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‘‘पिछली फिल्म से सीखा कि हमें क्या नहीं करना चाहिए..’’- इमरान हाशमी

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By Mayapuri Desk
‘‘पिछली फिल्म से सीखा कि हमें क्या नहीं करना चाहिए..’’- इमरान हाशमी
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सीरियल किसर की ईमेज से छुटकारा पाने में इमरान हाशमी को एक लंबा वक्त लग गया. इस बीच उन्होने ‘शघाई’, ‘डर्टी पिक्चर्स’, ‘अजहर’ जैसी कुछ बेहतरीन फिल्में की. ‘टाइगर’ और ‘बार्ड ऑफ ब्लड’ जैसे अंतर्राष्ट्रीय प्रोजेक्ट किए. कुछ समय पहले उन्होंने फिल्म ‘व्हाय चीट इंडिया’ का निर्माण किया व उसमें मुख्य भूमिका निभायी थी, जिसे सफलता नहीं मिली.जब कि यह एक बेहतरीन विषय पर आधारित फिल्म थी. ऐसे मुद्दों पर देष में बात करने की सबसे ज्यादा जरुरत भी है. बहरहाल, इन दिनों वह फिल्म ‘द बॉडी’ को लेकर चर्चा में है, जो कि एक स्पेनिश फिल्म का भारतीयकरण है।

आपकी पिछली फिल्म ‘व्हाय चीट इंडिया’ को सफलता नहीं मिली, जबकि आप इसके निर्माण से भी जुड़े हुए थे?

- इस फिल्म को हम जिस तरह से बनाना चाहते थे, फिल्म कुछ उस तरह नहीं बनी.दर्शकों को फिल्म की बहुत सारी चीजें पल्ले भी नहीं पड़ी. बहुत सारी चीजें हमने एक टेक्स्ट में कह दिया. दर्शकों को ज्यादा एक्सपोजर के साथ नहीं समझाया. इमोशन की भी कमी रह गयी थी. यह एक अनुभव रहा. हमने एक फिल्म बनाई, हमें लगा कि दर्शकों को पसंद आएगी, लेकिन दुर्भाग्यवश उनको पसंद नहीं आयी।

 इस अनुभव का फायदा दूसरी फिल्म के समय मददगार साबित होगा?

- मुझे लगता है कि ‘व्हाय चीट इंडिया’ से मुझे यह तो समझ में आ गया कि मुझे क्या नहीं करना चाहिए.फिल्म के विषय को लेकर कोई समस्या नहीं रही. लेकिन इसमें बहुत सारी चीजें होनी चाहिए थी, जिससे दर्शक उससे आकर्षित होते. अच्छे गाने होने चाहिए थे, जो गाने थे, वह दर्षकों को पसंद नही आए. भावनाओं की भी कहीं कुछ कमी थी. लोग समझ नहीं पाए कि मेरा किरदार हीरो है या विलेन है. जो पश्चिमी देशों में पसंद किया जाता है, वह यहां नहीं है।

‘‘पिछली फिल्म से सीखा कि हमें क्या नहीं करना चाहिए..’’- इमरान हाशमी इमरान हाशमी

 आपकी नई फिल्म ‘द बॉडी’ क्या है?

- यह फिल्म एक सफलतम स्पैनिश फिल्म का भारतीयकरण है. यह फिल्म एक रात की कहानी है. अस्पताल के मुर्दाघर से एक (बॉडी) शव गायब हो जाता है. इस अनोखेे केस की जांच करने के लिए जांच अधिकारी  जयराज आते हैं.बॉडी कहां गई, कोई सुराग नहीं.सवाल है कि इस बॉडी को कोई क्यों चुराना चाहेगा? क्या वह बॉडी,बॉडी थी.क्योंकि मेडिकल टर्म्स में कैटल अप्सी एक ऐसी चीज है,जहां पर कभी-कभी बॉडी उठकर भी निकलती है. जैसे  भूत का कांसेप्ट होता है.जांच अधिकारी को सबसे पहले इस महिला के पति यानी कि मेरे किरदार पर शक होता है. क्योंकि अगर इस चीज का फायदा किसी को होना है, तो उसके पति को होना था.यहां से कहानी शुरु होती है. किसने क्या किया? वजह क्या थी? कई सवाल हैं।

 आप अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

-यह एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म है.इसलिए अपने किरदार के बारे में ज्यादा विस्तार से बता नही पाउंगा.मैंने अजय का किरदार निभाया है, जो कि प्रोफेसर है और उसने अमीर औरत से शादी की है. तथा उसके साथ इसी के घर में घर जमाई बनकर रहता है.बीवी मर जाती है,तो जांच अधिकारी अजय को बुलाते हैं.फिर सारे पन्ने खुलने शुरू होते हैं. एक दूसरी औरत /लड़की से अफेयर की बात भी सामने आती है.कुछ अतीत भी है।

 आपको इस फिल्म में ऐसी क्या खास बात नजर आयी कि आपने फिल्म करने के लिए हामी भरी?

- मैंने स्पैनिश फिल्म देखी और मुझे यह फिल्म बहुत पसंद आयी. पूरी फिल्म अनप्रिडिक्टेबल थी. थ्रिलर है.इसलिए मुझे लगा कि यह बहुत अलग फिल्म है, जिसे करना चाहिए।

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 फिल्म के निर्देशक जीतू जोसेफ के साथ आपके इक्वेशन कैसे रहे?

- बहुत अच्छे इक्वेशन रहे. निर्देशक जीतू जोसेफ की हिंदी में भले ही यह पहली फिल्म हैं, मगर उन्होंने दक्षिण में कई सफलतम फिल्में दी हैं. वह फिल्म मीडियम और इस जॉनर को बहुत अच्छी तरह से समझते हैं. मैं स्वयं उनकी कई फिल्मों का बहुत बड़ा फैन हूं.‘दृश्यम’ मुझे बहुत पसंद आयी थी. वह जिस तरह से फ्रेम सेटअप करते हैं, वह कमाल का है. वह बहुत ही अच्छे हैं.फिल्म भी बहुत अच्छी बनाई है।

 ऋषि कपूर के साथ आपकी पहली फिल्म है. इस फिल्म के सेट पर आपके क्या इक्वेशन रहें?

- मैं उनसे पहले नहीं मिला था.हमारी पहली मुलाकात ही इस फिल्म के सेट पर हुई. मेरे दिमाग में यह बात थी कि वह थोड़ा गर्म दिमाग के कलाकार हैं. जिस तरह के मैंने उनके ट्वीट देखे हैं.लेकिन जब मैं उनसे मिला, तो वह बहुत ही ज्यादा वार्म नजर आए. वह एक ऐसे शख्स हैं, जिनके दिल या दिमाग में जो है, वही उनकी जुबान पर भी है. जो मन में आता है, वह बोल देते हैं. यह एक अच्छी बात होती है.इसके लिए मैं उनकी बहुत इज्जत करने लगा हूं. क्योंकि समाज में ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं. आजकल लोग असलियत छिपाते हैं. एक नकली मुखौटा लगाकर घूमते हैं।

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 फिल्म ‘चेहरे’ में तो आप अमिताभ बच्चन जी के साथ हैं.उनके साथ काम करने क्या अनुभव रहा?

-जी हां! फिल्म ‘चेहरे’ अमिताभ बच्चन जी के साथ ही कर रहा हूं. अब तक उनके साथ काम करने के बहुत अच्छे अनुभव रहे. ऋषि कपूर जी और बच्चन जी इतने वर्षों बाद भी जिस जज्बे और पैशन के साथ काम करते हैं, उससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला.वह हर दिन सेट पर एकदम सही समय, सुबह 9 बजे आकर अपना काम शुरू कर देते हैं. अभी हम लोग पोलैंड जाने वाले हैं. जहां बच्चन जी भी माइनस 10 डिग्री में शूटिंग करने वाले हैं।

आपने अमिताभ बच्चन व ऋषि कपूर से कोई नई बात सीखी?

- मैंने उनसे कमिटमेंट सीखा.एक कलाकार का कमिटमेंट क्या रहता है. उनसे जिम्मेदारी वहन करना और अनुशासन सीखा. यह सारी चीजें ऐसी हैं, जिनसे इंसान हमेशा फायदे में रहता है।

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अब किस तरह के किरदार निभाना चाहते हैं? क्या आपके दिमाग में कोई किरदार है, जिसे आप निभाना चाहते हों?

- सच कहूँ तो मेरे दिमाग में ऐसा कोई किरदार नहीं है. सब कुछ स्क्रिप्ट पर निर्भर करता है. जब डायरेक्टर या लेखक मुझे कहानी सुनाता है, उस वक्त मेरा दिल जो कह देता है, उसे मान लेता हूँ. कहानी सुनते समय मैं चार्ज हो गया, तो वही मेरा ड्रीम बन जाता है।

 हर आर्टिस्ट स्क्रिप्ट सुनकर प्रभावित होता है.फिर भी फिल्म बनते बनते कहां गड़बड़ हो जाती है?

- यह तो कोई नहीं बता सकता. मेरी राय में हर फिल्म की अपनी यात्रा होती है.कई विभाग जुड़े होते हैं.कहानी से ही सब कुछ शुरू होता है. अगर आपकी कहानी ही सही नहीं है, तो सब गड़बड़. कोई नहीं सोचता हमारी कहानी गड़बड़ होगी. हम कहानी अच्छी होती है, इसलिए फिल्म बनाते हैं. पर अंत में कहानी अच्छी बनेगी या नहीं, यह निर्णय दर्शक के हाथ में होता है. तब हमें पता चलता है कि हम कहां चूक गए.इसमें लेखक, निर्देशक, गीतकार, संगीतकार सहित किसी से भी चूक हो सकती है।

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आपने ‘टाइगर’ और ‘बार्ड ऑफ ब्लड’ दो अंतर्राष्ट्रीय फिल्में की. इसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किस तरह का असर हुआ. क्या कोई अन्य अंतर्राष्ट्रीय फिल्म के ऑफर  आ रहे हैं?

- हां! ऑफर आए हैं, पर अभी तक मैंने कुछ भी मंजूर नहीं किया है. क्योंकि अभी मैं भारत में पांच फिल्मों पर काम कर रहा हूं. अंतर्राष्ट्रीय फिल्म का अपना अलग कमिटमेंट होता है. हमें यहां का काम छोड़कर वहां जाकर एक दो वर्ष के लिए रहना पड़ता है. जो कि अभी मैं फिलहाल नहीं करना चाहता।

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