अमिताभ की इमेज बदलने का क्रेडिट मनमोहन देसाई को जाता है - जावेद अख्तर By Mayapuri Desk 22 Jan 2021 | एडिट 22 Jan 2021 23:00 IST in इंटरव्यूज New Update सलीम-जावेद का नाम लेखकों की नाक समझा जाता था। उन दोनों ने लेखक की शान बढ़ा दी थी। उनके अलग होने की खबर से जहाँ फिल्मकारों को दुख हुआ वहाँ उन से जलने वालों को खुशी हुई। लोगों ने कहा- वह जब तक एक थे इंडस्ट्री पर राज कर रहे थे। अब उन्हें कोई न पूछेगा। किन्तु हमें यकीन था कि जावेद भी अपनी पहचान बनाने में सफल रहेगा। वह जब साथ थे तो हमे लगा था कि दोनों में लेखक जावेद ही हैं सलीम केवल बिजनेस मैन है। और यह बात हमने जब जावेद से कही थी तो जावेद इस बात को टाल गया था और कहा- ऐसी बातों में पड़नें से कोई लाभ नहीं है।” लेकिन जावेद ने ‘सिलसिला’ के गीत और ‘बेताब’ लिखकर हमारी बात सच सिद्ध कर दिखाई है। आज जावेद के पास पुनः फिल्मों की लाइन लगी हुई है। और सलीम-की- केवल घोषणाएँ ही हो रही हैं। कोई फिल्म अभी तक शुरू नहीं हुई है। -जैड. ए. जौहर राजकमल में ‘जोशीले’ के सैट पर जावेेद अख्तर ने हमें देखा तो निहायत अपनापन के साथ शिकायत करते हुए कहाः--- ’आप हमें भूल गए हैं। हम आपकी पत्रिका पढ़ते-रहते हैं।' यह बात नहीं है। हमने आपको कई बार फोन किया परन्तु आप से संपर्क ही नहीं हो सका। हम दोस्तों के दोस्त हैं। हमने अपने तौर पर सदा अपने दोस्तों से निःस्वार्थ प्रेम किया है किन्तु हमें जितने दोस्त मिले बेवफा मिले। मतलब निकलते ही हमें भूल जाते है और हमें तब ऐसा लगता है कि हम वफा करके भी तन्हा रह गए। आप बताईये कब फ्री हैं। आपके साथ बैठ जाते हैं, हमने कहा। “परसों आ जाईयेगा। मैं आपका इंतजार करूँगा' जावेद ने कहा। हम जावेद से मिले और बातों का सिलसिला छेड़ते हुए कहाः---- आपने ‘बेताब’ से पुनः अपना लोहा मनवा लिया है। हमें इस बात की खुशी है। क्योंकि हमें विश्वास था कि आप अकेले ही दो क्या दस लेखकों पर भारी हैं। मगर इंडस्ट्री वालें कहते हैं कि जावेद की कलम में सलीम-जावेद वाली इन्टेसिन्टी नहीं आ पाई है। आप इस बारे में क्या कहते हैं? खुदा के करम से ‘बेताब’ सुपर हिट सिद्ध हुई है। उसके बाद लोगों ने जावेद का ऐसा स्वागत किया है जो कभी सलीम- जावेद का भी नहीं हुआ था। जावेद अख्तर ने कहा। फिल्मी पंडित क्या कहते हैं उनकी मुझे परवाह नहीं है। लोगों को फिल्म पसंद आई हैं। जिसका प्रमाण बॉक्स आफिस कलेंक्शन है। लेकिन इस बात को तो मानेंगे कि आपकी ‘जमीर’, ‘शोले’ और ‘दीवार’ के मुकाबले में ‘शक्ति’ किसी कदर नरम रही, क्योंकि उसमें अमिताभ के साथ न्याय नहीं हो सका। यह इंडस्ट्री वालों के विचार हैं। हकीकत’ यह है कि आम तौर पर हर खास और आम दर्शक ने ‘शक्ति’ को पसंद किया है। उसकी वजह यह है कि फिल्म पर दिलीप साहब और अमिताभ जैसे दो सशक्त पुरूष पात्र हावी हैं। फिर भी इमोशनली फिल्म में लेडीज वर्ग को मन जीता है। जावेद ने कहा। जहाँ तक अमिताभ की बात है हम उससे सहमत नहीं हैं। दर्शकों की पूरी सहानुभूति अमिताभ के साथ रहती है। यह जरूरी तो नहीं है कि हर फिल्म में वह हीरोईन दिखाये। अमिताभ को अपने रोल और काम के लिए हमेशा की अपेक्षा अधिक प्रशंसा मिली है। एक से अधिक हीरो होने का प्रायः “आपकी फिल्मों में ऐसा हुआ है। ‘दोस्ताना’ में शत्रुघ्न सिन्हा को यह शिकायत रही कि उसका रोल काटा गया? यह बेकार की बातें हैं। आप मुझे एक भी फ्रेम दिखा दीजिए जहाँ लगे कि शत्रुघ्न सिन्हा को रोल काटा गया है। जावेद ने कहा। अब उसकी क्या चर्चा करना। अब तो बात बहुत पुरानी हो गई है। आपने अब तक जो हिट फिल्में अमिताभ बच्चन के लिए लिखीं यह जरूर अमिताभ को सामने रख कर लिखी होंगी। इसी लिए उनमें अमिताभ के टेलर मेड रोल रहे हैं। क्या सन्नी के लिए भी इसी तरह उसे दिमाग में रखकर कहानी लिखी है? हालाँकि यह आपके स्टाइल से हट कर बनी है। यह सब आपने कैसे किया? यह सही है कि हमने अमिताभ के लिए जो स्क्रिप्ट लिखी हैं वह उसे दिमाग में रखकर ही लिखी हैं। वैसे प्रायः ऐसा होता है कि जब कोई कहानी तैयार करते हैं तो पात्र को जो कलाकार सैट करता है वह नजरों में रखते हैं। इसलिए उस वक्त थोड़ी सी परेशानी होती है जब निर्माता अपनी पसंद के कलाकार बताता है। तब उसके हिसाब से हमें थोड़ी बहुत तब्दीली करनी पड़ती है। जावेद ने कहा। ‘बेताब’ के समय जब धर्मेन्द्र और राहुल रवैल मेरे पास आए और-कहा कि सन्नी को लेकर लव स्टोरी बनाना चाहते हैं तो वह मेरे लिए एकदम नई बात थी। ‘बेताब’ से पूर्व हमने जो कहानी लिखी थी वह बुनियादी तौर पर काफी ड्रामा और मैच्योर कैरेक्टर पर आधारित थीं इसलिए मैंने इसे एक चैलेंज समझकर स्वीकार कर लिया। तब तक मैं सन्नी से मिला भी नहीं था। मैंने दो चार आईडिये धरम जी को सुनाये। जब कहानी फाइनल हो गई तो मैं सन्नी से मिला और उसके प्लस प्वाइंट को सामने रखकर पटकथा तैयार की। एक्शन फिल्मों से हटकर एक लव स्टोरी लिखने में आपको परेशानी भी काफी उठानी पड़ी होगी। आप किस तरह ‘बेताब’ लिखने में सफल हो सके? यह तो आपको पता ही है कि मेरी याददास्त बहुत अच्छी है। मैंने बहुत सी लव स्टोरीज पढ़ी थीं। कुछ देखी भी थीं। और ऐंसी फिल्में देखते हुए मुझे उस वक्त काफी कोफ्त होती थी जब वह बुनियादी लाइन से हटकर उसमें एक और प्लॉट घुसेड़ देते थे। इसलिए मैंने मन ही मन फैसला किया कि मैं इस तरह नहीं करूंगा। और मेन थीम से भटकूगां नहीं क्योंकि दो मासूम और सीधे साधे दिलों की “ कहानी में जब तक सादगी न हो बात नहीं बनती और मैं उसमें सफल रहा हूँ। एक बात यह समझ में नहीं आई कि जब किसी नये कलाकार को ब्रेक दिया जाता है तो लव स्टोरी द्वारा ही उसका कैरियर क्यों शुरू किया जाता है। जबकि डर भी रहता है कि लव स्टोरी में कोई कहाँ तक नयापन ला सकता है? इंसान बुनियादी तौर पर मोहब्बत करने वाला प्राणी है। इसलिए मोहब्बत का जज्बां सबसे सशक्त माना गया है। प्यार से संबंधित कोई भी बात इंसान को आकर्षित करती है। बस उसमें नई जोड़ी होनी चाहिए। क्योंकि लोग पेड़ों के आगे पीछे दौड़ते हुए बहुत से कलाकारों को पहले देख चुके होते हैं। इसलिए जब उन्हें यह पता चलता है कि यह इनकी पहली मोहब्बत है तो वह उसे मानकर देखी हुई चीजें भी देखने को तैयार रहते हैं। इसीलिए एक बार जब फिल्म रिलीज हो जाती है तो फिर उसका वह चार्म खत्म हो जाता है। क्योंकि फिर तो प्रेम करना उसका बिजनेस बन जाता है। इसलिए ऋषिकपूर को जो सफलता ‘बॉबी’ में मिली वह और फिल्मों के सिवाए ‘लैला मजनू’ के किसी फिल्म में नहीं मिली। ऐसा ही कुमार गौरव के साथ हुआ है। आप केवल काल्पनिक कहानियाँ ही लिखते हैं या जीवन के किसी असली पात्र या घटना से प्रभावित होकर भी कहानियाँ लिखते हैं? एक पूरी कहानी किसी घटना या किसी इंसान की रियल लाइफ पर आधारित नहीं हो सकती। यह जरूर है कि एक कहानी में आठ दस रियल लाइन इंसिडेंट का समावेश किया जा सकता है किन्तु पूरी कहानी नहीं बनाई जा सकती। शायद यह आप इसलिए कह रहे हैं कि आज आप ही नहीं लगभग सभी लेखक इंग्लिश फिल्मों से काफी कहानियाँ चुराते हैं। क्या आप यह सब ठीक समझते हैं? जो लोग ऐसा कहते हैं मैं उनसे सहमत नहीं हूँ। क्योंकि इस प्रकार की चोरी संभव ही नहीं है और न ही चोरी के माल से आज तक कोई सफल फिल्म बन सकी है। ‘मनोरंजन’, ‘खून ही खून’, ‘बंडलबाज’ आदि कुछ फिल्में अंग्रेजी की हूबहू कॉपी करके बनाई गई थीं। किन्तु उनमें से कोई भी बॉक्स आफिस पर सफल नहीं हो सकी। जावेद ने कहा। आप एक आध पंच को फिल्म से उठाकर अपने यहाँ इस्तेमाल कर सकते हैं। किन्तु एक पंच से पूरा स्क्रीन प्ले नहीं तैयार हो जाता। ऐसा इसलिए भी संभव नहीं है कि हमारे और वेस्ट के कल्चर और नैतिक मूल्यों में जमीन आसमान का अंतर है। अंग्रेजी फिल्मों का प्लॉट किसी लघुकथा की तरह होता है। जबकि हिन्दी फिल्मों की कहानी किसी उपन्यास की तरह होती है जिसमें कई प्लॉट और चैप्टर होते हैं। अगर जैसा कि आप कह रहे हैं कि लोग कहते हैं कि मैं अंग्रेजी फिल्मों से कहानियाँ चुराता हूँ तो लोग मेरे पास न आते बल्कि स्वंय ही किताब मंगाकर या पाँच-छः बार विदेशी फिल्म देखकर फिल्में बना लिया करते। सलीम से जोड़ी तोड़ने के बाद आप कैसा महसूस करते हैं। कुछ लोग तो बहुत खुश हैं। क्या भविष्य में पुनः इकट्ठे होने की संभावना है? लोग हमारे अलग होने से खुश है तो यह उनकी मूर्खता है। पहले तो उन्हें केवल एक सलीम-जावेद से टक्कर लेनी पड़ती थी। अब सलीम और जावेद दोनों से ही टक्कर लेनी पड़ेगी। हम दोनों प्रोफेशनली जरूर अलग हो गए हैं किन्तु इमोशनली आज भी एक हैं। और एक दूसरे से उसी तरह मिलते हैं जैसे कि पहले मिला करते थे। किन्तु दुबारा इकट्ठा होना संभव नहीं है। एक जमाना था कि सलीम-जावेद के नाम पर फिल्में बिका करती थीं। जिसके कारण आप लोग यह कहने लगे थे कि आप स्टार और डायरेक्टर बनाते हैं। क्या अकेले रहकर भी आप उस पोजीशन को हासिल कर सकेंगे? कोई किसी को नहीं बना सकता। एक स्क्रिप्ट राइटर एक आर्टिस्ट के लिए अच्छा रोल लिख सकता है। उसके लिए प्लेटफॉर्म बना सकता है। लेकिन उस रोल को आर्टिस्ट किस हद तक निभा सकता है यह उसके अपने टैलेन्ट पर निर्भर करता है। मैं कहता हूँ कि न तो मुझे किसी ने बनाया है और न ही मैं किसी को बना सकता हूँ। मैंने ‘बेताब’ लिखी सन्नी और अमृता ने अच्छा परफॉमेन्स दिया। राहुल ने उनसे अच्छी तरह काम लिया जिससे कहानी को राहुल ने चार चाँद लगा दिये और मेरी कल्पना से कहीं अधिक सुन्दर फिल्म बनाई। लोगों को प्राय निर्देशक से शिकायत रहती है कि वह उनके कन्सेप्शन को साकार नहीं कर सका किन्तु राहुल मेरी कल्पना से भी एक कदम आगे रहा है। इससे अच्छी फिल्म इस स्क्रिप्ट पर नहीं बन सकती थी। इस इंडस्ट्री में सदा स्टार चलते आए हैं। ‘बेताब’ ने स्टार पैदा कर दिए हैं। हालाँकि लोग कहते थे कि हम स्टार या अमिताभ के लिए ही कहानियाँ लिख सकते हैं। नये लोगों के लिए नहीं लिख सकते। ‘बेताब’ ने इस बात को भी झुठला दिंया है। मुझे आज मेरी प्राइस मिल रही है। अब यह निर्माता का सिर दर्द है कि वह मेरे नाम पर फिल्म बेचता है, या स्टार्स के नाम पर। मैं इन बेकार की बातों में क्यों पड़ूँ? सुना था कि आपने शबाना आजमी के साथ मिलकर टीम बना ली है। और जी.पी. सिप्पी के लिए कहानी भी लिख रहे हैं जोकि सई प्रांजपय डायरेक्ट करेंगी। किन्तु अभी तक उस दिशा में और कुछ सुनने को नहीं मिला? जी.पी. सिप्पी को जो कहानीं मैंने दी है उससे शबाना का कोई संबंध नहीं है। उस फिल्म के शुरू होने में अभी समय लगेगा। ‘हाथी मेरे साथी’ जैसी हिट फिल्म के बाद साउथ के निर्माताओं के साथ फिल्में न करने का क्या कारण है? जब मैं स्क्रिप्ट लिखता हूँ तो यह नहीं सोचता कि कहाँ के निर्माता को कहानी बेचनी है। हर निर्माता और निर्देशक का अपना एक पसंदीदा लेखक होता है। अभी वहाँ दूसरे लोग लिख रहें हैं। जिस दिन वह लोग सोचेंगे कि उन्हें मेरी कहानी पर फिल्म बनानी है तो खुशी से उनके साथ काम करूंगा। ‘मासूम’, ‘अर्थ’, ‘बाजार’ जैसी फिल्मों की सफलता से मल्टी स्टार फिल्मों को जबरदस्त धक्का लगा है। क्या इससे यही नतीजा निकालना चाहिए कि दर्शकों की पसंद में परिवर्तन आ रहा है। और अब मल्टी स्टार फिल्मों का भविष्य अंधकार में है? मुझे इस बात से खुशी है कि पब्लिक के टेस्ट में परिवर्तन आ रहा है। छोटे बजट की फिल्मों के लिए अच्छा माहौल बन रहा है। किन्तु जिस प्रकार आज लोग मल्टी स्टार या बिग बजट फिल्मों से ऊब गए हैं। एक दिन आएगा कि उन्हें आज की फिल्मों से उदासी आने लगेगी तब एक बार फिर मल्टी स्टार और बिग बजट फिल्मों का दौर एक न एंक दिन जरूर आएगा। जावेद अख्तर ने कहा। एक जमाने में ‘जजीर’ से एक्शन फिल्मों का दौर शुरू हुआ था। ‘बेताब’ से रोमेंटिक फिल्मों का दौर शुरू होगा और फिर कोई फिल्म आएगी कि फिर सारा कुछ बदल जाएंगा। यह साईकिल यूँ ही चलती रहती है। आज जो स्टार सन आ रहे हैं उनके बारे में आपके विचार क्या हैं? क्या वह आज के मंझे हुए कलाकारों के सामने टिक सकेंगे? सन्नी की ‘बेताब’ के सिवा मैंने किसी स्टार सन की फिल्म नहीं देखी। ट्रेड पेपर्स की रिपोर्ट के अनुसार संजय दत्त और कुमार गौरव की फिल्मों को लोगों ने पसंद किया था। इसलिए भी वह चले तो अच्छे ही आर्टिस्ट होंगे। सन्नी लायक बाप का बेटा सिद्ध हुआ है। उसमें धरम जी की तरह हीमैन क्वालिटी भी है और रोमेंटिक हीरो वाला चार्म भी है। इसलिए वह एक्शन और रोमांस दोनों तरह के रोल समान क्षमता से निभा सकता है। वह उसने अपनी पहली ही फिल्म में सिद्ध कर दिया है। आपकी फिल्म ‘जमाना’ काफी अर्से से रूकी पड़ी है। क्या उसका कारण सलीम का अलग होना है? और भी बहुत सी समस्याएँ थीं जिनके कारण शूटिंग नहीं हो सकी थी। अब पुनः प्रगति की ओर अग्रसर हो गई है। बारह रीलें तैयार हैं जो बहुत अच्छी बनी है। जिस प्रकार आपने अमिताभ बच्चन को लोकप्रिय किया था। ‘बेताब’ से सन्नी को स्टारडम मिल गया है क्या इसी तरह ‘जमाना’ से राजेश खन्ना की लोकप्रियता भी बढ़ेगी? हमने पूछा। उसके बाद क्या पुनः अमिताभ का नम्बर लगाएंगे। फिल्म अच्छी बनी हो तो बॉक्स आफिस पर जरूर चलती है और फिल्म के चलने से सबको ही लाभ होता है। ,जावेद ने कहा 'अमिताभ बच्चन को एंग्रीयंग मैन की इमेज देने की जिम्मेदारी हमारी है किन्तु उसके बाद वह इमेज ‘शोले’ तक ही रही। बाद में ‘अमर अकबर एन्थोनी’ से अमिताभ की इमेज में रोल के कारण भारी परिवर्तन आया। जिसका क्रेडिट मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा को जाता हैं। आज की लोकप्रियता में उन दोनों का बड़ा योगदान है। कुछ आपकी आगामी फिल्मों के बारे में भी बताईये कि वह किस प्रकार की फिल्में हैं? मैं विभिन्न प्रकार की फिल्में लिख रहा हूँ। ‘दुनिया’ और ‘मशाल’ मेरे अपने रंग की फिल्में हैं जिनमें एक्शन, ड्रामा सभी कुछ है। ‘सागर’ एक अलग तरह की रोमांटिक ट्राइंगल है। किन्तु उसे लव स्टोरी नहीं कह सकते। क्योंकि कैरेक्टर काफी मैच्यूर है। उसमें ‘बेताब’ से अधिक प्लॉट और ट्विस्ट है। ‘जोशीले’ एक अडवेन्चर कहानी है। आज जबकि आपने स्क्रिप्ट के साथ गाने भी लिखने शुरू कर दिए हैं तो कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि आप स्क्रिप्ट लिखने के साथ गीत लिखने की शर्त भी रखने लगें? मेरा काम गाने लिखने का नहीं है। मुझे शायरी का शौक है, लगाव है। सिचुएशन के अनुसार अगर कोई गीत दिमाग में आ जाता है तो गाना लिख देता हूँ। अगर वह निर्माता-निर्देशक को पसंद आ गया तो ठीक वर्ना मैं जबरदस्ती नहीं करता। यह लेख दिनांक 23-10-1983 मायापुरी के पुराने अंक 474 से लिया गया है! #sunny deol #Amitabh Bachchan #Salim khan #JAVED AKHTAR #betab हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Latest Stories Read the Next Article