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ये इंटरव्यू मायापुरी पत्रिका अंक 417 (1982) से लिया गया है
‘डिस्को’ के प्रचलन के साथ-साथ फिल्मों में नृत्य विद्या ने एक ‘नया मोड़ लिया है। आज फिल्मी नृत्यों में हेलन, बिन्दु या अरूणा ईरानी जैसी नृत्यांगना खास तौर से नहीं पिरोई जाती बल्कि नृत्यों का ये चलन और परम्परा खुद नायिका या उसके साथी कलाकार निभा रहे होते हैं।
ऐसी अवस्था में हेलन जैसे प्रतिभा कुशल अभिनेत्री का फिल्म दृश्यों से ओझल हो जाना स्वभाविक बात है। फिर भी एक सह-अभिनेत्री की हैसियत से कहिये या दर्शकों द्वारा उनके प्रति आकर्षण कहिये वे यदा कदा आज भी फिल्मों में नजर आ जाया करती हैं। वही डील डौल वही चपलता, वही बिजली की सी तेजी व अनूठे, नृत्य हाव भाव चालीस से ऊपर की ये नृत्यांगना आज भी कम आकर्षक नहीं लगती।
वे आज फिल्मों के नृत्यों व नई नृत्यांगनाओं के बारे में क्या सोचती है। आज के अवकाश पूर्ण क्षणों में बैठकर जब वे अतीत की किताबे उलटती-पलटती हैं तो उन्हें कैसा लगता है? नृत्य क्या धीरे धीरे फिल्मों से ओझल हो जायेगा? ऐसे कई प्रश्नों पर आमने-सामने बैठकर चर्चा करने का मौका एक बार हमें फिर मिला, था हमने पूछा-‘एक कुशल और लोकप्रियता नृत्यांगना की हैसियत से आपने बड़े लम्बे समय तक लोगों के दिलों पर राज किया है।
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लम्बे समय तक सफलता के मीठे फल का स्वाद आपने चखा है लेकिन अब आप उतनी व्यस्त नहीं हैं तो कैसा महसूस करती हैं
वे बोलीं- पता नहीं मैं जो बोलने जा रही हूँ उसे आप और मेरे चाहने वाले किन अर्थो में लेंगे। दरअसल सब ये हैं कि कोई किस तरह कामयाबी हासिल कर लेता है ये कभी कोई शायद ही महसूस करता है कि उस कामयाबी की कीमत क्या चुकाई गई है। शोहरत की कम से कम मैंने बला की कीमत चुकाई है। क्योंकि मुझे ये शोहरत उन दिनों हाथ लगी थी जो मेरे खेलने-खाने के दिन थे उछल-कूद करने के दिन थे. व्यस्तता में मुझे ये सब चीजें न जाने क्यों भुला देनी पड़ी और जब याद आया तो काफी देर हो चुकी थी.........
मैं तो आज यही कह सकती हूँ। जवानी के दिनों में मिलीं सफलता नर्क की सैकड़ों यातनाओं से बढ़कर होती है। जिसके लिए कई तरहों से बड़ी कीमत अदा करनी पड़ती है और जब ये क्षण गुजर जाते हैं तो तन्हाई के अलावा कुछ पास नहीं रहता......... पर ये बात मैं आज महसूस कर सकती हूँ पहले कभी ऐसे ख्याल मेरे दिमाग में भूलकर भी नहीं आते थे। हेलन ने संजीदगी से कहा।
लोगों के दिलों में बला की उमंगे भर देने वाली हेलन कभी इतनी मायूस लगेगी हमने स्वप्नों में भी नहीं सोचा था. एक दिन था जब हेलन के नृत्य के बगैर कोई फिल्म न बनती थी. उनके संबंध पी०एन० अरोड़ा नामक जजबातों के व्यापारी निर्माता से लम्बे समय तक रहे लेकिन कैरियर के उतार के समय हेलन को अकेला रह जाना पड़ा ,
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हमने सबजेक्ट बदलते हुए आज प्रचलित नई नृत्य विद्या ‘डिस्को’ पर जिक्र करते हुए उनसे उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तो वे बोली- नृत्यों के ढंग में ये परिवर्तन कोई नई बात नहीं है। मैं ऐसे नृत्यों को कोई अजूबा या अनहोनी नहीं मानती। इससे पहले भी रॉक एन रोल, कैबरे आदि नृत्य विदेशों से हमारी फिल्मों में आये लोकप्रिय हुए क्योंकि संगीत-संगीत ही होता है और नृत्य का संगीत से चोली दामन का साथ है तो मैं इस विद्या को भी उसी रूप में लेती हूँ।
लेकिन अब ये नृत्य आप या आपके पद्चिन्हों पर चलने वाली कोई नृत्यांगना नहीं करती तो क्या समझा जाये कि नृत्यांगनों का वह युग आपके साथ साथ खत्म हो चला है?
“वेल, मैंने अभी फिल्मों में काम करना छोड़ा नहीं है, दस बारह फिल्में अभी भी मैं कर रही हूँ उनमें मेरे सोलो डांस भी हैं। फिर भी वैसे डांसेस का फैशन अब खत्म होता जा रहा है। लेकिन मैं यही समझती हूँ कि जब तक हमारी फिल्मों में संगीत जिन्दा है नृत्यों का अन्त नहीं हो सकता है।
क्या कभी आपको अपने बुढ़ापे से डर नहीं लगता?
हालांकि मेरी उम्र चालीस के आस पास है लेकिन बुढ़ापे की कोई अलामत मैं महसूस अभी नहीं करती। शायद वह बड़ी कीमत जो मैंने अदा की है उसके बदले में ये मुझे वरदान मिला है वर्ना अगर शादी वगैरा हो गई होती तो जरूर बूढ़ी हो गई होती. मैं अकेली होने की वजह से आज भी अपना अधिकतर समय अपनी देख रेख में व्यतीत कर सकती हूँ। ऑफ कोर्स दुनिया में कोई भी औरत बूढ़ी नहीं होना चाहेगी लेकिन बुढापा तो यह भी कडुवा सच है कि बुढ़ापा कभी न कभी आयेगा ही। तो मुझे उसका डर भी नहीं।
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आप आज भी उतनी ही पतली और सतोल लगती है आपकी लाक्ण्याता का राज?
“जरा मुश्किल काम है जो मैं आसानी से करती हूँ दोपहर का खाना नदारत दो घंटे बिना नागा डाॅस की प्रेक्टिस फिर एक्स्ट्रा वजन बढ़ने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है.........?
कभी शादी-ब्याह के सुखी जीवन से मोह नहीं होता कि आप भी शादी कर लें। पिछले दिनों सलीम (सलीम जावेद) से आपका नाम काफी जोड़ा जाता रहा था?
“शादी-ब्याह संजोग की बात होती है। उनका एक खास समय भी होता है उस समय दिल भी करता था और
मलाल भी होता था लेकिन इन भावनाओं को व्यस्तता ढांप लेती थी। अब न तो शादी-ब्याह को दिल करता है न किसी के साथ या संगत को।
जावेद जिस मोड़ पर एक साथी के रूप में मुझे मिले वो इमोशनल लेबल पर बड़ा ही नाजुक समय था। दुनिया में ऐसा लगता था कि कोई भी अपना नहीं है ऐसे वक्त में मैंने इस इन्सान में परफेक्ट (परिपूर्ण) इन्सान की झलक देखी एक सच्चे दोस्त का रूप पाया। ऐसा दोस्त जो दुःख-दर्द को बराबर बराबर हिस्सों में बाँट ले सकता था। वो खुश मिजाज और उदार इन्सान हैं उसकी आदतें एकदम मेरी जैसी ही हैं।
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अब मैं सोचती हूँ अगर वो न मिला होता तो बर्बादी ज्यादा दूर तब नहीं थी, इसको सौभाग्य कहें या कुछ और कि कोई तुम्हारी भावनाओं की कद्र करने वाला इन्सान तुम्हें प्यार करता हो...
हमने पूछा- क्योंकि सलीम साहब खुद एक शादी शुदा इन्सान हैं तो क्या ऐसी परिस्थिति में वो ज्यादा दूर तक आपके साथ जा सकते हैं?
‘मैं यहाँ कहूंगी कि अगर दूर जाने से आपका मतलब शादी वादी के बंधनों से हैं तो मैं उसे कोई बड़ी बात नहीं मानती एक अच्छी अन्डर स्टेडिंग से अगर प्यार कुछ कदम भी साथ साथ चल ले तो लाखों ख्वाइशें पूरी हो जाती हैं।
यानि आप शादी ब्याह के फेवर में आज एंकाकी क्षणों में भी गरजमन्द नहीं लगती?
कौन लड़की नहीं चाहती कि वो किसी का दामन थाम ले लेकिन कभी कभी वक्त फिसलन बन जाता है, उम्र कब फिसल जाती है पता नहीं लगता।
अब सोचती हूँ एक बार खुशनसीब बनने के लिए यानि के सफल होने के लिये मैंने की वे बेशकीमती घड़ियाँ न्यौछावर कर दीं कहीं दूसरी शादी ब्याह की तलाश में जान ही से हाथ न धोना पड़े.........और कोई जरूरी तो नहीं कीमत चुकाने पर भी मनचाही चीज मिल ही जाये।
फिर भी एंकाकी क्षण काट खाने को दौड़ते होंगे खाली समय में दिल बहलावे
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-आनंद कर्णवाल
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