फिल्म ‘बधाई हो’ माता-पिता के प्रति बच्चों की सोच को उदार बनाएगी- आयुष्मान खुराना By Shanti Swaroop Tripathi 11 Oct 2018 | एडिट 11 Oct 2018 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर समाज में टैबू माने जाने वाले विषयों पर बनी फिल्मों में अभिनय कर अपनी एक अलग पहचान बना लेने वाले अभिनेता आयुष्मान खुराना एक बार फिर उसी तरह की क्विर्की फिल्म ‘बधाई हो’ में नजर आने वाले हैं। इस फिल्म में आयुष्मान खुराना ने एक ऐसे युवक नकुल कौशिक की भूमिका निभायी है,जिसे जब पता चलता है कि बड़ी उम्र में उनकी माता गर्भवती हैं और अब उनके पिता दोबारा पिता बनने वाले हैं, तो उसे बड़ा ऑक्वर्ड लगता है,जबकि नुकल की प्रेमिका स्वीटी शर्मा इसे सकारात्मक सोच के साथ देखने के लिए उसे समझाती है। ‘विक्की डोनर’,‘दम लगाके हाईशा’,‘शुभमंगल सावधान’और अब ‘बधाई हो’। एकदम अलग तरह की फिल्में हैं। यह सब आपकी सोची समझी रणनीति का परिणाम है? -कोई रणनीति नही है। मैं खुशनसीब हूं कि मुझे अलग तरह पटकथा वाली फिल्में मिलती रहीं और मैं करता चला आ रहा हूं। वैसे भी पहली फिल्म के साथ ही एक कलाकार की दिशा तय हो जाती है कि उसे किस तरह की फिल्में मिलेंगी? मैं पहली फिल्म से ही टैबू पर आधारित फिल्म कर रहा हूं। मेरे पास ऐसी पटकथाएं आती हैं,जो कि समाज के टैबू को तोड़ने वाली होती हैं। उन विषयों पर फिल्म होती हैं, जिन पर समाज के लोग बात करना नही चाहते हैं। देखिए, समय के साथ हर कलाकार किसी न किसी तरह की इमेज में बंध जाता है.अक्षय कुमार देशभक्ति की बातें करने वाली फिल्मों में नजर आ रहे हैं। जबकि सलमान खान, शाहरूख खान पूरी तरह से कमर्शियल फिल्म कर रहे हैं। पर टैबू पर आधारित अलग तरह की फिल्मों के बीच कभी कभी ‘‘अंधाधुन’’ जैसी फिल्म भी हो जाती है। फिल्म ‘बधाई हो’ क्या है? -यह फिल्म समाज की इस सोच पर कटाक्ष करती है कि बेटा या बेटी युवा हैं, तो उनकी माता गर्भवती नहीं हो सकती। यदि लड़का युवा हो चुका है, तो वह इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता कि उसकी माता फिर से गर्भधारण कर चुकी है। यह फिल्म इसी बात को रेखांकित करती है कि हर युवा को यह मानकर चलना चाहिए कि 40-45 साल की उम्र के बाद भी उनके माता पिता में रोमांस होता है। हमारी फिल्म में जब मां गर्भवती हो जाती है, तो बड़े भाई, छोटे भाई व उसकी बहन का उसके दोस्त मजाक उड़ाना शुरू कर देते हैं। आसपास के लोग भी मजाक उड़ाने लगते हैं.हालात यह हो जाते हैं कि मां और उनके बच्चों के बीच बातचीत बंद हो जाती है। उधर दादी परेषान हैं और वह मां को ताने देने लगती हैं कि,‘बहू इस उम्र में तुझे यह सब करने की क्या जरूरत थी?’तो इन्ही चीजों को हास्य के तरीके से पेष किया गया है। फिल्म में इस बात को रेखांकित किया गया है कि हर उम्र में रोमांस हो सकता है। एक युवक/युवती इस बात को कैसे भूल जाते हैं कि उनके माता पिता के बीच जिस रोमांस के चलते वह पैदा हुए हैं,वह रोमांस अब 45 साल की उम्र के बाद क्यों नहीं हो सकता। तो यह फिल्म परिवारों में नई दुनिया बनाएगी। फिल्म‘‘बधाई हो’’में आपका किरदार क्या है? -मैंने नकुल कौशिक का किरदार निभाया है, जो कि कॉरपोरेट वर्ल्ड में काम करता है। दिल्ली के ज्यादातर लड़के ऐसे होते हैं,जो कि घर में शुद्ध हिंदी में बात करते हैं और घर से बाहर अंग्रेजी झाड़ने लगते हैं। नकुल अपने परिवार के सदस्यों में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा है और सबसे ज्यादा कमा रहा है.उसकी प्रेमिका हैं सान्या मल्होत्रा। जिसकी मां एक आईएएस ऑफिसर हैं। जबकि नकुल कौशिक के पिता रेलवे में टीसी/टिकट चेकर हैं। तो अब नकुल अपनी प्रेमिका के परिवार के बीच ढलने के लिए भी अंग्रेजी में बात करता है। यहां दोनों परिवारों के अलग अलग तबके के होने का मसला भी है। फिल्म में एक तरह से सामाजिक मुद्दा उठाया गया है? -फिल्म में मुद्दा यही हैं कि हमारे देश में लोग पता नहीं क्यों यह मानकर चलते हैं कि इस उम्र के बाद इंसान रोमांस नहीं कर सकता। जबकि यह हक सिर्फ युवा पीढ़ी को नही हैं। यह फिल्म कहती है कि बच्चों को मानकर चलना चाहिए कि रोमांस किसी भी उम्र में हो सकता है। क्या आपने नहीं देखा कि कुछ लोग 70 साल की उम्र में भी षादी रचाते हैं। मैं उन लोगों को जानता हॅूं जो इस अनुभव से गुजर चुके हैं। मेरे करीबी दोस्तां में से हैं,जो कि मेरी ही उम्र यानी कि 34 वर्ष के हैं। और उसके माता पिता 80 वर्ष के हैं। समाज में जो दकियानूसी सोच है, उसी को तोड़ने के लिए यह फिल्म है। माता-पिता के प्रति बच्चों की सोच को उदार बनाएगी। हर कलाकार का अपना एक निजी व्यक्तित्व होता है। ऐसे में हर किरदार को निभाते समय उस व्यक्तित्व का आप कैसे छिपाते हैं? -मेरी राय में हर कलाकार को हर फिल्म में अपना व्यक्तित्व दिखाना चाहिए। देखिए, नकुल कौशिक का किरदार मैंने अलग अंदाज में निभाया है, पर दूसरा कलाकार अपने व्यक्तित्व के अनुसार इसे किसी अन्य अंदाज में निभाएगा। यदि हम किरदार में अपने व्यक्तित्व के किसी हिस्से को नहीं डालेंगें, तब तो हम कहीं नहीं रहेंगे। कलाकार के तौर पर अपने व्यक्तित्व के साथ हम उसमें नयापन लाने के लिए कुछ चीजें डालते हैं। देखिए, जब तक दर्शक को आपका व्यक्तित्व पसंद है, तभी तक आप सफल है। आपके द्वारा निभाया गया किरदार पसंद आता है। अब मैं हर फिल्म में अपने व्यक्तित्व को रखते हुए भी कुछ अलग करने के लिए भाषा वगैरह पर काम करता हूं। जैसे कि मैंने बताया कि ‘बधाई हो’में मैंने मेरठिया लहजे में संवाद अदायगी की है। इसके लिए मैंने बाकायदा मेरठ में बोली जानी वाली भाषा सीखी। हमारी फिल्म के लेखक भी वही के हैं। इस फिल्म में आपने सुरेखा सीकरी,नीना गुप्ता और गजराज राव जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम करते हुए क्या सीखा? -इस फिल्म में मैंने नीना गुप्ता, गजराज राव व सुरेखा सीकरी इन तीनों के साथ काम करते हुए बहुत कुछ सीखा। यह तीनों मंजे हुए कलाकार हैं। मैं अपने आपको खुश किस्मत समझता हूं कि मुझे अपनी हर फिल्म में सपोर्टिंग कास्ट बहुत सशक्त मिलती आयी है। मेरी फिल्म में सपोर्टिंग कास्ट हमेशा फिल्म को आगे ले जाती है। ‘बधाई हो’ में भी नीना गुप्ता और गजराज राव फिल्म की रीढ़ की हड्डी हैं। जब मंजे हुए कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिलता है,तो हमारे अपने अभिनय में भी निखार आ जाता है। सान्या मल्होत्रा के साथ आपकी कैसी ट्यूनिंग रही? -सान्या दिल्ली से हैं। मेरे करियर की यह पहली फिल्म है, जिसमें मैने किसी दिल्ली की लड़की के साथ अभिनय किया है। फिल्म ‘विक्की डोनर’ में मैं और यामी गौतम दोनों चंडीगढ़ से थे.‘दम लगा के हाईशा’’ और ‘‘शुभ मंगल सावधान’’ की हीरोईनें मुंबई से थी। पर इस फिल्म में दिल्ली वाली लड़की मेरी हीरोइन है। सान्या मल्होत्रा का एसेंट भी दिल्ली वाला है। इसके चलते हमारा हर सीन बहुत नेचुरल हुआ। वह कमाल की एक्टे्स भी हैं। पहली बार उन्होंने इस फिल्म में एक षहरी लड़की का किरदार निभाया है। इस फिल्म में भी आपने गाना गाया हैं? -सर जी गायन मेरी कमजोरी है। तो हर फिल्म में एक न एक गाना गा ही लेता हूं। इस फिल्म में मैंने ‘नैना न जोड़े’ गाना गाया है। यह पंजाबी फोक सॉन्ग है। एक प्यार का गीत है। आपको जिस तरह की फिल्में करने का अवसर मिल रहा है, वह सिनेमा में आ रहे बदलाव का परिणाम है या? -मेरी राय में सिनेमा में बदलाव तो मेरे करियर की पहली फिल्म ‘‘विक्की डोनर’’ से शुरू हुआ था। वहीं से समाज में ‘टैबू’ बने हुए विषयों पर फिल्में बननी शुरू हुई। किसी न किसी को तो पहल करनी ही पड़ती है। हर फिल्म के बाद मैं इस बदलाव को आगे लेकर गया हूं। दर्शक पहले से ही इस तरह की फिल्मों को देखने के लिए तैयार था, पर वह इतना तैयार है, इसका मुझे अंदाजा कभी नहीं रहा। धीरे धीरे अब कंटेंट प्रधान सिनेमा ही मेनस्ट्रीम सिनेमा बनता जा रहा है। पहले इस तरह के सिनेमा की गिनती पैरलल सिनेमा में हुआ करती थी। अब कंटेंट प्रधान फिल्मों के दर्षक बहुत तेजी से बढ़े हैं। कमाई भी होने लगी है। संगीत के क्षेत्र में काफी कम काम कर रहे हैं? -ऐसा नही है। पहली बात तो मैं अपनी हर फिल्म में गाना गाता हूं। ‘अंधाधुंध’ और ‘बधाई हो’ में भी गीत गाए हैं। इसके अलावा हर साल म्यूजिकल कंसर्ट करता हूं। हर वर्ष एक दो सिंगल लेकर आता हूं। पर अभिनय को प्राथमिकता दे रहा हूं, यह सच है। लेखन के क्षेत्र में नया क्या कर रहे हैं? -रोजमर्रा की जिंदगी के अहसास व अनुभवों को लेकर शायरी लिखता हूं। आने वाले समय में फिल्म की पटकथा लिखने वाला हूं। अपनी लिखी शायरी को किताब के रूप में बाजार में लाने की भी योजना पर काम कर रहा हूं। यह किताब कम से कम 100 से 200 पन्नों की होगी। अब आप और आपकी पत्नी ताहिरा अपना प्रोडक्षन हाउस खोल रहे हैं। तथा आपकी पत्नी फिल्म निर्देशित करने वाली हैं? -यह सच है कि मेरी पत्नी ताहिरा कश्यप एक फिल्म निर्देशित करने वाली हैं, पर वह किसी अन्य प्रोडक्शन हाउस के लिए हैं। हमने अपना कोई प्रोडक्शन हाउस शुरू नहीं किया है। उनकी फिल्म में मैं रहूंगा या नहीं, यह मुझे भी नहीं पता। #bollywood #interview #Ayushmaan Khurana #Badhaai Ho हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article