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2007 में सीरियल “घर की लक्ष्मी बेटियां” में सावित्री गरोड़िया का किरदार निभाकर चर्चा में आयी अदाकारा ऐश्वर्या नारकर हिंदी व मराठी दोनो भाषाओं के सीरियल व फिल्मों में अभिनय करती रही हैं। लोग उन्हे ‘आधार’, ‘माला जगायचा’, घर गृहस्थी’, ‘झुलुक’, ‘समानांतर’, ‘साई दर्शनःएक अनुभव’, ‘अंकगणित आनंदाचे’, ‘विष्णुबाला’, ‘बाबांची शाला’ और ‘धड़क’ जैसी फिल्मों में उत्कृष्ट अभिनय के लिए याद करते हैं। इन दिनों ऐश्वर्या नारकर हिंदी की लघु फिल्म ‘सात तारीख’ को लेकर चर्चा में है, जिसमे अपने ही अपराधी बेटे (अक्षय श्रीवास्तव) को सजा देती हैं. ऐश्वर्या नारकर का मानना है कि ‘सात तारीख’ जैसी कहानियां कही जानी चाहिए।
आप लंबे समय बाद लघु फिल्म ‘सात तारीख’ के लिए मराठी से हिंदी की तरफ मुड़ी हैं?
जी हां! क्योंकि यह ऐसी कहानी है, जिसे कहा जाना बहुत जरुरी है। जब लघु फिल्म ‘सात तारीख’ के निर्देशक कार्तिक सिंह ने मुझसे मुलाकात की और मुझे फिल्म ‘सात तारीख’ की कहानी सुनायी, तो मेरे अंतर्मन ने कहा कि यह एक सामान्य कहानी नहीं है, बल्कि यह इतनी महत्वपूर्ण व आवश्यक कहानी है, जिसे कहा जाना चाहिए। फिल्म की कहानी के केंद्र में बलात्कार और बलात्कार का अपराधी है। भारत में बलात्कार एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है और हम सभी को इस संबंध में कुछ न कुछ ठोस कदम उठाना ही चाहिए।
हर समय हम केवल इसके बारे में बात करते हैं। फिल्म ‘सात तारीख’ के माध्यम से हम यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि एक माँ वह होती है, जो अपने परिवार को पढ़ाती है, अपने बच्चों को बेहतीन नागरिक बनाने का काम करती है। हमारे समाज को भी सामाजिक व जीवन मूल्यों से अवगत भी कराती है। इसलिए जब एक बेटा अपराध करता है, तो एक मां को चाहिए कि वह खुद अपने बलात्कारी बेटे को कठोर सजा देने का कदम उठाए। हर अपराधी को सजा मिलनी ही चाहिए।
क्या आपको इस फिल्म के किरदार को निभाने के लिए किसी तरह की तैयारी करने की जरुरत पड़ी?
हकीकत में फिल्म के लेखक व निर्देशक कार्तिक ने जिस तरह से पटकथा लिखी है, उसमें एक अभिनेता के रूप में चरित्र का ग्राफ बहुत सटीक व विस्तार से अंकित है। मुझे बस इसके बारे में सोचने और अपनी लाइनें देने की जरूरत थी। इस पटकथा में व्यक्त एक मां के विचार इतने शक्तिशाली हैं कि मैं आसानी से जुड़ सकी। मैं अपने निर्देशक के अलावा कैमरामैन को भी धन्यवाद दूंगी, जिस तरह से हमारी भावनाओं को कैमरे में कैद किया गया है, वह बहुत बेहतरीन है।
मुझे याद है कि जब मुझसे शूटिंग शुरू करने के लिए सेट पर पहुॅचने के लिए कहा गया, तो मैं थोड़ी सी डरी हुई थी, क्योंकि मैंने कुछ समय पहले ही ‘कोविड’ बीमारी से लड़ाई जीतकर स्वस्थ हुई थी। इसलिए मेरे मन में सवाल था कि क्या मैं सेट पर सब कुछ सही ढंग से कर सकुंगी. लेकिन हमारे निर्माता आगाज एंटरटेनमेंट और एफएनपी मीडिया की तरफ से सेट पर सुरक्षा के इतने बेहतरीन उपाय किए गए थे कि मैंने बिना किसी डर के शूटिंग की। सेट पर साफ सफाई के साथ ही सैनीटाइजर वगैरह की समुचित व्यवस्था थी।
अब अपने करियर को लेकर क्या कहना चाहेंगी?
आप को पता है कि अब तक हिंदी की बनिस्बत मराठी भाषा यानी कि क्षेत्रीय भाषा में ही ज्यादा काम किया है। हिंदी में काफी काम किया है। मराठी मेरी मातृभाषा भी है। वैसे मैं व्यक्तिगत रूप से महसूस करती हूं कि भाषा के कारण कलाकार का काम प्रतिबंधित नहीं होना चाहिए। संदेश और मनोरंजन का हिस्सा भाषा की परवाह किए बिना दर्शकों तक पहुंचना चाहिए। सिनेमा की अपनी ही सार्वभौमिक भाषा है.जब सिनेमा शुरू हुआ, तो मूल विचार लोगों को शिक्षित करना था, उन्हें बताना कि क्या गलत है, क्या सही है।
इसलिए मुझे लगता है कि मैं एक ऐसे सीरियल, फिल्म या लघु फिल्म से सदैव जुड़ना चाहूंगी, जिसके माध्यम से मैं अपने समाज को एक संदेश दे सकूं और दर्शकों का मनोरंजन भी कर सकूं। मुझे खुशी है कि ‘सात तारीख’ एक ऐसी ही लघु फिल्म है। यह फिल्म हर इंसान को सही व गलत के बारे में सोचने व अपराधी को सजा देने पर विवश करेगी।