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'-ज्योति वेंकटेश
अभिनय में मुझे अलग - अलग किरदार में जीना बहुत आकर्षित करता है और मुझे अंदर से खुशी महसूस होती है , अगर आप मुझे कोई ऐसा काम करने को दें जिसमे आनंद की अनुभूति न हो तो मैं नहीं कर पाऊंगी .ये मुझे आनन्द की अनुभूति कराता है. अभिनय एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिये आप समाज में बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं । मैंने कभी भी लीक पर चलने में विश्वास नहीं किया.पथ बनाने में मेरा विश्वास है ।
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ये मेरी पहली फ़िल्म है और इसकी खासियत है कि ये सिंगल करैक्टर फ़िल्म है अभी तक कोई ऐसी फिल्म नहीं आयी जो सिर्फ एक किरदार पर हो। इसके पहले वैसे मैंने 'परमावतार श्रीकृष्णा' सीरियल में काम किया है।
मुझे हमेशा प्रेरणादायक किरदार करने अच्छे लगते हैं। जैसे मैरी कॉम फ़िल्म से मैं बहुत प्रभावित हुई । ऐसे किरदार जिससे समाज में कुछ बदलाव लाया जा सके .मैं ठुमके लगाने से ज़्यादा भरोसा उन किरदारों पर करती हूँ जिससे हमारे देश का युवा कुछ सीखे सिर्फ मनोरंजन के लिए न देखे । एक लाइन में कहूँ तो 'लक्ष्य केंद्रित फिल्में।'
जी हाँ मैं हमेशा अच्छे किरदार करने के पक्ष में हूँ फिर चाहे वह वेब हो फिल्में हों या TV serials क्योंकि मुझे लगता है सबका अपना अलग फ्लेवर है और हर किरदार कुछ सिखा के जाता है।
देखिए रही बात एक्सपोज़ की तो ये निर्भर करता है कि किरदार कैसा है क्या उस किरदार में एक्सपोज़ की ज़रूरत है या जबरदस्ती डाला गया है।
अमिताभ बच्चन जी मेरे हमेशा से पसंदीदा रहे हैं। मुझे लगता है कि हर एक कलाकार को अमित जी से सीखना चाहिए .बहुत कुछ सीखा है मैंने उनके जीवन से .मेरी कहानी भी कुछ मिलती जुलती है। और अभिनेत्रियों में मुझे राधिका आप्टे बहुत पसंद है । राधिका का चेहरा सामान्य है बहुत गोरी नहीं है लेकिन उन्होंने अपनी एक्टिंग की बदौलत इन सब चीजों को पीछे छोंड़ दिया। जहाँ एक तरफ ज्यादातर लोग सुंदर चेहरा और height देखते हैं वहीं राधिका ने अपने बेहतरीन अभिनय से सबको मात दी है।
वैसे तो सभी डायरेक्टर्स का अपना अलग टेस्ट और स्टाइल भी है लेकिन अगर मुझे काम करने का मौका मिला तो मैं अनुराग कश्यप , संजय लीला भंसाली और प्रकाश झा के साथ काम करना पसंद करूँगी । अनुराग कश्यप ने फिल्मों में चल रहे पुराने ट्रेंड को बदला है जहाँ पर लोग सिर्फ सुंदर चेहरे लेते हैं वहाँ पर वो बहुत सामान्य से चेहरे को लेकर उसे बड़ा बना देते हैं जो हिट भी होती हैं। मुझे हमेशा बदलाव लाने वाले लोग पसंद हैं। प्रकाश झा और संजय लीला भंसाली का टेस्ट अलग है वो कहानी को इतने इंटरेस्टिंग तरीके से दिखाते हैं कि किसी का भी मन मोहित हो जाए और उनके सेट डिज़ाइन भी देखने वाला होता है ।
देखिए कास्टिंग काउच के बारे में बोलना इसलिए उचित नहीं है क्योंकि मेरा कभी इनसे सचमुच पाला नहीं पड़ा। और सुनी सुनाई बातों पर मैं भरोसा नहीं करती ।
मुझे रिजेक्शन बहुत मिले हैं कभी हाइट को लेके तो कभी गोरी चमड़ी न होने की वजह से। देखिए ईश्वर की कोई भी कृति खराब नहीं हो सकती। जिन्होंने मुझे रिजेक्ट किया इस वजह से उन्हें मैं गलत नहीं मानती हूँ क्योंकि आप ख़ुद सोचिये अगर हीरो लम्बा है और हीरोइन छोटी तो कैसा लगेगा ? मैंने हमेशा ये सोच कर काम किया कि अगर मैं अपनी हाइट बढ़ा नहीं सकती तो क्या हुआ मैं अपना कद बड़ा करूँगी और इंडस्ट्री में ऐसे कई उदाहरण है जिन्होंने कम हाइट के बावजूद सफलता पाई है। ईश्वर पर भरोसा करती हूँ कि जो मेरा है वो मुझे मिलेगा बस मेहनत में कमी नहीं होनी चाहिए।
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मुझे अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित और मेरे करियर में साथ देने वाला बॉयफ्रेंड पसंद है। दिन भर बाबू शोना करने वाले, शक करने वाले लोग पसंद नहीं । एक दिल में एक ही चीज़ रह सकती है या तो प्रेम या शक । हर चीज़ में मुझसे ज़्यादा टैलेंटेड और रूह से प्रेम करने वाला बॉयफ्रेंड पसंद है।
मैं इसकी सख्त विरोधी हूँ। मैंने अपनी कई सहेलियों की जिंदगियां बर्बाद होते देखी है। ज़्यादातर युवा इसी चक्कर में अपना बहुमूल्य समय खो देते हैं। बात दरअसल ये है कि दोनों साथ में इसलिए नहीं रहते कि प्रेम है बल्कि वे एक दूसरे की सिर्फ ज़रूरत पूरी कर रहे होते हैं। और जहाँ सिर्फ ज़रूरत हो वहाँ प्रेम बिलकुल हो ही नहीं सकता।हमारी समस्या ये है कि हमारी इतनी अच्छी संस्कृति को छोंड़कर हम पश्चिमी सभ्यता के पीछे भागे हुए हैं। अधिकतर लोगों की लिव इन के बाद या तो उस पार्टनर से शादी नहीं होती या तो कुछ सालों बाद टूट जाती है।
नेपोटिसम के बारे में मेरी ये राय है कि आप meहनत करते हैं ताकि आपके बच्चे आने वाले दिनों में आराम से बैठ के खा सकें। इस देश का ऐसा कौन सा पिता है जो अपने बच्चों को आगे नहीं बढ़ाता..! हाँ किसी का हक छीनना गलत है या राजनीति करके उसे उस जगह से हटाना गलत है लेकिन अगर कोई पिता या माता अपने बच्चों के लिए कुछ करते हैं तो उसमें कुछ भी बिलकुल गलत नहीं है...। केवल सिनेमा ही क्यों आप हर जगह देखिए सब अपने ही लोगों को आगे बढ़ाते हैं और इसमें ग़लत कुछ नहीं है।
पायल घोष और अनुराग कश्यप का पूरा मामला जाने बिना मैं कुछ भी नहीं बोल सकती। लेकिन इतना ज़रूर कहना चाहती हूँ कि अगर किसी लड़की को कोई दिक्कत हो तो वो ठीक उसी वक़्त बोले या विरोध करे 5-6 साल बाद आके बोलने का कोई तुक नहीं बनता। रही बात अनुराग कश्यप की तो मैं उन्हें करीब से नहीं जानती और सुनी सुनाई बातों पर किसी व्यक्ति के बारे में कोई राय नहीं बनाती। और किसी फील्ड की बात होती तो मानी जा सकती थी लेकिन बॉलीवुड में अगर लड़की की इच्छा न हो तो कोई भी व्यक्ति किसी लड़की को ज़बरदस्ती हाथ नहीं लगाता। बाकी सच झूठ तो आपके सामने आ ही जायेगा।
Drug / film Industry के बारे में मेरी ये राय है कि ड्रग्स सिर्फ फ़िल्म इंडस्ट्री में ही नहीं है हर जगह है ...इसे खत्म करने के लिए उसके users को नहीं जहाँ से लाया जाता है वहाँ से सख्त कार्यवाही हो .जब आयेगा ही नहीं तो लोग यूज़ कैसे करेंगे ।
कविता मेरे जीवन का अभिन्न अंग है । आज अगर मैं यहाँ तक पहुँची हूँ तो ये कविता की ही देन है उसके बगैर मैं अधूरी हूँ। कविता कोई काम नहीं है कि करना ही है ये मन का भाव है आत्मा की तृप्ति है इसे लिखने के लिए समय की ज़रूरत नहीं होती । ये माँ सरस्वती का आशीर्वाद है सीधे वहीं से आता है ...मैं चाहूं कि कुछ आज लिख लूँ तो मेरी औकात नहीं है जब तक माँ सरस्वती की अनुकंपा न हो.।
अभी मैंने ' भुताहा' फ़िल्म की है । इसके बाद एक- दो प्रोजेक्ट पर बातचीत चल रही है जल्दी ही सूचित करूँगी। इस फ़िल्म में सिर्फ एक ही किरदार है जो मैंने किया है । ये पत्रकारों के ज़द्दोज़हद ही कहानी है जिसमें सुपर नेचुरल थ्रिलर का तड़का भी है । एक सामान्य सी घटना पर आधारित फिल्म है जो कि हर इंसान पर कभी न कभी घटित हुई होगी । हर उम्र का इंसान इसे अपनी कहानी से ज़रूर रिलेट कर पायेगा । इसे डायरेक्ट किया है 'रूपेश कुमार सिंह ' ने । yellow flames entertainment के बैनर तले बनी ये फ़िल्म आप OTT प्लेटफॉर्म ' Movies' पर देख सकते हैं।
आप मुम्बई कब आयी? क्या आपका कोई बैकग्राउंड है इंडस्ट्री में..एक मीडियम क्लास फैमिली कभी सपोर्ट नहीं करती क्या आपके परिवार का सहयोग है ?
2015 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा देने के बाद मुझे लगा कि अब मुम्बई चलना चाहिए । वहां पर अभिनय का कोई स्कोप नहीं था । और जब आप उर्वरा भूमि में कोई बीज बोते हैं वो जल्दी फल देता है बजाय बंजर भूमि के। मैंने छोटी उम्र से अलग- अलग शहरों में जाके कवि-सम्मेलन करना शुरू कर दिया था। पिताजी ने कभी मुझे लड़की नहीं समझा उनकी सोच ने मुझे आज यहां खड़ा किया है। मेरा फिल्मी कोई बैकग्राउंड नहीं है बस आत्मविश्वास और सपनों को पूरा करने की चाहत कूट-कूट के भरी है । शुरू में पिताजी के अलावा किसी का सपोर्ट नहीं था धीरे - धीरे सबने स्वीकार कर लिया । अब वो काफी खुश रहते हैं। काफी संघर्ष किया मुम्बई की ऐसी कोई गली कूची बाकी नहीं रही जहां मैंने जूते न घिसे हों। लेकिन ईश्वर की कृपा से 5 साल बाद मुझे ये फ़िल्म ऑफर हुई उस वक़्त जब मैं निराश होकर मुम्बई छोड़कर वापस घर जाने की तैयारी कर रही थी। ईश्वर के प्रति मेरा अटूट विश्वास तो था ही लेकिन इसके बाद हज़ार गुना और बढ़ गया। अब मैं ये बात कह सकती हूँ कि हर एक का सपने सच होते हैं ।
आप देश के युवाओं को क्या संदेश देना चाहती हैं ?
युवाओं से मैं बस इतना कहना चाहती हूँ कि सपने सच होते हैं बस अपनी मेहनत और ईश्वर पर भरोसा रखें । सफलता का कोई शार्ट कट नहीं होता। शिद्दत से कोई चीज़ चाहो तो मिलती ज़रूर है ।