GADAR-2 Utkarsh Sharma: बॉलीवुड में आपका ज्ञान व प्रतिभा ही मायने रखती है

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By Shanti Swaroop Tripathi
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GADAR-2 Utkarsh Sharma: बॉलीवुड में आपका ज्ञान व प्रतिभा ही मायने रखती है

2001 की सफलतम फिल्म "गदर एक प्रेम कथा" का सिक्वअल "गदर 2" लेकर आ रहे है निर्देशक अनिल शर्मा, जो कि ग्यारह अगस्त को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी.  'गदरः एक प्रेम कथा' यानी कि 'गदर एक' में जीते का किरदार जिस बाल कलाकार उत्कर्ष शर्मा ने निभायी थी, वह अब जीते की ही तरह 22 वर्ष में बड़ा हो गया है. और इसे इत्तिफाक कहे या कुछ और कि 'गदर 28 में जीते का किरदार उत्कर्ष शर्मा ने निभायी है. उत्कर्ष शर्मा की परवरिश कला के माहौल में हुई है. उनकी नानी व नाना वगैरह संगीत ऐसे जुड़े रहे हैं. उनकी माँ शास्त्रीय गायक हैं.  तो वहीं उनके पिता अनिल शर्मा मशहूर फिल्म निर्देशक हैं. पहली बार बाल कलाकार के तौर पर उत्कर्ष शर्मा ने जीते का किरदार यॅूं ही निभाया था.  पर अभिनेता बनने की बात उनके दिमाग में तो फिल्म 'वीर' के सेट पर सलमान खान को अभिनय करते देख आयी.  फिर उन्होने अपने आपको तैयार किया.  उनकी पहली फिल्म 'जीनियस' थी.  अब वह फिल्म "गदर 2" को लेकर अति उत्साहित हैं. 

प्रस्तुत है उत्कर्ष शर्मा से हुई बातचीत के अंष. . 

आपकी परवरिश फिल्मी माहौल में हुई. इसका आपको कितना फायदा मिला?

यह सच है कि मेरी परवरिश फिल्मी माहौल में हुई.  मेरे पिता अनिल शर्मा जी मशहूर फिल्म निर्देशक हैं.  उन्होने 'गदर: एक प्रेम कथा' सहित कई सफल फिल्मों का निर्देशन किया. अब उनके निर्देशन में बनी फिल्म 'गदर 2' ग्यारह अगस्त को प्रदर्शित होने वाली है. फिल्मी परिवार से होने का मुझे सबसे बड़ा फायदा यह मिला कि मुझे फिल्मों के बिहाइंड सीन अर्थात कैमरे के पीछे क्या होता है, उसका ज्ञान मिला. जो गैर फिल्मी परिवार से आते हैं. उन्हे फिल्म मेकिंग और कैमरे के पीछे होने वाले काम को समझने में काफी वक्त लगता है. कई बार तो उन्हे यह जानने में कई वर्ष लग जाते हैं. कई वर्ष तो मुझे भी लगे.  लेकिन मेरी खुशनसीबी यह रही कि मुझे कम उम्र में एक्स्पोजर मिल गया. आप सभी जानते है कि मुझे छह वर्ष की उम्र में,  2001 में प्रदर्शित फिल्म 'गदरः एक प्रेम कथा' में बाल कलाकार के रूप में अभिनय करने का अवसर मिल गया था.  किरदार मिला था हालांकि मेरे पापा नहीं चाहते थे कि मैं फिल्मों से जुड़ूं. वह चाहते थे कि मैं पढ़ाई पर ध्यान दूं. लेकिन 'गदरः एक प्रेम कथा' की शूटिंग के वक्त हालात ऐसे हो गए थे कि जीते का किरदार निभाने के लिए कोई बाल कलाकार नहीं मिल रहा था. शूटिंग चल रही थी. हर कलाकार की तारीखें थीं. जीते भी छह वर्ष का था. तब फिल्म में सकीना का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री अमीषा पटेल के कहने पर मेरे पापा ने मुझे जीते के किरदार को निभाने के लिए चुना था. इस तरह अनजाने में ही मुझे एक बहुत बड़ा एक्सपोजर मिल गया. इससे पहले घर के अंदर फिल्मों, कहानियों, पटकथा, एडिटिंग,  साउंड पर चर्चा होती थी, तो मेरा ध्यान नही रहता था. मगर बाल कलाकार के रूप में अभिनय करने के बाद मेरा ध्यान इन चर्चाओं पर भी होता. जबकि मैं पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहा था. मैने इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी की. फिर पापा के साथ सेट पर जाना व चीजों को नजदीक से देखकर समझने का प्रयास भी करता था. नइतना ही नहीं  हम घर पर ही सप्ताह में कम से कम 4 से 5 फिल्में में देख लेते थे. यह सिलसिला तो आज भी जारी है.  फिर उन फिल्मों पर बहस बाजी व चर्चा चलती रहती. तो उसी माहौल में मैं पला बढ़ा हूं.  जहां तक मेरी निजी समझ की बात है तो मुझे अहसास था कि बॉलीवुड में कुछ भी आसान नहीं है. यहां फिल्मी परिवार का सदस्या होना या आपके सरनेम का कोई फायदा नही मिलता. आपके पिता, भाई या बहन,   कोई कुछ भी हो, इससे फर्क नही पड़ता. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि फिल्में आम जनता के लिए बनती हैं. आम जनता/दर्शक ही फिल्म को सफल या असफल बनाते हैं. यदि दर्शक ने आपको पसंद नही किया,  आपकी फिल्म नही चली, तो आपके कैरियर पर ब्रेक लगना स्वाभाविक है. आप अगर अपने नाम के बलबूते पर इस इंडस्ट्री में सफलता पाना चाहते हैं, तो कुछ नही हो सकता. आप केवल अपनी प्रतिभा के बल पर ही यहां टिक सकते हैं. यहां सिर्फ टैलेंट की ही कद्र होती है. यही वजह है कि यहां पर बहुत कम लोग ही सफल हो पाए हैं. जबकि आप भी  देश की जनसंख्या से वाकिफ है. लोगों में फिल्मों के क्रेज से भी सभी परिचित हैं. हजारों लोग प्रतिदिन आज भी फिल्मों में काम करने के मकसद से मुंबई आते हैं.   

तो आपको भी संघर्ष करना पड़ा?

देखिए, संघर्ष को हर इंसान अपने अपने नजरिए से देखता है. घर से रेलवे स्टेशन पहुँचने को आप संघर्ष भी कह सकते हैं.  या आप घर से रेलवे स्टेशन पहुँचने को मेहनत करने की संज्ञा दे सकते हैं. जहां तक मेरा सवाल है, मैने काफी मेहनत की है.  मैंने बहुत कम उम्र में अपने पापा के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम किया. जबकि मेरे बोर्ड की परीक्षाएं चल रही थीं. ऐसा अक्सर होता था, जब पढ़ाई के बीच में मैं अपने पापा के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम करता था. बाद में मैं फिल्म मेकिंग में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अमरीका चला गया. वहां पर मैंने अभिनय की ट्रेनिंग लेने के साथ ही एक वर्ष तक थिएटर भी किया. बतौर कलाकार वहां की कई शॉर्ट फिल्मों में अभिनय भी किया. मैंने वहां कई शॉर्ट फिल्मों का निर्माण व निर्देशन भी किया, जिन्हें फिल्म सर्किट और फिल्म फेस्टिवल में पसंद भी किया गया. मैं यह सारी मेहनत अपने अंदर के अताम्विश्वास को बढ़ाने के लिए कर रहा था. मैं चाहता था कि आइने में अगर मैं खुद को देखॅूं, तो अपने आप से नजरें मिला सकूं कि यह सब मैंने अपनी मेहनत से कमाया है. मैं उसी जज्बे और मकसद के साथ ही मेहतन करता आ रहा हॅूं. सच कह रहा हॅूं. मैने अपने हिसाब से अपनी नींव मजबूत करने पर बहुत मेहनत की है.  मुझे यह भी पता है कि मेहनत की कोई सीमा नहीं होती है. मुझे अपने कैरियर को अभी बहुत आगे लेकर जाना ह, जिसके लिए मुझे अभी भी कठिन मेहनत करनी ही पड़ेगी. यहां पर इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि आपका नाम क्या है. यहां आपका ज्ञान, आपकी प्रतिभा ही मायने रखती है. जब आपका ज्ञान बढ़ता है, आपकी प्रतिभा में इजाफा होता है, तो आपका चार लोगो से संपर्क बनता है. देखिए, आप अभिनेता हैं, तो फिल्म बनाने के लिए आपके उपर घर से बाहर का इंसान ही पैसा लगाएगा. तो वह भी अपने तरीके से परखेगा कि रिस्क कितना है. अब मेरी पहली फिल्म "जीनियस" पर भी दीपक मुकुट व कमल मुकुट जी की कंपनी ने मेरी प्रतिभा पर भरोसा कर पैसा लगाया था.  फिल्म 'जीनियस' को ओटीटी पर अच्छी सफलता मिली. इसके गाने बहुत ज्यादा हिट हुए हैं. 

आपने अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय कब लिया?

दो तीन मोड़ आए. पहला माक तब आया जब में फिल्म 'वीर' के सेट पर अपने पापा के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम कर रहा था. सलमान सर सेट पर आए , तो वह एकदत अलग नजर आए. मगर कैमरे के सामने पहुँचते ही मैने उनको बदलते देखा. उस दिन गाना फिल्माया जा रहा था, जिसमें गाने के बोल पर सलमान सर को सिर्फ मिमिक करना यानी कि ओंठ चलाने थे. मैं अपने पापा के साथ कैमरे के पीछे थे और हमारी निगाहें मोनिटर पर थी. पर मैने वास्तव मे सलमान सर को देखने के लिए आँखे उठायी तो वह एकदम बदले हुए नजर आए. मेरी आँखे खुली की खुली रह गयी. तब उस दिन उस पल मुझे लगा था कि मुझे अपनी जिंदगी में यही करना है. मैं इंट्रोवर्ट इंसान हॅूं. इसलिए भी मुझे अभिनय पसंद आया कि मैं हर इमरेशंन को व्यक्त कर सकता हॅूं. लोगो से जुड़ सकता हॅू. 

अमरीका से अभिनय की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद आपने 'जीनियस' से ही अभिनय कैरियर की शुरुआत करने का निर्णय क्यों लिया था?

पहली बात तो अमरीका में भारतीयों के प्रति मेरे जो अनुभव थे, वह इस फिल्म के किरदार में मुझे नजर आए. दूसारी बात किरदार काफी रोचक था. यह एक युनिक किरदार था. सांस्कृतिक स्तर पर काफी महत्वपूर्ण फिल्म थी. इस फिल्म का नायक मथुरा वृंदावन का लड़का है. पूजा पाठ करता है. वह आई आई टी में पढ़ने जाता है, जहां लोग उसे एक अलग नजरिए से देखते हैं. आई आई टी के लड़के सोचते हैं कि एक पंडित कैसे इतना ज्ञानी हो सकता है. पंडित का विज्ञान से क्या लेना देना. आर्थोडेक्स सा दिखने वाला लड़का मॉडर्न तो हो ही नहीं सकता.  वास्तव में यह फिल्म यह संदेश देती है कि किसी भी किताब को उसके कवर/मुख प्रष्ट से मत जज करें. इसमें यह लड़का भागवत गीता से तमाम सांस्कृतिक चीजें सिखाता भी है. उसका अपना संघर्ष है. उसकी खिलाफत करने वाला एक विलेन भी है. तो मुझे लगा कि इस तरह की फिल्म का युवा पीढ़ी और मास दर्शक जरुर पसंद करेगा. फिल्म की कहानी तो अच्छी थी. फिल्म भी अच्छी बनी थी. मगर मार्केटिंग व उसके रिलीज में कुछ गलतियां हो गयीं. फिल्म के गाने हिट रहे. पर थिएटर में आपेक्षित सफलता नही मिली. लेकिन ओटीटी पर इसे दर्शकों का काफी प्यार मिला. इन दिनों में 'गदर 2' के प्रमोशन ईवेंट में जाता हॅूं, तो लोग मुझसे फिल्म 'जीनियस' का संवाद सुनाने के लिए कहते हैं. यह देख हमें अच्छा लगता है कि 'जीनियस' हमने जिस युवा पीढ़ी के लिए बनायी थी, उन्हे पसंद आयी. 

फिल्म 'गदर: एक प्रेम कथा' में आपने तारा सिंह व सकीना के छह वर्ष के बेटे जीते का किरदार निभाया था. अब 'गदर 2' में वही जीते बड़ा हो गया है. इसलिए आपने यह फिल्म की अथवा घर की फिल्म है, इसलिए कर ली?

यदि 'गदर 2' एक प्रोजेक्ट बन रहा होता, तो में नही करता और मेरे पापा अनिल शर्मा जी भी न करते. क्योंकि प्राजेक्ट बनाना बहुत आसान है. 'गदरः एक प्रेम कथा" को मिली ऐतिहासिक सफलता के बाद इसका सिक्वअल बनाने में 22 वर्ष लग गए. क्योंकि हमें अच्छी कहानी नही मिल रही थी. अब जब लेखक शक्तिमान ने फिल्म की वन लाइन कहानी सुनायी, तो वह सुनते ही मेरे पापा को लगा कि इस पर फिल्म बनायी जानी चाहिए. फिर वही वन लाइन की कहानी सुनकर जी स्टूडियो के शारिक पटेल ने भी हमें आगे बढ़ने के लिए हामी भर दी. उसके बाद मेरे अपने कुछ दूसरे प्रोजेक्ट थे, उन्हे छोड़कर पूरी तरह से 'गदर 2' से जुड़ा. मेरे पापा ने भी कुछ प्रोजेक्ट छोड़ दिए. सनी सर ने भी वन लाइन कहानी सुनकर फिल्म करने के लिए तैयार हो गए. यह सब लॉक डाउन के वक्त हुआ, जब अनिश्चय वाले हालात थे. किसी को पता नही था कि अब सिनेमा की क्या हालत होगी. सिनेमाघर खुलेंगे या नहीं.  जहां तक मेरा 'गदर 2' से जुड़ने का सवाल है, तो जब तक मुझे अहसास नही होगा कि इस किरदार मे में अपनी तरफ से कुछ योगदान दे पाउंगा, मैं अपने दर्शकों का मनोरंजन कर पाउंगा, तब तक में कोई फिल्म स्वीकार नही करता. 

अब आप अपने जीते के किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

देखिए, 'गदरः एक प्रेम कथा' में जीते को लोग देख चुके हैं. जो कि अपने पिता के साथ हमेशा खड़ा रहता है. अगर कोई उसकी मां को परेशान करे तो वह अपनी मां के लिए खड़ा हो सकता है. अगर पिता,  मां को लेने जा रहे हैं, तो वह लक्ष्मण की तरह अपने पिता के साथ जाएगा ही जाएगा. मतलब वह अपने पिता से इस कदर भावनात्मक तरीके से जुड़ा हुआ है. अब वह युवा हो चुका है. पर आज भी उसके अंदर जिद और बचपना दोनां है. उसके अंदर परिपक्वता भी है. अब वह 22 वर्ष का है, तो वह जवानी में जा रहा है. जब हम जवानी मे जा रहे होते हैं, तो कुछ चीजों में बच्चे रह जाते हैं और कुछ चीजों में ओवर एक्साइटेड भी हो जाते हैं. तो जीते भी उसी के बीच जूझ रहा है. अपनी मां सकीना, जिसे अमीषा पटेल ने निभाया है, के संग भी उसका प्यार रिश्ता है. पिता के साथ एक अलग जुगलबंदी है. 

जीते में देशभक्ति कहां है?

'गदरः एक प्रेम कथा' में बचपन में जीते ने बंटवारे के बाद के हालात देखे ही हैं.  उस फिल्म में जीते के नाना उसकी मां सकीना को ले गए थे. पर उसके पिता तारा सिंह जी सारी रूकावतों को पार कर उसकी मां को ले आए थे. जीते ने पूरा हादसा देखा है, जहां उसकी मां को इमोशनल ट्रोमा से गुजरना पड़ा था. जहां तक देशभक्ति का सवाल है, तो उसने पाकिस्तान में भारत के प्रति नफरत भी देखी है. उसने सब कुछ जमीनी सतह पर महसूस किया है. उसके अंदर देशभक्ति तो आनी ही है. क्योंकि उसके पिता तारा सिंह जी बहुत बड़े हीरो जो हैं. 

आपके लिए किस द्रश्य को निभाना आसान रहा?

आसान तो कोई द्रश्य नही रहता. जब फिल्म में कोई संवाद नही होता है, तब भी उस द्रश्य को निभाना कई बार बहुत कठिन हो जाता है. 

सनी देओल के संग काम करने के क्या अनुभव रहे?

मैं उन्हे भारत का सबसे बड़ा एक्षन हीरो मानता हॅूं. मैं खुद को खुशनसीब मानता हूं कि मुझे उनके साथ काम करने का दूसरा मौका मिला. वह दिल से महान कलाकार हैं. सनी सर अपने सभी सह कलाकारों को मोटीवेट करते रहते हैं. वह चाहते हैं कि पूरा सीन उभरकर आए. उनके साथ मेरा फिनाॅमिल रिश्ता रहा है. एक कलाकार के तौर मुझे उनकी कला के औरा में अपनी कला को दिखाने का अवसर मिला और ग्रो करने का अवसर मिला. 

सिमरत के साथ काम करने के अनुभव कैसे रहे?

बहुत अच्छे अनुभव रहे. वह नई हैं, मगर अति प्रतिभावान कलाकार हैं. 

जब आप अमरीका से ट्रेनिंग लेकर आए थे. उसके बाद आपके पिता से हमारी बात हो रही थी, तब उन्होने कहा था कि उत्कर्ष ने जो कुछ सीखा है, उससे मुझे बहुत कुछ सीखना है?

ऐसा कुछ नहीं है. मैं पापा को क्या सिखा सकता हूं. वह तो खुद गुरु हैं. सच यही है कि मैंने खुद ही उनसे सब कुछ सीखा है. उन्होंने अपनी जिंदगी में इतनी बड़ी बड़ी फिल्में बनाई है. तो उनके पास कोई किताबी ज्ञान नहीं है. उनके पास अपने अनुभव का ज्ञान है. स्क्रीन तो उन लोगों ने बनाया है. फिल्म स्कूल या किताब तो उन लोगों ने बनायी है. पहले फिल्म मेकिंग की इसकी कोई किताब नहीं थी. पहले यह कोई साइंटिफिक विषय नहीं था. जिसकी थिअरी लिखी गयी हो.  जिसे आप जब तक पढ़ेंगे नहीं तब तक कुछ कर नहीं सकते हैं. जिसने भी इस पर किताब लिखी है, वह पहले खुद ही लेखक या निर्देशक या अभिनेता रहा होगा.  उसी आधार पर वह कह रहा है कि कैसे लिखा जाता है. तो लोगों के अनुभवों से सीखा जा सकता है. तो पापा को मैंने कुछ नहीं सिखाया है, बल्कि मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है. मैंने उनसे सीखा है कि कहानी हमेशा दर्शकों को ध्यान में रखकर ही बनानी चाहिए.  कई चीज व कई सीन हमें बहुत अच्छे लगते हैं. पर जरूरी नहीं है कि वह अच्छे सीन फिल्म को भी अच्छी बनाएं. फिल्म की कहानी और इमोशन सही होना चाहिए. मतलब के संवाद या बेमतलब के एक्शन नही होना चाहिए. फिल्म के इमोशन सही होना चाहिए. 

आपके शौक क्या हैं?

फिल्में देखने के अलावा  किताबें पढ़ना पसंद है. फुटबाल खेलना पसंद है. गिटार बजाना पसंद है. संगीत का शौक है. मो. रफी और किशोर कुमार को सुनना अच्छा लगता है. थोड़ा बहुत गाता रहता हॅूं, पर माइक के सामने नहीं गाता. 

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