चित्रांगदा सिंह जन्म तिथि - 30 अगस्त
पसंदीदा हॉबी - स्काइडाइविंग और फिशिंग
पसंदीदा एक्टर्स महिला - रेखा, हेमा मालिनी और शबाना आज़मी
पसंदीदा एक्टर्स पुरुष - अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ खान
चित्रांगदा सिंह हिंदी फिल्मों की जानी मानी हस्ती है। चित्रांगदा ने अपनी पहली फिल्म “यह साली ज़िन्दगी से “ अपना कदम बॉलीवुड में रख अपनी फिल्मी जर्नी की शुरुआत की। चित्रांगदा ने अभिनय में हाथ आजमाया और अब उन्होंने अपना हाथ प्रोडक्शन में आजमाने की ठानी है। सो वह फिल्म ’सूरमा’ से फिल्म निर्माता की पद्वी संभाल रही है। बहुत ही सिंपल स्वभाव रखती है चित्रांगदा सिंह। किन्तु अपने हक़ के लिए कभी भी झुकना नहीं सीखा उन्होंने। फौजी की बिटिया है, तो जाहिर सी बात है फ़िल्मी दुनिया का हिस्सा बन यह पुरुष प्रधान फिल्मी दुनिया को अपने कर्म से फिर चाहे वह अभिनय हो, लेखन हो या फिर प्रोडक्शन संभालने की बात हो- तो अब यह सब बड़ी आसानी से कर लेती है।
पेश है चित्रांगदा सिंह के साथ लिपिका वर्मा की बातचीत के कुछ अंश
आपने प्रोड्क्शन की शुरुआत करने के बारे में कब सोचा ?
देखिये 2013/14 में मेरे पास कम काम था, फ़िल्में बतौर अभिनय नहीं आ रही थी। और बतौर आर्टिस्ट आप कुछ न कुछ काम इसी लाइन से जुड़े हुए करने की सोचते हैं। मैंने स्क्रिप्ट पर काम करना शुरू किया। शुरुआती दौर में मुझे ढेर सारे पन्ने फाड़ने पड़े। क्योंकि मैं लिखती कुछ और फिर दोबारा उस पर बैठती तो कुछ और लिखने लगती थी। धीरे धीरे मैंने अपने लेखन को स्ट्रीम लाइन किया। लेखन में सुधार आया और स्टोरी लिखने लगी। किन्तु वह दोनों कहानियाँ मेरे पास पड़ी हुई है। इस बीच मैंने, “सूरमा“ लिख डाली और उसे प्रोड्यूस करने की इच्छा हुई।
फिल्म 'सूरमा' कैसे और कब लिखने की इच्छा हुई और उसे बतौर निर्माता बनाने की इच्छा कैसे जागृत हुई ?
दरअसल में, मेरे एक मित्र ने मुझे संदीप से मिलवाया, और वह क्योंकि एक बहुत बड़ा हॉकी खिलाड़ी था। किन्तु जिंदगी ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि उसे ज़िन्दगी और मौत की लड़ाई लड़नी पड़ी। वह जिस कठोर हादसे से जूझ कर निकला था वह बहुत ही मर्म कहानी है। जब मैं उनसे मिली तो मुझे लगा यह कहानी लोगों तक पहुचानी चाहिए। सिंपल सी बात है - यह एक हॉकी खिलाड़ी की कहानी है। और लोगों को क्रिकेट पसंद है सो हमें इस फिल्म को लोगों तक पहुंचाने में थोड़ी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा। सोनी पिक्चर्स को जब मैंने यह कहानी शेयर की क्योंकि यह चैनल स्पोर्ट्स चैनल भी है तो उन्हें भी इस जीवित व्यक्ति संदीप की कहानी बहुत अच्छी लगी। यह बहुत कठिन होता है कि एक स्पोर्ट्समैन वह भी फिजिकल गेम से जुड़ा हो और मौत की जंग लड़ कर वापस उस खेल को बेहतरीन तरीके से खेल पाए? किन्तु संदीप ने अपना यह सपना दोबारा हासिल किया। यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। यह बायोपिक कोई 50 या 60 की दशक की नहीं है और तो और यह एक जीवन्त व्यक्ति की कहानी है। खुश हूँ कि फिल्म पूरी हो पायी और इस फिल्म से बतौर मैं प्रोड्यूसर (निर्मात्री) बन गई हूँ।
यह फ़िल्मी दुनिया पुरुष प्रधान है, आपके लिए चुनौतीपूर्ण सफर रहा होगा ?
जी,यह सच है कि हमारी इंडस्ट्री में ज्यादा पुरुष है सो यह इंडस्ट्री पुरुष प्रधान ही हुई न? किन्तु मैं कॉर्पोरेट के आने से बहुत खुश हूँ , क्योंकि अब यहाँ बहुत सारी महिलायें भी काम कर रही है। देखिये न -आप सब मेरे साथ महिलाये ही तो बैठी हुई है। अनुष्का शर्मा, प्रियंका चोपड़ा और दीया मिर्ज़ा भी कलाकार है जिन्होंने अपना प्रोड्कशन खोल रखा है। सो हम सब यहाँ काम करने ही तो आये हैं। और हमें कुछ न कुछ तो करते ही रहना है। हालांकि अब फ़िल्मी दुनिया का कल्चर हम महिलाओं के लिए भी बदल गया है और हम भी सब काम में अपना हाथ आजमा सकते हैं। यहां पर काफी वर्षों से काम किया है तो रिश्ते भी बन गए हैं। सो हमें यह जरूर मालूम है किस तरह से प्रोडक्शन के लिए आगे बढ़ा जा सकता है। और हमारी एक पूरी टीम है जो इसके बारे में सब कुछ देखती है। पर हाँ बतौर निर्माता यह एक बहुत जिम्मेदारी का काम है। फिल्म निर्माण की बारीकियों को जानना जरुरी है।
बतौर निर्मात्री आपने क्या क्या सीख लिया है ताकि आगे भी फिल्म बनाने में आपको सहूलियत हो ?
सबसे पहले तो सबको यानी अपनी टीम को किस तरह मैनेज करना होता है, यानी सबको अच्छे से जोड़े रखना है यह जानना और ऐसा करने में सफल होना बहुत जरुरी है। यह काम में बहुत अच्छे से सीख लिया है। मैंने कहानी लिखने के बाद दस मिनट का एक प्रेजेंटेशन (पेशकश) तैयार किया। और उस के द्वारा अपनी कहानी पिच करना शुरु किया। मैंने यह कहानी एक मानवता के एंगल से सोच रखी थी और उसी तरह लिखा भी था। कहने में ड्रामा थ्रिल सब है क्योंकि संदीप के साथ ऐसा हुआ है। मैंने फिक्शनल सतपुरी नहीं बनायीं है। जैसा उनके साथ जीवन में हुआ उसी को लेकर हम आगे बढ़े हैं। और जहाँ तक बिजनेस का सवाल है मेरे एक पार्टनर है दीपक सिंह उसका ख्याल उन्होंने बहुत खूब रखा है। जितना बजट था उसमें सीमित रहने के लिए सोनी पिक्चर्स भी हमारे साथ जुड़ी हुई थी। सो मेहनत लगी किन्तु हर दिक्कतों का सामना करने की क्षमता हमारे पास थी।
आपको एक अच्छी बिज़नेस वुमन कह सकते हैं क्या ?
देखिये इस फिल्म,“सूरमा“ के लिए जितना बजट तय किया गया था हमने उसे फॉलो किया है। पर हाँ मैं क्योंकि एक क्रिएटिव पर्सन हूँ तो जब हमारी मार्केटिंग टीम एक डायलॉग- केवल इसीलिए उड़ा देना चाहती थी क्योंकि वह ब्रांड से डील तय नहीं हो पा रही थी। पर मेरा क्रिएटिव माइंड उन्हें यही कह रहा था प्लीज यह डायलॉग न उड़ायें, क्योंकि इस डायलॉग में बहुत दम है। सो मेरा क्रिएटिव माइंड बिजनेस को महत्व नहीं दे पाता है।
आपने लिखना कैसे और कब शुरु किया ?
इसके लिए मैडिरेक्टर सुधीर मिश्रा की शुक्रगुजार हूँ। जब में उनके साथ फिल्म “इंकार“ कर रही थी तब मैंने उन्हें कुछ लिख कर दिया था। उन्हें वह लेख बहुत पसंद आया। उन्होंने मुझे लिखने के लिए प्रेरित भी किया। यह वही कुछ 2013 और 2014 की ही बात है। बस तभी से मैंने कुछ टूटे फूटे लेख लिखे और फिर उन्हें जोड़ने की कोशिश कर आज मैं कुछ बेहतर लेख लिख सकती हूँ।
आपकी अगली फिल्म निर्देशक अनीस बज्मी के साथ है ?
’जी हाँ अभी कुछ बातचीत चल रही है। यह एक लव स्टोरी पर आधारित कहानी है। मैं इसका हिस्सा भी हूँ।