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-
सुलेना
मजुमदार
अरोरा
मायापुरी
पत्रिका
के
साथ
सुप्रसिद्ध
स्टार
एक्टर
बोमन
ईरानी
की
लंबी
बातचीत
के
मुख्य
अंशः
-
लॉक
डाउन
का
दौर
आपने
कैसे
गुजारा
और
आपको
इन
पांच
महीनों
का
अनुभव
कैसा
रहा
?
सबसे
पहले
तो
बता
दूं
कि
लॉक
डाउन
इससे
भी
बुरा
हो
सकता
था
,
इससे
भी
फ्रस्टेटिंग
हो
सकता
था
,
मैं
तो
हर
रोज
ग्रम्बल
किया
करता
था।
फिर
जब
परिस्थिति
की
गम्भीरता
सामने
आई
तो
इसे
एक
चुनौती
की
तरह
स्वीकार
करते
हुए
मैंने
मन
बना
लिया
कि
इस
लॉक
डाउन
काल
को
सकारात्मक
तरीके
से
गुजारा
जाना
चाहिए।
पहले
हमारा
जीवन
इतना
व्यस्त
था
कि
कई
कई
बार
तो
शूटिंग
के
सिलसिले
में
बीस
बीस
दिनों
तक
घर
से
बाहर
रहना
पड़ता
था
,
हफ्ते
में
दो
तीन
बार
विदेश
आना
जाना
लगा
रहता
था
,
एयरपोर्ट
अटेंडेंट
और
एयरलाइन्स
के
स्टाफ
हँसते
हुए
कहते
थे
कि
आप
तो
हम
लोगों
से
ज्यादा
उड़ाने
भरते
हो।
एक
दिन
भी
खाली
बैठे
रहने
से
घबराहट
होती
थी
लेकिन
लॉक
डाउन
जब
मुँह
बायें
सामने
आया
तो
मैंने
अपने
को
घर
पर
ही
,
इसी
परिस्थिति
में
व्यस्त
रखने
की
ठान
ली।
मैंने
समझ
लिया
कि
वक्त
के
साथ
एडजस्ट
करना
है।
मैंने
महसूस
किया
कि
इस
दौर
में
उन
लोगों
के
लिए
बहुत
कुछ
किया
जा
सकता
है
जिन्हें
लॉक
डाउन
के
कारण
बहुत
नुकसान
पहुंचा
और
जो
घर
पर
रहने
के
कारण
अपना
शिक्षण
पूरी
नहीं
कर
पा
रहें
है।
मैंने
सुबह
लोगों
को
ऑनलाइन
टीचिंग
करना
शुरू
किया
,
शाम
को
भी
कई
टीचिंग
संस्थाओं
और
छात्रों
से
जुड़ता
हूँ
,
कई
लोग
जो
इस
दौर
में
अवसाद
से
घिरे
हुए
है
,
दुखी
है
,
नर्वस
हैं।
मैं
उन्हें
हंसाने
,
उनके
साथ
बातें
करता
रहा।
मैंने
बस
ठान
लिया
कि
हर
हालत
में
अपने
को
व्यस्त
रखना
है।
लॉक
डाउन
खत्म
होने
के
बाद
अब
आप
क्या
इस
दौर
को
मिस
करने
वाले
हैं
?
बहुत
अच्छा
प्रश्न
है
,
सच
कहूँ
तो
जिन
लोगों
के
सर
पर
छत
है
और
जिन्हें
तीन
वक्त
की
रोटी
मुहैया
होती
है
उन
भाग्यशाली
लोगों
को
इस
लॉक
डाउन
के
दौर
ने
बहुत
कुछ
करने
का
मौका
दिया
जो
वे
वक्त
ना
मिल
पाने
के
कारण
अब
तक
कर
नहीं
पा
रहे
थे।
सबको
अपने
परिवार
के
साथ
बहुत
वक्त
बिताने
का
मौका
मिला
,
नई
नई
चीजें
,
नई
कलाएं
,
नए
हुनर
सीखने
का
मौका
मिला।
मैं
तो
लॉक
डाउन
को
बहुत
मिस
करूँगा।
इस
दौर
में
मैंने
अपने
ग्रैंड
चिल्ड्रन
के
साथ
खूब
वक्त
बिताया
,
ये
दौर
ना
आता
तो
मैं
उनके
दैनिक
जीवन
को
समझ
नहीं
पाता
,
उनके
बचपन
को
पनपते
देखने
का
सुख
नहीं
पाता।
मैंने
अपनी
माता
जी
के
साथ
जी
भरकर
वक्त
बिताया
,
पहले
जब
मैं
सुबह
काम
से
घर
से
निकलता
था
तो
मां
को
सोते
हुए
देखता
था
और
जब
रात
को
वापस
आता
तब
फिर
से
उन्हें
सोते
हुए
ही
देख
पाता
था।
कई
बार
बीस
बीस
दिनों
के
लिए
मैं
घर
से
बाहर
रहता
था।
लेकिन
इस
लॉकडाउन
के
दौर
में
माँ
के
साथ
सुबह
का
नाश्ता
दोपहर
का
खाना
और
रात
का
डिनर
भी
किया।
पत्नी
के
साथ
भी
ढेर
सारा
वक्त
बिताया।
वाकई
मैं
इन
दिनों
को
हमेशा
याद
करूँगा।
तो
अब
लॉक
डाउन
के
धीरे
धीरे
अन
लॉक
होने
से
आप
काम
पर
लौटने
की
तैयारी
कर
रहे
हैं
?
नहीं
,
बिल्कुल
नहीं।
वैसे
मुझे
बहुत
सारे
ऑफर्स
और
ऑपर्च्युनिटीज
आ
रही
हैं
लेकिन
मैं
अभी
इतनी
जल्दी
पहले
की
तरह
व्यस्तता
ओढ़ने
के
मूड
में
नहीं
हूँ।
बहुत
से
लोगों
ने
काम
शुरू
कर
दिया
है
,
कई
लोग
आउटडोर
भी
जाने
लगे
हैं
,
लोग
बाहर
खाना
खाने
,
घूमने
निकल
पड़े
हैं
,
ये
उनकी
च्वाॅइस
हैं
,
अच्छी
बात
है
,
सबको
थोड़ा
चेंज
चाहिए
लेकिन
मैं
इतनी
जल्द
बाजी
में
नहीं
हूँ
,
व्हाट
इज
द
हरी
?
मैँने
लॉक
डाउन
के
बाद
से
अब
तक
एक
बार
भी
घर
से
बाहर
कदम
नहीं
रखा।
मेरे
पास
घर
पर
रहकर
भी
ढेर
सारी
व्यस्तताएं
है।
हर
रोज
सुबह
मैं
,
के
सी
और
एच
आर
कॉलेज
स्टूडेंट्स
को
अटेंड
करता
हूँ
, 3000
स्टूडेंट्स
से
रोज
तरह
तरह
के
टॉपिक्स
,
समस्याओं
पर
चर्चा
और
निदान
का
सेशन
चलता
है
,
मेरा
एक
और
ग्रुप
भी
हैं
जिसमें
हजारों
सदस्य
मेरे
फैमिली
की
तरह
है।
मैं
रोज
सुबह
इस
तरह
तैयार
होता
हूँ
जैसे
बाहर
निकलते
समय
हुआ
करता
था
,
फिर
मैं
ऑनलाइन
सेशन्स
में
लग
जाता
हूँ।
परिस्थिति
इंसान
को
बेड़ियों
से
जकड़
सकता
है
लेकिन
मन
को
कोई
जकड़
नहीं
सकता।
मन
,
विचार
और
कल्पनायें
आजाद
होती
है।
आप
अपनी
लाइफ
जर्नी
के
बारे
में
बताइए
क्योंकि
आपका
जीवन
और
सफलता
बहुतों
के
लिए
प्रेरणा
है।
आपको
ऐसा
नहीं
लगता
कि
आप
बॉलीवुड
में
थोड़ा
लेट
आए
हैं
?
नहीं
,
बिल्कुल
नहीं
,
मुझे
नहीं
लगता
कि
मैंने
बॉलीवुड
में
लेट
कैरियर
शुरू
किया
है
,
मैंने
पहली
फिल्म
44
वर्ष
की
उम्र
में
की।
मेरे
कई
दोस्त
कहतें
हैं
कि
मेरे
करियर
की
शुरुआत
लेट
हुई
लेकिन
मैं
कहता
हूँ
कि
यही
सही
समय
था
मेरे
लिए।
अगर
जल्दी
आता
तो
ये
नहीं
बनता
जो
बना
हूँ।
मैं
कुछ
और
बन
जाता।
परिपक्व
उम्र
के
साथ
मुझे
ज्यादा
अनुभव
मिला
,
मैं
अपनी
भूमिकाओं
को
,
अपने
करियर
को
ज्यादा
अच्छी
तरह
हैंडल
कर
पाया।
बॉलीवुड
में
कदम
रखने
से
पहले
जब
मैं
अपनी
मां
के
साथ
दुकान
चलाता
था
,
वो
हमारी
अलग
सम्पूर्ण
दुनिया
थी।
वो
भी
बहुत
अच्छे
दिन
थे
,
मैंने
जब
से
होश
संभाला
है
तब
से
माँ
को
दुकान
में
पसीना
बहाते
देखा।
फिर
मैं
भी
बैठने
लगा।
हमारी
दुकान
के
आगे
एक
भट्टी
चलती
थी
,
उसकी
गर्मी
से
मां
हमेशा
पसीने
से
तर
बतर
रहती
थी।
लेकिन
फिर
भी
उस
जिंदगी
से
हमें
कोई
शिकायत
नहीं
थी
,
हम
मां
बेटे
बहुत
आनंद
से
रहते
थे
,
जिंदगी
सेटिस्फाइंग
थी।
बचपन
से
ही
मुझे
अभिनय
का
शौक
रहा
है
और
फोटोग्राफी
का
भी।
तो
मैंने
फोटोग्राफी
सीखी
तथा
कुछ
वर्ष
मैंने
बहुत
फोटोग्राफी
की।
फिर
मैंने
थियेटर
ज्वाइन
किया।
थियेटर
ज्वाइन
करके
मुझे
लगा
कि
मैं
अपना
मनपसंद
काम
कर
रहा
हूं।
मुझे
बहुत
खुशी
मिलती
थी।
मैं
अपने
थिएटर
ग्रुप
के
साथ
एक्सपेरिमेंटल
फिल्में
बनाने
लगा।
उस
जमाने
में
यूट्यूब
तो
था
नहीं
तो
हम
डिजिटल
पिक्चर
ही
बनाते
थे।
एक
बार
हमने
अपने
डिजिटल
पिक्चर
को
नेशनल
अवार्ड
के
लिए
भेजा
लेकिन
वहां
से
जवाब
आया
कि
यह
फिल्म
डिजिटल
होने
के
कारण
अलाउड
नहीं
है।
खैर
धीरे
धीरे
मेरे
कदम
अभिनय
दुनिया
की
तरफ
बढ़ते
गए
और
मैं
फिल्मों
में
आ
गया।
‘
डॉ
जे
अस्थाना
’
के
रूप
में
आप
बहुत
चर्चित
हुए
और
आपकी
भूमिका
आइकॉनिक
हो
गई
,
उस
बारे
में
कुछ
बताईये
?
जी
हां
,
ये
भूमिका
मेरे
लिए
काफी
यादगार
है।
लेकिन
जब
राजू
हिरानी
मेरे
पास
इस
फिल्म
के
ऑफर
के
साथ
आए
थे
तो
पहले
मुझे
स्टोरी
पसंद
नहीं
आयी
थी
,
सब
कुछ
अटपटा
लग
रहा
था
,
भला
कोई
गुंडा
डॉक्टर
क्यों
बनने
लगा
और
बना
भी
तो
कौन
उसे
पसंद
करेगा
,
लेकिन
जब
राजू
हिरानी
ने
खुद
मुझे
कहानी
नरेट
करके
सुनाई
तो
मैं
अभिभूत
हो
गया
,
मैं
पूरी
तरह
स्टोरी
में
डूब
गया
,
काम
करते
हुए
भी
बहुत
मजा
आया।
उस
फिल्म
में
बहुत
पैशन
था
,
प्यार
था
और
दिल
छूने
वाले
इमोशन्स
थे।
इस
तरह
की
ज्वलन्त
विषयों
वाली
फिल्में
लोगों
को
ज्यादा
जल्दी
समझ
में
नहीं
आती
है
इसलिए
जब
फिल्म
रिलीज
हुई
तो
पहले
दर्शकों
को
कुछ
समझ
नहीं
आया।
उस
जमाने
में
मल्टीप्लेक्स
थिएटर
नहीं
होते
थे
,
सादे
थिएटर
होते
थे
,
और
बेकार
से
बेकार
फिल्म
में
भी
थिएटर
आधी
तो
भरी
होती
ही
थी
लेकिन
ये
फिल्म
कोई
देखने
भी
नहीं
आ
रहा
था।
कहानी
किसी
के
पल्ले
ही
नहीं
पड़
रही
थी।
लेकिन
धीरे
धीरे
लोग
इस
फिल्म
का
मर्म
समझने
लगे।
माउथ
पब्लिसिटी
होते
होते
फिल्म
की
सफलता
रफ्तार
पकड़ने
लगी।
मैं
अक्सर
दर्शकों
का
जायजा
लेने
के
लिए
रात
को
अपनी
दुकान
बढ़ाकर
शटर
डाउन
करने
के
बाद
थिएटर
में
जाकर
इस
फिल्म
का
जायजा
लेता
था।
एक
दिन
फिल्म
खत्म
होने
के
बाद
जब
मैं
बाहर
आया
तो
एक
स्त्री
ने
मुझे
आवाज
दी
और
कहा
सुनिए
आपने
इस
फिल्म
में
बहुत
अच्छा
काम
किया
,
हम
लोग
खूब
कमाएंगे।
मैं
हैरान
रह
गया
कि
हम
लोग
खूब
कमाएंगे
का
क्या
मतलब
?
फिर
मालूम
पड़ा
कि
वो
ब्लैक
में
टिकट
बेचती
है।
उसने
समझाया
कि
यह
फिल्म
सुपर
हिट
होने
वाली
है
और
जल्दी
ही
उसे
ब्लैक
में
टिकट
बेचना
पड़ेगा।
यानी
इन
लोगों
को
मालूम
पड़
जाता
है
कि
कौन
सा
पिक्चर
हिट
हो
जाएगी
और
वाकई
में
वह
फिल्म
ब्लॉकबस्टर
फिल्म
साबित
हुई।
इस
फिल्म
के
बाद
आपको
कैसा
महसूस
हुआ
,
क्या
आपको
लगा
कि
आपने
मंजिल
हासिल
कर
ली
?
नहीं
,
एक
कलाकार
के
लिए
ये
एहसास
होना
ही
नहीं
चाहिए
कि
उसे
फलां
सफलता
के
बाद
मंजिल
मिल
गई।
यह
संतोष
दिल
में
आ
जाए
तो
कलाकार
आगे
बढ़ना
बंद
कर
देता
है
,
वह
बासा
हो
जाता
है।
रिटायर्ड
महसूस
करता
है।
ऐसे
में
वो
सिर्फ
बैकग्राउंड
में
बैठकर
दुनिया
को
आगे
बढ़ते
देखने
लगेगा।
मैं
कभी
मंजिल
मिलने
की
बात
नहीं
सोचता।
मैं
हमेशा
सोचता
हूं
कि
अभी
मेरे
लिए
दिल्ली
दूर
है।
मुझे
और
भी
मंजिलें
तय
करनी
है।
मेरे
संतोष
का
पैमाना
अभी
भी
भरा
नहीं
और
भरना
भी
नहीं
चाहिए।
आप
अमिताभ
बच्चन
जी
को
देख
लीजिये
,
मैं
तो
उन्हें
इस
तरह
अथक
काम
करते
देखकर
हैरान
रह
जाता
हूं।
उन्हें
प्रचुर
सफलता
मिल
चुकी
है
,
वे
चाहे
तो
आराम
कर
सकते
हैं
,
लेकिन
नहीं
,
वे
सतत
काम
किए
जा
रहे
हैं।
अभी
-
अभी
वे
कोविड
-19
की
चपेट
से
उबरे
हैं
लेकिन
बिना
आराम
किए
फिर
से
शूटिंग
में
लग
गए
,
केबीसी
का
नया
सीजन
कर
रहे
हैं।
वे
मेरे
लिए
प्रेरणा
है।
उनके
साथ
मैंने
फिल्मों
में
काम
किया।
शूटिंग
से
पहले
जब
हम
लोग
बातचीत
करते
तो
हम
तमाम
विषयों
पर
खूब
बातें
करते
,
लेकिन
जैसे
ही
टीम
का
कोई
सदस्य
आकर
शॉट
रेडी
होने
की
बात
करता
तो
वे
एकदम
उठकर
शॉट
देने
चले
जाते।
यानी
वे
हर
वक्त
रेडी
रहतें
हैं।
मैं
भी
यही
जज्बा
रखना
पसंद
करता
हूं।
आप
इतने
लोकप्रिय
हैं
,
आपके
लाखों
फैन्स
हैं
,
क्या
कभी
फैन्स
के
साथ
कोई
दिलचस्प
,
फनी
घटना
घटी
?
मेरे
लिए
मेरे
सारे
फैन्स
बहुत
अनमोल
हैं
,
वे
मुझसे
जितना
प्यार
करते
हैं
मैं
भी
उनसे
उतना
ही
प्यार
करता
हूँ।
मैं
अपने
फैन्स
की
बहुत
कद्र
करता
हूं
और
उन
पर
बहुत
ध्यान
भी
देता
हूं।
हाँ
,
कई
बार
मजेदार
बातें
भी
घटती
रहती
है
उनके
साथ।
कोई
फैन
मुझे
किसी
नाम
से
पुकारते
हैं
तो
कोई
किसी
नाम
से।
एक
बार
बहुत
सारे
लोगों
के
बीच
एक
फैन
ने
मुझसे
कहा
कि
उसे
मेरी
एक
फिल्म
बिल्कुल
पसंद
नहीं
आई।
जब
मैंने
उनसे
उस
फिल्म
का
नाम
पूछा
और
उन्होंने
जिस
फिल्म
का
नाम
बताया
उसमें
मैं
था
ही
नहीं।
यह
सुनकर
सब
लोग
हंस
पड़े।
मैं
अपने
चाहने
वालों
को
‘
फैंस
’
कहना
पसंद
नहीं
करता।
वे
मेरे
प्यारे
हैं
,
खासकर
बच्चे।
मेरे
बहुत
सारे
बच्चे
प्रशंसक
भी
है
,
मैंने
एक
चीज
नोट
किया
है
कि
कई
बच्चे
प्रशंसक
बहुत
ही
शर्मीले
नेचर
के
होते
हैं।
चाहकर
भी
वे
पास
नहीं
आ
पाते
,
उनके
पैरेंट्स
उन्हें
कहते
हैं
कि
पास
जाकर
मिल
लो
,
लेकिन
वे
शर्माते
है।
मैं
ऐसे
प्रशंसको
को
बहुत
नोटिस
करता
हूँ
और
ख्याल
रखता
हूँ।
बचपन
में
मैं
भी
बहुत
शर्मीला
था
,
क्लास
में
आगे
बढ़कर
कुछ
भी
बोलने
से
शर्माता
था।
यहां
तक
कि
जब
मुझे
किसी
प्रश्न
का
जवाब
आता
भी
हो
तो
भी
मैं
खड़े
होकर
सबके
सामने
नहीं
बोल
पाता
था।
यह
अलग
बात
है
कि
बड़े
होने
के
बाद
मैं
बदल
गया।
आपने
थिएटर
प्लेज
किए
,
फिल्मों
में
,
टीवी
में
भी
काम
किया
,
अब
ओटीटी
फिल्मों
और
सीरीज
में
कब
दिखेंगे
?
मैं
फिलहाल
अपनी
खुद
की
फिल्म
बनाने
की
दिशा
में
काम
कर
रहा
हूं।
बचपन
से
ही
मेरा
एक
सपना
था
कि
मैं
अपनी
फिल्म
बनाऊं।
अब
समय
आ
गया
है।
मैंने
खुद
अपनी
फिल्म
की
स्क्रीन
प्ले
लिखी
है।
जल्द
ही
मैं
यह
फिल्म
शुरू
करूंगा।
मैं
हर
प्लेटफार्म
पर
काम
करने
में
खुशी
महसूस
करता
हूं।
मेरे
लिए
छोटा
पर्दा
या
बड़ा
पर्दा
जैसी
कोई
चीज
नहीं
है।
मैं
तो
ऐड
फिल्म
में
भी
अपने
चरित्र
को
जी
भर
कर
जीता
हूं।
बस
रोल
दिलचस्प
हो
तो
मैं
हर
प्लेटफार्म
पर
दिखूंगा।
आपकी
आने
वाले
प्रोजेक्ट्स
?
बहुत
सारे
हैं
,
गिन
गिन
के
नहीं
बता
पाऊंगा।
एक
फिल्म
में
मैं
मशहूर
क्रिकेटर
और
कमेंटेटर
फारुख
इंजीनियर
की
भूमिका
निभा
रहा
हूँ।
एक
और
खूबसूरत
फिल्म
‘
जयेश
भाई
जोरदार
’
मेरी
आने
वाली
फिल्म
है
जिसे
युवा
निर्देशक
दिव्यांग
ठक्कर
ने
बहुत
खूबसूरती
से
बनाई
है।
यह
फिल्म
गुजरात
की
खूबसूरत
लोकेशंस
में
शूट
की
गई
है।
आप
कुछ
और
कहना
चाहते
हैं
?
मेरी
बस
यही
दुआएं
है
कि
कोविड
-19
की
समस्या
का
जल्दी
ही
निदान
मिल
जाए
और
थियेटर्स
खुल
जाए।
हमारे
बॉलीवुड
में
बहुत
से
ऐसे
लोग
डेली
वेजेस
पर
काम
करते
हैं
उन्हें
पहले
की
तरह
काम
मिलता
रहे
और
सब
कुछ
पहले
जैसा
हो
जाए।
आप
हमारी
पत्रिका
मायापुरी
के
बारे
में
क्या
कहेंगे
?
मायापुरी
पत्रिका
जब
से
शुरू
हुई
है
तब
से
मैंने
इसका
नाम
सुना
है।
शुरू
शुरू
में
मुझे
यह
पता
नहीं
था
कि
यह
एक
फिल्म
पत्रिका
है।
मुझे
लगता
था
मायापुरी
नाम
की
कोई
फिल्म
बन
रही
है
क्योंकि
रेडियो
में
उन
दिनों
मायापुरी
की
बहुत
ऐड
आती
थी
,
जिसमें
बोला
जाता
था
कि
मायापुरी
में
अमिताभ
बच्चन
है
,
धर्मेंद्र
है
,
ऋषि
कपूर
है
,
डिंपल
कपाड़िया
है
,
हेमा
मालिनी
है
,
जीनत
अमान
,
परवीन
बॉबी
,
राखी
है।
यह
सुनकर
मुझे
लगता
था
कि
मायापुरी
कोई
फिल्म
का
नाम
है
जिसमें
इतने
बड़े
-
बड़े
कलाकार
एक
साथ
काम
कर
रहे
हैं।
एक
दिन
मैंने
जब
पूछताछ
की
तो
मुझे
मालूम
पड़ा
कि
मायापुरी
कोई
फिल्म
नहीं
,
बल्कि
फिल्म
की
एक
मशहूर
वीकली
पत्रिका
है।
तब
मैंने
मायापुरी
खरीदी
और
उसका
फैन
बन
गया।
आज
भी
मैं
मायापुरी
पढ़ता
हूँ।
यह
एक
कंपलीट
हिंदी
फिल्म
मैंगजीन
है।