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अरशद वारसी इस बात को लेकर हताश हैं कि कॉमेडी करने वाले आर्टिस्ट को आज भी गंभीरता से नहीं लिया जाता। जबकि कॉमेडी ऐक्टिंग सबसे कठिन प्रक्रिया मानी जाती है। इसके अलावा टीवी और फिल्मों में आज भी कॉमेडी हिट है, बावजूद इसके न जाने क्यों हास्य अदाकारों को सीरियस नहीं लिया जाता। अरशद दिवाली पर रिलीज होने वाली फिल्म ‘गोलमाल रिर्टन’ में कॉमेडियन के तौर पर धमाल करने वाले हैं। इस फिल्म और दिवाली को लेकर उनसे श्याम शर्मा की एक मुलाकात।
अरशद आपका दिवाली को लेकर क्या कहना है ?
यही कि जिस प्रकार ईद, क्रिसमम, होली दशहरा आदि बड़े त्यौहार हमारे देश की पहचान हैं, दीवाली भी इन्हीं में शुमार एक पवित्र त्यौहार है जिसे खासकर मैं अपने दोस्तों के साथ सेलीब्रेट करता हूं। आपको तो पता ही है कि मेरी पत्नि इसाई है। लेकिन वो सारे फेस्टिवल्स की रेस्पेक्ट करती है। लिहाजा जिस प्रकार हम अपने यार दोस्तों और परिवार के साथ ईद मनाते हैं उसी प्रकार दिवाली भी सेलीब्रेट करते हैं।
दीवाली पर आपकी तरफ से खास क्या होता है ?
मुझे कुछ नहीं करना पड़ता, जो भी करते हैं मेरे दोस्त करते हैं। हम उनके आमंत्रण पर उनके घर जाते हैं। वहां एक दूसरे को दिपावली की शुभकामनायें दी जाती हैं उसके बाद हंसीं मजाक और ठहाकों के बीच खाना पीना होता है।/mayapuri/media/post_attachments/925d922e05e7eb4b0cfa0e95fda623dc4c3a7732f6359da54459a5065d1b9253.jpg)
इस वर्ष दिल्ली जैसे महानगर में दिवाली पर पटाखों पर लगी रोक को लेकर आपका क्या कहना है?
ये कदम प्रदूषण के खतरे को देखते हुये सकारात्मक कदम है। मेरा तो कहना है कि दिवाली ही नहीं बल्कि हर उस त्यौहार पर ये रोक लगनी चाहिये जिनकी वजह से प्रदूषण के फैलने का खतरा हो। वैसे भी मैने महसूस किया है कि अब लोग बाग खुद भी इन चीजों से बचने लगे हैं।
पिछली बार आपने कामेडी को लेकर कहा था कि इसे आज भी सीरियस नहीं लिया जाता ?
यार बड़े ढीट हो फिर आ गये वही सवाल लेकर। अरशद अपनी आदत के अनुसार मजाक करते हुये कहते हैं। यहां मैं उन पर भारी पड़ता हूं कि आपसे बड़ा ढीट नहीं, जो एक ही फिल्म के एक दो तीन नहीं, बल्कि उसके बाद भी कॉमेडी करने से बाज नहीं आ रहे। (इस पर एक सभी का एक सामुहिक ठहाका) फिर वे सवाल पर आते हुये कहते हैं कि ये सिर्फ हमारे ही देश में हैं वरना हॉलीवुड में जाकर देखिये कॉमेडी करने वाले कलाकारों को कितना सम्मान मिलता है। चार्ली चैपलिन से बड़ी और कोई मिसाल नहीं हो सकती। यहां की बात करें तो पुराने वक्त के कॉमेडियसं की भी बहुत इज्ज्त थी जैसे किशोर कुमार, महमूद, जगदीप या जॉनी वॉकर। इनमें से कई कॉमेडियसं तो हीरो से ज्यादा फीस लेते थे। वो सब कहीं बह गया। आज क्या है कि आज सारे हीरो कॉमेडी कर रहे हैं। फिर भी हम हास्य को हल्का ले लेते हैं जबकि मेरा मानना हैं कि सीरियस एक्टिंग करना बहुत आसान है जबकि कॉमेडी करना बहुत मुश्किल।
एक ही फिल्म का पार्ट वन, टू ,थ्री और अब फोर। कितना प्रैशर और कितना चेलेंज महसूस करते हैं ?
दोनो ही हैं। प्रैशर है और चेलेंज भी। क्योंकि पहले तो डायरेक्टर के लिये चेलेंज हैं कि उसे पहले से अच्छा दूसरा पार्ट बनाना ही पड़ेगा, उसके बाद आर्टिस्टों को पहले रोल में होते हुये कुछ नया बताना पड़ता है। अब जैसे पहला पार्ट चल गया तो देखना होगा कि दर्शक को उसमें क्या पंसद आया। फिर उसके दूसरे पार्ट में उससे भी अच्छा करने का प्रैशर। इसी प्रकार तीसरा और चौथे पार्ट पर भी वैसी मेहनत करनी होगी। शायद इसीलिये इसके चौथे पार्ट को बनने में कई साल लग गये।/mayapuri/media/post_attachments/6219d7b5a19107a25c7718af42957f076343971b078f965067a1cdba327ee75c.jpg)
अगर हम मुन्ना भाई एम एम बी एस की बात करें तो उससे कहीं ज्यादा कॉमेडी इस फिल्म में है ?
सबसे बड़ी बात ये कि मैने मुन्ना भाई को कभी कॉमेडी फिल्म नहीं माना, क्योंकि उस फिल्म में कॉमेडी किरदार नहीं कर रहे बल्कि सिचवेशन दर्शक को हंसाती हैं। वहां बहुत रेलीवेंट और इमोशनल बातें हो रही है। कॉमेडी कही जाये तो गोलमाल है धमाल है या नो एन्ट्री आदि फिल्में हैं।
गोलमाल जैसी फिल्में कई बार भटक जाती हैं या लाउड हो जाती हैं। लिहाजा कई बार उनका एक जैसी होने का खतरा बना रहता है। इससे आप कैसे बचते हैं ?
देखिये यहां डायरेक्टर को क्रेडिट को जाता है क्योंकि हर डायरेक्टर की अपनी एक अलग सोच होती है। यहां रोहित शेट्टी को जो सोच है वो अन्य डायरेक्टरों से परे है। जनरली अगर आप देखें तो कई कॉमेडी फिल्में आपको एक जैसी लगती हैं लेकिन रोहित की गोलमाल आपको बिलकुल अलग लगेगी। जिस प्रकार संजय लीला भंसाली की फिल्मों में कुछ तो अलग होता है उसी प्रकार रोहित की फिल्मों में कुछ तो अलग होता है।
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