ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है जब कोई रीजनल फिल्मों का स्टार हिन्दी फिल्म भी अपनी शर्तों पर करें। इस स्टार का नाम है दिलजीत दोसांझ। पंजाबी फिल्मों के गायक नायक दिलजीत के पास कितनी भी बड़ी फिल्म में काम करने का ऑफर क्यों न आ जाये, लेकिन वो अपनी पगड़ी उतारने को तैयार नहीं होता। लिहाजा उसने अभी तक उड़ता पंजाब, सुपर सिंह, फिल्लौरी, वैलकम टू न्यूयार्क आदि फिल्में अपने ओरीजनल गैटअप में ही की हैं। उसकी जल्द रिलीज होने वाली फिल्म का नाम हैं ‘सूरमा’ । ये हॉकी के कैप्टन संदीप सिंह की बायोग्राफी पर आधारित है। फिल्म को लेकर दिलजीत से श्याम शर्मा की एक मुलाकात।
हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह से कब मिलना हुआ और उनके बारे में पहले से कितना जानते थे ?
दरअसल हम एक पार्टी में मिले थे। वहां थोड़ी बहुत बातें हुई थी लेकिन फिल्म साइन करने के बाद सही ट्रेनिंग उनकी कोचिंग में मैदान में ही शुरू हुई। वहीं उन्हें करीब से जानने पहचानने का अवसर मिला, वरना इससे पहले मैं सिर्फ इतना ही जानता था कि वे भारतीय हॉकी टीम के कैप्टन थे। हॉकी खेलते वक्त ही मुझे पता चला था कि हॉकी खेलते वक्त सारा दारोमदार पीठ से ही होता है, क्योंकि हमेशा हॉकी झुक कर खेलना होता है। जबकि संदीप की पीठ पर ही गोली लगी थी। बाद में किस प्रकार वे दोबारा खड़े हुये और कैप्टन बने, किस प्रकार उन्होंने दोबारा खेलना शुरू किया, और किस प्रकार उन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। ये सारी बातें मुझे बाद में पता चली।
आपको संदीप सिंह के हादसे वाले सीन फिल्माते हुये कैसे अनुभव रहे ?
मेरे लिये तो वो सारे दृश्य बहुत ज्यादा खतरनाक साबित हुये। हमने रीहेब का एक पूरा सीन शूट किया। वो मेरे लिये काफी खतरनाक साबित हुआ, क्योंकि जब आप उस जोन में होते हो और अपने आपको फील करते हो तो कोई भी बंदा डिप्रेशन में आ सकता है। आप सोचिये कि किस तरह वो बंदा (संदीप सिंह) व्हील चेयर से उठता है और मैदान में पहुंचता है और वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाता है। इसीलिये फिल्म का नाम 'सूरमा' रखा गया।
संदीप सिंह के साथ जो कुछ भी गुजरा, और वे उस से किस तरह लड़े होगें। वो सारी बातें सामने वाले को हिला कर रख देती हैं। आपका इस बारे में क्या कहना है ?
संदीप जैसे खिलाड़ियों पर जब कोई फिल्म बनती है तो वो हमें सिर्फ खेल के बारे में ही नही बताती बल्कि रीयल जिन्दगी के बारे में भी वहां से काफी कुछ सीखने को मिलता है। जैसे-जैसे फिल्म शूट होती गई, वैसे-वैसे मुझे उनकी लाइफ के बारे में जानकारी मिलती गई। उससे कहीं ज्यादा उनकी ट्फ लाइफ से जाना कि कुछ कर गुजरने का जज़्बा किस प्रकार एक आम इंसान को भी सूरमा बना देता है।
फिल्म में एक लव स्टोरी तो ही, लेकिन साथ ही दो भाईयों के आपसी प्यार की भी एक कहानी है। उसे लेकर आपका क्या कहना है ?
फिल्म में मेरे भाई बने अंगद बेदी के साथ मैने पहली दफा काम किया है, लेकिन मेरा दावा है कि हम दोनों के बहुत प्रभावशाली सींस निकल कर आये होगें। अंगद जितने बढिया एक्टर हैं, उतने ही प्यारे इंसान भी हैं। वाकई उनके साथ काम करके मजा आ गया।
सुना है आपने पहले फिल्म करने से मना कर दिया था। क्यों ?
उस वक्त मैं संदीप पा जी के बारे में कुछ नहीं जानता था। मुझे सिर्फ इतना पता था कि एक फिल्म है जो हॉकी के खेल पर आधारित है। इससे पहले भी हॉकी पर कुछ फिल्में बन चुकी हैं। इसलिये मैने प्रोडयूसर चित्रागंदा और शाद अली से कहा कि आप कुछ किसी और सब्जेक्ट पर फिल्म बना लो, वहां मैं आपके लिये मुफ्त में काम कर दूंगा, लेकिन यहां मुझे मत फंसाओ। यहां शाद ने कहा कि आप एक बार कहानी सुन लो, उसके बाद कोई फैसला करोगे तो हमें अच्छा लगेगा। कहानी सुनने के बाद न कहने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था क्योंकि संदीप पा जी का किरदार तो कमाल था ही, उससे कहीं ज्यादा मुझे कहानी बहुत पंसद आई।
जो काम आपको नहीं आता। उसे करते वक्त पेशर तो होता है। हॉकी खेलते हुये आप कितने प्रेशर में थे ?
सच बात ये है कि मैं जरा भी प्रैशर में नही था। क्योंकि मुझे सब कुछ पहले ही बता दिया गया था। उसके बाद मैने बाकायदा हॉकी के बारे काफी कुछ सीखा। उसके अलावा सेट पर हमेशा संदीप पा जी और उनके भाई सेट पर होते थे। हां फिल्म के प्रोडयसर और डायरेक्टर और संदीप पा जी को प्रैशर रहा होगा, क्योंकि उनका रोल मैं कर रहा था।
आगे कौन कौन सी हिन्दी और पंजाबी फिल्में कर रहे हैं ?
हिन्दी में एक फिल्म ‘ कनेडा ’ है तथा पंजाबी में ‘सज्जन सिंह रंगरूट’ नामक फिल्म है।