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मैं खुद टीवी में काम करना चाहती थी-संचिता बनर्जी

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By Mayapuri Desk
मैं खुद टीवी में काम करना चाहती थी-संचिता बनर्जी
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इन दिनों “दंगल”टीवी पर प्रसारित हो रहा सीरियल”रक्षाबंधन:रसाल बनी अपने भाई की ढाल” काफी शोहरत बटोर रहा है। तो वहीं दर्शक इस सीरियल में गूंगी फूली का किरदार निभा रही अभिनेत्री संचिता बनर्जी को भी काफी पसंद कर रहे हैं। यू तो यह सीरियल संचिता बनर्जी का पहला सीरियल, मगर अभिनय जगत में वह चार वर्ष से कार्यरत हैं.एक हिंदी फिल्म “रक्तधार” के अलावा “निरहुआ हिंदुस्तानी 2”,”क्रैक फाइटर’ व ‘विवाह’ जैसी भोजपुरी फिल्मों में अभिनय कर चुकी हैं।

प्रस्तुत है अभिनेत्री संचिता बनर्जी से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंष...

मैं खुद टीवी में काम करना चाहती थी-संचिता बनर्जी

अपनी अब तक की अभिनय यात्रा को लेकर क्या कहेंगी?

मैं मूलतः कोलकोता, पष्चिम बंगाल से हूँ। मेरे पिता का वहां पर व्यवसाय है। मेरी षिक्षा भी कलकत्ता में ही हुई। बंगाल में संगीत व नृत्य सीखना आम बात है। तो मैंने भी कत्थक व भारत नाट्यम की ट्रेनिंग ली हुई है। संगीत में भी मेरी रूचि है। लेकिन मैने बचपन से ही फिल्मों में हीरोईन बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था। बचपन से ही अभिनय करना मेरा सपना रहा है। वास्तव में मेरे नाना उमाप्रदा दास जी थे तो इंजीनियर, मगर वह षौकिया थिएटर किया करते थे। शायद उनके गुण मेरे अंदर आ गए। अन्यथा हमारे परिवार का कोई भी सदस्य इस क्षेत्र से जुड़ा हुआ नही है। पर अभिनय करने की इच्छा के चलते मैं छोटी उम्र में ही विज्ञापन फिल्में करने लगी थी। उस वक्त विज्ञापन फिल्म की शूटिंग के लिए मेरी मां साथ में जाया करती थी। कोलकोता में मैने काफी मॉडलिंग की। रैंप शो किए। प्रिंट एड किए। होर्डिंग्स पर भी नजर आयी हॅू। ज्वेलरी के एड किए। फिर मुझे लगा कि मॉडलिंग से आगे कदम बढ़ाते हुए अब मुझे अभिनय करने के लिए मुंबई जाना चाहिए। तो माता पिता को मनाकर मैं मुंबई पहुँच गयी। मुंबई पहुँचने के बाद मैंने सर्वप्रथम किशोर नमित कपूर से अभिनय का डिप्लोमा हासिल किया। फिर मैने अतुल माथुर से अभिनय की ट्रेनिंग हासिल की। पर साथ में मैं मॉडलिंग भी कर रही थी। इसके बाद मुझे 2017 में पहली हिंदी फिल्म “रक्तधार”में अभिनय करने का अवसर मिला। इसमें शक्ति कपूर, शाहबाज़ खान,मुकेष ऋषि,सुप्रिया कार्णिक जैसे दिग्गज कलाकार थे। मेरे अपोजिट जिम्मी षर्मा हीरो थे। इस फिल्म की शूटिंग खत्म होते ही मुझे भोजपुरी फिल्म “ निरहुआ हिंदुस्तानी 2 “ में अभिनय करने का अवसर मिला। इस फिल्म में मेरे साथ दिनेष लाल यादव और आम्रपाली दुबे भी थीं। इस फिल्म को जबरदस्त सफलता मिली। फिर पवन सिंह के साथ फिल्म “क्रैक फाइटर ‘ की। 2019 में प्रदीप पांडे और अवधेष मिश्रा के साथ मैने “विवाह “ की। उसके बाद मैने कुछ भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग शुरू की। तभी कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन हो गया। फिल्मों की शूटिंग रूक गयी। पिछले डेढ़ वर्ष से सब कुछ बंद ही चल रहा है। इस महामारी के चलते हमारी फिल्म इंडस्ट्री को काफी नुकसान हुआ। धीरे धीरे जब कुछ काम शुरू हुआ, तो मैने अपनी चार भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग पूरी की, जो जल्द प्रदर्षित होंगी। इसी बीच मुझे यश पटनायक और ममता पटनायक ने टीवी सीरियल “रक्षाबंधनः रसाल बनी अपने भाई की ढाल”का आफर दिया यह सीरियल ‘दंग’ टीवी पर प्रसारित हो रहा है।

तो आपको बॉलीवुड में बिना संघर्ष किए ही काम मिल गया?

काफी संघर्ष करना पड़ा। मुझे सिर्फ फिल्मों में हीरोईन बनना था। लेकिन बॉलीवुड में नए कलाकार सीधे निर्माता या निर्देषक से मिल ही नही पाते हैं। सभी को कॉस्टिंग डायरेक्टर के माध्यम से ही जाना पड़ता था। तो मैं जब फिल्म के लिए ऑडिशन देने जाती थी, तो कास्टिंग करने वाले लोग फार्म भरवाते थे। फिर दस से बीस हजार रूपए की मॉंग करते थे। मैं पैसा देती नहीं थी, इसलिए मेरा पत्ता कट जाता था। कई बार लोग रात में चाय-काफी पीने के लिए बुलाते थे, जिसके लिए मैं साफ साफ इंकार कर देती थी। क्योकि मुझे अपनी प्रतिभा पर भरोसा था। मेरा मानना रहा है कि यदि कलाकार के अंदर प्रतिभा है, तो एक दिन उसकी प्रतिभा के बल पर उसे अवष्य काम मिलेगा। मैं मुंबई में अभिनेत्री बनने के लिए संघर्ष कर रही थी। पर मेरा मॉडलिंग का काम अच्छा चल रहा था, जिससे मेरे रोजमर्रा के निजी खर्च निकल जाते थे। इसलिए मैं लंबे समय तक संघर्ष किया।

पहली हिंदी फिल्म “रक्तधार”कैसे मिली थी?

कोलकोता से मुंबई आने और अभिनय का प्रषिक्षण हासिल करने के बाद मैने फिल्मों से जुड़ने के लिए संघर्ष करना शुरू किया। मैं को आर्डीनेटर से मिल रही थी। ऑडिशन पर ऑडिशन दे रही थी। पर बात बन नही रही थी। तभी मेरे एक घनिष्ठ मित्र ने मुझे सलाह दी कि सिर्फ फिल्म नहीं, बल्कि टीवी सीरियल के लिए भी कोषिष करनी चाहिए। तब मैने टीवी सीरियल के लिए भी ऑडिशन देना शुरू किया। मै मॉडलिंग तो कर ही रही थी। मैंने एक सीरियल के लिए ऑडिशन दिया था। उसी कोऑर्डीनेटर ने मेरी मुलाकात फिल्म ‘रक्तधार’ के निर्देषक अजीत वर्मा से करायी। पर मुझे यकीन नही था कि मुझे यह फिल्म मिल जाएगी। क्योंकि संघर्ष करते हुए मैं अनुभव कर चुकी थी कि यहां लोग झूठ ज्यादा बोलते हैं। बहरहाल, अजीत वर्मा ने निर्माता पाटिल से भी मिलवाया और मेरा चयन हो गया था। यह दोनों बहुत अच्छे लोग थे। इन्होने मुझे चेक थमाते हुए कहा कि ‘बेटी परेषान न हो। आप ही इस फिल्म की हीरोईन हो। सेट पर सभी लोग आपकी मदद करेंगे’। ‘मैं हैरान थी। तब मेरे मित्र ने ही मुझे समझाया कि ‘हर इंसान को एक ही तराजू पर नही तौला जाना चाहिए। बॉलीवुड में अच्छे व बुरे हर तरह के लोग मौजूद हैं। जब सामने वाला आपके साथ अच्छे ढंग से पेश आ रहा है, तो आपको भी उसके साथ खड़ा होना चाहिए।’ खैर, फिल्म के लिए अनुबंध पत्र पर साइन करने के बाद हमने दस दिन बाद शूटिंग की थी और बहुत अच्छा अनुभव रहा था। मुझे काफी कुछ सीखने को मिला।

फिल्म ‘रक्तधार को सफलता नही मिली?

जी हॉ! फिल्म अच्छी बनी थी। लेकिन इस फिल्म के पीआर ने इसका प्रचार ठीक से नही किया। फिल्म के निर्माता की पहली फिल्म थी, वह भी चीजों को समझ नही पायें। फिर जब फिल्म प्रदर्षित हुई, तो वितरक ने भी गड़गड़ी कर दी। उसने फिल्म को मल्टीप्लैक्स में रिलीज नही किया।

मैं खुद टीवी में काम करना चाहती थी-संचिता बनर्जी

रक्तधार’ करने के बाद आप भोजपुरी सिनेमा से जुड़ गयी?

मेरी तकदीर मुझे ले गयी। वास्तव में फिल्म ‘रक्तधार’ के कार्यकारी निर्माता नागेष पुजारी, जो कि अब इस दुनिया में नही है, उन्होंने ही मुझे भोजपुरी फिल्म “निरहुआ हिंदुस्तानी 2” का ऑफर दिया था। जिसमें दिनेशलाल  यादव हीरो थे। उस वक्त तक मुझे भोजपुरी भाषा बिलकुल नही आती थी। मैने अपनी यह समस्या उनके सामने रखी। उन्होने कहा कि उसकी चिंता न करो, क्योंकि इसमें मेरे संवाद हिंदी में हैं। इस फिल्म की हीरोईन हिंदी व इंग्लिष में बात करती है। उन्होने कहानी सुनायी। कहानी सुनकर मैंने तुरंत वह फिल्म कर ली। फिल्म ब्लॉकबस्टर हुई। उसके बाद मेरे पास तकरीबन बीस भोजपुरी फिल्मों के आफर आ गए। जिसमें से मैंने पवन सिंह के साथ फिल्म ‘ कै्रक फाइटर ‘ स्वीकार की। इस फिल्म ने भी सफलता के रिकार्ड बना डाले। अब तक मेरी तीन भोजपुरी फिल्में प्रदर्षित र्हुइं और तीनों सुपर डुपर हिट रही हैं। अभी मेरी चार फिल्में ‘मेरे प्यार से मिला दो’, ‘शिकार’,हास्य फिल्म ‘तोहरी पांच मेहरिया’ और ‘माई बापू जी के आशीर्वाद’ जल्द प्रदर्षित होने वाली हैं।

टीवी सीरियल “रक्षाबंधनः रसाल बनी अपने भाई की ढाल”से जुड़ना कैसे हुआ?

मैंने पहले ही बताया कि कोरोना महामारी की वजह से फिल्म इंडस्ट्री लगभग बंद सी है। इसी बीच जब कुछ काम शुरू हुआ, तो मेरे पास बहुत बड़े प्रोडक्षन हाउस ‘ बियांड प्रोडक्षन’ के यष पटनायक व ममता पटनायक की तरफ से इस सीरियल का आफर आया। मैने इसकी कहानी पढ़ी, तो वह मुझे भा गयी। इसमें नारी उत्थान के मसले को बड़े ही अलग अंदाज में उठाया गया है। सीरियल बन भी अच्छा रहा है। यह ‘दंगल’ टीवी पर प्रसारित हो रहा है। बहुत ही कम समय मे यह लोकप्रिय हो चुका है।

सीरियल ”रक्षा बंधन:रसाल बनी अपने भाई की ढाल”के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी?

इसमें दर्शक मुझे फूली के किरदार में देख रहे हैं। जो कि उमेद की पत्नी है। उसके अपने बच्चे हैं। फूली गूंगी जरुर है, मगर बहुत ही ज्यादा सकारात्मक और भावुक किरदार है। वह अपने परिवार को बहुत प्यार करती है। परिवार के लिए हमेषा अच्छा चाहती है। मेरी ही तरह भोली है।  हर इंसान पर आसानी से विष्वास कर लेती है। लोग उसे बेवकूफ बनाकर चले जाते हैं। वह अपने पति, भाई ,भाभी सभी को बहुत प्यार करती है। यह अलग बात है कि उसकी भाभी उसे बिल्कुल पसंद नहीं करती। उमेद भी उसे बहुत प्यार करते हैं।

फूली गूंगी है। तो इसे निभाने के लिए किसी तरह के होमवर्क को करने की जरुरत पड़ी?

जी हॉ! होमवर्क करना पड़ा और अभी भी करना पड़ रहा है। मैं साइन लैंगवेज सहित हर दिन कुछ न कुछ सीखती रहती हूँ। मैं सेट पर अपने सह कलाकारों को दृष्य के फिल्माए जाने से पहले बताती हूँ कि इस साइन लैंगवेज का यह मतलब हुआ और वह सभी मेरी मदद करते हैं। मेरा सपोर्ट करते हैं। कई बार निर्देषक भी हमें बताते है कि किस बात के लिए क्या साइन लैंगवेज उपयोग करनी हैं। कई बार हम साइन लैंगवेज का उपयोग नही कर सकते हैं, उस वक्त हमें अपने चेहरे के हावभाव से उस बात को बताना होता है। इस सेट पर हमें हर दिन हमें काफी कुछ सीखने को मिल रहा है।

एक कलाकार के तौर पर जो संतुष्टि फिल्मों में मिलती है, वह टीवी में मिल पा रही है?

देखिए, फिल्म व टीवी में बड़ा अंतर है। फिल्म में हम हर दृष्य पर मेहनत करते हैं। समय लगाते हैं। हमारे पास पहले से पटकथा व संवाद होते हैं। हम वर्कषॉप भी करते हैं। जबकि टीवी में सब कुछ तेज गति से करना होता है। डेली सोप है। हर दिन एपीसोड प्रसारित होना है। टीवी में एक दिन पहले या उसी दिन सेट पर संवाद व दृष्य मिलते हैं, तो टीवी में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है।

पर टीवी में एक ही किरदार को लंबे समय तक निभाना मोनोटोनस नही हो जाता?

इसीलिए कुछ बदलाव करते रहना चाहिए। मैने सोचा है कि बीच में कोई फिल्म या लघु फिल्म या वेब सीरीज कर उस मोनोटोनस को तोड़ती रहूँगी। मेरे पास एक फिल्म का आफर आया है, जिस पर निर्णय लेने वाली हूँ। मैं टीवी,फिल्म व वेब सीरीज हर माध्यम करते रहना चाहती हूँ।

मैं खुद टीवी में काम करना चाहती थी-संचिता बनर्जी

एक वक्त था जब टीवी पर काम करने वालों को फिल्मों में काम नहीं मिलता था?

जी हॉ! लेकिन मैं तो फिल्मो से टीवी में आयी हूँ। दूसरी बात अब टीवी ,फिल्म व वेब सीरीज हर जगह कलाकार काम कर सकता है। मैं मुंबई में स्थायित्व के लिए खुद ही टीवी करना चाहती थी। टीवी सीरियल में अभिनय करने से कलाकार चंद दिनों के अंदर घर घर तक पहुँच जाता है। टीवी में काम करने से शोहरत जल्दी मिलती है। मै महज धन कमाने के लिए टीवी नही कर रही हूँ। मैने उस वक्त टीवी किया है, जब सिनेमाघर ठीक से खुले नही है। कोरोना महामारी का संकट अभी भी बरकरार है। ऐसे वक्त में हालात सुधरने तक टीवी करना फायदे का सौदा जरुर है।

भोजपुरी सिनेमा के बारे में कहा जाता है कि वह फूहड़ हो गया है? परिवार के साथ बैठकर देखना मुष्किल है?

ऐसा हो गया था। लेकिन “निरहुआ हिंदुस्तानी 2“ से भोजपुरी सिनेमा बदल गया है। अब कंटेंट प्रधान अच्छी भोजपुरी फिल्में बन रही है। कम से कम मैं वही फिल्में करती हूँ, जिन्हे मैं स्वयं अपने माता पिता के साथ बैठकर देख सकॅू। वैसे आप भी जानते है कि भोजपुरी ही नही बॉलीवुड, टॉलीवुड और हॉलीवुड में भी अच्छी व बुरी फिल्में बनती हैं। मगर मैं साफ सुथरी फिल्में  ही करती हूँ। लेकिन हिंदी में ऐसी बोल्ड फिल्में बन रही हैं, जिन्हे पापा के साथ बैठकर देख नही सकते।

आपकी नृत्य की ट्रेनिंग अभिनय में कितना मदद करती है?

बहुत ज्यादा मदद करती है। हम नृत्य करते समय चेहरे की भावभ्ंागिमाएं लाकर ही कहानी या गीत को लोगों तक पहुंचाते हैं। यह बात हमें अभिनय करते समय काफी मददगार साबित होती है। मसलन- सीरियल “ रक्षाबंधनः रसाल बनी अपने भाई की ढाल “ में मेरा फूली का जो किरदार है, उसमें चेहरे के भाव बहुत मायने रखते हैं। सच कहूंतो फूली का किरदार निभाने में मेरा कत्थक और भारत नाट्यम की ट्रेनिंग काफी मददगार साबित हो रही है। जैसा कि आप जानते है कि फूली गूंगी है और हर दर्शक ‘साइन लैंगवेज’ समझता नही है। ऐसे मे चेहरे के भाव काफी मददगार साबित हो रहे हैं। यानीकि मुझे अपनी बात को या यू कहें कि फूली की बात को भावों से ही व्यक्त करना पड़ रहा है। इसमें नृत्य का प्रषिक्षण या यॅू कहें कि नृत्य करना मददगार साबित हो रहा है।

आगे किस तरह के किरदार निभाना चाहेंगी?

मुझे पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार निभाने की इच्छा है। मुझे तोड़ फोड़ करना, मार पीट करना यानी कि गुंडों की पिटाई करना पसंद है। पर मुझे ऐसे किरदार नही मिलते। मैं रानी मुखर्जी की फिल्म ‘ मर्दानी‘ जैसी फिल्में करना चाहती हूँ।

आपके शोक?

नृत्य करना, संगीत सुनना, दोस्तों से बात करना। कभी कभार सोषल मीडिया पर फैंस से बातें करना। घर की साफ सफाई करना व सजाना तथा षॉपिंग करना।

फिटनेस मंत्र?

जिम जाती हूँ। सायकलिंग करती हूँ। स्किपिंग करती हूँ।

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