‘‘फिल्म ‘सांड की आंख’ मेरी नानी को ट्रिब्यूट है..’’- भूमि पेडणेकर By Shanti Swaroop Tripathi 21 Oct 2019 | एडिट 21 Oct 2019 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर अभिनय के क्षेत्र में कदम रखते ही अपारंपरिक किरदारों को निभाते हुए लगातार सफलता की ओर बढ़ रही भूमि पेडणेकर के लिए 2019 का वर्ष खुशियां ही लेकर आ रहा है. इसी वर्ष उन्हें ‘बुसान इंटर नेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में ‘फेस ऑफ एसिया अवॉर्ड’ से नवाजा गया. जहां उनकी फिल्म ‘डॉली किटी और वह चमकते सितारे’ का प्रदर्शन भी हुआ. तो वहीं उसी दिन दिल्ली में उपराष्ट्रपति वेकैंया नायडू उनकी व तापसी पन्नू के अभिनय वाली फिल्म ‘सांड की आंख’ देखकर इतना प्रभावित हुए कि उपराष्ट्रपति जी ने प्रशंसा करते हुए ट्वीट भी किया। आपको लगता है कि सिनेमा के बदलते दौर से आपके करियर को मदद मिली? - इसमें कोई शक नहीं. आज की तारीख में दर्शक उन फिल्मों को देखना पसंद करता है, जिनसे वह खुद रिलेट कर सकें. यदि हमारी फिल्मों का कंटेंट रिवोल्युशनरी न होता, तो शायद मेरे लिए यहां टिक पाना मुश्किल हो जाता. जिस तरह से कंटेंट वाला सिनेमा बन रहा है, उसी के चलते मैंने व तापसी पन्नू ने फिल्म ‘सांड़ की आंख’ में अपनी उम्र से दोहरी उम्र के किरदार को निभाने की हिम्मत दिखा पायी. मुझे लगता है कि आपके करियर में कुछ फिल्में हैं, जो विशेष से अधिक होती हैं, उन्ही में से एक है-‘सांड की आंख’. मैं यह बात आत्मविश्वास के साथ कह सकती हूं. इस फिल्म से जुड़े सभी लोग बहुत खास हैं. फिल्म बेहद खास है यह फिल्म मेरी नानी को ट्रिब्यूट है। आपकी ईमेज छोटे शहरों की लड़की की ही बनी हुई है? - मुझे सिर्फ अच्छे किरदार निभाने की इच्छा रहती है.फिर वह किरदार किसी महानगर का है या छोटे शहर का है यह ग्रामीण पृष्ठभूमि का है, यह बात मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती. हकीकत में ग्रामीण पृष्ठभूमि या छोटे शहरों में बेहतरीन कहानियों का भंडार है. मैंने तो 19 साल की लखनउ जैसे शहर की लड़की का भी किरदार निभाया है. तो वहीं ‘सांड की आंख’ में 65 साल की चंद्रो तोमर का किरदार भी निभाया है. मैंने अपनी पहली फिल्म के किरदार के लिए अपना वजन 30 किलो बढ़ाया भी था. तो मैं हर उम्र की महिला का किरदार निभा रही हूं. मेरा मानना है कि हर कलाकार को ऐसा ही करना चाहिए. कम से कम कलाकार के तौर पर खुद को असुरक्षित महसूस करने की मेरे पास कोई वजह भी नहीं है. ईश्वर की दया से लोग मेरे हर किरदार को और मेरी हर फिल्म को पसंद कर रहे हैं. आगे भी मैं बहुत बेहतरीन फिल्में कर रही हूं. मैं आज जो कुछ भी हूं, उसके लिए मेहनत करने से पीछे नही हट रही. मैं भी स्टीरियो टाइप किरदारों को निभाने से परहेज करती हूं, पर जब अच्छा किरदार हो, तो उसे लपक लेती हॅूं। फिल्म ‘सांड़ की आंख’ का ट्रेलर आने के बाद रंगोली चंदेल हों, नीना गुप्ता हां या सोनी राजदान हों, इन लोगों ने जिस तरह के बयान दिए हैं. क्या यह इनके अंदर की असुरक्षा है या कलाकारों के बीच प्रतिस्पर्धा का स्तर गिर गया है? - देखिए, ‘सांड की आंख’ का ट्रेलर आने के बाद तमाम लोगों ने प्रशंसा की है. दो तीन लोगों ने नेगेटिव बात की है. अब हम आधुनिक युग में जी रहे हैं. हर किसी को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है. यदि किसी ने कोई बात कही, तो उस पर मुझे अपनी प्रतिक्रिया नही देनी हैं. मैं नेगेटिव बातों की बजाए पॉजीटिव बातों पर ध्यान देती हूं. मुझे लगता है कि हर किसी को यही करना चाहिए। लेकिन क्या एक कलाकार को यह तय करना चाहिए कि दूसरा कलाकार क्या करे, क्या ना करें? - मेरी राय में किस किरदार के लिए किस कलाकार को लेना है, यह तय करना निर्देशक का विशेषाधिकार है. इस पर किसी भी कलाकार को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. मैं नीना गुप्ता और सोनी राजदान के साथ ही जो सोशल मीडिया पर हैं, उन सभी की राय की मैं कद्र करती हूं. पर मुझे उम्मीद है कि फिल्म देखने के बाद इनकी राय बदलेगी. मेरे लिए अपनी उम्र से दो गुनी उम्र की चंद्रो दादी का किरदार निभाना ‘लाइफ टाइम’ मौका रहा. जिन्होंने अपने कैरियर में इस तरह की चुनौतियों को स्वीकार किया, वही स्टालवर्ट बने हुए हैं। फिल्म ‘सांड की आंख’के किरदार को निभाना आपके लिए कितना चुनौतीपूर्ण रहा? - यूं तो मैं आधी हरियाणवी जाट हूं. क्योंकि मेरी मां हरियाणवी जाट और मेरे पिता महाराष्ट्रियन हैं.मगर मेरी परवरिश मुंबई जैसे महानगर में हुई है. ऐसे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बहू और फिर साठ वर्ष की उम्र में शॉर्प शूटर बन जाने वाली चंद्रों के किरदार को निभाना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रही. साठ सत्तर साल की महिला का किरदार निभाना आसान भी नहीं था. माना कि इसमें कॉमेडी भी है, फिर भी इसका हिस्सा बनना मेरे लिए आसान नहीं रहा. आखिर चंद्रो विश्व की सबसे ज्यादा उम्र दराज शॉर्प शूटर हैं. जिस दिन फिल्म‘सांड की आंख’ का ट्रेलर लांच हुआ, उसी दिन मेरे नाना जी का निधन हुआ. मेरी तरफ से यह फिल्म मेरे नाना नानी को ट्रिब्यूट है.मैंने इस फिल्म को करने का निर्णय लेते समय यह नही देखा कि यह ग्रामीण परिवेश की कहानी है, बल्कि मैंने कहानी व किरदार को महत्व दिया। आपने फिल्म ‘सांड की आंख’ करने के लिए हामी क्यों भरी? - इसके कथानक ने प्रेरित किया. यह एक पारिवारिक फिल्म है.क्योंकि पूरे परिवार के लिए यह फिल्म देखना और यह समझना महत्वपूर्ण है कि जाने या अनजाने में हमेशा घर की महिला असमानता के अधीन हो जाती है. यह उसके सपने हैं, जो गौण या गैर-प्रासंगिक हो जाते हैं. मजेदार और जिंदगी से भरपूर हैं. उनकी कहानी को याद किया जाना चाहिए. यह एक रोलर कोस्टर की सवारी है, जो आँसू और हंसी से भरा है। आपको शॉर्प शूटर दादी चंद्रो की कहानी कब पता चली? - जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि मेरी मां हरियाणा की हैं, इसलिए जब चंद्रो दादी ने 1997 में बंदूक उठाकर शूटिंग में पहला मेडल जीतकर लाखों लोगो को आश्चर्य चकित किया था, तब मेरी मां ने उनके बारे में मुझे बताया था. उसके बाद जब वह आमीर खान के टीवी शो ‘सत्यमेव जयते’ में आयीं, तब मैंने पहली बार उन्हे देखा. और उन्हें सुना, तो मुझे उनकी कहानी प्रेरणा दायक लगी. जबकि साठ साल की उम्र तक चंद्रो दादी घर के अंदर ही रही.मैदान में ट्वायलेट के लिए जाती थी. ईंटों के भट्टे पर घूंंघट निकालकर काम करती थी. खेतो में काम करती थी. घर में काम करने के साथ साथ बच्चों की परवरिष और अपने पति का हर दिन हुक्का तक बनाकर देती थी.लेकिन साठ वर्ष की उम्र में अपनी बेटी व पोती के उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्होंने सभी बेड़ियां तोड़ते हुए घर से बाहर निकली. फिर अपने ही गांव नही बल्कि दूसरे गांवों व शहरों की यात्राएं की. बंदूक चलाना सीखा.अंग्रेजी भाषा सीखी.फिर शॉर्प शूटर के रूप में विश्व ख्याति अर्जित की.उन्होंने शूटिंग प्रतियोगिता में अवकाष प्राप्त सैन्य अधिकारियों और अवकाश प्राप्त पुलिस कमिश्नरों को भी हराया। पर चंद्रो दादी का किरदार निभाना रिस्क नहीं रहा? - रिस्क तो रहा. जब तुषार हीरानंदानी ने मुझे कहानी सुनायी, तो मैं थोड़ी सी डरी हुई थी. क्योंकि फिल्म में युवावस्था के दृश्य कम हैं, ज्यादातर दृश्य तो बड़ी उम्र के ही है. पर फिर मेरे अंदर से आवाज आयी कि मुझे यह फिल्म जरूर करनी चाहिए, मैंने कर ली. देखिए, इस नारी प्रधान फिल्म मेंं औरतों का रोना धोना नहीं है. बल्कि चंद्रो और प्रकाशी तोमर ने पितृसत्तात्तमक सोच के तहत साठ साल की जिंदगी गुजारने के बावजूद अपनी जिंदगी के सारे सुख हासिल किए. उन्होंने हर औरत को संदेष दिया कि ‘तन बूढ़ा होता है, मन नहीं. ’उन्होंने पूरे समाज में बदलाव लाने का काम किया. चंद्रो और प्रकाशी ने अब तक पचास हजार बच्चों को षिक्षा दिलायी. उनके अंदर यह बदलाव इसलिए आया क्योंकि वह नहीं चाहती थीं कि जिस तरह की जिंदगी उन्होंने जी है,वैसी जिंदगी उनकी बेटी और पोती को जीनी पड़े. चंद्रो और प्रकाशी की सफलता और उपलब्धियां हमें सिखाती है कि हम उम्र के किसी भी पड़ाव पर अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं। चंद्रो दादी का किरदार निभाते समय आपने क्या तैयारी की? - मैंने इस किरदार को निभाते समय अपनी नानी को याद किया,जो कि हरियाणवी जाट हैं. चंद्रो तोमर पष्चिमी उत्तर प्रदेश के जौहरी गांव की रहने वाली हैं. यह गाँव उत्तर प्रदेश व हरियाणा का सीमावर्ती गांव है. मेरी मॉं हरियाणवी हैं. इसलिए मैंने चंद्रो तोमर की भूमिका के साथ न्याय करने के लिए भाषा के एसेंट को अपनी माँ से सीखा. मैंने बॉडी लैंगवेज, चलने, उठने, बैठने के तरीके को ऑब्जर्व किया.उम्र दराज महिला दिखने के लिए दस किलो वजन भी बढ़ाया. जब हम अपना मेकअप करवाते थे, तो हम कामना करते थे कि काश इसे करने का कोई अन्य तरीका भी होता. हमने प्रोस्थेटिक मेकअप की बजाय वाक्स तकनीक का उपयोग किया है. मुझे जलन भी हुई. लेकिन जैसे ही हम सेट पर आए,हम दर्द और तकलीफ भूल गए. इस तरह से हमने सेट पर खूब मस्ती की। आपने इस फिल्म के लिए बंदूक चलाना भी सीखा ? - जी हां! हमने सिर्फ बंदूक चलाना ही नहीं सीखा, बल्कि बहुत से काम सीखे हैं. हुक्का बनाकर देना भी सीखा. चंद्रो और प्रकाशी दादी अपने आप में बहुत अलग हैं. हमने पूरी कोशिश की है कि परदे पर चंद्रो ही नजर आऊं. वास्तव में जहां से मेरी नानी व मेरी मां आती हैं, वहीं से चंद्रो दादी हैं. इसलिए मुझे इस किरदार को निभाने में बहुत सहूलियत हो गयी. क्योंकि मुझे मेरी मां से भी बहुत मदद मिली। जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि यह फिल्म मेरी नानी को ट्ब्यिट है.मैंने चंद्रो दादी के किरदार में बहुत कुछ अपनी नानी से सीख कर डाला है. मेरी मां ठेठ हरियाणवी हैं, इसलिए मेरी मां को मुझ पर गर्व है कि मैंने यह किरदार निभाया. फिल्म में ज्यादातर संवाद तो हिंदी में हैं, पर कुछ संवाद हरियाणवी एसेंट के भी हैं, जो कि मैंने अपनी मां से सीखा। आपको चंद्रो दादी की किस बात ने इंस्पार किया? - चंद्रो दादी अब 87 वर्ष की हैं, पर वह कभी थकती ही नहीं है. चंद्रो दादी शूटिंग में अपना पहला मैच खेलने चंडीगढ़ गयी थी और सेना के अफसर को हराया था. इस मैच में उनकी पोती भी प्रतिस्पर्धी थी और दोनों ने मेडल हासिल किया था. उनसे प्रेरणा लेकर जौहरी गांव की हर लड़की घर से निकल रही है,काम कर रही है, षूटर भी बन रही हैं। तापसी पन्नू के साथ आपकी यह पहली फिल्म है? -जी हॉ! हम दोनो एक साथ किसी फिल्म का हिस्सा हैं, यह बात मेरे लिए रोमांच से कम नहीं. क्योंकि मुझे लगता है कि वह एक अभूतपूर्व अभिनेत्री हैं. जब निर्देशक तुषार ने मुझे बताया कि इस फिल्म के लिए तापसी का चयन हो चुका है, तो मुझे लगा कि यह फिल्म सिर्फ मेरे लिए ही है. षूटिंग के दौरान हम दोनों के बीच कभी कोई मतभेद नहीं रहा. सेट पर लोग शर्त लगा रहे थे कि हम कम से कम एक बार लड़ेंगे, लेकिन हमारी कभी लड़ाई नहीं हुई. हम दोनों ने अपनी भूमिकाओं पर विश्वास किया और महसूस किया कि यह फिल्म एक बड़े कारण के लिए बनाई जा रही है. हमारे पास वैचारिक मतभेद के लिए कोई वजह नहीं है. हमने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है और मुझे लगता है कि तापसी और मैं अभिनेत्री के तौर पर खुद को बहुत सुरक्षित पाते हैं. इसलिए मुझे खुशी है कि हमने एक साथ काम किया। जैकी भगनानी के साथ आपके रोमांस की भी काफी चर्चाएं हैं? - इसमें कोई सच्चाई नहीं है. बहुत से लोग इस ढंग की बातें लिख रहे हैं. जब मैं मुंबई में रहती हूं, तो अपने दोस्तों के साथ ही नजर आती हूं. जैकी भगनानी अच्छे दोस्त हैं और मैं उन्हें तब से जानती हूं, जब मैं अभिनेत्री नहीं बनी थी. मैं लोगों की उलजलूल बातों को लिखने से अपनी दस साल पुरानी दोस्ती को खत्म नहीं कर सकती। अब किस तरह के किरदार करना चाहती हैं? - मुझे उन किरदारों को परदे पर निभाने में चुनौती महसूस होने के साथ संतुष्टि मिलती है,जो कि मेरे निजी जीवन के विपरीत हो.मुझे भूमि को परदे पर निभाने में संतुष्टि नहीं मिल सकती.यदि मैं अपने किरदार और अपने काम करने के तरीके से लोगों की सोच में बदलाव ला सकी, तो यह मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। दूसरी फिल्मों में क्या कर रही हैं? -‘‘डॉली किटी और वो चमकते सितारे’’ की है, जिसे ‘बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में दिखाया जा चुका है. इसमें मैंने विद्रोही किस्म की बोल्ड किटी का किरदार निभाया है, जिसे शराब या सिगरेट पीने से कोई परहेज नहीं है. फिर आयुष्मान खुराना के साथ तीसरी फिल्म ‘बाला’ की शूटिंग लखनऊ में पूरी की है, जिसमें मैंने साँवले रंग की लड़की का किरदार निभाया है. इस फिल्म में मेरे किरदार के द्वारा रंगभेद के पूर्वाग्रह पर टिप्पणी की गयी है. करण जौहर की फिल्म ‘तख्त’ में विक्की कौशल के साथ अमीर लड़की के किरदार मे नजर आऊंगी. यह पीरियड ड्रामा वाली फिल्म है.कार्तिक आर्यन के साथ फिल्म ‘पति पत्नी और वो’ की है. एक हॉरर फिल्म ‘भूत -भाग एक’ की है. हर फिल्म में मेरा एक नया अवतार है। मायापुरी की लेटेस्ट ख़बरों को इंग्लिश में पढ़ने के लिए www.bollyy.com पर क्लिक करें. अगर आप विडियो देखना ज्यादा पसंद करते हैं तो आप हमारे यूट्यूब चैनल Mayapuri Cut पर जा सकते हैं. आप हमसे जुड़ने के लिए हमारे पेज width='500' height='283' style='border:none;overflow:hidden' scrolling='no' frameborder='0' allowfullscreen='true' allow='autoplay; clipboard-write; encrypted-media; picture-in-picture; web-share' allowFullScreen='true'> '>Facebook, Twitter और Instagram पर जा सकते हैं.embed/captioned' allowtransparency='true' allowfullscreen='true' frameborder='0' height='879' width='400' data-instgrm-payload-id='instagram-media-payload-3' scrolling='no'> #bollywood #Bhumi Pednekar #Saand Ki Aankh हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article