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‘‘फिल्म असफल हो जाए, तो दो कदम पीछे जाना ही पड़ता हैं- अथिया शेट्टी

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By Shanti Swaroop Tripathi
‘‘फिल्म असफल हो जाए, तो दो कदम पीछे जाना ही पड़ता हैं- अथिया शेट्टी
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मासूम मगर समझदार अथिया शेट्टी यूं , तो बचपन से ही फिल्मों से जुड़ना चाहती थी, पर उन्होंने इस बात को कभी भी अपने पिता व अभिनेता सुनील शेट्टी या किसी अन्य के सामने जाहिर नहीं किया, पर जब वह अमरीका पढ़ाई करने जा रही थी, तब उनके दिमाग मेंं आया, कि उन्हें अमरीका में फिल्म विधा में ही उच्च शिक्षा हासिल करनी चाहिए.अमरीका के ‘‘न्यूयॉर्क फिल्म ’एकादमी’’में एक साल की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अभिनेत्री बनने का निर्ण्ाय लिया और मुंबई वापस आ गयी, मुंबई में उन्होंने खुद को अभिनेत्री बनने के लिए तैयार करना शुरू किया.इसी तैयारी के दौरान उन्हें सलमान खान की तरफ से उनके प्रोड्क्शन हाउस की फिल्म ‘‘हीरो’’में सूरज पंचोली के साथ हीरोईन बनने का अवसर मिल गया, इस फिल्म ने बॉक्स आफिस पर कमाल नहीं दिखाया, उसके बाद वह ‘मुबारका’ में नजर आयी, इन दिनों अथिया शेट्टी फिल्म ‘‘मोतीचूर चकनाचूर’’को लेकर चर्चा में है.भोपाल में फिल्मायी गयी, इस फिल्म में अथिया शेट्टी के साथ नवाजुद्दीन सिद्दिकी की जोड़ी है.

करियर की पहली फिल्म ‘‘हीरो’’ को बाक्स आफिस पर ठीक ठाक सफलता न मिलने का आपके करियर पर असर हुआ ?

-जी हॉ ! अगर आपके करियर की पहली फिल्म हिट ना हो, तो एक कदम पीछे हो ही जाता है.पर कोई जरूरी नहीं है, कि यह खराब हो. बल्कि इससे आपको सोचने का वक्त मिलता है, विश्लेषण करने का वक्त मिलता है कि अब क्या करें? अब किस तरह से पेश आए? ‘हीरो’के एक डेढ़ वर्ष बाद जब मुझे अनीस बज्मी की फिल्म ‘‘मुबारका’’ मिली,तो मैंने स्वीकार की.क्योंकि अनीस बज्मी के साथ काम करना चाहती थी.फिर इसमें अर्जुन कपूर व इलियाना भी थी.इस फिल्म से मुझे अच्छा एक्सपोजर मिला,पहचान मिली.इस फिल्म के ही चलते अभी भी लोग मुझे रिंकल रिंकल बुलाते हैं.मुझें लगता है कि वह एक अलग अनुभव था.

‘‘फिल्म असफल हो जाए, तो दो कदम पीछे जाना ही पड़ता हैं- अथिया शेट्टी

फिल्म ‘‘हीरो’’ के बाद जब आपने विश्लेषण किया,तो कहां आपको अपनी कमी नजर आयी ? कहां आपको लगा कि यह सुधार करना चाहिए ?

मुझे लगता है सबसे जरूरी बात यह है कि अगर आप यहां हो,तो आपको खुद को साबित/प्रुव करना पड़ेगा. मुझे भी प्रुव करना पड़ा, अभी भी पूरी तरह से प्रुव तो नहीं कर पाई हूं, लेकिन मेहनत कर रही हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि सबसे जरूरी बात मेहनत की होती है.शुक्रवार को पता नहीं क्या होगा?पर मुझे लगता है कि गुरूवार को ही आपको फिल्म को ‘लेट गो’ करना चाहिए कि चलो मैंने अपनी तरफ से  मेहनत की है.मैंने इस फिल्म व इसके किरदार को अपना सब कुछ दिया है, अब सब कुछ दर्शक पर है.

‘हीरो’के बाद आपको जिस तरह से मेहनत करनी पड़ी,जिस तरह से काम करना पड़ा,उससे यह बात तो साबित हो जाती है कि नेपोटिज्म के आधार पर काम नहीं मिलता?

बिल्कुल नहीं मिलता है.यदि ऐसा होता तो मेरे पास फिल्मों की लाइन लग जाती.मुझे लगता है कि पहचान जरूर मिलती है.एक प्लेटफार्म मिलता है.उस प्लेटफार्म के साथ आप क्या करोगे,यह तो आपकी अपनी प्रतिभा व मेहनत पर निर्भर करता है.सिर्फ दरवाजा खुलने से कुछ नही होता. दरवाजा खुला,लेकिन कदम तो आपको ही रखना पड़ेगा.मुझे लगता है कि यह सीखने की चीज है.लोग तो बहुत बोलेंगे कि अरे इसके लिए यह सब आसान है.यह तो सुनील शेट्टी की बेटी है.मान लिया कि सुनील शेट्टी की बेटी के नाम पर फिल्म मिल भी गयी,लेकिन पर्दे पर तो मुझे ही मेहनत करनी पड़ेगी. वहां मेरे माथे पर थोड़े ही लिखा होगा कि यह सुनील शट्टी की बेटी है.मेरे पापा ने भी कठिन मेहनत करके नाम कमाया. मुझे भी वही करना है.

जब आपको फिल्म‘‘मोतीचूर चकनाचूर’’का ऑफर मिला,तो..?

मैंने दो बार इसे करने से मना कर दिया था.

‘‘फिल्म असफल हो जाए, तो दो कदम पीछे जाना ही पड़ता हैं- अथिया शेट्टी

मना करने की वजह क्या थी ?

क्योंकि मुझे विश्वास नहीं था कि मैं इस किरदार को निभा पाउंगी.

द तो फिर हामी कैसे भर दी?

क्योंकि मेरा दिमाग बार बार कह रहा था कि मुझे इस चुनौती को स्वीकार करना चाहिए.मुझे प्रुव अपने आप से ही करना था कि मैं कर सकती हूं. फिर मुझे कुछ अलग करना था. मुझे कुछ भारी एक्टिंग करनी थी. क्योंकि वही मेरा शौक है.वह मुझे चैलेंजिंग लगा.मैंने सोचा कि बुंदेलखंडी भाषा बोलनी है,तो मैं क्यों नहीं बोल सकती? क्या हुआ छोटे शहर की लड़की है?मैं भी कर सकती हूं?तो मैंने दोनो हाथों से ‘मोतीचूर चकनाचूर’ लपक ली.अंग्रेजी में कहते हैं-‘‘यू हैव ए अपॉर्चुनिटी ग्रैबइट विथ योर बोथ हैंड्स.’’मेरे लिए यह वैसा ही मौका था. इस फिल्म के लिए मुझे भाषा के लहजे पर काम करना पड़ा.इसमें मैं बुंदेलखंडी बोल रही हूं.कलाकार के तौर पर इस फिल्म को करने में मुझे बहुत मजा आया,जबकि बहुत मुश्किल भी रहा.इसमें मुझे ज्यादा मेकअप करने की जरुरत नहीं पड़ी. मैने एक सिंपल लड़की का किरदार निभाया. वर्कशॉप करते हुए और डिक्शन क्लासेस यानी कि बुंदेलखंडी भाषा सीखने मे मजा आया.जब तैयारी हो गयी,तो आधा काम हो गया.

जब आप हर कैरेक्टर के लिए कुछ सीखते हैं,तो कहीं ना कहीं आप भी ग्रो होते हैं ?

बिल्कुल...मुझे लगता है कि हर किरदार से मैंने कुछ ना कुछ सीखा है.पारिवारिक जीवन मूल्य,सामाजिक जीवन मूल्य,मोरालिटी वगैरह हमें समझ में आती है.जब आप अपने किरदार को लेकर मेहनत करते हैं, तो आप पूरी तरह से बदल जाते हैं.मुझे लगता है कि इस प्रोसेस ने मुझे ग्रो करने में काफी मदद की है.मेरे अंदर आत्मनिर्भरता व आत्मविश्वास बढ़ा है.मुझे पता है कि अभी क्या करना है,क्या नहीं करना है.मुझे अपने आपको चैलेंज करना है.मुझे सीधा रास्ता नहीं लेना है,चाहे जितनी मुश्किल हो.

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फिल्म ‘‘मोतीचूर चकनाचूर’’ में अपने करेक्टर को लेकर क्या कहेंगी ?

इस फिल्म में मेरा करैक्टर बहुत ही नटखट, चुलबुली, थोड़ी पागल,पापा की लाडली लड़की एनी का है.यह बहुत ही एंबीशियस लड़की है.उसकी बचपन से एक ही ख्वाहिश है कि मुझे शादी करके विदेश जाना है अन्यथा शादी नहीं करनी है.इसी के चलते वह बहुत सारे रिश्ते ठुकरा चुकी है.फिर एनी को बेचारे पुष्पेंद्र त्यागी मिल जाते हैं.एनी उसे फंसा कर उससे शादी कर लेती है.फिर उसका सपना कैसे चकनाचूर हो जाता है.उनकी जिंदगी में बहुत कुछ घटित होता है.ऐनी ग्रो करती है.इंटरवल से पहले और इंटरवल के बाद की ऐनी में जमीन आसमान का अंतर है.दर्शक कैरेक्टर के साथ इमोशनली ट्रैवल करते है.ऐनी व पुष्पेंद्र के दुःख व सुख के सारे इमोशंस के साथ जुड़े रहते है.

आपने बुंदेलखंडी भाषा किससे सीखी ?

संवाद लेखक भूपेंद्र सिंह और निर्देशक देबामित्रा बिस्वाल ने हमारे साथ वर्कशॉप किया.मुझे लगता है अगर वह नहीं होते तो मैं यह किरदार नहीं निभा पाती.

आपने पहले तीन बड़े निर्देशकों के साथ फिल्में की.अब नए निर्देशक के साथ ‘मोतीचूर चकनाचूर’की है ?

देबामित्रा के साथ काम करने में बहुत मजा आया.जिस तरह से पहली फिल्म‘हीरो’के वक्त मेरे अंदर जोश था,वही जोश व इमानदारी मुझे उनमें नजर आयी.उनके अंदर कुछ कर दिखाने का जज्बा है.मुझे इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि वह पहली बार फिल्म निर्देशित कर रही हैं.मुझे यह भी लगता है कि औरतों को इमोशंस बहुत अच्छी तरह से पता चलते हैं.जो मां का प्यार,मां का इमोशंस है,वह सब मुझे उनमें दिखाई देता है.

फिल्म‘‘मोतीचूर चकनाचूर’’की शूटिंग के अनुभव क्या रहे?

इसकी शूटिंग भोपाल में हुई.बहुत ही खूबसूरत अनुभव रहा.भोपाल में झीलें/लेक बहुत हैं.ग्रीनरी है. ऐसा लग रहा था कि सुबह सुबह उठो और बाहर देखो.

‘‘फिल्म असफल हो जाए, तो दो कदम पीछे जाना ही पड़ता हैं- अथिया शेट्टी

‘हीरो’ और ‘मोतीचूर चकनाचूर’’ फिल्म दोनों में कहीं ना कहीं प्यार की बातें हैं.इन दोनों फिल्मों के प्यार में अंतर क्या है ?

मुझे लगता है कि ‘मुबारकां’सहित मेरी अब तक की तीनों फिल्मों में प्यार बहुत ही रीयल और इनोसेंट दिखाया गया.वैसे भी प्यार बहुत पवित्र होता है.प्यार के बिना लव स्टोरी पूरी ही नहीं होती.

तो क्या इस फिल्म में इस बात का जिक्र है कि जब जिन सपनों को लेकर हम विदेश जाते हैं,वह सारे टूट जाते हैं.वहां असलियत कुछ और ही होती है ?

अथिया शेट्टी- जी हॉ! मगर मैंने उन समस्याओं के बारे में बता दिया,तो फिल्म देखने का मजा खत्म हो जाएगा.

अब आप किस तरह की फिल्म करना चाहती हैं?

मुझे थ्रिलर करना है.एक डार्क थ्रिलर करना है.

कोई दूसरी फिल्म कर रही हैं?

अथिया शेट्टी- अभी फिलहाल नहीं..लेकिन बहुत जल्द एक फिल्म शुरू होगी.

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