फिल्म ‘बधाई हो’ में संदेश है कि रोमांस के ढलने की कोई उम्र नहीं होती- गजराज राव

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By Shanti Swaroop Tripathi
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फिल्म ‘बधाई हो’ में संदेश है कि रोमांस के ढलने की कोई उम्र नहीं होती- गजराज राव

मशहूर रंगकर्मी व एड फिल्म मेकर गजराज राव ने 1994 में फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ से फिल्मों में कदम रखा था. तब से वह ‘नो स्मोकिंग’, ‘आमीर’, ‘तलवार’ सहित कुछ चुनिंदा फिल्मां में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं. इन दिनों वह ‘जंगली पिक्चर्स’ और ‘क्रोम पिक्चर्स’ द्वारा निर्मित फिल्म ‘बधाई हो’ को लेकर चर्चा में हैं।

आपके अनुसार फिल्म ‘बधाई हो’ क्या है?

- फिल्म ‘बधाई हो’ एक पारिवारिक मनोरंजक फिल्म है. जिसमें इस मुद्दे पर बात की गयी है कि एक उम्र के बाद दंपति यानी कि पति पत्नी के बीच रोमांस होने पर किसी को एतराज नहीं होना चाहिए.बड़ी उम्र के लोगों को, खास तौर पर शहरी समाज में माना जाता है कि अब इन्होंने बच्चे वच्चे पैदा कर लिए, तो  अब इन्हें अपनी दूसरी ड्यूटी पर ध्यान देना चाहिए. यानी कि युवा बच्चे सोचने लगते हैं कि अब उनके माता पिता को पोते पोतियों की देखभाल करनी चाहिए और युवा पीढ़ी खुद घर से बाहर इंज्वॉय करने, घूमने जाए. पर फिल्म कहती है कि युवा पीढ़ी को इस तरह की सोच रखने की बजाय अपने अधेड़ उम्र के माता पिता को भी उनका ‘स्पेस’ देना चाहिए. जैसे 47-50 साल की उम्र के इंसानों के लिए रोमांस की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती है. रोमांस के समाप्त होने की कोई उम्र नहीं होती।

फिल्म के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

- मैंने कौशिक का किरदार निभाया है. जो कि रेलवे में टिकट चेकर है और अपने परिवार व अपनी माँ के साथ दिल्ली की रेलवे कॉलोनी में रहता है. उसकी जिंदगी एकदम रूटीन सी है. उसकी जिंदगी में उसकी वृद्ध मां के अलावा पत्नी प्रियंवदा व दो बेटे अहमियत रखते हैं. बहुत ही अलग किस्म का इंसान है. अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता है. तो वहीं मां का बड़ा आदर करता है. बच्चों से प्यार करता है. उसकी इस सरल जिंदगी में अचानक उस वक्त भूचाल आ जाता है, जब पता चलता है कि उसकी पत्नी पुनः गर्भ धारण कर चुकी है.पर वह अपनी पत्नी का साथ देता है. शुरूआत में वह थोड़ा झिझकता जरूर है, पर वह शर्मिंदा नहीं होता।publive-image

फिल्म ‘बधाई हो’ के प्रदर्शन के बाद समाज या दर्शकों में किस तरह का बदलाव आ सकता है?

- मुझे लगता है कि फिल्म से कोई क्रांति नहीं होगी.कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. पर इस विषय पर लोगों के बीच वार्तालाप जरूर शुरू हो जाएगा.मसलन-कल हम लोग रेडियो स्टेशन पर बात कर रहे थे. वहां 19 साल के एक युवक ने बताया कि औरंगाबाद के आस पास कहीं रह रही उसकी मॉ प्रेग्नेंट है और लोग उसका बड़ा मजाक उड़ा रहे हैं. मतलब लोग उस पर कटाक्ष कर रहे हैं. उसने शिकायती लहजे में हमसे कहा कि यह पिक्चर अभी नहीं आनी चाहिए थी. अब तो लोग उसका नाम लेने की बजाय उसे ‘बधाई हो’, ‘बधाई हो’ कहकर पुकारने लगे हैं. लेकिन हमसे व आयुष्मान से बात करने के बाद वह थोड़ा सहज हुआ. उसने कहा कि वह फिल्म देखने जरुर जाएगा. मेरी राय में भी ‘बधाई हो’ एक  रोचक फिल्म है. मेरी राय में इस तरह के घटनाक्रमों से हम लोग झिझकते हैं और इस विषय पर बात नहीं करते हैं. पर इस फिल्म के लोगों के बीच बात करने की शुरूआत हो सकती है कि बड़ी उम्र में प्रेम करना या बच्चा होना कोई बड़ा अपराध नही है. यह बहुत सहज है. यह बहुत मानवीय गुण है।

आप इसके अलावा क्या कर रहे हैं?

- मैं विज्ञापन फिल्में निर्देषित करता हूं. मेरा अपना ‘ग्रेड फिल्मस’ नामक प्रोडक्षन हाउस है. मैंने कई विज्ञापन फिल्में बनायी हैं. इसके अलावा एक स्क्रिप्ट पर भी काम कर रहा हूं, जिस पर अगले वर्ष एक फिल्म निर्देषित करने की सोच रहा हूँ. बाकी इस बात पर निर्भर करता है कि भविष्य कहां ले जाता है।

आपका अभिनय करियर काफी उतार चढ़ाव वाला रहा. लंबे अंतराल के बाद फिल्में करते रहते हैं?

- यह मेरी च्वॉईस है. मैं अच्छा काम करना चाहता हूं.अच्छे निर्देशकों व अच्छी टीम के साथ काम करना पसंद करता हूं. अगर आप देखेंगे, तो मैंने ‘ब्लैक फ्रायडे’, ‘आमीर’,‘तलवार’, ‘ब्लैकमेल’ जैसी चुनिंदा फिल्में की. हर फिल्म के बीच लंबा अंतराल रहा है.मुझे कहीं पर भी फिट नहीं होना है।publive-image

 आप डिजिटल माध्यम में भी कुछ कर रहे हैं?

- देखिए. मेरी जिंदगी में पिछले तीन साल पहले एक वेब सीरीज ‘द वायरल फीवर’ आया था. इसमें पिता व पुत्र के बीच ‘सेक्स’ को लेकर बातचीत होती है. जहां पिता बेटे से सवाल करता है कि यह ट्वीटर क्या चीज होती है, फिर बात आगे बढ़ती है.इसमें बड़ा ही रोमांचकारी अनुभव हुआ. मुझे 15 वर्ष के दर्शक वर्ग मिले. मुझसे 15-16 साल से 25 तक की उम्र के नौजवान ईमेल पर सवाल करते हैं, जो यूट्यूब पर पोस्ट होते हैं. यह बड़ी चमत्कारी यात्रा रही. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नए तरह का कटेंट आ रहा है. इसलिए अब मैं डिजिटल पर कुछ बेहतर काम करते रहना चाहता हूं।

 डिजिटल में मुझे एक समस्या रेवेन्यू को लेकर नजर आ रही है. पर अभी यह शुरूआती दौर हैं.दो तीन साल लगेगें, इसे मैच्योर होने में. लेकिन 3 साल पहले जैसा होता था कि पैसे ही नहीं मिलते थे, तो अब थोड़ा बदलाव आ गया है. अब पैसे मिलने लगे हैं।

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