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आज के समय में 8 से 12 साल के बच्चे भी ड्रग्स और डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं- मशहूर साइकेट्रिस्ट डॉक्टर चाँदनी तुगनैत

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By Pragati Raj
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आज के समय में 8 से 12 साल के बच्चे भी ड्रग्स और डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं- मशहूर साइकेट्रिस्ट डॉक्टर चाँदनी तुगनैत

बॉलीवुड की चकाचौंध भरी ज़िन्दगी में जहाँ एक तरफ कामयाबी, पैसा, खुशियाँ, प्रॉपर्टी और वर्ल्ड टूर्स हैं; वहीं दूसरी तरफ नाकामियाँ, परेशानियां, स्ट्रगल, मुफलिसी, दुःख, अफ़सोस, भेदभाव और फुटपाथ भी हैं। इन दो दुनियाओं के बीच जो बड़ी सी खाई है, वो डिप्रेशन यानी अवसाद का कारण बनती है और बीते साल बेहतरीन कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद, आए दिन किसी न किसी कलाकर के आत्महत्या कर लेने की ख़बरें आने लगती हैं। पर सेलेब्रिटीज़ की ही बात नहीं, आम जनता में भी; ख़ास युवाओं और बच्चों में भी ड्रग्स और डिप्रेशन का चलन बहुत बढ़ गया है। इसी सिलसिले में मशहूर साइकेट्रिस्ट डॉक्टर चाँदनी तुगनैत से हमारी संवाददाता प्रगति राज से हुई बातचीत का पेश है मुख्य अंश-

नमस्कार डॉक्टर चाँदनी, मैं प्रगति राज मायापुरी मैगज़ीन के इस इंटरव्यू में आपका स्वागत करती हूँ। डॉक्टर चाँदनी  यह इंटरव्यू हिन्दी में रिकॉर्ड होगा और आने वाले शुक्रवार को कम इस इंटरव्यू को मायापुरी मैगज़ीन के डिजिटल वर्शन में पब्लिश करेंगे।

आज के समय में 8 से 12 साल के बच्चे भी ड्रग्स और डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं- मशहूर साइकेट्रिस्ट डॉक्टर चाँदनी तुगनैत

सबसे पहले हमारे रीडर्स को ये बताइए कि आख़िर डिप्रेशन क्या है और इसके सिम्पटम्स क्या हैं?

हेलो प्रगति, डिप्रेशन को हिन्दी में तो अवसाद कहते हैं पर ये बीमारी पता ही दो हफ्ते बाद चलती है। दो हफ्ते से ज़्यादा निराशा, दुःख, परेशानी का भाव, आदि अगर दो हफ्ते तक चले तो हम उसे डिप्रेशन कहते हैं। कई बार ये बिना किसी कारण के होता है तो कई बार इसके पीछे कोई ऐसी वजह होती है जो अन्दर ही अन्दर तंग कर रही होती है। कई बार काफी समय बीत जाता है फिर भी उन्हें पता नहीं चलता कि वो डिप्रेशन में हैं। लेकिन सिम्पटम्स तो यही हैं कि उदासी, सोते रहना या बिल्कुल न सोना, अपने में खोये रहना, नहाने से बचना, किसी से मिलने में डरना, खाना न खाना या बहुत ज़्यादा खाना, ऐसे बहुत से लक्षण होते हैं जो जता देते हैं कि इस शख्स को डिप्रेशन है।

बीइंग अ डॉक्टरआपके पास जो पेशेंट आते हैं, क्या उन्हने पहले से पता होता है कि वो डिप्रेशन में हैं और क्या उनकी परेशानियां सुनकर कभी आपको भी डिप्रेशन फील हुआ है?

आपको शायद हँसी आए मेरी बात पर, लेकिन फीलिंग डिप्रेस्ड और डिप्रेशन, इन दो बातों में बहुत फ़र्क है। मेरे पास ऐसे भी कुछ लोग आते हैं जो ख़ुद से कहते हैं कि उन्हें डिप्रेशन है पर उन्हें कोई समस्या नहीं होती। वो बस अटेंशन चाहते हैं, वो चाहते हैं कि कोई उनकी सुने। हाँ, कुछ ऐसे लोग भी लाये जाते हैं जिन्हें लगता है कि उन्हें कोई दिक्कत नहीं है पर वो हेवी डिप्रेशन के फेस से गुज़र रहे होते हैं। जहाँ तक बात उनकी परेशानियों के मुझपर हावी होने की है तो नहीं, मुझे बुरा तो लगता है, इंसान हूँ आख़िर, ज़रूर बुरा लगता है पर ख़ुद पर हावी नहीं होने देती क्योंकि कितनी ही बड़ी परेशानी हो पर मुझे यकीन होता है कि वो सोल्व हो सकती है।

आज के समय में 8 से 12 साल के बच्चे भी ड्रग्स और डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं- मशहूर साइकेट्रिस्ट डॉक्टर चाँदनी तुगनैत

'बीते डेढ़ दो साल में कई सेलेब्रिटीज़ थे जिन्होंने ख़ुदकुशी कर अपना जीवन समाप्त कर लिया। हैरानी की बात ये है कि इनमें से ज़्यादातर सेलेब्स अपनी-अपनी पोजीशन पर कामयाब कहलाये जाते थे। आपकी नज़र में ऐसा क्या कमी थी इन सेलेबस को जो नेम फेम मनी होते हुए भी ये इतना आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर हो गये?

देखिए प्रगति, हर किसी की ज़िन्दगी में कुछ गोल्स भी होते हैं और कुछ रेस्पोसीबिलीटीज़ भी होती हैं। जो लोग बहुत बहुत मेहनत करके किसी मुकाम पर पहुँचते हैं वह बहुत कुछ सैक्रीफाइज़ करके पहुँचते हैं। हमें लगता है कि वह बहुत कामयाब हैं पर उनके भी कुछ गोल्स होते हैं जो या तो उनकी नज़र में वह पूरे नहीं कर पाते, या उन्हें पूरा करने में बहुत कुछ छूट जाता है। यही सब घटनाएं मिलकर डिप्रेशन बनती हैं और जो आगे चलकर वो जो कमी है, वो हासिल हुई चीज़ से भी ज़्यादा बड़ी लगती है। जब हम बहुत काम करते हैं तब हम उन छोटी-छोटी एंजोयमेंट से, उस लाइफ से कोम्प्रोमाईज़ करने लगते हैं जो हम रेगुलर इंटरवल पर किया करते थे। पर एक ऐसी लाइफ जीना जैसे वो वास्तविकता में नहीं है और वैसा दिखना जैसा लोग चाहते हैं, ये भी एक प्रेशर है जो मेंटल हेल्थ पर प्रेशर डालता है

डॉक्टर चाँदनी, अब आप ये बताइए कि आपकी सालों की प्रक्टिस में कभी ऐसा हुआ, कभी कोई ऐसा केस आया कि आप डिप्रेशन का ट्रीटमेंट करते-करते ख़ुद लो फील करने लगे हों?

(हँसते हुए) नहीं ऐसा नहीं है। हाँ, ये कई बार हुआ है कि किसी की स्टोरी, किसी का कोई इंसिडेंट सुनकर मैं फील तो करती हूँ कि इनके साथ क्या गुजरी होगी, पर नहीं! कभी उदास नहीं हुई, कभी लो फील नहीं किया और डिप्रेशन तो डेफिनेटली नहीं हुआ। ऐसा इसलिए कि मैं जानती हूँ कि मैं उन्हें ट्रीट कर सकती हूँ। कुछ केसेज़ ऐसे आ जाते हैं कि सामने वाले की कहानी मुझे झिंझोड़ देती है, इंसानियत के नाते बहुत बहुत बुरा लगता है। उदाहरण के लिए एक ऐसी लड़की का केस भी आया है जिसके दोस्तों ने उसका गैंग रेप किया और वो ये बात अपने पेरेंट्स को भी नहीं बता सकती। या एक ऐसे लड़के का केस जिसे पता ही नहीं चला कि वो कब ड्रग्स लेने लग गया और उसे ऐसी लत लग गयी कि अब वो छोड़ना चाहता भी है तो छोड़ नहीं पाता, लेकिन नहीं छोड़ने की सूरत में उसका मरना तय है। सो, लोगों की परेशानियां विचलित ज़रूर करती हैं मैं डिप्रेस नहीं होती क्योंकि मेरा तो काम है डिप्रेशन दूर करना।

क्या म्यूजिक से डिप्रेशन दूर करने में मदद मिलती है?

देखिए म्यूजिक ज़रूर एक अच्छा हीलर है लेकिन कैसा म्यूजिक सुना जा रहा है। अगर कोई डिप्रेशन में है और वो गज़लें सुनेगा तो डिप्रेशन कम कैसे होगा। उसको चाहिए कि वो सॉफ्ट म्यूजिक सुने, मोटिवेशनल सुने, या इंस्ट्रूमेंट्स सुने।

आज के समय में 8 से 12 साल के बच्चे भी ड्रग्स और डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं- मशहूर साइकेट्रिस्ट डॉक्टर चाँदनी तुगनैत

किसी डिप्रेस्ड पर्सन को हम, उसके फ्रेंड या फैमिली मेम्बर्स कैसे उसकी हेल्प कर सकते हैं?

ये आपने बहुत अच्छा सवाल किया, अगर हमें पता लगता है कि हमारा कोई अपना डिप्रेशन में है तो हम उसे तुरंत नहीं कहेंगे कि वो थेरेपिस्ट के पास जाए। उसको टाइम देंगे। फिर कोशिश करेंगे कि अगर को कुछ नहीं बोल रहा है तो उसको कुछ न कहें। अगर वो कुछ कह रहा है तो उसकी सुनें। कई बार ऐसा होता है कि आदमी के पास ख़ुद ही जवाब होता है, हमें बस उसकी परेशानी सुननी होती है, फिर वो ख़ुद ही उस परेशानी की वजह भी बता देता है। फिर ऐसे लोगों उनका मनपसन्द खाना देना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए कि वह बहुत अँधेरे में न रहें क्योंकि डिप्रेशन में पड़े व्यक्ति को लाइट्स पसंद नहीं आती। अब अगर उस व्यक्ति को लगता है कि वह थेरेपी लेने के लिए तैयार है, तब उसे बेस्ट थेरेपिस्ट के पास ले के जाना चाहिए। उनको कभी पॉजिटिव सोचने के लिए नहीं कहना चाहिए क्योंकि अगर वो पॉजिटिव सोच ही सकते तो वो डिप्रेशन में क्यों होते। इसकी बजाए उनके लाइफ स्टाइल, उनकी नींद पर मोनिटरिंग की जानी चाहिए। 6 से 8 घंटे सो रहे हैं तो ठीक, वर्ना बहुत ज़्यादा सोना और बहुत कम सोना, दोनों ही सूरतों में डिप्रेशन बढ़ता है।

आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा डॉक्टर चाँदनी, एक आखिरी सवाल आपसे, मायापुरी मैगज़ीन के रीडर्स के लिए आप कोई सन्देश देना चाहेंगी?

जी मैं यही कहना चाहूँगी कि आप छोटी-छोटी चीज़ों में ख़ुश रहना शुरु कीजिए, आप अपनी डिजायर्स को ख़ुद पर हावी मत होने दीजिए। बहुत ज़्यादा सोचने से बेहतर है कि अपनी फैमिली से सलाह कीजिए। किसी नशे की लत लगाने से कहीं अच्छा है कि आप कुछ क्रिएटिव करने लगें। नशा आपको टेम्परेरी शांत कर सकता है पर कहीं न कहीं ये आपके डिप्रेशन को बढ़ायेगा ही। तो ख़ुश रहिए, मस्त रहिए।

हमें समय देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया डॉक्टर चाँदनी

सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ द्वारा प्रतिलिपित

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