सच्ची घटना पर आधारित कोई भी फिल्म बिना फिल्मी लिबर्टी के नहीं बन सकती- अजय देवगन

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By Mayapuri Desk
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सच्ची घटना पर आधारित कोई भी फिल्म बिना फिल्मी लिबर्टी के नहीं बन सकती- अजय देवगन

वैसे तो अजय देवगन अभी तक हर तरह के किरदार निभा चुके हैं, लेकिन पुलिस ऑफिसर या अन्य सरकारी अॅफिसर की भूमिकाओं में उनसे ज्यादा रीयल शायद ही और कोई अभिनेता लगता हो। इस बार वे एक रीयल इंसीडेंट पर आधारित फिल्म ‘रेड’ में एक जुनूनी और ईमानदार इंकम टैक्स ऑफिसर के तौर पर दिखाई देने वाले हैं। हाल ही में फिल्म को लेकर उनसे हुई एक बातचीत।

अभी तक अजय, सीबीआई ऑफिसर, या पुलिस ऑफिसर के तौर पर फिल्मों में दिखाई देते रहे हैं। इसी श्रंखला में वे अब इंकम टैक्स ऑफिसर के रोल में दिखाई देने जा रहे हैं। क्या इससे पहले किसी ने ये रोल निभाया है ?

मुझे तो याद नहीं कि किसी ने ये रोल निभाया हो लेकिन जहां तक मेरी बात है तो भूमिका मुझे काफी दिलचस्प लगी। कुछ बातें पिछली भूमिकाओं से मिलती जुलती हो सकती हैं लेकिन इसका एटिट्यूड बिलकुल अलग है। जैसे पुलिस वाले का तरीका बहुत ही फिजिकल होता है जबकि इंकम टैक्स ऑफिसर के एटिट्यूड की बात की जाये तो दोनों की अप्रोच सेम हो सकती हैं लेकिन काम करने तरीका अलग होता है।publive-image

आजकल तो इंकम टैक्स वालों के खिलाफ अभियान का सीजन सा चल रहा है ?

इस तरह का सीजन तो सालों साल चलता रहता है। दरअसल पहले मीडिया इतना बड़ा नहीं था इसलिये बहुत सारी बातें लोगों तक नहीं पंहुच पाती थी लेकिन आज ऐसा नहीं है, आज तो छोटी से छोटी खबर भी बाहर आ जाती है।

क्या फिल्म कोई सोशल मैसेज भी देने जा रही है ?

ये तो मुझे नहीं पता कि फिल्म क्या सोशल मैसेज देगी क्योंकि मैं कोई भी फिल्म ये सोच कर नही करता कि वो क्या संदेश देने वाली है। मेरी हर फिल्म के तहत एक अच्छी बात कहने की कोशिश रहती है। इसके अलावा वो लोगों का मनोरंजन भी करे। हां ये जरूर है कि फिल्म ये जरूर बतायेगी कि आपको इंकम टैक्स देना चाहिये या नहीं देना चाहिये तथा देश के लिये आपकी ऑनेस्टी क्या होती है।publive-image

आप इस बारे में खुद क्या राय रखते हैं ?

इसमें मेरी भी राय यही हैं कि हर नागरिक को इंर्मानदारी से टैक्स भरना चाहिये, वरना देश कैसे चलेगा।

आज फिल्मों से म्यूजिक लगभग दूर होता जा रहा है ?

एक वक्त था, जब फिल्मों में गानों का कहानी से कोई लेना देना नहीं होता था, हर फिल्म में सात आठ होते ही थे परन्तु आज ऐसा नहीं है, आज ऑडियेंस और मेकर दोनों का नजरिया बदल गया है। आज किसी फिल्म में गाने जरूरी हों और कितने हों, तो ही डाले जाते हैं।

फिल्म की टैग लाइन का आइडिया बहुत अच्छा है। ये किसका था ?

ये आइडिया मेरा ही था। देखिये ये कतई जरूरी नहीं कि सारे हीरो यूनिफॉर्म पहन कर काम करें। कितने ही आम आदमी विदाउट यूनिफार्म कितने अच्छे काम करते हैं। आप जब उनके बारे में पढ़ते हो तो पता चलता है।publive-image

फिल्म की कहानी किसी रीयल घटना पर बेस है। क्या उस रीयल किरदार को लेकर कुछ रिसर्च करनी पड़ी ?

नहीं ऐसा तो मैने कुछ नहीं किया। लेकिन जिस पर ये कहानी बेस्ड है, मैं उनसे मिला और उनसे पूरा किस्सा सुना था। बाद में मैनें नोट किया कि उनकी लाइफ का अप्रोच क्या है। बस उसके बाद तो उसे अपने मुताबिक फॉलो करते हुये ढालना होता है।

चूंकि ये फिल्म एक रीयल इंसीडेंट पर बेस है। इसमें फिल्मी लिबर्टी कितनी ली गई है ?

सच्ची घटनाओं पर आधारित कोई भी फिल्म बिना सिनेमाटो लिबर्टी लिये बिना कंपलीट नहीं हो सकती। किसी ऐसी फिल्म में दिया गया बैकग्राउंड म्यूजिक भी फिल्मी लिबर्टी ही होता है क्योंकि किसी भी रीयल घटना के पीछे असल में कोई बैकग्राउंड म्यूजिक नही बजता। लिहाजा कहानी को दिलचस्प बनाने के लिये इस तरह लिबर्टी लेनी ही पड़ती है।

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