Advertisment

सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी से एक्सलूसिव बातचीत

New Update
सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी से एक्सलूसिव बातचीत

बॉलीवुड

के

नोटेड

निर्माता

निर्देशक

पहलाज

निहलानी

अपनी

सुपरहिट

फिल्मों

(

हथकड़ी

,

आंधी

तूफान

,

इल्जाम

,

आग

ही

आग

,

गुनाहों

का

फैसला

,

पाप

की

दुनिया

,

मिट्टी

और

सोना

,

शोला

और

शबनम

,

आंखें

,

अवतार

,

अंदाज

दिल

तेरा

दीवाना

,

भाई

भाई

,

उलझन

,

तलाश

,

खुशबू

,

जूली

2,

रंगीला

राजा

वगैरह

)

के

लिए

तो

लोकप्रिय

हैं

ही।

लेकिन

वे

अक्सर

अपनी

स्पष्ट

ओपिनियन

तथा

गलत

नीतियों

के

खिलाफ

निडर

होकर

बुलन्द

आवाज

उठाने

के

लिए

विवादों

में

घिरते

रहे।

सुलेना

मजुमदार

अरोरा

पहलाज

निहलानी

वो

रौशनी

हैं

जिसे

काले

बादलों

का

साया

भी

ढक

नहीं

सका

सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी से एक्सलूसिव बातचीत

सिनेमा

से

सम्बंधित

कई

संस्थाओ

में

चलती

धांधली

और

भष्टाचार

के

खिलाफ

मुखर

होकर

बोलने

की

वजह

से

कई

बार

उनको

प्रोफेशनल

और

निजी

नुकसान

भी

उठाना

पड़ा

,

उनके

खिलाफ

षड्यंत्र

भी

रचे

गए

उन्हें

बदनाम

करने

की

कोशिश

भी

की

गई

,

लेकिन

ना

वे

रुके

ना

झुके

,

वे

अपने

उसूलों

के

पक्के

रहे

,

ना

उन्होंने

किसी

की

कभी

चमचागिरी

की

,

ना

कुर्सी

बचाने

के

लिए

अपने

प्रिंसिपल्स

की

बलि

चढ़ाई

और

आखिर

दुनिया

ने

समझ

लिया

कि

पहलाज

निहलानी

वो

रौशनी

हैं

जिसे

काले

बादलों

का

साया

भी

ढक

नहीं

सका।

ऐसे

विलक्षण

शख्सियत

से

पिछले

दिनों

मेरी

खास

मुलाकात

हुई

,

पेश

है

बातचीत

के

मुख्य

अंशः

-

नमस्कार

पहलाज

जी

,

मायापुरी

इंटरव्यू

सेशन

में

आपका

स्वागत

है

,

हैप्पी

न्यू

ईयर

सर

नमस्कार

सुलेना

जी

,

आपको

और

मायापुरी

को

नव

वर्ष

की

ढेर

सारी

शुभकामनाएं

!

नए वर्ष के साथ धीरे-धीरे फिल्म इंडस्ट्री में फिर से काम शुरू हो रहा है, ऐसे में आप सिनेमा के भविष्य को  किस रूप में देखते हैं?

सिनेमा

कभी

खत्म

नहीं

हो

सकता

है

,

फिल्म

इंडस्ट्री

चलती

रही

है

,

चलती

रहेगी

,

कितने

भी

हर्डल्स

आए

,

हर

मुसीबत

को

धक्का

देकर

सिनेमा

हमेशा

विजयी

रही

है।

पहले

भी

ऐसी

कितनी

सारी

रुकावटें

आई

थी

और

नए

-

नए

टेक्नोलॉजी

आए

,

वीडियो

फिल्में

बनने

लगी

थी

,

फीचर

फिल्मों

के

वीडियो

पायरेसी

होने

लगी

थी।

उस

जमाने

में

तो

वीडियो

कॉपी

की

क्वालिटी

भी

खराब

होती

थी

,

लेकिन

आज

तो

ऐसा

है

कि

इतने

सारे

डिजिटल

प्लेटफॉर्म

हैं

,

और

उनमें

नई

फिल्मों

की

कॉपी

करके

रिलीज

कर

दी

जाती

है

और

उसकी

क्वालिटी

भी

बढ़िया

होती

है।

लेकिन

फिर

भी

सिनेमा

का

करिश्मा

कभी

खत्म

नहीं

हो

सकता

,

एक

बार

मुंबई

की

लाइफ

लाइन

कही

जाने

वाली

लोकल

ट्रेन्स

शुरू

हो

जाए

,

कोविड

-19

कंट्रोल

में

जाए।

वैक्सीन

लगने

शुरू

हो

जाए

फिर

देखना

,

फिर

से

सिनेमा

हॉल्स

भरने

लगेंगे

,

सिनेमा

का

जादू

खत्म

हो

ही

नहीं

सकता

,

हॉल

में

बैठकर

,

जबरदस्त

साउंड

इफेक्ट

के

साथ

अंधेरे

में

पूरी

तरह

फोकस्ड

होकर

फिल्में

देखने

का

मजा

ही

कुछ

और

हैं

जिसे

दर्शक

कभी

नकार

नहीं

सकते।

घर

पर

छोटे

स्क्रीन

में

दस

तरह

के

काम

में

डिस्ट्रैक्ट

होते

हुए

डिजिटल

शोज

देखने

में

वो

मजा

नहीं

है

,

हाँ

,

जब

टेलीविजन

शुरू

हुआ

था

1971

में

,

तो

संडे

को

थियटर

हॉल्स

पर

असर

जरूर

पड़ता

था।

लेकिन

बड़े

पर्दे

की

शान

कभी

खत्म

नहीं

होगी

,

जब

भी

बड़े

पर्दे

पर

फिल्में

रिलीज

होती

है

तो

उसकी

प्रतिक्रिया

अद्भुत

होती

है

,

दर्शक

जब

किसी

फिल्म

को

पसंद

करती

है

तो

वो

वाकई

हिट

होती

है

वर्ना

वो

फ्लॉप

फिल्म

मानी

जाती

है।

लेकिन

आज

डिजिटल

दुनिया

की

फिल्म्स

या

शोज

की

सही

प्रतिक्रिया

मिलती

ही

नहीं

है

,

सोशल

प्लैटफॉर्म्स

पर

सब

झूठी

खबरें

फैलाई

जाती

है।

चार

मीडिया

वालों

को

बुलाकर

,

उसे

खिला

पिला

कर

झूठी

रिव्यू

बना

दी

जाती

है

,

इससे

अच्छी

और

बुरी

फिल्मों

के

बारे

में

कुछ

पता

ही

नहीं

चलता

है।

सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी से एक्सलूसिव बातचीत

कोरोना काल के इन दिनों में आप क्या कुछ नया करने के बारे में सोच रहे हैं या क्या कुछ कर रहे हैं?

कोरोना

आने

से

पहले

,

यानी

मार्च

से

पहले

मैं

दो

प्रोजेक्ट्स

लॉन्च

करने

की

तैयारी

कर

चुका

था

,

नवंबर

में

फिल्म

अयोध्या

की

कथा

की

शूटिंग

शुरू

करनी

थी

और

मार्च

में

अनाड़ी

इज

बैक

शूट

करने

को

था

लेकिन

कोरोना

पेंडमिक

ने

सब

स्थगित

करवा

दिया

,

सात

महीने

के

लिए

पूरी

इंडस्ट्री

ठप्प

हो

गई

,

मैं

भी

घर

में

बैठा

रहा

,

फिर

जब

लगा

कि

अब

काम

शुरू

करने

की

फिर

से

तैयारी

की

जा

सकती

है

और

मैं

घर

से

बाहर

निकला

तो

छः

दिनों

के

अंदर

ही

कोरोना

की

चपेट

में

गया

और

कोविड

-19

पॉजिटिव

निकला।

फिर

से

डेढ़

दो

महीने

के

लिए

काम

बंद

करके

हेल्थ

ठीक

करने

में

लग

गया

,

उसके

बाद

जब

फिर

से

शूटिंग

लोकेशन

तय

करने

के

लिए

घर

से

निकला

तो

मुझे

ठंड

ने

पकड़

लिया

और

मैं

फिर

बीमार

पड़

गया।

काम

शुरू

ही

नहीं

कर

पा

रहा

हूँ

,

अब

इस

महीने

के

अंत

में

अगर

सब

ठीक

रहा

तो

हम

शूटिंग

शुरू

करने

के

बारे

में

सोच

सकते

हैं।

अयोध्या

की

कथा

की

शूटिंग

यूपी

में

करने

की

सोच

रहे

हैं

जोकि

3

क्

में

बनने

वाली

है।

साथ

ही

श्अनाड़ी

इज

बैकश्

पर

भी

काम

जल्द

शुरू

कर

रहे

हैं।

आप एक प्रोड्यूसर के रूप में, फिल्म डायरेक्टर के रूप में और सीबीएफसी के चेयरपर्सन के रूप में बेहद सख्त, स्ट्रिक्ट टास्क मास्टर माने जाते रहे हैं, क्या आप इस बात से सहमत हैं?

देखिए

मैं

कानून

और

रूल्स

फॉलो

करने

वाला

इंसान

हूँ

,

सेंसरशिप

के

लिए

जो

मानक

तय

है

,

उसे

तो

कड़ाई

से

फॉलो

करना

ही

चाहिए।

जो

दृश्य

समाज

में

नहीं

दिखाए

जा

सकते

,

जो

भद्दे

डायलॉग्स

समाज

में

बोले

नहीं

जाते

उसे

,

कैसे

कोई

पास

कर

सकता

है

,

मैंने

तो

शुरू

से

अपनी

फिल्मों

पर

भी

सख्ती

से

सेंसर

का

पालन

किया।

मैंने

अपने

पर

सेल्फ

सेंसरशिप

लागू

रखा

,

मैंने

इतनी

सारी

फिल्में

बनाई

लेकिन

किसी

फिल्म

में

कोई

आपत्तिजनक

दृश्य

,

डायलॉग

या

न्यूडिटी

नहीं

डाली।

मैं

तो

शूटिंग

लेवल

पर

ही

ऐसे

दृश्यों

को

कट

कर

देता

था

,

जब

कानून

मेरे

हाथों

में

है

और

जब

मुझे

सारे

गाइडलाइन्स

मालूम

है

तो

क्यों

मैं

कोई

सा

सीन

शूट

करूँ

जो

सेंसर

में

अटक

सकती

है।

मैं

शुरू

से

ही

फिल्मों

में

सख्ती

से

सेंसर

गाइडलाइन्स

फॉलो

करने

और

करवाने

का

हिमायती

रहा

हूँ

,

मैंने

एक

फिल्म

बनाई

थी

, ‘

मिट्टी

और

सोना

जो

कि

कॉल

गर्ल

के

जीवन

पर

आधारित

फिल्म

थी।

सबको

लगा

कि

कॉल

गर्ल

पर

फिल्म

बन

रही

है

,

तो

उसमें

सेक्स

,

न्यूडिटी

,

वल्गर

दृश्य

जरूर

डाला

जाएगा

लेकिन

उसमें

ऐसा

एक

भी

दृश्य

नहीं

था

,

लोग

हैरान

रह

गए

और

वो

फिल्म

आज

भी

एक

क्लासिक

कल्ट

फिल्म

के

रूप

में

याद

की

जाती

है।

सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी से एक्सलूसिव बातचीत

आपके सख्त प्रिंसिपल की वजह से बहुत से लोग आपसे डरते भी हैं नाराज भी हैं और आपके पीठ पीछे बुराई भी करते हैं, इससे आपको कितना फर्क पड़ता है?

पीठ

पीछे

तो

लोग

भगवान

की

बुराई

भी

करते

हैं

,

तो

मैं

तो

खैर

इंसान

हूँ

,

जो

कायर

होते

हैं

वो

पीठ

पीछे

बुराई

करते

हैं

और

मैं

ऐसे

लोगों

की

रत्ती

भर

परवाह

नहीं

करता

,

हिम्मत

है

तो

मेरे

सामने

आकर

मेरी

बुराई

करे

जो

कि

कोई

नहीं

कर

सकता

क्योंकि

मैं

कोई

गलत

काम

करता

ही

नहीं

,

मैं

सही

वसूलों

पर

चलता

हूँ

,

किसी

की

चमचागिरी

,

लारा

लप्पा

नहीं

करता

,

किसी

से

कोई

डिमांड

नहीं

करता

,

किसी

का

एक

पैसा

मैंने

नहीं

खाया।

पनी

पोजिशन

या

पोस्ट

का

मैंने

कोई

,

एक

नया

पैसे

का

भी

फायदा

नहीं

उठाया

,

इसलिए

मुझे

किसी

झूठी

बुराई

से

कोई

फर्क

नहीं

पड़ता।

लेकिन

हां

,

मैं

यह

जरूर

कहूँगा

कि

जब

कोई

किसी

के

पीठ

पीछे

बुराई

करता

है

तो

समझ

लो

वो

जरूर

कोई

बहुत

पॉपुलर

व्यक्ति

है

और

बहुत

ईमानदार

है

तभी

उसकी

बुराई

की

जाती

है।

आपको नहीं लगता कि, आपके अपने कायदे कानून और सख्ती की वजह से खुद आपको बहुत नुकसान भी उठाना पड़ा?

हाँ

,

बिल्कुल

उठाना

पड़ा

लेकिन

मैं

समझता

हूँ

कि

जो

होना

होता

है

वो

होकर

रहता

है

,

उसके

माध्यम

बदलते

रहते

हैं

और

जो

किस्मत

में

लिखी

हुई

है

वह

तो

होकर

ही

रहना

है

किसी

को

दोष

क्या

देना

किसी

दूसरे

को

दोष

देना

मतलब

अपने

आप

को

दोष

देना

है

तो

इससे

बेटर

है

कि

हम

मान

कर

चले

कि

जो

हमारे

डेस्टिनी

में

लिखा

है

वह

होकर

रहेगा।

मैं

इन

बातों

को

सर

आंखों

पर

रखता

हूं

कि

जो

कुछ

भी

हुआ

अच्छा

हुआ

,

जो

हुआ

मेरे

हाथों

से

हुआ

,

बुरा

हुआ

तो

भी

मेरे

हाथों

से

,

अच्छा

हुआ

वो

भी

मेरे

हाथों

से।

क्या

अच्छा

क्या

बुरा

,

जैसी

जिंदगी

कटे

वही

हकीकत

,

बाकी

छलावा।

मेरे

विचार

सबसे

अलग

है

जो

अधिकतर

देखने

को

नहीं

मिलता।

सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी से एक्सलूसिव बातचीत

जिस तरह की फिल्में आप बनाते रहे हैं और जिस तरह की फिल्में आज बन रही है उसमें आपको क्या फर्क नजर आ रहा है?

वक्त

के

साथ

सब

कुछ

बदलता

ही

है

,

चालीस

के

दशक

में

जिस

तरह

की

फिल्में

बनती

थी

वैसे

पचास

के

दशक

में

नहीं

बनी

,

पचास

के

दशक

में

जैसे

फिल्में

बनती

थी

वैसे

साठ

के

दशक

में

नहीं

बनी

,

जो

70

में

बनती

थी

वह

अस्सी

में

नहीं

बनी

,

लेकिन

फिर

भी

मैं

कहूँगा

कि

पहले

की

फिल्मों

का

जो

फ्लेवर

था

,

जो

कहानियां

होती

थी

,

उसे

लोग

आज

भी

याद

करतें

हैं।

बासू

चटर्जी

,

हृषिकेश

मुखर्जी

जैसे

महान

फिल्म

मेकर

की

फिल्में

शहरों

में

खूब

लोकप्रिय

होती

थी

,

लेकिन

शायद

गाँव

देहातों

में

नहीं

चलती

थी

लेकिन

आज

उन्ही

फिल्मों

की

कॉपी

करके

फिल्में

बनती

है

तो

सबको

मजा

आता

है

जबकि

वो

कॉन्सेप्ट

उन

पुराने

निर्देशकों

का

बनाया

हुआ

है।

आज

के

युवा

संगीतकार

बहुत

पुराने

गीतों

जैसे

मन

डोले

मेरा

तन

डोले

तथा

कई

और

गीतों

को

नए

तरीके

से

रिक्रिएट

करते

हैं

,

नब्बे

के

दशक

के

सुपर

हिट

गीत

आँखियों

से

गोली

मारे

को

भी

रिक्रिएट

कर

डाला।

लेकिन

इन

रिक्रियशन्स

में

वो

बात

ही

नहीं

होती

है

जो

ऑरिजिनल

में

होती

थी

,

आज

की

फिल्मों

में

नायक

नायिका

का

वो

करिश्मा

ही

खत्म

हो

चुका

है।

पहले

की

तरह

ना

अद्भुत

कहानियां

होती

है

,

ना

संवाद

,

आज

तो

बस

बायोपिक

बन

रही

है

या

किसी

ऐतिहासिक

घटना

या

ऐतिहासिक

चरित्र

को

रिक्रिएट

किया

जाता

है

जिसे

पहले

जमाने

में

डॉक्यूमेंट्री

माना

जाता

था।

यानी

पहले

जमाने

में

भी

बायोपिक

बनती

थी

,

जिसे

हम

डॉक्यूमेंट्री

कहते

थे

,

लेकिन

मुझे

विश्वास

है

कि

समय

फिर

बदलेगा

और

पहले

की

तरह

फिल्में

बनेगी।

साउथ

इंडियन

फिल्म

इंडस्ट्री

ने

अपनी

फिल्मों

के

फ्लेवर

को

बनाये

रखा

है

,

वहां

आज

भी

पहले

की

तरह

भव्य

रूप

से

मेसमराइज

करने

वाली

कहानी

और

नायक

नायिका

के

जादू

को

प्रकट

करने

वाली

फिल्में

बनती

है

और

जो

पैन

इंडिया

में

देखी

जाती

है

जिसमें

कि

सिर्फ

बहुत

बड़ी

फिल्में

ही

शामिल

होती

है।

उदाहरण

के

लिए

बाहुबली

को

ले

लीजिए

,

आज

प्रभास

उस

फिल्म

की

वजह

से

सबसे

टॉप

हीरो

बन

गया

है

और

हमारी

हिंदी

फिल्में

बस

चरित्रों

को

ही

समेटने

में

लगे

हैं।

साउथ

की

फिल्में

हर

प्लेटफॉर्म

पर

हर

जगह

अपनी

भव्यता

की

वजह

से

कमर्शियली

भी

भर

-

भर

कर

कमा

रहे

हैं

और

हमारी

फिल्में

उनकी

तुलना

में

कुछ

भी

हासिल

नहीं

कर

पा

रही

है।

आपने न्यूडिटी, वल्गर सीन्स, ऑफेंसिव डायलॉग्स और स्त्रियों की बेइज्जती करने वाली फिल्मों के खिलाफ हमेशा आवाज उठाई है और खुद आपने अपनी फिल्मों को हमेशा साफ सुथरा रखा है लेकिन इससे आपकी फिल्मों की लोकप्रियता में कोई फर्क पड़ा?

बिल्कुल

नहीं

पड़ा

,

ना

पहले

कभी

पड़ा

ना

आज

पड़

रहा

है।

सभी

लोग

अपने

परिवार

के

साथ

फिल्में

देखना

पसंद

करते

हैं

,

और

मेरी

फिल्में

परिवार

के

साथ

देखने

लायक

होती

है

इसलिए

मेरी

प्रत्येक

फिल्म

बड़ी

धूम

धाम

से

चली

और

आज

भी

चलती

है।

मेरी

अपनी

25

फिल्मों

की

स्ट्रॉन्ग

लाइब्रेरी

है

और

सेटेलाइट

सिनेमा

में

उसकी

आज

बहुत

डिमांड

है।

मेरी

फिल्में

,

टीवी

और

डिजिटल

प्लेटफॉम्र्स

पर

वेल

इन

एडवांस

बिक

जाती

है।

सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी से एक्सलूसिव बातचीत

बड़े पर्दे की फिल्मों के लिए अलग-अलग कैटेगरी के सर्टिफिकेट्स है, जैसे ए सर्टिफिकेट, यू सर्टिफिकेट, ए-यू सर्टिफिकेट, लेकिन ऑनलाइन  में तो कुछ भी पर्दा नहीं रह गया है, वहाँ हर तरह की फिल्में खुल्लम खुल्ला बन रही है और देखी जा रही है, फिर क्या फायदा रहेगा इन सर्टिफिकेट्स का?

देखिए

,

आज

जनता

भी

यही

सोचने

लगी

हैं

कि

इन

डिजिटल

प्लेटफॉम्र्स

में

हमें

क्या

परोसा

जा

रहा

है

,

क्या

बिना

सेंसर

के

वो

हर

चीज

जो

बच्चे

भी

देखते

हैं

,

क्या

वो

सही

है।

यही

प्रश्न

मैंने

सबसे

पहले

उठाया

था

कि

जब

सरकार

एक

है

तो

मनोरंजन

के

अलग

अलग

माध्यमों

के

लिए

अलग

अलग

मापदंड

क्यों

होना

चाहिए।

फिल्मों

में

इतने

तरह

के

सर्टिफिकेट्स

लेना

जरूरी

है

,

टीवी

में

भी

बंदिशें

है

तो

डिजिटल

फिल्मों

और

शोज

में

क्यों

नहीं

?

सेटेलाइट

को

अलग

मिनिस्ट्री

में

शिफ्ट

कर

दिया

गया

है।

ओटीटी

में

तो

कोई

बंदिश

है

ही

नहीं

शायद

इसलिए

कि

उसमें

फॉरेन

इन्वेस्टमेंट

को

तौला

जाता

है

लेकिन

आखिर

जनता

चुप

नहीं

बैठी

,

जनता

की

आवाज

सबसे

मजबूत

आवाज

है।

मामला

कोर्ट

तक

गया

है

,

मुझे

उम्मीद

है

कि

जरूर

इसपर

उचित

विचार

होगा

,

मेरा

कहना

है

कि

अगर

बंदिश

लगाना

है

तो

सब

माध्यमों

,

सब

प्लेटफॉम्र्स

पर

लगाया

जाना

चाहिए

वरना

सारे

माध्यमों

से

बंदिशें

हटा

देना

चाहिए।

जब

मैं

चेयर

में

था

तो

मैंने

अपनी

राय

स्पष्ट

रूप

से

दी

थी

,

मुझसे

सुझाव

लिया

गया

था

तो

मैंने

पाँच

के

बदले

छः

रेटिंग्स

बढ़ाने

की

पेशकश

की

थी।

सबने

इसे

माना

लेकिन

फिर

चुप

बैठ

गए

,

सुझाव

तो

ले

लेते

है

पर

इम्प्लीमेंट

करने

की

हिम्मत

नहीं

दिखाते।

अब

वक्त

गया

है

कि

नए

रूल्स

बनाया

जाये।

आजकल ओटीटी प्लेटफॉर्म के बड़े जलवे हैं, जिसे देखो ओटीटी सीरीज, शोज, फिल्म्स बनाने लगे हैं और बड़े-बड़े स्टार्स भी इस डिजिटल दुनिया में छलांग लगाने को बेचैन है। इस बारे में आप क्या कहते हैं?

मेरी

सोच

कुछ

अलग

तरह

की

है

,

मैं

पैसे

कमाने

के

लिए

कोई

काम

करना

पसंद

नहीं

करता

लेकिन

अपनी

रेंज

को

अलग

अलग

डाइमेंशन

देने

के

लिए

हमेशा

तत्पर

रहता

हूं।

सच

बताऊ

तो

मुझे

सिर्फ

सिनेमा

में

ही

अपना

हुनर

आजमाने

की

इच्छा

रही

है

लेकिन

क्योंकि

फिल्मों

को

ही

मैं

ओढ़ता

बिछाता

हूँ

इसके

अलावा

कुछ

सोच

नहीं

सकता

और

अभी

फिल्मों

का

बनना

स्लो

है

इसलिए

अगर

कभी

कोई

बहुत

अच्छा

विषय

मिला

जो

मुझे

उत्तेजित

कर

दे

तो

हो

सकता

है

मैं

ओटीटी

के

लिए

भी

फिल्में

बनाऊँ।

रामानन्द

सागर

जी

और

बी

आर

चोपड़ा

जी

ने

जब

अपने

फिल्म

करियर

के

ढलान

पर

टीवी

के

लिए

रामायण

और

महाभारत

बनाई

थी

तो

लोगों

ने

उन्हें

छोटे

पर्दे

पर

जाने

के

लिए

क्रिटिसाइज

किया

था

लेकिन

जब

उन

दोनों

ने

रामायण

और

महाभारत

बनाकर

इतिहास

रच

डाला

तब

लोग

चैंके।

इन

दोनों

सीरीज

ने

तो

एक

बार

के

लिए

सिनेमा

को

भी

अंगूठा

दिखा

दिया

था।

ओटीटी की वजह से बड़े पर्दे का भविष्य खराब होने की संभावना आपको नजर आ रही है?

जी

नहीं

,

फिल्मो

का

भविष्य

ओटीटी

के

लिए

खराब

हो

ही

नहीं

सकता

है

,

ओटीटी

वगैरह

तो

सब

आवन

जावन

है।

सिनेमा

जैसी

कोई

मनोरंजन

और

हो

ही

नहीं

सकती

है।

सिनेमा

पिकनिक

है

,

इंटरटेनमेंट

है

,

आउटिंग

है

,

इससे

सस्ती

और

कोई

आउटिंग

हो

ही

नहीं

सकती

है

,

पूरे

परिवार

के

साथ

जाकर

सिनेमा

देखना

बहुत

सस्ते

में

ही

हो

जाता

है

बाकी

जो

दूसरे

एंटरटेनमेंट

होते

हैं

वो

काफी

कॉस्टली

होते

हैं।

और

कई

बार

उसमें

परिवार

,

अपने

बच्चों

के

साथ

शामिल

नहीं

हो

पाते

,

कुछ

ऐसे

एडल्ट

मनोरंजन

होते

हैं

जहां

बच्चे

नहीं

जा

सकते

एक

सिनेमा

ही

ऐसी

इंटरटेनमेंट

है

जिसमें

पूरा

परिवार

अपने

बच्चों

,

बुजुर्गों

के

साथ

जाकर

कुछ

समय

के

लिए

दुनिया

से

बेखबर

होकर

आनंद

मना

सकते

हैं।

मैं

बस

इतना

ही

चाहता

हूं

कि

कोरोनावायरस

खत्म

हो

जाए

,

फिर

से

सिनेमा

पहले

की

तरह

बनने

लगे

,

फिर

से

थिएटर

में

फिल्में

लगने

लगे।

सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी से एक्सलूसिव बातचीत

आप शत्रुघ्न सिन्हा के करीबी दोस्त रहे हैं, आप गोविंदा के भी करीब है, मैंने सुना है आप इनके बच्चों को लेकर फिल्में बनाने वाले थे? क्या यह सही है?

जी

हाँ

,

वे

लोग

मेरे

अपने

परिवार

जैसे

है

,

हम

कहीं

भी

रहें

,

कुछ

भी

करें

लेकिन

जब

बात

परिवार

की

आती

है

तो

हम

एक

है

,

शत्रुघ्न

के

साथ

तो

हमारा

उठना

बैठना

रहा

है

ये

तो

जैसे

अपने

घर

की

बात

है

,

जब

कोई

स्क्रिप्ट

उनके

लिए

परफेक्ट

होगी

तो

जरूर

उनके

बच्चों

को

कास्ट

करूँगा।

आपने दो दर्जन के लगभग फिल्में बनाई है, कई फिल्मों का निर्देशन भी किया है, क्या आप बतौर फिल्म मेकर संतुष्ट हैं?

ये

सही

है

कि

मैंने

बहुत

सारी

हिट

फिल्में

बनाई

और

अपने

काम

से

मैंने

सबको

खुशी

दी

,

भरपूर

एंटरटेन

किया

लेकिन

जहां

तक

सन्तुष्ट

होने

की

बात

है

तो

मुझे

सन्तुष्ट

होना

भी

नहीं

है।

जो

इंसान

सन्तुष्ट

हो

गया

वो

ठहर

जाता

है

,

उसका

ग्रोथ

रुक

जाता

है

,

वो

और

कुछ

कर

ही

नहीं

सकता

है।

हाँ

,

अपने

जीवन

से

मैं

संतुष्ट

हूं

,

मेरे

बाल

बच्चे

सब

वेल

सेटल्ड

है

,

खुश

है।

लेकिन

बतौर

फिल्म

मेकर

मुझे

अभी

भी

बहुत

कुछ

करने

की

इच्छा

है।

मेरी

हर

साँस

में

फिल्म

ही

फिल्म

बसी

है

,

फिल्मों

के

सिवाय

मुझे

कुछ

और

सूझता

ही

नहीं

है

इसलिए

मुझे

सन्तुष्ट

नहीं

होना

है

जब

तक

हिम्मत

है

,

साँस

है

मैं

और

अच्छी

फिल्में

बनाते

रहना

चाहता

हूँ।

सीबीएफसी के चेयरपर्सन के रुप में आपका ओवरऑल अनुभव क्या रहा, कैसा महसूस किया आपने?

हाँ

,

इस

मामले

में

मुझे

पूरा

सन्तोष

है

कि

,

जब

तक

मैं

वहां

चैयरपर्सन

रहा

तब

तक

मैंने

वहां

पूरी

निष्ठा

,

ईमानदारी

,

ट्रांसपरेंसी

के

साथ

खूब

काम

किया।

वहां

जो

भी

गड़बड़

था

सब

ठीक

किया

,

बहुत

सारे

डेवलपमेंट

किए

,

करप्शन

खत्म

कर

दिया

,

सब

स्ट्रीमलाइन

किया।

वहां

करप्शन

के

चलते

फिल्मों

के

फाइल्स

दबे

रहते

थे

,

इसलिए

फिल्में

रिलीज

होने

में

बहुत

देर

हो

जाती

थी

,

मैंने

उन

फाइल्स

को

जाँच

कर

आगे

बढ़ाया।

ऑनलाइन

सर्टिफिकेशन

किया।

ऑफिस

को

ठीक

ठाक

तरीके

से

सजाया।

पहले

वहां

प्रोड्यूसर्स

को

बैठने

के

लिए

सही

जगह

नहीं

थी

,

मैंने

बैठने

की

जगह

बनाई

,

एक

एटमॉस्फियर

बनाया।

बहुत

सारे

और

डेवेलपमेंट

के

सुझाव

दिए

लेकिन

जो

आज

तक

इम्प्लीमेंट

नहीं

हुआ

और

हाँ

एक

मजेदार

बात

और

बताऊ

कि

मैंने

सर्टिफिकेशन्स

को

लेकर

जो

गाइडलाइन्स

फॉलो

करने

की

सख्ती

दिखाई

और

सर्टिफिकेशन्स

के

रूल्स

को

कड़ाई

से

पालन

करने

का

निर्देश

दिया

तो

वो

लोग

जो

इन्हें

पालन

नहीं

करना

चाहते

थे।

जो

गाइडलाइन्स

के

हिसाब

से

नहीं

चलना

चाहते

थे

,

जो

ऐसी

फिल्में

बनाना

चाहते

थे

जो

समाज

में

मान्य

ना

हो

,

बच्चों

,

परिवार

के

साथ

ना

देखी

जा

सके

,

ऐसे

प्रोजेक्ट

मेकर

लोग

सिनेमा

बनाना

छोड़

ओटीटी

प्लेटफॉर्म

की

तरफ

चले

गए

क्योंकि

वहाँ

कोई

बंदिश

नहीं

है

उस

वक्त

वो

लोग

भले

ही

मुझे

गाली

देते

रहें

होंगे

लेकिन

आज

वो

लोग

सोच

रहे

होंगे

कि

पहलाज

निहलानी

की

सख्ती

की

वजह

से

उन्हें

ओटीटी

मिल

गई

और

उनके

ओटीटी

में

जाकर

फिल्में

और

शोज

बनाने

से

बहुत

सारे

उन

लोगो

को

काम

मिल

गया

जिन्हें

काम

मिलना

मुश्किल

हो

रहा

था

पुराने

कलाकार

हो

या

टेक्नीशियन

हो

उन

सबको

काम

मिलने

लगा।

चलो

कम

से

कम

सीबीएफसी

में

मेरे

चैयरपर्सन

होने

के

दौरान

,

मेरी

सख्ती

की

वजह

से

उन

लोगो

को

तो

फायदा

हुआ

जिन्हें

काम

की

बहुत

जरूरत

थी।

सबकी

दुकान

चल

पड़ी।

सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी से एक्सलूसिव बातचीत

आपको किसी से कोई शिकायत है?

जी

नहीं

किसी

से

कोई

शिकायत

नहीं

है

,

मैं

अपनी

जिंदगी

से

खुश

हूं

,

सन्तुष्ट

हूँ

,

मैं

बहुत

खुशमिजाज

इंसान

हूँ

,

हमेशा

पॉसिटिव

सोचता

हूँ

,

पॉजिटिव

काम

करता

हूँ।

मुझे

कोई

किसी

चीज

की

चाहत

नहीं

,

जैसा

हूँ

बहुत

अच्छा

हूँ।

आज

कोरोना

काल

में

पॉसिटिव

शब्द

से

लोग

डरने

लगे

हैं

लेकिन

मेरे

विचार

,

मेरे

सोच

हमेशा

की

तरह

पूरी

तरह

पॉजिटिव

है

और

इसके

लिए

मुझे

कोई

एंटीडोट

की

जरूरत

नहीं।

अब आपका न्यू ईयर प्लान क्या है, क्या आप डिजिटल फिल्मों में आ रहे हैं?

जैसा

मैंने

बताया

इस

साल

मैं

दो

फिल्में

बनाने

के

लिए

तैयार

हूँ

,

एक

अनाड़ी

इज

बैक

और

दूसरी

अयोध्या

की

कथा

’,

ये

कितनी

खुशी

की

बात

है

कि

अयोध्या

में

राम

मन्दिर

का

निर्माण

हो

रहा

है

और

सबका

ध्यान

इसी

में

है

कि

श्री

राम

जी

लौट

आए

अपने

अयोध्या

में

,

राम

जी

अयोध्या

में

थे

और

आज

भी

राम

जी

अयोध्या

में

हैं।

मेरी

फिल्म

इसपर

आधारित

है।

और

भी

बहुत

सारी

फिल्मों

की

रूप

रेखा

बनाई

है

जो

मैंने

कोरोना

के

दिनों

में

घर

पर

रहकर

प्लान

की

थी

और

उसपर

बहुत

काम

किया

था

उम्मीद

है

अब

मैं

बैक

टू

बैक

काम

कर

सकता

हूँ।

आप मोदी जी के फैंन लगते हैं?

जी

हाँ

,

मैं

हर

अच्छे

इंसान

का

फैन

हूँ

,

जो

बुराई

को

हटाकर

अच्छाई

लाने

की

कोशिश

कर

रहा

हो

उसका

साथ

जरूर

देना

चाहिए।

मैं

तो

हमेशा

ऐसे

इंसान

के

साथ

खड़ा

रहता

हूँ

जो

हर

पल

सबके

लिए

अच्छाई

करने

का

प्रयत्न

कर

रहा

हो

,

ताकि

मुझपर

भी

उनके

अच्छे

कर्मों

की

कुछ

छीटें

पड़

सके।

सुना है आपको अभिनय का भी शौक है?

अभिनय

?

नहीं

नहीं

कभी

नहीं।

मैंने

कभी

एक्टिंग

करने

के

बारे

में

सोचा

भी

नहीं

,

मुझे

एक्टर

बनने

का

कभी

शौक

भी

नहीं

रहा।

हाँ

,

कभी

किसी

के

जोर

देने

पर

एक

शॉट

दो

शॉट्स

कई

फिल्मों

में

दी

है

,

इससे

ज्यादा

कभी

एक्टिंग

के

बारे

में

ना

सोचा

ना

कभी

सोच

सकताहूँ।

आप एक गंभीर शख्सियत नजर आते हैं, लेकिन आपने फिल्में बहुत ज्यादा गंभीर और नसीहत देने वाली नहीं बनाई?

मेरे

विचार

गम्भीर

भले

ही

हो

लेकिन

मैं

गम्भीरता

को

ओढ़े

नहीं

रहता।मैं

खुशमिजाज

हूँ।

हमेशा

खुश

रहता

हूँ

,

मैं

पॉसिटिव

इंसान

हूँ।

किसी

की

बुराई

नहीं

करता

,

किसी

के

लिए

बैक

बाइटिंग

नहीं

करता।

जो

हूँ

सामने

हूँ

,

जो

सच

है

वो

कहता

हूँ

,

जो

झूठ

होता

है

वो

लोगों

को

याद

करना

पड़ता

है

और

मैं

अपना

दिमाग

कोई

चीज

याद

रखने

में

बर्बाद

नही

करता

हूँ।

मेरी

फिल्में

मनोरंजक

होती

है

और

शिक्षा

मूलक

भी।

सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक पहलाज निहलानी से एक्सलूसिव बातचीत

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के आज के स्टार्स को लेकर आप क्या कहते हैं?

आज

कुछ

भी

पहले

जैसा

नहीं

रह

गया

है।

पहले

सब

आर्टिस्ट

लोग

एक

परिवार

की

तरह

हुआ

करता

था

,

एक

दूसरे

के

लिए

इमोशन

था

,

रेस्पेक्ट

था

,

आज

सिर्फ

ग्रुपिंजम

रह

गई

है।

आज

आर्टिस्ट

और

डाइरेक्टर

के

बीच

सिर्फ

प्रैक्टिकल

,

मेकैनिकल

,

कमर्शियल

रिश्ता

रह

गया

है।

पहले

कोई

फिल्म

हिट

होती

थी

तो

सब

एक्टर

,

डाइयेक्टर

,

प्रोड्यूसर

,

सब

मिलकर

खुश

होते

थे

और

कोई

फिल्म

नहीं

चलती

तो

सब

मिलकर

दुख

बाँटते

थे

और

समीक्षा

करते

थे

कि

आखिर

फिल्म

क्यों

नहीं

चली

,

आगे

क्या

करना

है

अब

ऐसा

कुछ

नहीं

नजर

आता।

अंतिम सवाल, आपका और हमारी पत्रिका मायापुरी का शुरू से ही साथ रहा है, अब तो मायापुरी ऑनलाइन भी बहुत मशहूर है, आपका क्या अनुभव रहा मायापुरी को लेकर?

जिस

तरह

से

सिनेमा

एंटरटेनमेंट

के

लिए

जरूरी

है

उसी

तरह

से

फिल्म

इंडस्ट्री

के

लिए

मायापुरी

बहुत

जरूरी

है।

मायापुरी

हिंदी

फिल्म

पत्रिकाओं

में

सब

से

लोकप्रिय

और

सबसे

पुरानी

मैगजीन

है

जो

समय

के

साथ

साथ

डिजिटल

होकर

ग्लोबल

हो

गई

है।

मायापुरी

परिवार

मेरा

अपना

परिवार

है

,

जब

से

मैं

फिल्म

इंडस्ट्री

में

आया

तब

से

मायापुरी

के

ओनर

पी

बजाज

जी

,

पी

के

बजाज

जी

और

पत्रिका

के

सारे

जर्नलिस्ट

से

जुड़ा

रहा

जब

भी

मेरी

फिल्म

की

कोई

आउटडोर

शूटिंग

होती

थी

,

मैं

अपने

साथ

बजाज

जी

के

पूरे

परिवर

को

साथ

रखता

था

क्योंकि

वे

मेरे

परिवार

जैसे

हैं।

सिर्फ

मैं

ही

क्यों

,

पूरी

फिल्म

इंडस्ट्री

मायापुरी

को

प्यार

और

रेस्पेक्ट

करती

है।

बजाज

जी

का

पूरा

परिवार

बहुत

हम्बल

है।

इतनी

कामयाबी

के

बावजूद

वे

सबके

प्रति

बहुत

अपनापन

रखते

हैं

,

बहुत

सिंपल

जीवन

जीते

हैं

,

वे

आज

भी

अपनी

परम्परा

का

निर्वाहन

करते

हैं।

सचमुच

वे

परम्परा

के

धनी

है,

मायापुरी

परिवार

को

मेरा

बहुत

बहुत

प्यार

और

नमस्कार।

मायापुरी की सिस्टर कन्सर्न बच्चों की पत्रिका ‘लोटपोट’ (मोटू पतलू फेम) भी वल्र्ड फेमस हो गई है, क्या आपने लोटपोट पढ़ी है?

हो

गई

है

नहीं

,

लोटपोट

तो

डे

वन

से

बहुत

लोकप्रिय

सुपर

हिट

पत्रिका

है।

लोटपोट

बच्चों

के

लिए

ही

नहीं

बड़ों

के

लिए

भी

बेहद

मनोरंजनक

और

प्रेरक

कहानियों

से

भरपूर

पत्रिका

है

जिसमें

गुदगुदाने

वाली

कार्टून्स

सबको

खूब

हँसाती

है।

लोटपोट

को

मॉडर्न

रुप

रंग

देने

में

अमन

बजाज

(

प्रोपराइटर

पी

बजाज

जी

के

पोते

और

एडिटर

पी

के

बजाज

जी

के

बेटे

)

ने

बहुत

मेहनत

की

है।

उसे

डिजिटल

एंड

एनिमेशन

में

ढालने

में

अमन

ने

वाकई

कमाल

कर

दिया

,

आज

उनकी

मेहनत

और

लोटपोट

के

प्रति

प्यार

दुनिया

देख

रही

है।

मैं

पी

के

बजाज

जी

को

,

अमन

बजाज

को

और

मायापुरी

तथा

लोटपोट

के

लेखकों

को

बहुत

बहुत

शुभकामनाएं

देता

हूँ।

आप

सबकी

कामयाबी

ऐसी

ही

बनी

रहे।

Advertisment
Latest Stories