एकांकी नाटकों की बात आती है तो सबसे पहले पद्मश्री और न जाने कितने पुरस्कारों के ढेर पर बैठ संगीतकार, सिंगर तथा नाटककार शेखर सेन का नाम सामने आता है। शेखर अभी तक देश विदेशों में अपने पांच नाटकों के एक हजार शोज कर चुके हैं। करीब बीस वर्ष पूर्व उनके पहले नाटक तुलसी दास का मंचन हुआ था, जो अपने आप में अलौकिक था। उनके दूसरे नाटक का नाम था कबीर जो 1999 में शुरू हुआ, इसके बाद 2004 में स्वामी विवेकानंद शुरू हुआ, फिर 2010 में एक काल्पनिक कहानी का नाटक साहब आया, जिसमें पिता पुत्र की कहानी थी। 2013 में उनका पांचवा नाटक था सूरदास।
इनमें सबसे ज्यादा जिस नाटक का मंचन हुआ वो कबीर है। उसके अभी तक चार सो बाईस शो हो चुके हैं। विवेकानंद के दो सो पिचासी शो हो चुके हैं तथा तुलसीदास के एक साठ से एक सो सत्तर शोज हो चुके हैं। सूरदास के सत्तर पिच्चहतर तथा साहब के साठ शोज हुये हैं। इस बीच सनमति नामक एक नाटक के नो शोज हो चुके हैं।
अगर इन सारे नाटकों की बात की जाये तो हर नाटक की एक बॉडी लैंग्वेंज होती है, हर नाटक अलग अलग भाषा में हैं। जैसे तुलसी में मैं अवधी बोलता हूं और कबीर में भोजपुरी, विवेकानंद में हिन्दी, इंगलिश, बांग्ला आदि।
शेखर सेन का कहना है कि इन नाटकों के चरित्रों को जीने के लिये काफी कुछ करना पड़ता है जैसे विवेकानंद के तो चित्र वगैरह मिल जाते हैं तो फॉलो करने में सहूलियत हो जाती है लेकिन बाकी पौराणिक किरदारों को मैं पहले समझता हूं फिर उनकी बॉडी लैंग्वेज और लुक पर काम करता हूं इसके बाद मेरे लिये सब आसान हो जाता है। हां ये सब मैं स्वंय करता हूं यहां तक अपना मेकअप तक मैं खुद करता हूं। इन सभी नाटकों को मैने ही लिखा है, संगीत भी मेरा है (मूलतया मैं संगीत का विद्यार्थी रहा हूं) नाटकों में आने से पहले मेरे बतौर म्यूजिक कंपोजर व सिंगर दो सो सत्ताईस म्यूजिक वीडियो रिलीज हुये हैं। इनमें ज्यादातर भजन एलबम थे। दरअसल मेरी धारा भक्ति रस वाली थी। इसके अलावा प्राइवेट एलबमों में मेरे म्यूजिक के तहत दूसरे सिंगर्स ने भी गाया।
एक दिन शेखर सेन ने सोचा कि मेरे कंपोज किये एलबमों की गिनती कितनी भी हो जाये लेकिन उससे फर्क क्या पड़ेगा लिहाजा कुछ ऐसा करना होगा जो आत्मा को छू सके। लिहाजा मैने नाटक की शुरूआत की। मैने पहला नाटक तुलसी 1997 में लिखा और वो एक्ट हुआ 1998 में। उसके बाद चली ये यात्रा आज तक निर्विघ्न चली आ रही है। देश के अलावा मेरे विदेशों में ढेर सारे शोज हुये हैं अमेरिका में सो से ज्यादा शोज हो चुके हैं । इसके अलावा इंगलैंड, बेल्जियम, हांगकांग, सिंगापौर, इंडोनेषिया, मॉरिशस, दक्षिण अफ्रिका, नाइजीरिया, सूरीनाम, वेस्टंडीज तथा शारजहां आदि देशों में कई शोज हो चुके हैं।
एक पात्रीय नाटक वो भी दो घंटों तक दर्शक को बांधे रखना चेलेंजिंग होता है, इसके लिये मैं नाटक की फिनिशिंग पर बहुत काम करता हूं इसके बाद मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हुई।
इससे पहले शेखर सेन म्यूजिक के प्रोग्राम भी करते रहे हैं। यहां शेखर जी का कहना है, जी हां। मेरे करीब डेढ हजार संगीत के शोज हुये हैं जिनमें तीन महीने परफॉर्म कर चुका हूं अमेरिका में, नाटकों से पहले। बाहर जाकर मैने एक बात नोट की कि उनकी पैकेजिंग बहुत बढ़िया होती है। मेरे सभी नाटक पूर्ण रूप से देशी हैं लेकिन उनकी फिनिशिंग अच्छी है। मैने अपने नाटकों में कभी कीबोर्ड का इस्तेमाल नहीं किया, मेरा म्यूजिक हमेशा लाइव रहा है। विदेशों में चाहे अमेरिका हो या इंगलैंड मेरे सभी शो हाउसफुल जाते है और उनमें विदेशियों की भी अच्छी खासी तादाद होती है।
इस विधा में जाने का श्रेय मेरे परिवार को जाता हैं जंहा से मुझे इस तरह के संस्कार मिले। मेरी मां बचपन में रामचरित मानस पढ़ा करती थीं, मैं भी उनके साथ गाता था, अभिनेता बनने की तो मैने कल्पना तक नहीं की थी। सच पूछिये तो मैं वैसा कुछ नहीं बनना चाहता था मैं तो रायपुर से मुंबई फिल्मों का संगीतकार बनने आया था, मैं गायक भी नहीं बनना चाहता, अभिनेता बनने का तो कभी सोचा तक नहीं था। अब पिछले बीस साल से मेरे घर की रसोई नाटकों के द्धारा ही चल रही है।
अपने नाटको को कभी यूट्यूब पर अपलोड करने का सोचा। इस पर शेखर जी कहते है कि मैने आज तक अपनी किसी भी नाटक की रिकार्डिंग नहीं होने दी। तीन बार मैंने राष्ट्रपति भवन में कैमरा नहीं लगने दिया, लोकसभा में आज तक कोई भी प्रस्तुति बिना कैमरे के नहीं हो पाई लेकिन मैने वहां भी कैमरा नहीं लगने दिया। क्योंकि जैसे ही मेरा नाटक रिकॉर्ड हुआ, फिर वो नाटक नहीं बल्कि टीवी का प्रोग्राम या फिल्म बन जायेगा। इसके अलावा जुहू इस्कॉन में मेरी नोसो पिच्यानवे प्रस्तुतियां हो चुकी हैं लेकिन मैने एक में भी किसी राजनेता को मंच पर आमंत्रित नहीं किया।