काम योगी का काम है. योगी की ही तरह अभिनेता कैमरे के सामने पूरी तरह से तल्लीन होकर काम करता है, जिसमें वह अपने षरीर, अपने इमोशन, अपनी आवाज आदि के साथ खेलता है. योग में इसे प्रतिहार व धारणा कहा गया है. तो मैंने सोचा कि अभिनय में भी धारणा हो सकती है, ध्यान नही हो सकता. कलाकार फोकष्ड हो सकता है. अभिनय करते समय कलाकार सब कुछ भूलकर उसी किरदार में रम जाता है. मैंने शोद करते हुए पाया कि हर लड़के में कुछ न कुछ नगेटिब इमोशस होते हैं, जिन्हे वह अभिनय के दौरान उभारकर उनसे मुक्त भी हो सकता है. सिनेमा में आपने देखा होगा कि परदे पर जो कलाकार बहुत रोने वाले किरदार या बहुत गुस्से वाले किरदार निभाए, उन्होंने अपने निजी जीवन के दर्द या गुस्से को ही बाहर निकाला है. इसके लिए उन्हे पैसे मिले,लोगो ने उनके अभिनय की प्रशंसा भी की. मैंने शोद में पाया कि अभिनय योग सभी को सीखना चाहिए. इससे तनाव से मुक्ति भी मिलती है. बाप बेटे, मां बेटी, भाई बहन सहित कुछ रिश्तों को लेकर मैंने कुछ दृष्य बनाए हैं. मैंने ‘अभिनय योग ’ को लेकर एक बुकलेट बनायी है, जिसमें मोनोलाॅग भी हैं, जिनमें सभी नौ रसों को समाहित किया है... अगर आप इन रसों को षिक्षक के सानिध्य में प्रोजेक्ट करें, तो आपको इन नव रसो का अनुभव ऐसा मिलेगा कि आप कुछ दिनों के लिए किसी भी सायकोलाॅजिकल बीमारी से मुक्त हो सकते हैं. जो कलाकार नही है, वह भी यदि इसका अभ्यास करेंगे,तो उन्हे भी इसका फायदा मिलेगा. लोग तनाव से भी मुक्त हो सकते हैं. यह तनाव ही है कि लोगों को फेसबुक या यूट्यूब या इंस्टाग्राम में व्यस्त होना पड रहा है. लोग अपने आपको, अपने अंदर के विचरों को व्यक्त करने के लिए ही यूट्यूब या इंस्टाग्राम के लिए वीडियो बनाते रहते हैं.और ऐसा करते हुए वह एन्जॉय करते हैं. क्योंकि उन्हे कुछ न कुछ प्रशंसा तो मिलती है.तो इन्ही सारी बातों को ध्यान में रखकर मैने ‘अभिनय योग’ को स्कूल व कालेजों में सिखाना शुरू किया है. हम वर्कशॉप और नाटक भी करते रहते हैं. हाल ही मैने अपनी नाट्य संस्था ‘नट समाज’ के तहत एक ऑनलाइन प्ले “फादर्स’ का निर्देषन किया.यह मैने घर में बैठकर ही किया. सभी कलाकार अपने अपने घर से ही अभिनय कर रहे थे. फिर उस एडिट करके बनाया. लोग चाहें तो मेरे यूट्यूब चैनल पर इस नाटक को देख सकते हैं. स्कूल कॉलेज में आप किस तरह अभिनय सिखाने के लिए जाते हैं? फेसबुक या अन्य माध्यम से जिन स्कूल या कॉलेज के प्रिंसिपल को पता चलता है,वह मुझे बुलाते हैं. अभी मैंने उज्जैन के एक स्कूल के लिए दो वर्कषाप किए आन लाइन. मैं फेसबुक व यूट्यूब पर अभिनय से जुड़े कुछ वीडियो डालता रहता हूँ, जिनसे लोगों तक मेरी बात पहुँचती है और लोग मुझसे संपर्क करते हैं. मैं फेसबुक पर लाइव अभिनय पर लेक्चर भी देता रहता हॅूं. मैं अभिनय सिखाने का काम ‘सेवा भाव’ के साथ ही कर रहा हॅूं. मैं सच कह रहा हॅूं, अभिनय प्रषिक्षण देकर मैं पैसा नहीं कमा रहा. मेरा जितना खर्च होता है, उतना ही निकल पाता है. मैं पैसा तो सीरियल व फिल्मों में अभिनय करके ही कमा रहा हॅू. दस बारह वर्ष का आपका अभिनय प्रषिक्षण देने का अनुभव क्या रहा? सच यह है कि आज की पीढ़ी सीखना नहीं चाहती. जबकि मैं तो गधों को घोड़ा बनाना चाहता हॅूं. इसके अलावा लोग अपने षिक्षक की इज्जत नही करते. ज्यादा लोग विपरीत लिंग/सेक्स में रूचि रखते हैं. जितने भी बड़े एक्टिंग स्कूल हैं, वह इसी चीज को बढ़ावा देते हैं. ऐसे इंस्टीट्यूट में लेक्चर कम दिए जाते हैं, पर उन्हे आपस में डेट करने के मौके ज्यादा दिए जाते हैं. जिनके पास पैसा है, वह अपने बच्चों के लाड़ प्यार में बीस बीस लाख खर्च कर देते हैं, उसके बाद उन्हे वापस बुला लेेते हैं कि अब आकर घर का बिजनेस संभालो... अभिनय के प्रति गंभीर लड़के व लड़कियंा बहुत कम आते हैं. पर छोटे शहरों से, गरीब तबके के बच्चे पूरी गंभीरता, पूरी तैयारी के साथ आते हैं, मन लगाकर सीखते हैं और संघर्ष भी करते हैं.मुंबई में जो तीन माह में अभिनय सिखाने वाले स्कूल चल रहे हैं, वह हकीकत में ‘लूट’के अड्डे हैं. क्या किसी भी लड़के या लड़की को एक या तीन माह का अभिनय के प्रषक्षिण देकर कलाकार बनाया जा सकता है? असंभव मेरे यहां एक माह का वर्कशॉप, उसके बाद दो तीन नुक्कड़ नाटक, फिर तीन माह का वर्कशॉप, उसके बाद मैं उसे अपने नाट्य ग्रुप ‘नट समाज’ का सदस्य बनाकर उसे नाटकों में अभिनय करने का अवसर देता हॅूं. एक वर्ष बाद उसे दो वर्ष की सदस्यता देता हूं, उसके बाद उसे आजीवन सदस्यता देता हॅूं. हम उन्हे अपने नाट्य ग्रुप के नाटकों में अभिनय करने का भी अवसर देते हैं. निरंतर अभ्यास से ही अभिनय सीखा जा सकता है. मैं अपने यहां सिर्फ प्रषिक्षण नहीं देता,बल्कि प्रैक्टिकल अनुभव भी दिलाता हॅूं. सिर्फ थिओरी पढ़ने से कोई अभिनेता नहीं बन सकता. उसके अंदर की झिझक नही मिटेगी. आपके एक्टिंग स्कूल मे से कितने कलाकार तैयार हुए? मैंने अब तक दो तीन हजार को सिखाया है, इनमें से करीबन चालिस पचास कलाकार ऐसे हैं, जो कि इन दिनों टीवी सीरियल या वेब सीरीज में अभिनय कर रहे हैं. तो दो कलाकार तो फिल्म भी कर रहे हैं. कुछ तो यूट्यूब के लिए फिल्में बना व उसमें अभिनय कर पैसा कमा रहे हैं हर कलाकार की अपनी अलग अलग क्रिएटीविटी की क्षमता भी होती है.सोच अलग अलग होती है. आपकी एक्टिंग अकादमी कहां पर चलती है? पहले आठ वर्ष तक मुंबई अंधेरी में चल रही थी. ‘कोविड’ ने बहुत कुछ बदला. तो अब मीरा रोड के सृष्टि कॉम्प्लेक्स स्थित सूर्या शोपिंग कॉम्प्लेक्स में चल रही है. आप अपनी एक्टिंग अकादमी में किस बात पर ज्यादा जोर देते हैं? मैं वाचन पर जोर देता हूँ. मैं हर किसी को सलाह देता हूँ कि वह ज्यादा से ज्यादा किताबे पढ़े. हम उसे नृत्य सिखाते हैं. अभिनय करना सिखाते हैं.उसे अलग अलग अंदाज में बोलना यानी कि संवाद अदायगी करना सिखाता हॅूं. मेरा जोर इस बात पर रहता है कि लेखक की लिखी हुई लाइनों को समझकर वह किस तरह से बोले. उसकी बॉडी ठीक ठाक हो, आवाज अच्छी हो. हिंदी का उच्चारण सही हो. नौ रस में मास्टरी करवाता हॅूं. इसे थिओरी में समझने के अलावा प्रैक्टिकली अपने अभिनय में भी लाना है. यह आसान नही है, मगर प्रैक्टिस से संभव है. दूसरों को देखकर लगता है कि रस आ रहा है,मगर खुद वही करने में कई वर्ष लग जाते हैं. आप दूसरों को अभिनय सिखाते हैं,उसका एक कलाकार के तौर पर आपको कितना फायदा मिलता है? यकीनन काफी फायदा मिलता है. हम दूसरों को सिखाते हुए खुद भी सीखते हैं. सामने वाले को सिखाते हुए जिस गलती को सुधारने की बात उससे कहते हैं, वह अपने आप हमारे अंदर भी होता जाता है. जो दृष्य, जो मोनोलॉग हमने चार वर्ष पहले किया होता है, तो उम्र व अनुभव के साथ हमारा विकास होता है, हमारी बुद्धि विकसित होती है,जिसके चलते उसी दृष्य को हम नए अंदाज में करते हैं. मेरी राय में हर कलाकार को कुछ नया सीखने के लिए दूसरों को अभिनय सिखाना चाहिए. ज्ञानी पुरूष कह गए हैं कि आप वही सिखा सकते हैं, जो आप खुद अच्छी तरह से जानते हैं. अन्यथा ‘नाच न जाने आंगन टेढ़ा’ हो जाता है. जो नए बच्चे अभिनय के क्षेत्र में आना चाहते हैं, उन्हे आप क्या सलाह देना चाहेंगें? सबसे बड़ी सलाह यह है कि पहले तो आप अच्छी तरह से सोच समझकर मन बनाएं कि आपके अपना पूरा जीवन अभिनय जगत को ही देना है या नहीं. फिर शुरूआती तीन माह का एक्टिंग वर्कशॉप करके ब्रेक लेकर पुनः सोचे कि आपको अभिनय को ही कैरियर बनाना है या नहीं. उसके बाद खुद को सही ढंग से तैयार करें. सभी को मेरी सलाह यही है कि वह कभी भी मुगालते में न रहे. झूठा सपना न देखें. आपके माता पिता की गाढ़ी कमाई और अपना कीमती वक्त महज झूठे सपनों में न गंवाएं. मैं जब मोटीवेषनल क्लासेस लेता हॅूं तो हर माता पिता को सलाह देता हूँ कि वह अपने सपने अपने बच्चों पर न थोपें, कि आप तो अभिनेता बन नही पाए,कम से कम उनका बेटा बन जाए.देखिए, कलाकार बनने के लिए अलग सोच चाहिए. उसके अंदर इमोशन हावी होना चाहिए. #special interview Lalit Parimoo #LALIT PARIMOO #interview Lalit Parimoo हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Latest Stories Read the Next Article