यह बहुत कम ही होता है कि एक ग्यारह वर्षीय बच्चे द्वारा देखा गया सपना सच हो। छोटा त्रिनेत्र अपनी माँ, जो जानी मानी हिंदी लेखिका शांतिदेवी बाजपेई थी, जिनके साथ हिंदी फिल्में देखने का शौकीन था। उन्हें बचपन में ही महान फिल्मकार बी आर चोपड़ा और विजय आनंद से मिलने का सौभाग्य मिला, जो उनकी माँ के उपन्यास ‘व्यावधान’ पर फिल्म बनाना चाहते थे। लेकिन उनके साथ वह काम नहीं कर सके क्योंकि वह लोग उनकी माँ के विषय पर समझौता चाहते थे जिसके लिए उन्होंने मना कर दिया और वापिस लखनऊ चली गयी। उनका बेटा त्रिनेत्र विश्व का जाना पहचाना केमिकल इंजीनियर बनने के लिए निकल पड़ा लेकिन वह लेख टंडन की प्रोफेसर गिरी देखने के बाद अपनी माँ से कहे गए सपने के बारे में नहीं भूला। वह उस फिल्म से इतने प्रभावित हुए थे की उन्होंने लेख टंडन के साथ फिल्म बनाने की इच्छा प्रकट की थी। त्रिनेत्र ने 18 साल तक विश्व के अलग अलग देशों में खूब नाम कमाया और फिर वह मुंबई आ गए। वे उस शहर में वापिस आ गए जिसे वह अपने सपनो का हिस्सा बनाना चाहते थे। उन्होंने लेख टंडन से मिलने की कई कोशिशें की और उनकी कई मुलाकातों के बाद त्रिनेत्र ने दूरदर्शन के लिए सबसे महत्वपूर्ण सीरियल ‘बिखरी आस निखरी प्रीत’ का निर्माण किया। यह सीरियल उनकी माँ के उपन्यास व्यावधान पर आधारित था। इस सीरियल की सफलता ने उन्हें एक फिल्म बनाने के लिए सोचने पर मजबूर किया लेकिन वह फिल्म को डायरेक्ट करने के लिए सिर्फ लेख टंडन को चाहते थे जबकि लेख टंडन जी 80 साल की उम्र में थे।
लेख के पास कई विषय थे लेकिन जिस विषय ने उन्हें प्रभावित किया वह था आज की तारीख का जलता मुद्दा तिहरा तलाक। दोनों ने अपने दिमाग चलाये और कहानी ‘फिर उसी मोड़ पर’ लिखी गयी। लेख अपनी आखिरी फिल्म पर काम कर रहे थे और वह इस तरह काम कर रहे थे की वह वाकई में ही उनकी आखिरी फिल्म साबित हुई। फिल्म की शूटिंग के बाद उनका देहांत हो गया और बाजपेई जो फिल्म के संगीत की जिम्मेदारी संभाल रहे थे, को पूरी फिल्म की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। उन्होंने फिल्म के साथ पूरा इन्साफ किया है और फिल्म को सम्मानित बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया। फिल्म को भुवनेश्वर फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर के अवॉर्ड से नवाजा गया है। बर्लिन जाने से पहले उन्होंने अपनी अभिनेत्री और गायिका पत्नी कनिका बाजपेई के साथ कुछ मिनट के लिए हमसे बात की-
क्या आपको लगता हैं की तिहरा तलाक के खिलाफ बिल को पार्लियामेंट में पास किया जायेगा ?
यह एक ऐसा विषय हैं जिसने कई लाखों मुस्लिम महिलाओं की जिन्दगी को प्रभावित किया है और इसलिए इस विषय पर फिल्म बनाने की मुझे प्रेरणा मिली। हमने इस विषय के साथ फिल्म में इन्साफ करने की कोई कसर नहीं छोड़ी है। मैं बिल के पास होने के समर्थन में हूँ लेकिन इसमें मेरा कोई राजनीतिक कारण नहीं है। अगर यह बिल पास होता है तो मुस्लिम महिलाओं के लिए यह एक वरदान होगा क्योंकि इस दुखदायी बोझ को वह सालों से झेल रही है।
देश के वातावरण को देखते हुए, आपको नहीं लगता की इतने गंभीर मुद्दे पर फिल्म बनाने का रिस्क आपने लिया है ?
मैं और लेख जी मानते थे की किसी को सच्चाई बताने में झिझकना नहीं चाहिए बेशक उसका परिणाम कुछ भी हो। अब जो कुछ होगा वह फिल्म की किस्मत तय करेगा लेकिन मुझे हमेशा खुशी होगी की मेरे अंदर इस फिल्म को बनाने की हिम्मत थी। यह फिल्म एक ऐसे विषय पर बनी है जिसपर कोई फिल्म बनाने की हिम्मत नहीं करता। भारतीय फिल्मों के इतिहास में ‘फिर उसी मोड़ पर’ एक मील का पत्थर साबित होगी और मुझे खुशी है की इसके लिए मुझे हमेशा याद किया जायेगा।
हमने सुना है की आपने कई देशो में बतौर केमिकल इंजीनियर बड़े बड़े प्रोजेक्ट करने के बाद इस फिल्म के संगीत को भी तैयार किया है ?
लेख जी ने म्यूजिक डायरेक्टर शंकर जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ काम किया है। उन्होंने इस बार दो नए म्यूजिक डायरेक्टरों के साथ काम करने की कोशिश की लेकिन जब उन्होंने फिल्म की कव्वाली की धुन सुनी तो उन्होंने उन्हें फिल्म से बाहर निकाल दिया। हमने कंपोजर बदलने के लिए मुलाकात की और लेख जी ने अचानक कहा की मैं उनकी जगह लूंगा। उन्हें मेरे हर प्रकार के संगीत के ज्ञान के बारे में पता था और उन्हें विश्वास था की मैं फिल्म के संगीत के साथ पूरा इन्साफ करूँगा। मैंने इस चुनौती को अपनाया और फिल्म के संगीत को तैयार किया। फिल्म के ज्यादातर गानो को जावेद अली और मेरी पत्नी कनिका ने गाया है।
बर्लिन में आप और आपकी टीम किस उम्मीद से जा रही है ?
मैं जिन्दगी के प्रति एक आशावादी इंसान हूँ और इसी भाव के साथ मैं बर्लिन फेस्टिवल में जा रहा हूँ और जब मेरी फिल्म रिलीज होगी तो मैं हर प्रकार की चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हूँ।