कहते हैं रुलाना तो एक बारगी फिर भी आसान है पर किसी को हँसाना बहुत मुश्किल काम होता है और जो हँसा दे, उससे बड़ा कलाकार कोई हो नहीं सकता है। 90s में कॉमेडी किंग के नाम से मशहूर कलाकार जॉनी लीवर की शक्ल देखकर ही कोई रोता शख्स भी हँस देता था। अब जब पिता कॉमेडी किंग थे तो सोचिए बच्चों के लिए कॉमेडी में आना क्या मुश्किल रहा होगा? ऐसा ही लगता है न? पर ऐसा है नहीं! आइए जॉनी लीवर की फर्स्ट बोर्न, उनकी बेटी से जानते हैं कि उनकी कॉमेडी जर्नी की कैसी रही।।। – सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’
हेलो जैमी, मायापुरी इंटरव्यू में आपका स्वागत है। सबसे पहले अपने बचपन के बारे में बताइए, कहाँ और कैसे बीता आपका बचपन?
बचपन मुंबई में बीता। मुंबई में हम सब साथ में थे। मेरे भाई के होने के बाद हम अँधेरी शिफ्ट हो गये थे। मेरी माँ आंध्रा से हैं वह बहुत साधारण महिला हैं। उन्हें फिल्म लाइन का कोई अंदाज़ा नहीं था। हमारी फैमिली एक सिंपल मिडल क्लास फैमिली थी। हम तो घर पर ज़मीन पर बैठकर खाते थे और बहुत साधारण तरीके से रहते थे। हमें तो बड़े होने पर पता चला कि पापा इतने बड़े फिल्मस्टार हैं। लोग उन्हें कॉमेडी किंग कहते हैं। वह लोगों को इतना हँसाते हैं और वो स्टार हैं। लेकिन घर में हमें कभी ऐसा माहौल नहीं मिला कि लगे ये कोई सेलेब्रिटी का घर है। घर में सब बहुत हम्बल रहते थे।
आपको बड़े होने के बाद पता चला कि जॉनी भाई इतने बड़े स्टार हैं, तो क्या तब कॉलोनी और स्कूल में ऐसा स्पेशल माहौल मिलता था कि लगे हम स्टारकिड्स हैं या ऐसा कोई मज़ाक होता था कि अब तो तुम कॉमेडी करके दिखाओ, क्योंकि तुम जॉनी लीवर की बेटी हो?
सिद्धार्थ मैं उस स्कूल में थी जहाँ ऑलमोस्ट सारे बच्चे ही स्टार किड्स थे। ईशा और अहाना देओल भी मेरे साथ ही पढ़ती थीं। आलिया भट्ट मुझसे जूनियर थी। पापा ने हमें अपनी तरफ से बेस्ट स्कूल में एडमिट करवाया क्योंकि वो चाहते थे कि जो कमी उनके साथ रही, जैसे वो पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए वैसा हमारे साथ न हो। इसलिए वहाँ तो सब यही सोचते और कहते थे कि तुम तो बड़ी होकर एक्टर ही बनोगी, तुम्हारे फादर जो इतने बड़े स्टार हैं। कॉमेडी किंग हैं।
हालाँकि मुझे ये सब देखकर बड़ा अजीब लगता था। क्योकि फैमिली की तरफ से वो एट्मोसफेयर ही नहीं था कि आर्ट की तरफ ध्यान जाए। मेरे लिए दो ही आप्शन थे कि या तो डॉक्टर बनूँ या इंजिनियर बल्कि मेरी माँ के लिए तो स्पेसिफिक एक ही चाहत थीं कि मैं गय्नाकोलोगिस्ट बनूँ।
सारी दुनिया को हंसाने वाले, कॉमिक टाइमिंग से भरपूर, सेन्स ऑफ़ ह्यूमर में जिनका जवाब नहीं, वो जॉनी लीवर घर पर कैसे थे? एक दिन में तीन-तीन शेड्यूल करने वाले जॉनी लीवर क्या घर के लिए, आप बच्चों के लिए समय निकाल पाते थे और क्या घर पर कॉमिक माहौल होता था?
आप तो जानते ही हैं कि वो तीन नहीं, कई बार तो वो पाँच पाँच फिल्मों की शूटिंग एक साथ कर रहे होते थे। अब सोचिये जो इतना काम करके घर आयेगा उसकी क्या हालत हो चुकी होगी? जब वो घर आते थे तब मेरे भाई और मेरे बीच में अक्सर लड़ाई होती थी कि उनके जूते कौन उतारेगा।।। वो इतने थके हुए होते थे कि आते ही लेट जाते थे और हम दोनों उनके जूते, मोज़े खोलते थे। लेकिन जब वो आउटडोर शूटिंग करके आते थे तो ढेर सारे गिफ्ट्स लेकर आते थे। रात दो-ढाई बजे घर आते थे तो बिना एक मिनट भी आराम किए, अपना बैग खोलते थे और हमारे लिए चॉकलेट्स, गिफ्ट्स आदि तुरंत निकाल देते थे। हम दोनों भी बहुत ख़ुश होते थे। लेकिन तब भी समय कम ही मिलता था क्योंकि उन्हें फिर सुबह शूटिंग पर जाना होता था। फिर जब मुंबई में जब शूटिंग होती थी तो वक़्त और कम हो जाता था। डैडी का घर आना एक बहुत स्पेशल ओकेशन होता था। हम उन्हें स्पेशल फील करवाने की कोशिश करते थे। हालाँकि वो ख़ुद कभी भी ऐसा बिहेव नहीं करते थे कि जैसे वो बहुत बड़े स्टार हों। पर हमारी कोशिश होती थी कि उनके लिए कुछ एक्स्ट्रा कर सकें।
जब वो घर पर नहीं होते थे तब क्या आप उनकी फ़िल्में देखती थीं?
एक्चुअली नहीं, क्योंकि हमारी मम्मी को फिल्मों का शौक कोई ख़ास नहीं था। जैसा मैंने पहले भी कहा, वो बहुत सिंपल फैमिली से हैं। हमें तो दूसरे कहते थे कि “तुम्हें पता है तुम्हारे पिता इतने बड़े स्टार हैं”
फिर आपका कॉमेडी में कैसे आना हुआ?
मैं सच बताऊं तो मेरा दूर-दूरतक कॉमेडी से कोई वास्ता नहीं था। इन्फक्ट आप देखेंगे कि मुझमें और मेरे भाई में वो ज़्यादा फनी है। मुझे तो कुछ भी नहीं आता था। न मैं डांस कर पाती थी, न मैं सिंगिंग कर सकती थी। न मुझे एक्टिंग आती थी शायद इसलिए मैं इनसिक्योर होने लगी थी कि मुझे कुछ भी तो नहीं आता। फिर इसी चीज़ को फायर की तरह इस्तेमाल कर मैं चाहने लगी कि मुझे लोग देखें। मैंने मेहनत शुरू की। ये सिलसिला कॉलेज से शुरू हुआ। मेरे दोस्तों ने मुझे इंसिस्ट किया कि मैं कोई एक्ट करूँ, मैंने कोशिश और और जब स्टेज पर परफॉरमेंस अच्छी हुई तो ऑडियंस से एप्रिशिएट भी किया। वहीँ से सब शुरू हुआ और मुझे एक्ट करने में बहुत मज़ा आने लगा। फिर मैंने ख़ूब अवार्ड्स जीते, डांसिंग, सिनिंग, एक्टिंग, कॉमेडी आप नाम लो, हर कैटेगरी में मुझे अवार्ड मिले। मैंने टोटल 30 अवार्ड्स जीते, और रिवार्ड्स भी मिले। फिर कॉलेज ख़त्म हुआ तो डैडी ने कहा कि अभी आपको और पढना है। लेकिन मेरा मन पढ़ाई में नहीं था क्योंकि मैं पढ़ाई में कोई बहुत अच्छी नहीं थी। मैं सच कहूँ तो हर फील्ड में मिडियोकर थी। लेकिन मैं भी हार्ड वर्कर थी, अब भी हूँ।मैं जो ठान लूँ कि करना है तो उसको लेके बहुत मेहनत करती हूँ। उससे मैं सब कवर कर लेती हूँ। फिर लन्दन चली गयी और वहाँ से मास्टर्स किया। फिर पेरेंट्स ने कहा जॉब भी कर लो। फिर वो भी कर लिया। पर लन्दन में तो आज़ादी थी। वहाँ फैमिली से दूर रहती थी फिर भी कोई बुरी लत नहीं लगी, ये नहीं था कि आज़ादी मिली है तो वीकेंड में सिगरेट शराब पीने बैठ जाओ, बल्कि मेरे लिए एंजोयमेंट का मतलब होता था कि मैं आज कोई प्ले देखने वाली हूँ। वही मुझे ख़ुशी देता था। अब मुझे देखने के साथ साथ उसके बारे में लिखने में भी मज़ा आने लगा। मुझे फनी किस्से दिखने लगे और मैंने उन्हें लिखना शुरू किया। 2011, शायद 2010, नहीं 2011 में मैंने ये रेअलाइज़ किया कि नहीं, मैं परफॉर्म ही करना चाहती हूँ। यही मेरी मंज़िल है।
आपके कॉमेडी कैरियर में जॉनी भाई का कितना योगदान रहा? उनकी तरफ से आपको क्या सपोर्ट मिला?
डैडी मेरी ग्रेजुएशन सेरेमनी पर लन्दन आए थे। फिर वो एक बार और आए थे, लन्दन में उनका टूर था। तब मैंने उन्हें बताया कि मैं ये करना चाहती हूँ, ये कॉमेडी करने लगी हूँ। पर वो शॉक हो गये, वो चाहते थे कि मैं सिक्योर लाइफ जियूं। वो नहीं चाहते थे कि मैं वो स्ट्रगल करूँ जो उन्होंने फेस किया। आख़िर अब मैं अच्छा कमाने लगी थी। अच्छी भली जॉब थी मेरी। लेकिन फिर उन्होंने ये भी रेअलाइज़ किया कि मैंने उनकी सारी बात मानने के बाद, पढ़ाई, जॉब सब कुछ करने के बड़ा अपनी बात रखी। मैंने उन्हें वो जोक्स दिखाए। फिर उन्होंने लन्दन में ही अपने मंच पर मुझे बुलाया, फिर मुझे सिखाया कि कैसे जोक करना है। कुछ जोक्स को आगे भेजा कि ये बाद में सुनाना, कुछ तो स्टार्ट के लिए रखा। फिर जब मैं स्टेज पर गयी तो थोड़ी नर्वस ज़रूर हो गयी लेकिन जब एक्ट खत्म हुआ तो मुझे फिर वहाँ स्टैंडिंग ओवेशन मिली। उनकी रेगुलर ऑडियंस भी तारीफ की और बोले जॉनी भाई “मोर के बच्चे को नाचना नहीं सिखाया जाता”
यहाँ उन्हें फील हुआ कि मैं कर सकती हूँ तो उन्होंने मेरा अच्छा सपोर्ट किया
फिर इंडिया में मेरे चचा जिमी मोज़ेज़ जो आलरेडी स्टैब्लिश स्टैंडअप कॉमेडियन हैं; उन्होंने मेरी बहुत हेल्प की। डैडी तो बिज़ी रहते थे। कई बार तो डांट भी देते थे गलती होने पर ताकि मुझे बाहर कहीं कोई कुछ न कह दे। हमने साथ में कोई ढाई सौ शोज़ किये हैं। तब मैं कॉमेडी सर्कस में काम कर रही थी। मुझे पूरे सीजन के लिए हायर कर लिया गया था।
उसी समय उन्होंने अपन शो में भी 15-20 मिनट का एक्ट दे दिया। तब उस तैयारी में मुझे बहुत डांट पड़ी, कई बार मैं रोई भी हूँ तो भी पापा ने कहा कि चलो अभी रोते-रोते जोक सुनाओ
आपकी नज़र में आज के समय में सोशल मीडिया की क्या वैल्यू है? क्या एक टैलेंट को दुनिया के सामने लाने में ये किसी काम की है?
मैं आपको बताऊं सिद्धार्थ, आप तो जानते ही हैं कि अब्बास-मस्तान ने डैडी के साथ कितना काम किया है। मैं बचपन से देख रही हूँ कि वह घर आते-जाते रहते थे। जब मैं छोटी सी थी तबसे उन्होंने मुझे देखा है लेकिन उन्हें नहीं पता था कि मैं कॉमेडी करने लगी हूँ। एक रोज़ उन्होंने मेरी एक स्टैंडअप वीडियो सोशल मीडिया पर देखी और हैरान होकर डैडी को फोन करके पूछने लगे कि जेमी आजकल क्या कर रही है। जब डैडी ने बताया कि ऐसे ऐसे मैं कुछ शोज़ कर रही हूँ तो उन्होंने कहा कि इसे तो हम एक फिल्म में लेने का प्लान कर रहे हैं।
आप यकीन मानेंगे, मुझे अपना पहला ब्रेक ही ऐसे मिला। कपिल शर्मा की पहली फिल्म ‘किस किस को प्यार करूँ’ के लिए उन्होंने स्पेशली मेरा करैक्टर लिखा और लोग इसलिए परेशान होते हैं कि उनके रोल काट दिए जाते हैं, मेरे तो दो सीन्स बढ़ा दिए उन्होंने।
और एक बात बताती हूँ, मैं 8 साल से काम कर रही हूँ, लेकिन अभी कोरोना के चलते इन दो सालों में मुझे डर लगने लगा कि घर बैठे-बैठे लोग कहीं मुझे भूल न जाएँ। फिर एक आर्टिस्ट का मन भी नहीं लगता अगर स्टेज न हो, परफॉरमेंस न निकले। इसलिए मेरी नज़र में सोशल मीडिया एक ऐसी स्टेज है जो हम ख़ुद तैयार कर सकते हैं। इसे हम अपने हिसाब से चला सकते हैं। मैंने घर से ही वीडियोज़ बनाई, मैंने और मेरे भाई ने कई कॉमिक वीडियोज़ निकालीं और एक समय आया जब हर एक वीडियो वायरल होने लगी। आज मेरे छः लाख से ज़्यादा फॉलोवर इन्स्टा पर हैं तो ढाई लाख यूट्यूब पर भी हैं। इन्हीं वायरल वीडियोज़ की बदौलत मुझे फ्लिप्कार्ट की एप पर पहली बार मेरा ख़ुद का शो मिला। आज के युग में अगर आपको परफेक्ट प्लेटफोर्म नहीं मिल रहा है सोशल मीडिया से बेटर कोई और मंच हो ही नहीं सकता। यहाँ की वीडियोज के बाद से मुझे बड़े बड़े ब्रांड्स के ऑफर्स मिलने लगे।
अपने आने वाले प्रोजेक्ट्स के बारे में बताएं
अभी तुरंत तो आप मुझे भूत पुलिस में देखेंगे, इसमें मेरा छोटा सा प्यारा सा रोल है, बाकी अभी सस्पेंस है। रेवील नहीं कर सकती पर हाँ इतना ज़रूर बता सकती हूँ कि आने वाले समय में आप मुझे वेब सीरीज़ में भी देखेंगे।
मायापुरी मैगज़ीन से जुड़ी अपनी कोई याद बताना चाहेंगी?
मायापुरी के लिए तो क्या ही कहूँ, ये हमारे घर में रेगुलर आती है, मैं बचपन से देख रही हूँ। ये तो बहुत पॉपुलर है, इन्फक्ट जब मुझे पता चला कि मायापुरी मैगज़ीन में मेरा इंटरव्यू आने वाला है तो पहले मुझे यकीन ही नहीं हुआ। मायापुरी के लिए इंटरव्यू देना तो मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।