श्याम शर्मा : जिन लोगों ने भी अनुराग कश्यम की फिल्म ‘मुक्काबाज’ देखी है, उन्होंने अभिनेत्री ज़ोया हुसैन के अभिनय की तारीफ जरूर की होगी। हालांकि इससे पहले भी वह अभिनय करती रही हैं लेकिन उन्हें सही पहचान इसी फिल्म ने दी। अब इसी कड़ी में ‘लाल कप्तान’ आई है यानी ज़ोया बॉलीवुड में अब सक्रिय हो चली हैं। उनके पास अभी दो और फिल्में हैं जिनका ज़िक्र अभी करना नहीं चाहतीं।
ज़ोया साउथ की फिल्में भी करती रही हैं। वह कहती हैं कि साउथ और बॉलीवुड में अब फर्क नहीं रह गया है। यहां के कलाकार वहां काम कर रहे हैं और वहां के कलाकारों को यहां काम मिल रहा है। अब लैंग्वेज की कोई बाउंडेशन नहीं रही। कलाकारों के लिए यह अच्छा भी है। सैफ अली खान के साथ पहली बार काम करते हुए ज़ोया नर्वस नहीं हुई। इसलिए कि फिल्म शुरू होने से पहले उनकी सैफ के साथ कई मुलाकातें हो चुकी थीं।
ज़ोया कहती हैं कि स्क्रिप्ट को लेकर हमारे बीच डिस्कशन चलती रहती थी इसलिए मै कम्फर्ट ज़ोन में आ गई थी। सैफ के साथ काम के अनुभव को लेकर ज़ोया कहती हैं कि वह डाउन टू अर्थ हैं। वह मज़ाक करते रहते हैं इसलिए उन्होंने फील होने ही नहीं दिया कि वह बड़े स्टार हैं। सैफ में एक खास बात यह भी है कि इन दिनों वह एक्सपैरिमेंट खूब कर रहे हैं। अलग-अलग तरह के कैरेक्टर्स प्ले कर रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री में अब तक अनुभव को लेकर ज़ोया कहती है कि यहां अच्छे लोग भी हैं और बुरे भी।
ज़ोया कहती हैं कि मुक्काबाज़ के बाद मेरे काम को नोटिस किया गया। लाल कप्तान की शूटिंग ज्यादातर आउटडोर थी इसलिए मैं कई निर्माताओं के संपर्क में नहीं आ सकी, जो मुझे अपनी फिल्म में लेना चाहते थे। ‘लाल कप्तान’ को मैं एडवेंचर मूवी कहूंगी जिसे करने में बड़ा मज़ा आया। ज़ोया अपने बैकग्राउंड के बारे में खुलकर बताती हैं। वह कहती हैं कि मेरा जन्म और पढ़ाई दोनों दिल्ली में हुई है। पेरेंट्स लखनऊ से बिलॉन्ग करते हैं। पापा एडवेंचर ट्रैवल एजेंसी चलाते हैं, मां पहले चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट थीं, अब केटरिंग का काम करती हैं। मुझे फैमिली की तरफ से हमेशा अपना मनपसंद काम करने की आजादी मिली। एक्ट्रेस के अलावा एक स्पोट्र्स पर्सन भी रही हूं।
एक्टिंग का कीड़ा कहां काटा?
इस सवाल पर ज़ोया कहती हैं कि स्कूल में थिएटर करती थी। उसके बाद मन था एलएसआर (लेडी श्रीराम कॉलेज) से जर्नलिज्म करने का। वहां एडमिशन नहीं मिला तो डीयू के साउथ कैंपस के वेंकटेश्वर कॉलेज में बीए प्रोग्राम में चली गई। उस टाइम पर ‘यात्रिक थिएटर ग्रुप’ ज्वाइन किया। इसमें सुनीत टंडन जैसे कई लोग थे। हम इंग्लिश में प्ले करते थे। मैं ग्रुप की सबसे छोटी मेंबर थी। थिएटर से पेट तो पाला जा सकता है, लेकिन उससे आगे ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता। इसलिए मैंने थिएटर छोड़ बॉलीवुड में जाने का फैसला किया।
पढ़ाई खत्म होने के बाद मैं अपनी कजीन के साथ 2012 में दिल्ली से मुंबई आ गई। मुझे इंडस्ट्री में घुसना था, लेकिन मेरी कोई पहचान नहीं थी। दिल्ली के थिएटर से जो थोड़ी-बहुत पहचान थी, उसी का सहारा लेकर 2 साल तक ऑडिशन देती रही। इस दौरान मेरी मुलाकात अनुराग कश्यप से हुई। मैंने उनकी शॉर्ट फिल्म तीन और आधा में काम किया। उसके कुछ साल बाद एक दिन उन्होंने मेरे पास ‘मुक्काबाज’ मूवी की स्क्रिप्ट भेजी। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि वो मुझे अपनी फिल्म में लेना चाहते हैं। मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी और हां बोल दिया। ‘लाल कप्तान’ के लिए मुझे मुकेश छाबड़ा के ऑफिस से फोन आया था। मैंने लुक टेस्ट दिया और फाइनल हो गई। एक्सपोजर को लेकर ज़ोया कहती हैं कि ज्यादा एक्सपोजर के साथ मैं किसी सीन को फिल्मों में दिखाने को सही नहीं मानती। मैं ऑनस्क्रीन कभी भी बिकिनी नहीं पहन सकती।जहां तक कास्टिंग काउच की बात है तो मैंने इतने ऑडिशन दिए, मुझे कभी ऐसा कुछ भी महसूस नहीं हुआ। मेरा मानना है कि आपका काम सबसे ऊपर है, अगर आपके अंदर हुनर है तो इन सब चीजों को फेस नहीं करना पड़ता।