इंसान सोचता कुछ है और उसकी तकदीर कुछ और ही उससे करवाती है। अपने वक्त के मशहूर विलेन रंजीत के बेटे जीवा जब बचपन में अपने पिता को फिल्मों में पिटता हुआ देखते थे, तो उन्हे गुस्सा आता था और उन्हे बाॅलीवुड से नफरत हो गयी थी। वह तो स्पोर्टंस में व्यस्त थे। पर तकदीर ने उन्हे अभिनेता बना दिया। वह 16 दिसंबर को प्रदर्षित होने वाली धर्मा प्रोडक्षन की शषंाक खेतान निर्देषित फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ में विक्की कौशल व किआरा अडवाणी के साथ अहम किरदार निभाते हुए नजर आने वाले हैं।
जीवा से उनके घर पर हुई मुलाकात व बातचीत इस प्रकर रही...
आपकी परवरिश फिल्मी माहौल में हुई। इसी वजह से आपने भी अभिनय को ही कैरियर बनाने का निर्णय लिया?
सच यह है कि मुझे बचपन मंे फिल्म इंडस्ट्ी से नफरत थी। मैं बचपन से देखता आ रहा था कि मेेरे पिता जी फिल्मों में मार खा रहे हैं। मैने फिल्में देखनी बंद कर दी थी। उसके बाद 15-16 साल की उम्र से मैने पुनः फिल्में देखनी षुरू की। तब मुझे ‘ओंकारा’, ‘मकबूल’ ,‘वास्तव’,‘काई पो चे’ जैसी फिल्में काफी पसंद आयीं। ‘कई पो चे’ की कहानी तो मुझे काफी पसंद आयी और इस फिल्म को देखकर मेरे अंदर फिल्म इंडस्ट्ी से जुड़ने की बात आयी।
जब आप स्कूल में थे, उन दिनों तो आपके पिता रंजीत स्टार कलाकार थे। विलेन के रूप में उनका अपना एक अलग रूतबा था। उन दिनों आपके स्कूल के दोस्त आपके साथ किस तरह से पेश आते थे?
उन दिनों लोग फिल्मों में विलेन का किरदार निभाने वाले कलाकार को निजी जिंदगी में भी वैसा ही समझते थे। उन दिनों लोग फिल्मी परदे की जिंदगी व निजी जिंदगी को अलग करके नही देखते थे। इसके अलावा मेरे स्कूल के दोस्त तब तक नहीं जानते थे कि अभिनेता रंजीत कौन हैं? क्योंकि हम सभी दोस्त फिल्में नहीं देखते थे ,बल्कि हम सभी दोस्त स्पोर्टस में रूचि रखते थे। हम लोग स्पोर्ट्स खेलते भी थे। लेकिन दो तीन बार जब मैं अपने दोस्त के माता पिता से मिला, तो अजीब से अनुभव हुए। मुझे आज भी याद है। मैं अपने एक दोस्त के घर गया था। उसके पिता जी ने मुझसे पूछा कि मेरे पिता क्या करते हंै? मैने कहा कि मेरे पिता अभिनेता हैं। तो वह बहुत ख्ुाश हुए। उन्होेने कहा कि यह तो बहुत अच्छी बात है। फिर उन्होने मेरे पिता जी का नाम पूछा। जब मैने अपने पिता का नाम रंजीत बताया, तो उन्हे बिजली का झटका जैसा लगा..उन्होने कहा, ‘रंजीत...’। फिर अपने बेटे से कहा -‘इससे दूर रहा करो। दोबारा इससे मिलना मत...’। मगर मेरे जो बहुत करीबी और मेरे साथ स्पोर्टस खेलने वाले दोस्त थे, उनके साथ फिल्मों की कोई चर्चा ही नही होती थी। हम आम दोस्तों की ही तरह समय बिताते थे।
अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय लेने के बाद आपने किस तरह से तैयारियां करनी शुरू की?
मेरी सोच यह रही है कि आइने मंे ख्ुाद को देखकर तय करो कि क्या गलत है? जब मैने अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय लिया,तब मुझे खुद ही परखना था कि क्या मैं कर पाउंगा? इसलिए अपने माता पिता को बताए बिना मैने लगभग दस वर्ष पहले आॅडीशन देना षुरू किया था। मैं चाहता था कि मैं अंदर से ष्योर हो जाउं कि मैं कर पाउंगा या नहीं... मैं जो कदम उठाने जा रहा था, जिस दिषा में आगे बढ़ना चाहता था, उसके बारे में जानकारी भी लेना चाहता था। वर्किंग मैथड को समझना था। देखिए, संघर्ष का अपना अलग मजा होता है। आॅडीशन देते हुए मैंने काफी रिजेक्षन सहे। आॅडीशन के वक्त किसी को पता नहीं चल रहा था कि मैं कौन हॅूं। आॅडीशन करते हुए मैं सीख रहा था कि मैं क्या गलत कर रहा हॅंू और उसे किस तरह से सुधारना है। फिर मुझे एक्टिंग वर्कषाॅप करने का भी मौका मिला। वर्कषाॅप की वजह से मैने कुछ लघु फिल्मों में भी अभिनय कर लिया। मैने इंटरनेशनल स्टूडियो की एक फिल्म के लिए आॅडीशन दिया था, वह कुछ वजहो ंसे आगे नहीं बढ़ी। मगर उसी स्टूडियो के लिए मैने ख्ुाद एक लघु फिल्म का निर्माण कर डाला। इस तरह फिल्म निर्माण का अनुभव हासिल हुआ। तो मैने कैमरे के पीछे जमीनी काम करने में काफी समय बिताया और बहुत कुछ सीखा।इसके अलावा मैने अपने पिता जी को अक्सर देखा करता था कि वह अपने किरदार के लिए किस तरह से तैयारी करते हैं। तो जाने अनजाने वह सब मैं सीख ही रहा था। आॅडीशन देते हुए मेरे अंदर का आत्मविष्वास जागा। आज कल तो सोयाल मीडिया पर सभी लोकप्रिय कास्टिंग डायरेक्टरों के बारे में पता चलता रहता है कि वह किस तरह के किरदार के लिए कलाकार ढूंढ रहे हैं, कहंा आॅडीशन हो रहा है। तो मैं भी आॅडीशन देने पहुॅच जाता था।
आपने किस लघु फिल्म का निर्माण व उसमें अभिनय किया?
सबसे पहले एक्टिंग स्कूल की ही तरफ से बनायी गयी क्राइम ड्ामा जाॅनर की लघु फिल्म में मैने अभिनय किया था। मजेदार बात यह रही कि मैने इस फिल्म में विलेन का ही किरदार निभाया था। यह स्टूडेंट फिल्म थी, जिसमें मुझे सीखने को बहुत मिला। इस फिल्म को करके मैने सीखा कि मैं यहां पर गलत हॅंू, मुझमें यह सुधार करना पड़ेगा।
बतौर अभिनेता पहली फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’कैसे मिली?
इस फिल्म के लिए मुकेश छाबड़ा जी कास्टिंग कर रहे थे। मुझे पता चला और मैने आॅडीशन दिया। इस फिल्म मंे मैने जो किरदार निभाया है, उसके लिए मुझे एक नहीं बल्कि चार बार आॅडीशन देना पड़ा। फिर मुझे निर्देशकष्षषांक खेतान से मिलने का मौका मिला। और अंततः मेरा चयन हो गया।
फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ करने की वजह यह रही कि आपको सिनेमा से जुड़ने का अवसर मिल रहा था?
देखिए, यह मेरी अपनी यात्रा है. अभी तक किसी को पता नहीं था कि मैं रंजीत जी का बेटा हॅूं। मैं अपने तरीके से आगे बढ़ना चाह रहा था। ऐसे में मेरी पसंद पर सब कुछ संभव नही था। इसलिए मैं हर आॅडीशन देने चला जाता था। वास्तव में मैंने खुद फिल्म बनाने के लिए दो तीन कहानियंा लिखी हैं। तो मैं शषंाक खेतान से अपनी कहानियों को लेकर ही मिला थ। .पर उन्होने कहा कि इन कहानियों पर बाद में बात की जाएगी, पहले यह फिल्म कर लो.उनके कहने पर मैने फिर से आॅडीशन दिया था। षायद यह लक ही था कि सब कुछ सही समय पर हो रहा था। स्क्रिप्ट भी मजेदार थी। स्क्रिप्ट पढ़ते हुए मुझे हंसी आ रही थी। फिरष्षषंाक खेतान के निर्देशन में काम करना था,तो मना नही कर पाया। मेरी समझ से कोई पागल ही इस फिल्म के करने से मना करता।
फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ मंे आपका अपना किरदार क्या है?
मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि मैंने अपनी जिंदगी मंे नहीं सोचा था कि इस तरह के बेहतरीन किरदार के साथ मेरे कैरियर की षुरूआत होगी। मुझे तो यकीन भी नहीं था कि मैं इस किरदार को निभा पाउंगा। पर निर्देशक शषांक खेतान ने मुझ पर विष्वास किया और मुझसे काम करवा लिया। सोलह दिसंबर को जब आप फिल्म देखेंगंे, तो आपकी समझ में आएगा कि मेरा किरदार क्या है। अभी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा।
इस किरदार को निभाने से पहले किस तरह की तैयारी की?
मेरे किरदार व फिल्म को लेकर शषंाक खेतान के वीजन को समझने के लिए हमने उन्ही के साथ वर्कषाॅप किया.स्क्रिप्ट रीडिंग की।
आपने फिल्म निर्माण वगैरह के बारे में कैमरे के पीछे रहकर जो कुछ सीखा था, वह अभिनय में कितना मदद दे रहा था?
बहुत ज्यादा मदद मिली। उसी वजह से मेरे अंदर निर्माता व निर्देशक की जिम्मेदारियों का अहसास होने के साथ ही कैमरा एंगल आदि की समझ पैदा हुई थी। इसी वजह से मैं अपनी तरफ से सौ प्रतिशत देने में सफल रहा।
विक्की कौशल, कियारा आडवाणी और भूमि पेडणेकर के साथ काम करने के क्या अनुभव रहे?
मेरे ज्यादातर सीन कियारा आडवाणी और विक्की कौशल के साथ ही हैं। इसके अलावा सयाजी षिंदे और अमय वाघ के साथ भी सीन हैं। इनके साथ काम करने के अनुभव बहुत अच्छे रहे। मैं तो एकदम नया हूूं। पर यह सभी कलाकार अपना एक अलग मुकाम बना चुके हैं। इस वजह से मुझे इनके साथ काम करके बहुत कुछ सीखने को मिला। इसका फायदा मुझे अगली फिल्म में होगा।
टाइगर श्राॅफ व रेंजिंग तो आपसे पहले अभिनेता बन गए थे। अब जब आप भी अभिनेता बन गए तो उनकी तरफ से कोई रिस्पांस?
जी हाॅ! दोनांे को काफी गुस्सा आया कि मैने उन्हे कभी कुछ बताया क्यों नहीं...उन्हें दूसरे लोगों से पता चला तो वह चिढ़ गए और मुझे फोन पर गुस्सा किया कि मैनंे उन्हे बताया क्यों नहीं। वैसे हम तीनो की बचपन से आदत रही है कि जब कोई काम हो जाता है, तब हम उसके बारे में बताते हैं, उससे पहले चुप रहते हैं।
फिल्म का ट्रेलर देखने के बाद आपके मम्मी पापा ने क्या कहा?
ट्ेलर में तो मेरी बहुत छोटी सी झलक ही नजर आती है। जब हम टीवी पर ट्ेलर देखने बैठे, तो मेरे पापा मेरे बगल मंे बैठे हुए थे। जैसे ही मैं ट्ेलर में नजर आया, मेरे पापा ने अपनी कुहनी मुझे मारी। तब मुझे अहसास हुआ कि 81 साल की उम्र में भी उनमें कितनी ताकत है। पहली बार मेरे मम्मी पापा ने मुझे स्क्रीन पर देखा था। मैने अपनी लघु फिल्म किसी को दिखायी नहीं थी। उसके बारे में ेबात भी नही की थी। क्योंकि मैं ख्ुाद लघु फिल्म से खुश नहीं था। खैर, ट्रेलर देखने के बाद बधाई देने के अलावा कुछ नही कहा। कुछ समय बाद मेरे पापा मेरे कमरे में आए,और फिल्म व मेेरे कैरियर को लेकर लंबी चैड़ी बातें की।