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फिल्म 'सुमेरू' में मैंने सावी का अति जटिल किरदार निभाया है: संस्कृति भट्ट

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By Mayapuri Desk
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फिल्म 'सुमेरू' में मैंने सावी का अति जटिल किरदार निभाया है: संस्कृति भट्ट

सिनेमा के वैश्वीकरण के साथ ही सिनेमा काफी विकसित हो गया है। अब बॉलीवुड के दरवाजे हर किसी के लिए खुल गए हैं। लोग टीवी, फिल्म या वेब सीरीज में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह हुई है कि अब छोटे शहरांे, गांवों व कस्बों की लड़कियां भी धड़ल्ले से बॉलीवुड में न सिर्फ अपनी किस्मत आजमा रही हैं, बल्कि सफलता भी दर्ज करा रही हैं। ऐसी ही एक देहरादून,उत्तराखंड निवासी अदाकारा संसकृति भट्ट हैं, जिनकी पहली फिल्म ‘सुमेरू’ एक अक्टूबर को सिनेमाघरों में पहुॅचने वाली है।

प्रस्तुत है संस्कृति भट्ट से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश...

अभिनय का चस्का कैसे लगा?

मैं देहरादून, उत्तराखंड निवासी हूँ। 2018 में मैं ‘मिस उत्तराखंड’ बनी थी। मेरी शिक्षा दिक्षा देहरादून में ही हुई है। मेरे पिता रविंद्र भट्ट जी व्यवसायी और मां निरूपमा भट्ट गृहिणी व पेटर हैं और मैं भी अपनी मां को देखकर पेंटिंग बनाती रही हूँ। मेरे अंदर कला के गुण मेरी मां से ही मिले। मेेरे माता पिता चाहते थे कि मैं डाक्टर बनूं, इसलिए मैं मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी. लेकिन मेरी तकदीर में डॉक्टर बनना नहीं लिखा था, इसलिए अभिनेत्री बन गयी. वास्तव में जब मुझे ‘मिस उत्तराखंड’ के खिताब से नवाजा गया, उसके बाद 2019 में देहरादून में एक फिल्म के लिए ऑडीशन हो रहे थे। तब तक मेरा अभिनेत्री या हीरोईन बनने का कोई इरादा नहीं था। मगर हर लड़की के मन में फिल्म हीरोइन को लेकर एक फैंटसी होती है। हर लड़की के मन में यह बात होती है कि क्या वह हीरोईन है? बहरहाल, मैने मजाक मजाक में ही ऑडीशन दे दिया और मुझे उस फिल्म के लिए चुन लिया गया। फिल्म का नाम था-‘‘सौम्या गणेश’’.यह फिल्म आधी बनी है। कोरोना महामारी व लॉक डाउन के चलते इसकी शूटिंग अधर में लटक गयी थी। मगर कोरोना काल में ही मुझे दूसरी फिल्म ‘सुमेरू’ मिल गयी, जिसे उत्तराखंड के देहरादून, हर्षिल, मसूरी और धनोल्टी जैसी खूबसूरत जगहों पर ही फिल्माया गया है। अभिनेत्री बनते ही मेरी मेडिकल की पढ़ाई शुरू ही नही हो पायी। क्योकि मेरे पिता ने कहा कि दो नावों की सवारी सफल नही होती।

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अभिनय का कोई प्रशिक्षण लिया?

नहीं... फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले फिल्म के सभी कलाकारों के साथ हमने वर्कशॉप किया था। तो एक तरह से निर्देशक ने ही हमें फिल्म के लिए पूरी तरह से तैयार किया।

फिल्म ‘सुमेरूकिस तरह की फिल्म है?

अविनाश ध्यानी लिखित व निर्देशित यह फिल्म दो किरदारांे की फिल्म है। इसमें भंवर सिंह का किरदार अविनाश ध्यानी और मैंने सावी का किरदार निभाया है। दोनों ही जटिल किरदार हैं.भंवर प्रताप सिंह की जिंदगी की अपनी कुछ जटिलता भरी कहानी है, तो वहीं सावी की अपनी कुछ जटिलता भरी कहानी है। अंततः दोनो मिलते हैं और दोनों को एक दिन अहसास होता है कि वह दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं।

अपने किरदार को किस तरह से परिभाषित करेंगी?

सूरत के एक अमीर परिवार की लड़की है सावी। मगर सूरत में कम रही है। वह कई महानगरों में रही है। उसका परिवार काफी विखरा हुआ है, इस वजह से वह परेशान रहती है। जबकि वह ज्यादा सोचती नही है। एक आत्मनिर्भर लड़की है। इन्नोसेंट है। थोड़ी बचकानी सी भी है।

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फिल्म ‘सुमेरूमें अभिनय करने के आपके अनुभव क्या रहे?

इस फिल्म में अभिनय करना मेरे लिए बहुत ही ज्यादा अमेजिंग था। हमने पांच पांच फिट की बर्फ और बहुत ठंडी में शूटिंग की है। हमारे पैर नीले पड़ जाते थे। हमारे लिए खड़े रहना भी मुकिश्ल होता था, पर हमें शूटिंग करनी ही पड़ती थी। कभी कैमरा खराब हो जाता था, तो दूसरा कैमरा मंगवाना पड़ता था। सभी पोर्टल छोड़कर चले गए थे। तो इस फिल्म की शूटिंग के दौरान काफी संघर्ष रहा। पर हमें खुशी है कि फिल्म अच्छी बन गयी है। बर्फबारी इतनी अधिक थी कि उपर हर्षिल तक घोड़े या खच्चर कुछ भी नहीं आ पा रहे थे।

अविनाश ध्यानी के साथ काम करने के अनुभव क्या रहे?

अविनाश ध्यानी कमाल के निर्देशक हैं। तो वहीं वह अभिनेता के तौर पर  वह अपने सह-कलाकार को पूरा सहयोग देते हैं।

फिल्मों में अंगप्रदर्शन आम बात हो गयी है?

हमारी फिल्म ‘सुमेरू’ में ऐसा कुछ नहीं है। एक भी दृश्य ऐसे नहीं है। यह एक साफ सुथरी पारिवारिक फिल्म है, जिसे परिवार का हर सदस्य एक साथ बैठकर देख सकता है।

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आपने नृत्य का प्रशिक्षण कहां से लिया?

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मैंने कत्थक में स्नातक की डिग्री हासिल की है। अभी कत्थक में मास्टर की डिग्री के लिए भातखंडे से पढ़ाई कर रही हूँ।

पेंटिंग बनाने के लिए कल्पना का सहारा लिया जाता है। अभिनय में भी यह जरुरी है। तो क्या आप अपनी मां से किसी किरदार को निभाने से पहले सलाह मशविरा करती हैं?

जी हॉ! मैं अपनी मां के साथ पेंटिंग बनाती हूँ। मेरी मम्मी भी आर्टिस्ट हैं, पेंटिंग बनाती हैं, तो उनकी भी अपनी सोच है।

आप किस तरह की पेंटिंग बनाना पसंद करती हैं?

मैं ज्यादा प्रकृति और ऑब्जेक्ट की पेंटिंग बनाना पसंद करती हॅूं।

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कत्थक डांसर होने का अभिनय करने में कितना फायदा मिला?

बहुत ही ज्यादा फायदा मिला। कत्थक नृत्य में करूणा, रूदन, क्रोध सहित कई तरह के रस होते हैं। जिन्हे बिना संवाद के हम अपने नृत्य व बॉडी लैंगवेज से ही पेश करते हैं। अभिनय में जब हम किसी किरदार को निभाते हैं, तो वहां भी करूणा, रूदन, क्रोध सहित कई रस या भाव या इमोशन हमें साकार करने होते हैं, इसमें कत्थक नृत्य ने हमारी काफी मदद की।

फिल्म ‘सौम्या गणेश’ को लेकर क्या कहना चाहेंगी?

इस फिल्म की बची हुई शूटिंग हम जल्द ही करने वाले हैं। इसमें मैंने सौम्या का किरदार निभाया है। सौम्या एक स्ट्रांग टिपिकल भारतीय लड़की है.समझदार है। हर चीज को बहुत बारीकी से समझती है। सौम्या, सावी से काफी अलग है।

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शौक?

नृत्य, स्केटिंग, पेंटिंग बनाना और स्वीमिंग करना।

भविष्य में किस तरह के किरदार निभाना चाहती हैं?

मुझे ऐतिहासिक किरदार निभाने की मेरी इच्छा है। इसके अलावा रोजमर्रा की इंसानी जिंदगी से जुड़े किरदारों को निभाना चाहूँगी।

नृत्य के क्षेत्र में भी कुछ करना चाहती हैं?

जी हॉ! नृत्य के स्टेज शो करना चाहती हूँ। जब मैंने कत्थक सीखना शुरू किया था, तब लोग इसे बोरिंग मानते थे। पर अब धीरे-धीरे कत्थक नृत्य के प्रति लोगों की रूचि बढ़ रही है।

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