'मैं लोगों के यकीन पर खरा उतरने वाला ऐक्टर बनने की कोशिश कर रहा हूं' By Mayapuri Desk 14 Sep 2017 | एडिट 14 Sep 2017 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर दीपक डोबरियाल यानि एक बेहतरीन अदाकार। दीपक ने फिल्म ओमकारा से अपनी शुरूआत की थी उसके बाद वे 1971, शौर्य, दिल्ली 6, गुलाल, दायें या बायें, तनु वेड्स मनू वन और टू, दबंग टू , प्रेम रतन धन पायो तथा हिन्दी मीडियम आदि करीब एक दर्जन से ज्यादा फिल्मों में अपने अभिनय के जोहर दिखा चुके है। अब दीपक फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’में एक कैदी की भूमिकामें दिखाई देने वाले हैं। फिल्म को लेकर क्या कहना दीपक का, बता रहे हैं इस मुलाकात में। मायापुरी फिल्म के बारे में कितना जानते हैं ? मैं तो मायापुरी पढ़ पढ़ कर बड़ा हुआ हूं। मुझे याद है, मैं एक सलून में हर हफ्ते मायापुरी के आने का इंतजार किया करता था तथा उसमें फिल्मी सितारों के इन्टरव्यू पढ़ते हुये खांमहा खां रोमांचित होता रहता था। उस वक्त दिमाग में ये भी आता था कि क्या में भी एक्टर बन सकता हूं। आप कह सकते है कि कहीं न कहीं मेरे एक्टर बनने में मायापुरी की भी अप्रोच है। इस पत्रिका में आपको क्या कुछ अच्छा लगता रहा है ? अभी तो मैं इस बात का जवाब नही दे पाउंगा, लेकिन आप समझ सकते हैं कि एक वक्त मैं उसका दर सप्ताह बेसब्री से इंतजार किया करता था। सुना है इस फिल्म में आपका बड़ा दिलचस्प रोल है? फिल्म में में एक बंगाली करेक्टर कर रहा हूं जिसका नाम विक्टर चटर्जी है और जो अंजाने में किसी केस में फंसकर जेल पंहुचा हुआ है। पेशे से वो एक इंजीनियर है। जेल के सभी पुलिसवाले उससे अपने घरेलू काम करवाते रहते हैं। स्वभाव से थोड़ा सा तेज है लेकिन कभी पहल नहीं करता। हमेशा सोच समझ कर कदम रखता है। फिल्म आपके हिसाब से कितनी रीयलस्टिक है ? थोड़ी सी रीयलस्टिक है, थोड़ा सा फिक्शन भी है, थोड़ी क्रियेटिव लिबर्टी भी है तथा जेल के सेट और कैमरा वर्क ने फिल्म को रीयलस्टिक बनाने में काफी मदद की है। वैसे तो आपने हर फिल्म में कमाल की अदाकारी दिखाई है लेकिन खासकर हिन्दी मीडियम के बाद आप अचानक उभर कर आये हैं लिहाजा अब आप फिल्मों का चयन किस प्रकार करते हैं ? मैं स्क्रिप्ट का ध्यान रखता हूं, कॅरेक्टर और डायरेक्टर का ध्यान रखता हूं। किसी फिल्म में अगर मैं इन तीन चीजों से खुश हूं तो उसके बाद ही अपनी सहमति देता हूं। हाल ही में मैने कुछ ऐसी फिल्में छौड़ी हैं जिनमें मेरा किरदार तो अच्छा था लेकिन बाकी सब ढुलमुल था, जबकि उनमें स्टार्स थे, लेकिन क्या फायदा, क्योंकि मुझे सिर्फ अपना किरदार ही नहीं बल्कि और भी सब देखना था। एक बात और,बेशक इन दिनों फिल्मों में अच्छी राइटिंग हो रही है लेकिन अभी और अच्छी राइटिंग की जरूरत है क्योंकि उसके बिना फिल्म का कोई भविष्य नहीं। किसी भी फिल्म में दीपक अपने होने की किस हद तक गॉरंटी देते हैं ? देखिये हर प्रोड्यूसर चाहता है कि उसकी फिल्म चलनी चाहिये इसीलिये वो मेरे जैसे एक्टर को लेता है कि ये बंदा कम से कम फिल्म का आधा पोना घंटा एन्टरटेनिंग बनाकर रख सकता है, तो मैं बतौर एक्टर ये अलग तरह की गॉरंटी बनने और लोगों के यकीन पर खरा उतरने वाला एक्टर बनने की कोशिश कर रहा हूं ,क्योंकि आज पूरी दुनियां में लोग यकीन खो रहे हैं, फिर चाहे राजनीति हो, कला हो या कोई और चीज हो। आज वो यकीन बनाना बहुत जरूरी है। उसके लिये आपका षिद्दत से काम में लगे रहना जरूरी है। इस बार आपके सामने सभी ऐसे आर्टिस्ट हैं जिनके साथ आप ने पहली बार काम किया है। उनके साथ तालमेल बिठाने में वक्त तो लगा होगा ? हां वक्त तो लगता है, ये मेरे साथ ही नहीं सभी के साथ होता है। लेकिन यहां सभी बेहतरीन आर्टिस्ट थे। हालांकि शुरूआत में पांच छह दिन इसी बात को लेकर लग गये कि कौन पहले खुलेगा और जब ट्यूनिंग बनी तो उसके बाद से अभी तक हम सब एक साथ घूम रहे हैं। क्या इनमें से किसी की फिल्में भी देखी हैं ? हां हां, क्यों नहीं। फरहान की मैने कई फिल्में देखी हैं, इनामुलहक की एयरलिफ्ट देखी है और राजेश शर्मा के साथ तो तनु वेड्स मनु की थी, इसके अलावा उनकी इश्कियां के बाद भी कितनी ही फिल्में देख चुका हूं तथा गिप्पी ग्रेवाल की मंजे बिसरे देखी है। डायना पेंटी को लेकर क्या सोच है ? डायना की इन्वॉलमेंट गजब की है और कॉकटेल से लेकर अभी तक उसकी हिन्दी सुन कर मैं दंग रह गया। उसने एक सोशल वर्कर के रोल को बड़े कन्वेक्शन के साथ किया है लगता था कि वो रीयल एक्टीविस्ट है। #interview #Deepak Dobriyal #Lucknow Central हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article