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'जीने की कसमें खाना अच्छी बात है, क्योंकि मरना तो किसी के भी हाथ में नहीं'

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By Mayapuri Desk
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'जीने की कसमें खाना अच्छी बात है, क्योंकि मरना तो किसी के भी हाथ में नहीं'

राईटर डायरेक्टर तनूजा चंद्रा के नाम करीब दस फिल्में हैं. उनमें से प्रमुख हैं दुश्मन, संघर्ष, सुर, ज़ख्म, ये जिन्दगी का सफर और फिल्म स्टार आदि। उनकी इसी सप्ताह रिलीज फिल्म का नाम है ‘करीब करीब सिंगल’। फिल्म में इरफान खान और पार्वती दिखाई देने वाले हैं। फिल्म को लेकर तनूजा का क्या कहना है, बता रही हैं इस मुलाकात में ।

क्या फिल्म के लिये शुरू से ही इरफान दिमाग में थे ?

बिलकुल मैने शुरू से ही इरफान को दिमाग में लेकर कहानी शुरू की थी । जिसमें एक ऐसा शायर आदमी जो अतरंगी टाइप और अपनी तारीफ खुद करता हुआ ऊट पटांग सा आदमी है, जो बेहद मुंहफट है। उसके दिल में जो भी होता है वो बिना देखे उसे फौरन बोल देता है । । ऐसा मेरा मानना है। कि इरफान के अलावा इस रोल को कोई और अदाकार सही अभिव्यक्ति नहीं दे पाता

 इरफान के साथ आप पहली बार काम कर रही हैं । क्या आपके ऑफर को उन्होंने फौरन स्वीकार कर लिया था ?

ऐसा नहीं था। मैने जब उन्हें ये रोल सुनाया तो वो काफी दिन कन्फयूजन में रहे कि फिल्म करूं या न करूं। मैने उन्हें उनकी भूमिका के बारे में बहुत बारीकी से बताया कि वो एक ऐसा आदमी है जो किसी को भी छोटा बड़ा नहीं मानता यहां तक वो अपने ड्राइवर को भी अपने परिवार का सदस्य मानते हुये अगर होटल  में खाना खाने निकलता है तो वहां से ड्राइवर का खाना भी पैक करवाना नहीं भूलता। फोन पर ड्राइवर से बात करते हुये कहता है कि देखो हम बोल रहे हैं तुम्हारे  हुजूर और मालिक, लेकिन वो दिल से उसे अपने बराबर का मानता है ।योगी नामक इस शख्स को कोई सफर में मिल जाये या कोई अजनबी, वो फौरन से उससे जुड़ जाता  है।  इस किरदार की ये सारी बातें इरफान को बहुत ज्यादा एक्साइटिड लगी, लिहाजा वे ये फिल्म करने के लिये तैयार हो गये लेकिन उन्होंने किरदार को समझने के लिये कुछ वक्त जरूर मांगा।publive-image

फिल्म में किस तरह का लव दिखाया गया है ?

मेरा मानना है कि जब भी दो लोग मिले तो वे बिना किसी प्रेशर के पहले आगे जाकर एक दूसरे को जानने समझने की कोशिश करें, लेकिन एक दूसरे पर प्रेशर न डाले, बल्कि एक दूसरे की भावनाओं को महसूस करें।  आगे जाकर उस रिलेशनशिप का जरूर अच्छा परिणाम  निकलेगा। फिल्म ये सब बताती है।

आपने फिल्म काफी पहले एनांउस की थी, देर क्यों लगी ?

देखिये एनांउसमेंट तो कर दिया जाता है,लेकिन उसके बाद एक डायरेक्टर को क्या क्या करना पड़ता है जैसे पहले राइटिंग वर्क, फिर प्रोड्यूसर तलाश करना, इसके बाद लीड रोल्स के लिये कास्टिंग, उनकी डेट्स। फिर बाकी कास्टिंग । इन सारी चीजों के बाद शूटिंग । अब इन सारी चीजें करने में वक्त तो लगता है ।publive-image

आज जबकि लोग विदेशों में शूटिंग करना पसंद करते हैं, लेकिन आपने इंडिया की लोकेशन्स पसंद कर तकरीबन सारी फिल्म यहीं कंपलीट की ?

बेशक विदेशों में अच्छी लोकेशंस मिल जाती हैं लेकिन अगर हम ढूंढने निकले तो इंडिया में भी हजारों ऐसी लोकेशनें मिल जायेगीं जो ट्रेडिशन और मॉडर्न है, खासकर गंगटोक जैसा शहर जो काफी पुराना शहर है,लेकिन जिसमें नई चीजें भी हैं फीमेल ट्रेफिक है। इसके अलावा ऋषिकेश जो हिन्दुस्तान का प्राचीन षहर है लेकिन उसमें मॉडर्निटी भी है । सबसे बड़ी बात कि ये सारी लोकेषसं फिल्म की कहानी को सूट करती हैं।

सुना है फिल्म में मरने-जीने की कसमें खाने पर ज्यादा जोर दिया गया है ?

नहीं ऐसा कुछ नहीं हैं बल्कि  फिल्म में इस बात  पर जोर दिया गया है, कि साथ साथ जीने की कसम खाना अच्छी बात है, क्योंकि मरना तो किसी के  भी हाथ में नहीं है।

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