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असीमित संभावनाओं वाली फिल्म इंडस्ट्री में आनेवाले फिल्म शौकीनों को सिर्फ एकिं्टग में ही कैरियर दिखाई देता है। जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। परदे के चमकते अधिकांश सितारों से ज्यादा पर्दे के पीछे काम करने वाले तकनीशियन कमाई कर लेते हैं- नाम और पैसा दोनो ही। क्या आप यकीन करेंगे कि एक डबिंग आर्टिस्ट जो ’वॉइस ओवर’ करता है, वो आराम से लाख रुपये महीने की कमाई कर सकता है। हम यहां एक ऐसे ही डबिंग आर्टिस्ट से मिलवाते हैं जो अब तक हज़ारों फिल्मों और विज्ञापनों को अपनी आवाज दे चुके हैं। उन्होंने कई फिल्म स्टारों को पर्दे पर अपनी आवाज उधार दी है। ये हैं- बॉलीवुड के पॉपुलर डबर विनोद त्रिपाठी! - शरद रॉय
“आप बॉलीवुड में डबर की इम्पोर्टेंस कितना मानते हैं? क्या इस पेशे में कैरियर है?“
- वह मुस्कराते हैं- ’’यह बात इंडस्ट्री में आये नए कलाकार अधिक सही तरह से बता पाएंगे जो कैमरे की शूटिंग के बाद डबिंग स्टूडियो में आकर हांफ जाते हैं। जब डायरेक्टर उनको डांटकर कहता है ’तुम जाओ, प्रेक्टिस करो, डबर से करवा लेते हैं।’ और, ऐसा अक्सर होता है। शुरुआत में सभी कलाकारों के साथ ऐसी दिक्कत आती है और यहीं से डबर का काम शुरू हो जाता है। जहां तक करियर की बात है, डबिंग के काम को पूरी तरह प्रोफेशनली अपनाया जा सकता है बशर्ते क्वालिटी हो।“
विनोद त्रिपाठी ने एकिं्टग से शुरुआत किया फिर वह डबिंग आर्टिस्ट बन गए क्योंकि उनको सब कहते थे तुम्हारी आवाज में दम है। मैंने हजारों फिल्मों में वॉयसओवर किया है। दक्षिण के मेल कलाकारों के लिए और उनकी फिल्मों के लिए तो लगभग सभी के लिए अपनी आवाज दिया है।
बॉलीवुड कलाकारों को भी आवाज दिया है जैसे- धर्मेन्द्र, शक्ति कपूर, राजा मुराद, सनी देओल आदि के लिए। धरमजी (धर्मेन्द्र) की 60 फिल्मों को अपनी आवाज दी है। यह वह दौर था जब वह ’परडे’ का पेमेंट लेकर काम करना शुरू किए थे। शूट करके चले जाते थे, बादमें निर्माता डबर से डबिंग कराता था। मेरी आवाज उनको शूट करती है। सनी देओल के लिए ’गदर- एक प्रेमकथा’ की सेंसर कॉपी के लिए डबिंग की थी। प्रोड्यूसर को फिल्म सेंसर में भेजना था और सनी विदेश में थे। रजा मुराद जो आवाज के लिए जाने जाते हैं, उनकी गुजराती और राजस्थानी भाषा की कई फिल्मों को अपनी आवाज दिया हूं। साउथ की फिल्मों को, अंग्रेजी की फिल्मों को... इसी तरह गुजराती, छत्तीसगढ़, असमी भाषा के कलाकारों की फिल्म हिंदी में करने के लिए निर्माता मेरी आवाज लिया करते हैं। और, मेरे जैसे बहुत डबर हैं बॉलीवुड में।“
“क्या डबर के लिए कोई ट्रेनिंग भी होती है? एक नया आदमी कैसे इस प्रोफेशन में शुरुआत ले सकता है?“
- “ यह जमाना स्किल्ड लोगों का है। नए कलाकार भी ट्रेनिंग लेकर अपनी डबिंग खुद करने लगते हैं तब उनको डबर की जरूरत नहीं पड़ती। मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री में कई ट्रेनिंग सेंटर हैं जो डबिंग सिखाने के लिए बड़ी फीस लेते हैं। कुछ प्रोफेशनल डबर हैं जो 8-10 हज़ार लेकर सीखा देते हैं। बाद में अपने प्रयास और योग्यता पर काम मिलने लगता है।“
“वैसे, स्कोप बहुत है।“ विनोद त्रिपाठी बताते हैं। “इतने धारवाहिक, वेब सीरीज,ग्रेंजर- भीड़भाड़ वाली फिल्म व टीवी के शोज और विज्ञापन की फिल्में होती हैं कि निर्माता सबको बुलाकर डबिंग नहीं करा सकता। ये सभी वॉयसओवर (डबर) के द्वारा ही होते हैं।“
“और, सबसे बड़ी बात यह होती है कि डबिंग आर्टिस्ट बनकर, रिलेशन बनाकर यहां फिल्म निर्माता, निर्देशक या और कुछ जैसे रेडियो आदि पर जाने का रास्ता साफ हो जाता है। मैं खुद डबिंग के रास्ते कलाकार बना हूं और निर्माता भी बन गया हूं। सम्भावना हर जगह है। मेहनत करो तो डबिंग आर्टिस्ट बनने में एक अच्छा करियर है'
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