एक बच्चे की सपने की खोज आखिर कामयाब हो गयी By Ali Peter John 03 Mar 2019 | एडिट 03 Mar 2019 23:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर अली पीटर जॉन ये लखनऊ के छोटे से लड़के की एक छोटी सी कहानी है, जिसका नाम त्रिनेत्र बाजपेयी था। वो जब सिर्फ 11 साल के थे तो अपनी जानी- मानी लेखिका माँ ’शान्तिकुमारी बाजपेयी’ के साथ फिल्म ’प्रोफेसर’ देखने गए थे जिसमें शम्मी कपूर हीरो और उस समय की नयी-नयी हीरोइन कल्पना थीं! इस फिल्म का निर्देशन लेख टंडन ने किया था जो कुछ समय के लिए राज कपूर के सह निर्देशक थे, और यह नौकरी उन्हें राज के पिता ’पृथ्वी राजकपूर’ जो कि पृथ्वी राज थिएटर के संस्थापक थे उन्होंने दिलवाई थीं। वो छोटा बच्चा उस फिल्म से इतना प्रेरित हुआ खासकर उसके निर्देशन से (ये तारीफे काबिल बात है की एक 11 साल का बच्चा फिल्म में निर्देशन के महत्त्व को समझता था) कि जब वो सिनेमा घर के बाहर निकल रहा था तो उसने कहा की चाहे कुछ भी हो जाये एक दिन वो भी फिल्म बनाएगा जिसका निर्देशन लेख टंडन करेंगे। त्रिनेत्र बाजपेयी ने अपनी पढ़ाई की और बहुत बड़ा कैमिकल इंजीनियर बना और जल्द ही अपनी कंपनी भी खोल ली जो गल्फ व अन्य देशों के प्रोजेक्ट्स करती थी। वो करीबन 18 साल तक भारत से बाहर रहे, पर उनकी दूरदर्शिता ने उन्हें बांद्रा में लिंकिन रोड पर एक ऑफिस खरीद वाया, उस समय मुंबई में प्रॉपर्टी के दाम इतने डरावने नहीं थे जितने की अभी हैं. वो ज़िन्दगी में एक के बाद एक सफलता की ओर कदम बढ़ाते गए और तब तक नहीं रुके जब तक उन्हें लगने लगा की उन्होंने जितना कभी सपने में भी नहीं सोचा था उतना पा लिया है, फिर वो अपने इस पुराने हुए ऑफिस में भारत वापस आ गए और अनुभवी कैमिकल इंजीनियरों के साथ अपना काम जारी रखा। हालांकि उन्होंने फिल्मों के लिए अपना जुनून कभी नहीं छोड़ा चाहे वो हिंदी सिनेमा हो या विश्व सिनेमा. उन्होंने ज़रूर ही अपने जुनून पर बहुत मेहनत की होगी क्योंकि जब वो वापस आये तो उनके पास सिनेमा का इतना ज्ञान था कि शायद ही किसी फिल्म इतिहासकार, फिल्म समीक्षक और फिल्म आलोचकों को होगा जो सब कुछ पता होने का दावा करते हैं पर कुछ भी नहीं जानते थे जब वो त्रिनेत्र बाजपेयी के सामने होते थे। उनके पास क्लासिक फिल्मों की लाइब्रेरी थी, जहाँ विश्व सिनेमा की हर फिल्म थी, जितने भी लोग सिनेमा जगत में महत्त्व रखते हैं उनकी ऑटो बॉयोग्राफी वहां थी और उनके ऑफिस का एक पूरा हिस्सा फिल्मों के तथ्यों और रोचक बातों से सजा हुआ था! जब वो अपने प्रतिष्ठित प्रोजेक्ट के बारे में बात करते थे तब वो सबके द्वारा भुला दी गई फिल्मों के बारे में भी छोटी से छोटी बात एक सांस में बता सकते थे। वो कंप्यूटर की तरह थे कि किसी ने अगर उनसे दादा साहब फाल्के से लेकर संजय लीला भंसाली के युग तक , मूक और टॉकीज़ युग से लेकर महान सिनेमा के युग तक अगर किसी ने उनसे किसी महत्वहीन फिल्म या सितारे के बारे में भी पूछ लिया तो उनके पास छोटे से लेकर बड़ी बात का विस्तार से पता होता था। वो इस ज्ञान से इतने अमीर थे की कई ज्ञाता उनकी सलाह मांगते थे और जब सिनेमा के ज्ञान को बांटने की बात आती थी तो उनका दिल बहुत बड़ा था वो कभी उसे बांटने से हिचकते नहीं थे. उनकी सिनेमा के प्रति इतनी रूचि थी की उनके पास फ़िल्मी मैगजीन्स, अखबारों और टेबोलॉइड का कलेक्शन था. इन सब जानकारियों के अलावा उनके पास देव आनंद, दिलीप कुमार के बारे में जो भी लिखा गया उसका पूरा कलेक्शन था और कुछ ऐसी दुर्लभ तस्वीरें थीं जो किसी के पास मौजूद नहीं थीं. मैं तब उनसे बहुत प्रभावित हो गया जब उन्होंने एक अनजान से लेखक की भी लेखनी को संभाल के रखा था वो भी खुद से। जैसे ही वो मुंबई आये थे वैसे ही उनका पहला सपना था लेख टंडन से मिलने का जिन्होंने सालों पहले उन्हें इस कदर प्रभावित किया था. बाजपेयी एक दृढ निश्चय वाले व्यक्ति थे की वो तब तक शांत नहीं बैठे जब तक उन्होंने अपने बॉलीवुड के सपनों के निर्देशक को ढूंढ नहीं लिया, वो मुझसे भी लेख टंडन के द्वारा ही मिले और हमने काफी वक़्त फिल्म और उसके लोगों के बारे में बात करने में गुज़ारा। जो प्लान उन्होंने अपनी माँ के साथ बनाया था उसे पूरा करने का समय आ गया था, उन्होंने लेख टंडन से सीरियल निर्देशित करने का आग्रह किया और, लेख टंडन जो अनुभव के धनी थे जिन्होंने कई सीरियल बनाये थे और शुरुआत शाहरुख खान के सीरियल बनाने से की थी उस समय जब वो कुछ भी नहीं थे, इसके लिए तैयार हो गए। बाजपेयी अपनी माँ के द्वारा लिखी गई नॉवल ’व्यवधान’ पर सीरियल बनाना चाहते थे जिसके ऊपर वो जाने-माने फिल्म मेकर्स जैसे ’बी.आर चोपड़ा’ और ’विजय आनंद’ के साथ फिल्म बनाना चाहते थे पर कुछ कारणों से वैसे हुआ नहीं। लेख टंडन ने सीरियल जगत के बेहतरीन कलाकारों को इसमें लिया जिसे आज ’बिखरी आस और निखरी प्रीत’ के नाम से जाना जाता है। इस सीरियल के गीत, ’नश्क लयालपुरी’ और ’अहमद वासी’ जैसे कवि और संगीत ’पद्मभूषण खय्याम’ ने दिया था जिन्होंने शायद सीरियल के लिए पहली और आखरी बार संगीत दिया था। “बिखरी आस....“ दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था. ये डी डी के साथ हुई सबसे अच्छी चीज़ मानी जाती है। त्रिनेत्र बाजपेयी का भी सपना पूरा हुआ था, और उन्होंने अपना बैनर भी स्थापित कर लिया था। इस बीच बाजपेयी जी की लेखिका बेटी दो बड़ी किताबें ’दोज़ मैग्निफिसिएंट माय एंड देयर म्यूज़िक’ और देव आनंद साहब की पूरी बायोग्राफी ’देव एटर्नल आनंद’ पूरी कर चुकी थी जिसे फिल्म और गीत प्रेमियों की तरफ से काफी सराहना मिली थी। बाजपेयी जी की कैमिकल इंजीनियर वाली कंपनी भी मजबूत हो रही थी पर वो लेख टंडन के साथ मिलकर एक फिल्म बनाने वाले सपने को साकार करने के लिए इसे छोड़ने को तैयार थे। उन्होंने फिल्म बनाने के लिए कई विषयों पर विचार किया पर उस समय के ज्वलंत विषय ’तीन तलाक़’ के ऊपर फिल्म बनाने को राज़ी हुए. इस विषय पर फिल्म बनाना थोड़ा जोखिम भरा था क्योंकि हर दूसरे दिन ये अखबारों की हैडलाइन बन रहा था, पर उस विषय को भी पता नहीं था की दो जुनून से भरे इंसान इसमें अपने हाथ रंगना चाहते थे। लेख टंडन एक बार फिर अपने विश्वसनीय कलाकारों को इस फिल्म में लेकर आये जिसे नाम दिए गया ’फिर उसी मोड़ पर’. फिल्म को उस समय चल रही हर कॉन्ट्रोवर्सी को ध्यान में रखकर बनाया गया, जब लेख टंडन को संगीत निर्देशकों के साथ परेशानी हुई तो उन्होंने केमिकल इंजीनियर, त्रिनेत्र बाजपेयी को संगीत निर्देशक में तब्दील होने के लिए प्रेरित किया जो की बहुत चौंकाने वाला था, पर लेख टंडन को मालूम था की वो क्या कर रहे हैं, उन्होंने उनके पसंदीदा संगीत निर्देशक ’शंकर-जयकिशन’ को उनमें देखा था, बाजपेयी को ये चुनौती लेनी पड़ी, उन्होंने हारमोनियम पर अपनी उँगलियाँ घुमाई और कुछ जादू निकल कर आया... उन्होंने कर दिखाया!! हालांकि पूरी यूनिट को एक ऐसा झटका लगा जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। लेख टंडन जो उस समय 80 की उम्र के थे शूटिंग ख़त्म होते ही किसी रोग से बीमार पड़ गए जिसने उनकी ज़िन्दगी ले ली और वो अपने सपने को अधूरा छोड़ गए। बाजपेयी को तब ये ज्ञात हुआ की उन्हें ही पोस्ट प्रोडक्शन की फिर उसके प्रमोशन और आखिर में फिल्म की रिलीज़ तक की सारी चुनौतियां से उन्हें खुद ही जंग करनी होगी! उन्हें सारे उतार चढाव का सामना खुद ही करना पड़ा उन्होंने इसे एड़ी चोटी का ज़ोर लगा कर पूरा किया और फिल्म को रिलीज़ किया जिसे उस समय के विख्यात निर्देशक स्वर्गीय लेख टंडन ने बनाया था. वो कहते हैं न कि अगर अपने जुनून को पूरी निष्ठा, परिश्रम और विनम्रता से करो तो वो उसका फल ज़रूर मिलता है और यह त्रिनेत्र बाजपेयी के सन्दर्भ में बिल्कुल सही बैठता है। संयोगवश “फिर उसी मोड़ पर“ सम्मानित मराठा मंदिर में रिलीज़ होने वाली पहली फिल्म थी ये पहली बार था जब ’फिर उसी मोड़ पर’ फिल्म का होर्डिंग उस प्रसिद्ध रास्ते पर लगा था जहाँ दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे पच्चीस सालों से लगी हुई थी और एक रिकॉर्ड बना रही थी जो न कभी हुआ था और न कभी होगा। त्रिनेत्र बाजपेयी ने स्वयं छोटी से छोटी चीज़ को ध्यान देकर किया क्योंकि वो खुद के सपने और उनके मेंटर की आत्मा को निराश नहीं कर सकते थे! बाजपेयी इतने खुश और इतने उत्साहित, अपनी अभिनेत्री पत्नी ’कनिका बाजपेयी’ जो की फिल्म में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही थीं, उनकी बेटी अंशुला जो स्वतंत्र लेखिका थीं और लंदन में काम कर रही थीं, जिनकी हिंदी सिनेमा में जानकारी बिल्कुल अपने पिता जैसी ही थीं उनके बिना नहीं हो सकते थे। त्रिनेत्र जैसे व्यक्ति को सफल होना ही था क्योंकि उनकी सफलता के साथ कई लोगों का भविष्य जुड़ा हुआ था जो उस फिल्म में किसी न किसी तरीके से शामिल थे. क्योंकि उनके अनगिनत सुझाव, उनका ज्ञान, सपनों के शहर (फिल्म इंडस्ट्री) को रहने और और काम करने की एक बेहतर जगह बना सकते थे जहां वास्तविक दुनिया में वास्तिविक सपनों को सच होने के मौका मिलेगा। #bollywood #Trinetra Bajpai #Phir Usi Mod Par #Lekh Tondon हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article