Neena Gupta "फिल्म ‘ऊंचाई’ को देखने का आनंद व खास अनुभव सिनेमाघरों में ही मिलेगा."

author-image
By Shanti Swaroop Tripathi
New Update
neena_gupta_mayapuri

1982 में फिल्म ‘‘साथ साथ’’ में एक लल्लू किस्म की लड़की का किरदार निभाकर बाॅलीवुड में कदम रखने वाली अभिनेत्री नीना गुप्ता का कैरियर व निजी जीवन काफी संघर्ष मय रहा है. मगर वह हमेषा विजयी बनकर उभरी. नीना गुप्ता ने कभी ‘‘राजश्री प्रोडक्षन’’ की फिल्मों में अभिनय करना चाहा था. उनकी यह इच्छा भी पूरी हो गयी. उन्हे ‘राजश्री प्रोडक्षन’ की फिल्म ‘‘ऊंचाई’’ में अमिताभ बच्चन,बोमन ईरानी,डैनी, अनुपम खेर,सारिका व परिणीति चोपड़ा के साथ अभिनय करने का अवसर मिला. सूरज बड़जात्या निर्देषित यह फिल्म ग्यारह नवंबर को सिनेमाघरो में रिलीज हुई.
प्रस्तुत है नीना गुप्ता से हुई बातचीत के अंष...
 अपने चालिस वर्ष के कैरियर को किस तरह से देखती हैं?
 ईष्वर ने थोड़ा थोड़ा करके दिया है. लेकिन अंततः दे दिया. मगर मैं सोचती हॅूं कि बजाय कुढ़ने सड़ने के मेरे लिए अच्छी बात यह है कि मुझे जो मिला,उसका षुक्रिया अदा करुं. देरी से मिला, मगर मिला तो सही. 
 ‘‘बधाई हो’’ से आपकी दूसरी पारी की षुरूआत हुई,जो कि काफी अच्छी रही...?
 आप इसे पहली पारी कहें. क्योकि मुझे ‘बधाई हो’ से ब्रेक मिला है.
 ‘बधाई हो’ को पहली पारी की षुरूआत कहना गलत होगा. क्योंकि उससे पहले भी आपने काफी बेहतरीन काम किया है? अपनी झोली में कई पुरस्कार भी डाले हैं?
 मैं आपकी इस बात से सहमत हॅूं कि मैने अपने कैरियर में काफी और बहुत अच्छी फिल्मों व सीरियलों में अभिनय किया है. 
 जब ‘बधाई हो’’ का आफर मिला था तो उम्मीद थी कि कैरियर इस गति से भागेगा?
 जी नहीं... ‘बधाई हो’’ की स्क्रिप्ट कमाल की थी. निर्देषन भी बहुत बढ़िया था. लेकिन इस बात का अहसास नही हुआ था कि इसे इतनी सफलता मिल जाएगी और मेरा कैरियर सरपट दौड़ने लगेगा.
 आपने ‘सांस’,‘पलछिन’ सहित कुछ सीरियल लिखे व निर्देषित किए. पर फिल्म निर्देषित करने की बात आपके दिमाग में नहीं आयी?
 मैंने फिल्म निर्देषित करने के बारे में कई बार सोचा, मगर हिम्मत नही हुई. लोग अभी भी कहते हैं कि मुझे फिल्म निर्देषित करनी चाहिए. पर अब मैं कहती हॅूं कि लंबे अंतराल के बाद अभिनय करने के बहुत अच्छे मौके मिल रहे हैं, इससे दूर नहीं होना चाहती. मगर एक न एक दिन फिल्म निर्देषित करना है. मेरा इरादा महिलाओं की दषा व दिषा पर एक डाक्यूमेंट्ी बनाना है. खासकर उन औरतों पर जिनके पास पैसा नही है.

 जब आपको राजश्री प्रोडक्षन की फिल्म ‘‘ऊंचाई’’ का आफर मिला, तो आपको किस बात ने इस फिल्म को करने के लिए इंस्पायर किया था?
 देखिए, राजश्री ने मुझे इस आफिस में बुलाया. आज हम जहां आपके साथ बैठे हैं, उसके हम बाहर से चक्कर काटा करते थे. पर मुझे अंदर आने को नहीं मिला था. उसी जगह पर सूरज बड़जात्या जी ने मुझे बुलाया और मुझे एक बेहतरीन किरदार निभाने के लिए कहा. उसके बाद तो कुछ कहने को रह ही नही गया था. मैंने तो नतमस्तक होकर हाॅ कह दिया था. उसके बाद मेरे पास सोचने के लिए कुछ बचा ही नहीं था. वह कहानी व किरदार सुना रहे थे और मैं हवा में उड़ रही थी. राजश्री प्रोडक्षन में और सूरज बड़जात्या के निर्देषन में काम करना अपने आप में बहुत बड़ी बात है. फिल्म भी अच्छी, किरदार भी अच्छा. निर्माण कंपनी व निर्देषक भी अच्छा.
 फिल्म ‘‘ऊंचाई’’ के अपने किरदार के बारे में क्या कहना चाहेंगी?
 मैंने षमीना सिद्दिकी का किरदार निभाया है, जो कि जावेद सिद्किी की पत्नी है. जावेद सिद्किी के किरदार में बोमन ईरानी हैं. वह किताबों की दुकान चलाते हैं. हमारी एक बेटी है, जिसकी षादी हो गयी है और वह कानपुर मंे है. फिल्म में हम उससे मिलने कानपुर जाते हैं. षमीना का पूरा जीवन मेरे पति के इर्द गिर्द घूमता है. मुझे लगता है कि औरतें मेरे किरदार के साथ आईडेंटीफाई करेंगी. क्योंकि हमारे देष में निन्यानबे प्रतिषत औरतांे की जिंदगी सिर्फ उनके पति, परिवार व बच्चों के ही इर्द गिर्द तक सीमित है. पति से कहना कि यह मत खाना.तुमको डायबिटीज है, तो पार्टी में षराब मत पीना वगैरह.वगैरह..यही मेरा किरदार है. मगर अंत में सूरज जी ने मेरे किरदार को एक नया रोचक मोड़ दिया है.
 ‘ऊंचाई’ की षूटिंग नेपाल में कई जगह की गयी है. आपको कौन सही जगह पसंद आयी?
 सूरज जी ने बड़ी योजना बनाकर हिमालय पर तेरह हजार फिट की ऊंचाई पर स्थित मनान जगह पर षूटिंग की है. इसकी संुदरता का आनंद थिएटर में फिल्म देखने पर ही मिलेगा.
 इतनी ऊंची पहाड़ी पर चढ़ाई करते समय आक्सीजन की कमी भी झेलनी पड़ती है?
 मैंने इससे पहले भी ट्ैकिंग की है. मैं सबसे पहले निहार वैली गयी थी. वह भी तेरह हजार फिट की उंचाई पर है. यह जगह रोहतांग पाष के आगे जाकर है. इतनी ऊंचाई पर चढ़ाई करने में बहुत तकलीफ होती है. लेकिन अगर योजना सही हो, षराब वगैरह का सेवन न करे. आॅक्सीजन साथ में लेकर चले,तो कम तकलीफ होती है. हम जब निहार वेली जा रहे थे और छह घ्ंाटे से चल रहे थे. उन लोगांे ने हमें खाना खाने नही दिया था. बार बार यही कह रहे थे कि बस आने वाला है. जबकि आ नही रहा था. मेरी तबियत खराब हो गयी. उल्टी भी हुई. मेेरे साथ एक बंदा था. मैं उसके गले लग कर फूट फूट कर रोयी कि मुझे नही जाना है, मुझे वापस ले चलो. इस हिसाब से सूरज जी की योजना काफी अच्छी थी.

 आप खुद भी निर्देषक हैं. कई दिग्गज निर्देषकों के साथ काम कर चुकी हंै. ऐसे में सूरज बड़जात्या के निर्देषन में क्या अलग या खूबी नजर आयी?
 सूरज जी तो देवता स्वरुप हैं. बहुत ही ज्यादा षांत रहने वाले. धीमी आवाज में बात करने वाले इंसान हैं. कभी किसी पर गुस्सा नही करते. सुबह सेट पर पहुॅचते ही हर कलाकार की वैनिटी वैन मंे जाते थे. हर कलाकार को बताएंगे कि हम कहां तक फिल्मा चुके हैं.और आज यह दृष्य फिल्माना है. उसके पहले क्या हुआ है और बाद में क्या होने वाला है,इसकी भी जानकारी देते हैं. हर दृष्य को लेकर पूरी स्पष्टता उनके दिमाग में रहती. उनके निर्देषन में काम करने एक लाइफ टाइम अनुभव रहा.
 हर कलाकार किरदार को निभाने से पहले काफी तैयारी करता है. इसके बावजूद उसके जीवन के अनुभव या कल्पना षक्ति ही काम आती है. आपको इस किरदार को निभाते समय किसकी ज्यादा जरुरत पड़ी?
 मैं कल्पना षक्ति का इस्तेमाल नही करती. मैं काॅंषियसली जीवन के अनुभवों का भी उपयोग नहीं करती. जीवन के अनुभव तो कहीं न कहीं आ ही जाते हैं. देखिए, अभिनय के लिए एकाग्रता बहुत जरुरी होती है. मगर हम लोग जीवन में एक क्षण के लिए भी एकाग्र नही हो पाते. दिमाग कहीं न कहीं घूमता रहता है. मेरे लिए जरुरी है कि षूटिंग वाले दिन से पहले की रात में मैं जल्दी सो जाउं. और पूरी तरह से रिलैक्स रहॅॅूं. सेट पर मैं जिन लाइनों को बोल रही हॅूं, उनमें यकीन हो, यॅूं ही रटकर संवाद बोलना मेरी आदत का हिस्सा नहीं. इसके अलावा मेरे सामने जो कलाकार है, उसको ध्यान से सुनूंू . ऐसा नही कि जब वह बोल रहा हो तो मैं उसके आगे की सोचॅूं.
 सोषल मीडिया को लेकर क्या कहंेगी.आप तो इंस्टाग्राम व फेषबुक पर सक्रिय रहती हैं?
 सोषल मीडिया के अपने फायदे व नुकसान दोनो है. यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसका उपयोग किस तरह से करते हैं. 
 नया क्या कर रही हैं?
 अभी मैने विजय मौर्या की एक फिल्म ‘साबुन’ की षूटिंग पूरी की है. बहुत अच्छी फिल्म है. इसके बाद मैं अनुराग बसु की एक एंथाॅलौजी ‘ब्लैक होल’ कर रही हॅूं. एक फिल्म ‘गोबर’ कर रही हॅूं. 
 काफी कुछ कर लिया. फिर भी कुछ करने की ख्वाहिष बाकी होगी?
 मेरी इच्छा एक रोमांटिक किरदार निभाने की है. मुझे लगता है कि ऐसा किरदार कोई देगा नही, मुझे ख्ुाद ही लिखना पड़ेगा.  

Latest Stories